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भारत का संवैधानिक विकास ,एक्ट और अधिनियम: एक दृष्टी में

भारत का संवैधानिक विकास ,एक्ट और अधिनियम: एक दृष्टी में

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1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट

  • इस एक्ट का उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को ब्रिटिश सरकार की निगरानी में लाना था|
  • कोर्ट ऑफ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष के स्थान पर 4 वर्ष का हो गया|
  • कोलकाता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई इम्पे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया|

पिट्स इंडिया एक्ट (1784)

  • गवर्नर जनरल की कामसूत्र के सदस्यों की संख्या 3 कर दी गई|
  • मद्रास, मुंबई की सरकारे , बंगाल के अधीन |
  • 6 कमिश्ननरो के एक बोर्ड का गठन हुआ|

1786 का एक्ट

  • पिट द्वारा पेश इस अधिनियम में गवर्नर जनरल को विशेष व्यवस्था में अपनी परिषद के निर्णय को रद्द करने तथा अपने निर्णय लागू करने का अधिकार दिया गया |

1793 का चार्टर एक्ट

  • कंपनी का भारत में व्यापार करने का अधिकार 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया |
  • अपनी परिषदों के निर्णय को रद्द करने का अधिकार सभी गवर्नर जनरल को दे दिया गया |

1813 का चार्टर एक्ट

  • कंपनी का भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया गया, परंतु चीन के साथ व्यापार व चाय के व्यापार का एकाधिकार कंपनी के पास सुरक्षित |

1833 का चार्टर एक्ट

  • इसमें चीन के साथ व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया|
  • प्रशासन का केंद्रीकरण कर दिया गया तथा बंगाल के गवर्नर जनरल को ‘भारत का गवर्नर जनरल’ बना दिया गया|

1853 का चार्टर एक्ट

  • इसमें यह व्यवस्था की गई कि नियंत्रण बोर्ड, सचिव तथा अन्य अधिकारियों का वेतन सरकार निश्चित करेगी, परंतु वेतन कंपनी उपलब्ध कराएगी|
  • इस अधिनियम को सबसे बड़ी कमी यह थी कि भारतीयों को अपने विषय में कानून बनाने की अनुमति नहीं दी गई थी|

1858 का अधिनियम

  • द्वैध शासन व्यवस्था, इस के लागू होने से समाप्त हो गई तथा देसी राजाओं का क्राउन से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित हो गया|
  • भारत का गवर्नर जनरल ‘भारत का वायसराय’ कहा जाने लगा|

1861 का भारतीय परिषद अधिनियम

  • यह पहला ऐसा अधिनियम था जिसमें विभागीय प्रणाली एवं मंत्रिमंडलीय प्रणाली की नींव रखी गई|
  • इस अधिनियम द्वारा विधान परिषद के अधिकार अत्यंत सीमित हो गए| विधान परिषद का कार्य केवल कानून बनाना था|
  • गवर्नर जनरल को संकटकालीन अवस्था में विधान परिषद की अनुमति के बिना ही अध्यादेश जारी करने की आजादी थी|

1892 का भारतीय परिषद अधिनियम

  • इस अधिनियम द्वारा जहां एक और संसदीय प्रणाली का रास्ता खुला और भारतीयों को काउंसिलों में अधिक स्थान मिला|
  • वहीं दूसरी ओर चुनाव पद्धति व गैर सदस्यों की संख्या में वृद्धि ने असंतोष उत्पन्न कर दिया|
  • इसके तहत वार्षिक बजट पर वाद-विवाद व इससे संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते थे|
  • परंतु मत विभाजन का अधिकार नहीं दिया गया था|

1992 का भारतीय परिषद अधिनियम

  • इस अधिनियम को “मार्ले-मिंटो सुधार” के नाम से जाना जाता है|
  • विधान परिषद के अधिकारों में वृद्धि, इससे सार्वजनिक हितों से संबंधित प्रस्तावों पर बहस करने तथा पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार मिल गया व मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था|

1919 मांटेस्क्यू चेम्सफोर्ड सुधार

  • सांप्रदायिक निर्वाचन का दायरा बढ़ा कर व्यक्तिगत हित तक सीमित कर दिया गया|
  • प्रांतों में द्वैध शासन लागू किया |
  • प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित किया गया-
    1- आरक्षित
    २- हस्तांतरित

भारत सरकार अधिनियम 1935

  • केंद्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गई|
  • इस अधिनियम में एक अखिल भारतीय संघ की व्यवस्था की गई|
  • प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर प्रांतीय स्वायत्तता की व्यवस्था की गई|
  • बर्मा को भारत से अलग किया गया|
  • इंडियन काउंसिल को खत्म कर दिया गया तथा आरबीआई की स्थापना की गई|

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shubham yadav

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