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ईसाई धर्म का इतिहास, तथ्य, जानकारी | Christianity History in Hindi

ईसाई धर्म का इतिहास
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ईसाई धर्म का इतिहास, तथ्य, जानकारी | Christianity History in Hindi

ईसाई धर्म का इतिहास, तथ्य, जानकारी | Christianity History in Hindi-Hello Students Currentshub.com पर आपका एक बार फिर से स्वागत है मुझे आशा है आप सभी अच्छे होंगे. दोस्तो जैसा की आप सभी जानते हैं की हम यहाँ रोजाना Study Material अपलोड करते हैं. दोस्तों आज हम आप लोगो को ईसाई धर्म का इतिहास, तथ्य, जानकारी | Christianity History in Hindi के बारे में विस्तार से बताने वाले है.

Christianity / ईसाई धर्म या मसीही धर्म या मसयहयत दुनिया में सबसे अधिक माने जाना वाला धर्म है। इससे मानने वाले ईसाई कहलाते हैं। ईसाई धर्म के पैरोकार ईसा मसीह की तालीमात पर अमल करते हैं। अपने वर्चस्व के लिए इस धर्म ने कई यातनाएं सही और आज दुनिया के सबसे अधिक माने जाने वाले धर्मों में से एक बना है। ईसाईओं में बहुत से समुदाय हैं मसलन कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडोक्स, मॉरोनी, एवनजीलक आदि।

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ईसाई धर्म का इतिहास – Christianity History in Hindi

‘ईसाई धर्म’ के प्रवर्तक ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट) थे, जिनका जन्म रोमन साम्राज्य के गैलिली प्रान्त के नज़रथ नामक स्थान पर 6 ई. पू. में हुआ था। जिनका जन्म रोमन साम्राज्य के गैलिली प्रान्त के नज़रथ नामक स्थान पर 6 ई. पू. में हुआ था। उनके पिता जोजेफ़ एक बढ़ई थे तथा माता मेरी (मरियम) थीं। वे दोनों यहूदी थे। ईसाई शास्त्रों के अनुसार मेरी को उसके माता-पिता ने देवदासी के रूप में मन्दिर को समर्पित कर दिया था। ईसाई विश्वासों के अनुसार ईसा मसीह के मेरी के गर्भ में आगमन के समय मेरी कुँवारी थी। इसीलिए मेरी को ईसाई धर्मालम्बी ‘वर्जिन मेरी (कुँवारी मेरी) तथा ईसा मसीह को ईश्वरकृत दिव्य पुरुष मानते हैं।

ईसा मसीह के जन्म के समय यहूदी लोग रोमन साम्राज्य के अधीन थे और उससे मुक्ति के लिए व्याकुल थे। उसी समय जॉन द बैप्टिस्ट नामक एक संत ने ज़ोर्डन घाटी में भविष्यवाणी की थी कि यहूदियों की मुक्ति के लिए ईश्वर शीघ्र ही एक मसीहा भेजने वाला है। उस समय ईसा की आयु अधिक नहीं थी, परन्तु कई वर्षों के एकान्तवास के पश्चात् उनमें कुछ विशिष्ट शक्तियों का संचार हुआ और उनके स्पर्श से अंधों को दृष्टि, गूंगों को वाणी तथा मृतकों को जीवन मिलने लगा। फलतः चारों ओर ईसा को प्रसिद्धि मिलने लगी। उन्होंने दीन दुखियों के प्रति प्रेम और सेवा का प्रचार किया।

यरुसलम में उनके आगमन एवं निरन्तर बढ़ती जा रही लोकप्रियता से पुरातनपंथी पुरोहित तथा सत्ताधारी वर्ग सशंकित हो उठा और उन्हें झूठे आरोपों में फ़ँसाने का प्रयास किया। यहूदियों की धर्मसभा ने उन पर स्वयं को ईश्वर का पुत्र और मसीहा होने का दावा करने का आरोप लगाया और अन्ततः उन्हें सलीब (क्रॉस) पर लटका कर मृत्युदंड की सज़ा दी गई। परन्तु सलीब पर भी उन्होंने अपने विरुद्ध षड़यंत्र करने वालों के लिए ईश्वर से प्रार्थना की कि वह उन्हें माफ़ करे, क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि वे क्या कर रहे हैं।

