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अपराध पर सदरलैण्ड के विचार | Views of Sutherland on Crime in Hindi

अपराध पर सदरलैण्ड के विचार
अपराध पर सदरलैण्ड के विचार

अपराध पर सदरलैण्ड के विचार

अपराध पर सदरलैण्ड के विचार (Views of Sutherland on Crime)- सदरलैण्ड अमेरिका के सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री है जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘अपराधशास्त्र के सिद्धान्त’ में सर्वप्रथम अपराध की वैज्ञानिक आधार पर सामाजिक व्याख्या प्रस्तुत की। इन्होंने अपराध का कारण अपराधी लोगों से सम्पर्क माना है और अपराध पर सन 1939 में विभेदक या विभिन्न सम्पर्क का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इन्होंने अपराध की दो व्याख्याएं प्रस्तुत की –

(i) परिस्थिति सम्बन्धी व्याख्या, (ii) जन्म सम्बन्धी या ऐतिहासिक व्याख्या परिस्थिति सम्बन्धी अपराध का कारण उसकी परिस्थितियों को माना जाता है। उदाहरण के लिए एक नौकर घर पर मालिक के अभाव में धन चुरा लेता है। इसका अर्थ यह हुआ कि मालिक की अनुपस्थिति ने नौकर को धन चुराने को अनुकूल परिस्थिति प्रदान की। सदरलैण्ड का मानना है कि अधिकतर व्यक्ति अपराधी व्यवहार अपराधी प्रतिमानों के सम्पर्क में सीख जाते हैं। दूसरे शब्दों में कुछ व्यक्ति अपराधी इसलिए बनते हैं कि वे अपने जीवन में अर्द्ध-अपराधियों के सम्पर्क में अधिक आते हैं। सदरलैण्ड ने तीन प्रकार की संगत को मान्यता दी है व्यक्तिगत मित्रता, निष्क्रिय समूहों की सदस्यता तथा अन्तः क्रियात्मक समूह से उत्पन्न संगति। संगति में आने पर व्यक्ति में ग्रहणशीलता का गुण विशेष हो जाता है और वह नेता की पूजा व उसी के पगचिन्हों का अनुकरण करता है। बुरी संगत करने के कारण अपराधी आदतें जन्म लेती हैं। उसमें विध्वंसक प्रवृत्तियां पैदा होती हैं। वह अपराधी नेता द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त कर समूह को अपराधी संहिता को अपना लेता है। सदरलैण्ड के सिद्धान्त की निम्नांकित उपकल्पनाएं हैं

1. अपराधी व्यवहार सीखा जाता है, वंशानुक्रमण में प्राप्त नहीं होता है।

2. अपराधी व्यवहार अन्य लोगों से अन्तःक्रिया द्वारा या संचार के माध्यम से ग्रहण किया जाता है।

3. अपराध में एक व्यक्ति अपराध की विधियां, प्रेरणा, मनोवृत्तिया आदि सीखता है।

4. अपराधी व्यवहार सीखने की विधियों एवं कानून-सम्मत व्यवहार सीखने की विधियों में समानता है।

5. सदरलैंड का मानना है कि संगठित समाज में असंगठित समाज की तुलना में अपराध कम होते हैं। सामाजिक गतिशीलता और सामाजिक परिवर्तन समाज में असामंजस्य को जन्म देते हैं जिसके परिणामस्वरूप अपराध होते हैं।

6. सम्पर्क भी समय, तीव्रता, प्राथमिकता और पुनरावृत्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होता है। कोई व्यक्ति अपराधी बनेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर कतरा है कि वह कितने समय तक कितनी तीव्रता से और कितनी बार अपराधियों के सम्पर्क में रहा।

7. अपराधी व्यवहार प्राथमिक समूहों के सम्पर्क की देन हैं।

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shubham yadav

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