शीत युद्ध

Essay on India’s Foreign Policy(भारत की विदेशनीति) in Hindi

Essay on India’s Foreign Policy(भारत की विदेशनीति) in Hindi

Hello Friends,currentshub में आपका स्वागत हैं , अगर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के लिए India’s Foreign Policy notes या बुक तलाश कर रहे हैं तो आप एकदम सही स्थान पर हो क्यूंकि आज हम आप सभी के लिए भारत की विदेशनीति notes लेकर आये हैं ये notes एकदिवसीय परीक्षा की तैयारी करने के लिए बहुत ही उपयोगी notes हैं. जैसे की आप सभी जानते ही हैं की आजकल सभी परीक्षाओं इससे जुड़े बहुत से प्रश्न पूछे जाते हैं. तो दोस्तों आप सभी इसको अवश्य पढ़े | ये आप सभी के लिए बहुत ही helpful होगा |

India’s Foreign Policy(भारत की विदेशनीति)

Essay on India’s Foreign Policy

Essay on India’s Foreign Policy

  • आज का विश्व विचित्र परिस्थितियों से गुजर रहा है |
  • किस क्षण क्या हो जायेगा,यह कोई नही बता सकता |
  • युद्ध के काले बादल अब भी मंडरा रहे है और मानवजाति को विनाश की आशंका से व्यग्र कर रहे हैं |
  • भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के शब्दों में ” आज का समाचार दो परस्पर विरोधी क्षेत्रों में उद्भ्रांत सा होकर घूम रहा है| कभी इधर आता है और कभी उधर जाता है| एक और शांति, सुरक्षा और समृद्धि का स्वर्ग गूँजता है तो दूसरी ओर युद्ध के काले बादल भयंकर गर्जना करते हैं|
  • आज संसार अपने अस्तित्व की संकटग्रस्त घड़ियों से गुजर रहा है|
  • कोई नहीं बता सकता कि मानव का भविष्य क्या होगा?
  • वर्तमान नाजुक परिस्थितियों से निरापद जीता-जागता बच जाएगा|
  • अथवा विश्वव्यापी आणविक युद्ध में नष्ट हो जाएगा|
  • ऐसी स्थिति में, संसार को जीवन या मरण में से एक का वरण कर लेना है|
  • यदि वह जीवन को चुनता है तो उसे शांति और सद्भावना की नीति अपनानी होगी, सहनशीलता और धैर्य का सहारा लेना होगा|
  • हमें  ‘स्वयं जीवित रहो और दूसरों को भी जीवित रहने दो‘ की नीति अपनानी पड़ेगी|
  • उसे सहअस्तित्व, मैत्री, पंचशील तथा सर्व हित की भावना का आश्रय लेना होगा|

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  • भारत के कर्णधार अच्छी तरह समझते हैं कि गुटबंदी में पड़ने से उनके देश का भला नहीं है|
  • वे रूस और अमेरिका, दोनों के सैद्धांतिक मतभेदों को समझते हैं; किंतु वे दोनों में से किसी एक के भी अंधभक्त नहीं है|
  • भारत दोनों गुटों की नीतियों और सिद्धांतों का निष्पक्ष पर्यवेक्षक है|
  • वह दोनों में से किसी की भी नीति अथवा विचारधारा का समर्थन नहीं करता,
  • अपितु उसका सदा यही प्रयास रहता है कि दोनों गुट अपने सिद्धांत इन मतभेदों के बावजूद साथ-साथ रहना सीख जाएं|
  • मानव के विकास के लिए शांति और सुव्यवस्था की स्थापना के लिए एक साथ प्रयास करें
  • और अपने ज्ञान विज्ञान द्वारा संसार को एक ऐसा रुप दें, जिसमें भारतीय मनीषियों का ‘वसुधैव कुटुंबकम‘ का सपना साकार हो जाए|

India’s Foreign Policy

  • भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक परिस्थितियों और सांस्कृतिक परंपराओं का गहरा प्रभाव पड़ा है|
  • बुद्ध, महावीर, अशोक और गांधी की सत्य और अहिंसा की नीति भारत की विदेश नीति का आधार-स्तंभ बनी|
  • समन्वय और सहिष्णुता, प्रेम और सद्भावना, सत्य-रक्षा, न्यायनिष्ठा,समता, बंधुत्व, एकता, और सहयोग हमारी विदेश नीति के प्राणतत्व हैं|
  • हम युद्ध के समर्थक नहीं, शांति के पुजारी हैं|
  • विश्व की क्या स्थिति है, मैथ्यू अर्नाल्ड के शब्दों में-” हम ऐसे अंधेरे मैदान में बेसुध पड़े हैं, जहां किसी भी क्षण धर्म और आशंका का भेदी युद्ध और विनाश का दृश्य उपस्थित कर सकता है| हम ऐसे स्थल पर खड़े हैं, जिसके एक और तो अतीत है, जो मर चुका है और जिसकी गुड गाथा गाने से हमारा कुछ भला नहीं होगा और दूसरी और एक भविष्य है, जो अशक्त और निर्बल दिखाई पड़ता है| मानव जाति और संसार का हित इसमें नहीं है कि भविष्य निर्भर और आशाशून्य हो| इसे अमाशय और गौरवशाली बनाने में भी विश्व तथा इसकी प्रगतिवादी शक्तियों की समृद्धि संभव है|”

