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आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य
आदर्शवाद ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये हैं-
1. पवित्र जीवन की प्राप्ति का उद्देश्य- आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य पवित्र जीवन का सृजन करना है। फ्रॉबेल का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है-“शिक्षा का उद्देश्य भक्तिपूर्ण पवित्र तथा कलंक रहित अर्थात् पवित्र जीवन की प्राप्ति है। शिक्षा को मनुष्य का पथ-प्रदर्शन इस प्रकार करना चाहिये कि उसे अपने आपका सामना करने का एवं ईश्वर से एकता स्थापित करने का स्पष्ट ज्ञान हो जाय।”
2. आत्मानुभूति का उद्देश्य – आदर्शवाद बालक में आत्मानुभूति करने में सहायता प्रदान करता है। आत्म-तत्त्व को जानना ही उस चरम तत्त्व को जानना है। अतः प्रत्येक बालक के लिये ऐसा शैक्षिक वातावरण दिया जाना चाहिये जिससे वह’ आत्म-तत्त्व’ या आदर्श व्यवस्था को समझ सके ।
3. आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य- आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का आध्यात्मिक विकास करना है अर्थात् आध्यात्मिक मूल्यों (सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् ) की प्राप्ति से है। फ्रॉबेल शिक्षा के माध्यम से बालक के मानस में आध्यात्मिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं तथा शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण मानते हैं।
4. सांस्कृतिक परम्पराओं की रक्षा एवं विकास का उद्देश्य- आदर्शवाद के अनुसार ‘मानव’ ईश्वर की सर्वोकृष्ट कृति हैं आदर्शवादियों ने व्यक्ति को जागरूक प्राणी माना है तथा आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को समझने का चेतन्य प्राणी माना है। व्यक्ति अपनी अन्तर्निहित शक्ति द्वारा कला, दर्शन एवं साहित्य का सृजन करता है और उसमें उपयोगी संस्कृति के मूल्यों को ग्रहण करता है तथा उनकी रक्षा करता है और दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करता है। एडम्स के अनुसार- “शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति तथा संसार में एक समन्वय तथा समरसता उत्पन्न करना है।”
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