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अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षण
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षण-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की जो चर्चा हम पहले कर चुके हैं, उसके आधार पर इसकी निम्न प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं-
1. शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्ति- के सिद्धांत पर आधारित होती है अर्थात् सरकार के तीनों अंग यानी कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका एक दूसरे से पृथक् एवं स्वतंत्र होते हैं, इसीलिए समान रूप स महत्वपूर्ण होते हैं, सभी एक-दूसरे के हस्तक्षेप से स्वतंत्र होते है । यदि व्यवस्थापिका का कोई सदस्य मंत्री बन जाता है तो उसे व्यवस्थापिका की सदस्यता का परित्याग करना पड़ता है।
2. राज्याध्यक्ष की स्थिति- अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के अन्तर्गत राष्ट्रपति राज्य का सर्वोच्च पदाधिकारी होता है, हीं और संविधान द्वारा समस्त कार्यकारी शक्तियाँ उसी में निहित होती हैं। इस तरह जहाँ वह देश का वैधानिक प्रधान होता है वहाँ वास्तविक प्रधान भी होता है और कार्यकारिणी संबंधी समस्त शक्तियों का यथार्थ में वही उपयोग करता है।
3. मंत्रिमण्डल मात्र परामर्शदाता-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के अन्तर्गत मंत्रिमण्डल की स्थिति संसदात्मक शासन प्रणाली के मंत्रि- मण्डल से बिल्कुल अलग-थलग होती है। राष्ट्रपति की सहायता के लिए इसमें मंत्री के स्थान पर बहुत से सचिव होते हैं जो प्रशासनिक योग्यता के आधार पर नियुक्त किये जाते हैं। उनके परामर्श को स्वीकार करना या न करना पूरी तरह राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।
4. उत्तरदायित्व का अभाव-अध्यक्षात्मक शासन पद्धति में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होती। व्यवस्थापिका उससे न तो कोई प्रश्न पूछ सकती है और न उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके उसे पद-त्याग करने के लिए विवश कर सकती है। वस्तुत: मंत्रिगण केवल राष्ट्रपति के प्रति ही उत्तरदायी होते हैं।
5. मंत्रिमण्डल का अभाव-सच्चाई तो यह है कि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में मंत्रिमण्डल का अस्तित्व ही नहीं होता। राष्ट्रपति के सहायतार्थ केवल कुछ सचिव ही होते हैं जो किसी एक इकाई या टीम का निर्माण नहीं करते। मंत्रिमण्डल एवं उसके सदस्य केवल राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं उसकी आज्ञानुसार कार्य सम्पादन करते हैं और केवल उसकी इच्छापर्यन्त पद पर रहते हैं। व्यवस्थापिका से उसका कोई सरोकार ही नहीं होता।
6. निश्चित कार्यावधि-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के अन्तर्गत राष्ट्रपति निश्चित कार्यावधि के लिए निर्वाचित किया जाता है। इसमें व्यवस्थापिका भी निश्चित कार्यावधि के लिए निर्वाचित की जाती है। राष्ट्रपति यदि संविधान का उल्लंघन करता है तो उसका निष्कासन मात्र महाभियोग द्वारा ही सम्भव होता है।
7. राजनीतिक एकरूपता का अभाव-व्यवस्थापिका के प्रति, कार्यकारिणी के प्रति उत्तरदायी न होने के कारण सचिव केवल एक ही राजनीतिक दल से संबंधित हों, यह अनिवार्य नहीं होता है। सचिव का व्यक्तिगत उत्तरदायित्व केवल राष्ट्रपति की दिशा में होता है, सामूहिक उत्तरदायित्व कदापि नहीं इसलिए इसमें राजनीतिक एकरूपता का सर्वथा अभाव होता है।
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