शीतयुद्ध(COLD WAR) का विकास; प्रमुख घटनाएं: एक दृष्टी में

  • इन सारी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर भारत में शांति और तटस्थता की नीति अपनाई है|
  • भारत की तटस्थता का तात्पर्य कदापि नहीं है कि वह संसार की गतिविधियों के प्रति उदासीन है तथा उसकी दृष्टि स्वयं तक ही सीमित है| उ
  • सकी तटस्थता का अर्थ है कि वह युद्ध की संभावनाओं को बढ़ाने वाली गुटबंदी और सैनिक करारों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता है|
  • स्व. प्रधानमंत्री नेहरू के शब्दों में-” सारा विश्व इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह जैसी नीति चाहे वैसी अपनाएं, किंतु हम भारतीयों ने यही निश्चय किया है कि हम तटस्थता की नीति अपनाएंगे और सैनिक गठबंधनों तथा शीत युद्ध को बढ़ाने वाले तत्वों के चक्कर में नहीं पड़ेंगे| हम सारे संसार से मित्रता और सद्भावना चाहते हैं| सबके साथ बंधुत्व और सहयोग की भावना अपनाना चाहते हैं| हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि सह अस्तित्व की नीति शांति का अभयदान देती है| युद्ध की संभावनाओ को मिटाती है तथा सहयोग और सद्भावना के सूत्र में बांधती है| यह मानव के दृष्टिकोण में परिवर्तन करती है और युद्ध की आशंका की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया से संसार को बचाती है|
  • युद्ध का भय जब तक संसार के ऊपर मंडराता रहेगा तब तक मनुष्य का मस्तिष्क भय, घृणा, ईर्ष्या, तथा आशंका से भरा रहेगा और शीत युद्ध का क्षेत्र विस्तृत होता रहेगा|
  • इस खतरे को मिटाने के लिए आवश्यक है कि शांति और मध्य की नीति अपनाई जाए तथा विश्व शांति की स्थापना के लिए पंचशील और सह-अस्तित्व का सहारा लिया जाए|

शीत युद्ध(COLD WAR) विभिन्न परिभाषाएं in hindi

  • यह तो पंचशील का सिद्धांत हमारी विदेशनीति में प्राण तत्व बनकर आरंभ से ही समाया हुआ है,
  • किंतु सन 1954 में चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई तथा तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के संयुक्त विज्ञप्ति मैं भारत की शांति और मैत्री के सिद्धांतों को पंचशील के रूप में अंतर्राष्ट्रीय दर्जा मिला|
  • पंचशील के सिद्धांतों के द्वारा एक दूसरे पर आक्रमण न करने, एक दूसरे की संप्रभुता का आदर करने,
  • एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, सहयोग, सद्भावना, और मैत्री की संभावनाओं सुदृढ़ बनाने तथा सह-अस्तित्व की नीति अपनाने का दृढ़ निश्चय किया गया|
  • बांडुंग सम्मेलन में इन सिद्धांतों के व्यापक प्रचार का मार्ग खोल दिया|
  • संसार से अत्यधिक प्रभावित हुआ| उसने समझ लिया कि विश्व शांति के लिए आवश्यक है कि पंचशील का सिद्धांत अपनाया जाए|
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व उत्कृष्ट विधान है|
  • हम एक ऐसी स्थिति में पहुंच रहे हैं, जहां यह आवश्यकता अपने आप उभर आएगी|

India’s Foreign Policy

  • यदि इंसान ने पंचशील सह अस्तित्व के सिद्धांतों की उपेक्षा की तो उसका जीवन अस्तित्व विहीन हो जाएगा|
  • अब वह समय आ गया है, जब हमें यह तय करना होगा कि यह तो प्रेम, शांति और बंधुत्व के साथ मिल जुलकर रहना सीखें
  • अथवा शारीरिक और आत्मिक, दोनों दृष्टियों से विनाश के गर्त में पढ़ना स्वीकारकर ले
  • बांडुंग-सम्मेलन सह- अस्तित्व के समर्थक राष्ट्रों की संख्या बढ़ाई और विश्व शांति के पक्ष में शांतिवादी क्षेत्र का प्रसार किया|
  • रूस, यूगोस्लाविया, म्यांमार, संयुक्त अरब, गणराज, जापान तथा अन्य राष्ट्र शांतिवादी क्षेत्र के भीतर आ गए|
  • ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा था|
  • भारत शांतिवादी राष्ट्रों का पथ प्रदर्शक बना|
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के समर्थक इन राष्ट्रों ने साम्राज्यवादी देशों के शोषण और उपनिवेशवादी नीति का विरोध करना प्रारंभ किया|
  • रंगभेद और उपनिवेशवाद को मिटाने के लिए एकताबद्ध प्रयास करने का आवाहन किया |
  • संयुक्त राष्ट्र संघ में भी लोकतंत्रवादी शांतिप्रिय अफ्रीकी-एशियाई राष्ट्रों कि संगठित शक्ति की अभ्युदय में साम्राज्यवादी राष्ट्रों के शोषण, दमन और शक्ति बल पर निर्भर राष्ट्रों को दास बनाए रखने की नीति ढीली पड़ी |
  • अफ्रीका और एशिया में लोकतंत्र वादी युग का शुभारंभ हुआ|

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शीत युद्ध(COLD WAR) सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

  • भारत में पंचशील के सिद्धांतों का सदा पालन किया है|
  • अंतरराष्ट्रीय इतिहास का सचमुच यह दुखद पृष्ठ है कि जिस चीन ने पंचशील के सिद्धांतों को सर्वप्रथम स्वीकार किया था,
  • उसी ने भारत के साथ विश्वासघात किया| इन सिद्धांतों का उसने उल्लंघन किया|
  • इतना होने पर भी हम मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सो जाना चाहते हैं|
  • हम जानते हैं कि युद्ध समस्याओं का निराकरण नहीं है|
  • बुद्धि, विवेक, सद्भावना और आपसी वार्ता से ही समस्याओं का निराकरण किया जा सकता है|
  • इसी भावना को दृष्टिगत रखते हुए पाकिस्तानी आक्रमण के बाद भारत ने’ ताशकंद समझौता’ किया, जबकि वह ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं था क्योंकि भारत ने पाकिस्तान पर विजय पाई थी|
  • भारत उपनिवेशवाद का सदस्य विरोधी रहा है|
  • वह समझता है कि संसार में शीत युद्ध का एक प्रमुख कारण उपनिवेशवाद है|
  • उसका सदा से यही प्रयास रहा है कि उपनिवेशवाद में जकड़े देशों को स्वतंत्रता मिले|
  • इंडोनेशिया को डच उपनिवेशवाद से मुक्ति दिलाने में भारत का प्रमुख योगदान रहा|
  • भारत के नेतृत्व में शांतिवादी अफ्रीकी एशियाई गुट की जोरदार आवाज के कारण ही अपील की जनता को उपनिवेशवाद के बंधन से छुटकारा मिल सका|

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भारत की विदेशनीति

  • भारत के उत्तर प्रदेश में कुआं का उपनिवेश नासूर की भांति था|
  • ट्रांसलेट विवेक और समय की गति के अनुसार कार्य किया| उपनिवेशों ने शांतिपूर्वक अपना अधिकार हटाकर बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का परिचय दिया|
  • पुर्तगाल ने हठवादिता का रुख अपनाया, परंतु भारत में सद्भावना और आपसी वार्ता द्वारा समस्या का निराकरण करना चाहा, किंतु कोई परिणाम नहीं निकला|
  • विवश होकर भारत ने सैनिक कार्यवाही की| गोवा, दमन और दीव पर भारत का अधिकार हो गया|
  • इस पर पश्चिमी राष्ट्र मिला उठे और उन्होंने सुरक्षा परिषद में अपने समर्थक राष्ट्रों की मदद से गोवा में राष्ट्र संघ की सेनाएं भेजकर उसे ‘अशांति और शीत युद्ध‘ का स्थाई केंद्र बनाने का प्रयत्न किया, किंतु सत्य और शांति के समर्थक राष्ट्रों के समक्ष उनकी एक न चल पाई|
  • भारत की सदैव या नीति रही है कि पाकिस्तान के साथ हमारे मैत्रीपूर्ण संबंध बने रहें और आपसी विवादों का निपटारा शांति में ढंग से हो जाए|
  • कश्मीर के संबंध में मंत्री स्तर पर विचार विमर्श हुआ है किंतु पाकिस्तान की हठवादिता के कारण उचित समाधान अभी तक नहीं निकल सका है|
  • हमारी शांतिमय नीति का अर्थ है कि हम युद्ध नहीं करना चाहते; किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि हम अन्याय के सामने झुक जाए, युद्ध से डर जाएं और पाकिस्तान को कश्मीर तथा दूसरी और चीन को अपनी हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि दे दें|

आप पढ़ रहे हैं

भारत की विदेशनीति

  • इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भारत की शांति तटस्थता और सह-अस्तित्व की नीति, परीक्षण की कठोर परिस्थितियों से गुजरी और गुजर रही है,
  • किंतु गांधी का शांति तथा अहिंसावादी देश अपनी पंचशील की नीति पर दृढ़ है|
  • राजनीतिक आघातों और अपेक्षाओं के बावजूद हमने सहिष्णुता और सद्भावना की नीति छोड़ी नहीं है|
  • जिन नीतियों और आदर्शों को लेकर राष्ट्र संघ की स्थापना हुई है, वे ही भारत की विदेश नीति कें दृढ़ आधार है|
  • यदि भारत की विदेश नीति के आदर्शों और सिद्धांतों का सही मूल्यांकन करके संसार उसी के अनुरूप आचरण करें,
  • तो पीड़ित मानवता को राहत मिल जाए और युद्ध का खतरा संसार में सदा के लिए मिट जाए|

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shubham yadav

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