ईसाई मानते हैं कि मृत्यु के तीसरे दिन ही ईसा मसीह पुनः जीवित हो उठे थे। ईसा मसीह के शिष्यों ने उनके द्वारा बताये गये मार्ग अर्थात् ईसाई धर्म का फ़िलीस्तीन में सर्वप्रथम प्रचार किया, जहाँ से वह रोम और फिर सारे यूरोप में फैला। वर्तमान में यह विश्व का सबसे अधिक अनुयायियों वाला धर्म है। ईसाई लोग ईश्वर को ‘पिता’ और मसीह को ‘ईश्वर पुत्र’ मानते हैं। ईश्वर, ईश्वर पुत्र ईसा मसीह और पवित्र आत्मा–ये तीनों ईसाई त्रयंक (ट्रिनीटी) माने जाते हैं।

ईसाई धर्म की जानकारी – Christianity Information in Hindi 

प्रथम मिशनरियों में से सबसे सफल थे संत पौलुस; उनकी यात्राओं का वर्णन तथा उनके पत्र बाईबिल के उत्तरार्ध में सुरक्षित हैं। उस समय अंतिओक (Antioch) रोमन साम्राज्य का तीसरा शहर था, ईस का उत्तराधिकारी संत पेत्रुस यहीं चले आए और उस केंद्र से संत पौलुस ने एशिया माइनर, मासेदोनिया तथा यूनान में ईसाई धर्म का प्रचार किया। बाद में राजधानी रोम ईसाई धर्म का प्रधान केंद्र बना। वहीं संत पेत्रुस (67 ई.) और संत पौलुस शहीद हो गए। बाइबिल का उत्तरार्ध प्रथम शताब्दी ई. के उत्तरार्ध में लिखा गया।

सन् 100 ई. तक भूमध्यसागर के सभी निकटवर्ती देशों और नगरों में, विशेषकर एशिया माइनर तथा उत्तर अफ्रीका में ईसाई समुदाय विद्यमान थे। तीसरी शताब्दी के अंत तक ईसाई धर्म विशाल रोमन साम्राज्य के सभी नगरों में फैल गया था; इसी समय फारस तथा दक्षिण रूस में भी बहुत से लोग ईसाई बन गए। इस सफलता के कई कारण हैं। एक तो उस समय लोगों में प्रबल धर्मजिज्ञासा थी, दूसरे ईसाई धर्म प्रत्येक मानव का महत्व सिखलाता था, चाहे वह दास अथवा स्त्री ही क्यों न हो। इसके अतिरिक्त ईसाइयों में जो भातृभाव था उससे लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् ईसाई संसार में चर्च की एकता के आंदोलन को अधिक महत्व दिया जाने लगा। फलस्वरूप खंडन-मंडन को छोड़कर बाइबिल में विद्यमान तत्वों के आधार पर चर्च के वास्तविक रूप को निर्धारित करने के प्रयास में इसपर अपेक्षाकृत अधिक बल दिया जाने लगा कि चर्च ईसा का आध्यात्मिक शरीर है। ईसा उसका शीर्ष है और सच्चे ईसाई उस शरीर के अंग हैं।

बाइबिल – Bible

ईसाई धर्म का पवित्र ग्रन्थ बाइबिल है, जिसके दो भाग ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट हैं। ईसाईयों का विश्वास है कि बाइबिल की रचना विभिन्न व्यक्तियों द्वारा 2000-2500 वर्ष पूर्व की गई थी। वास्तव में यह ग्रन्थ ई. पू. 9वीं शताब्दी से लेकर ईस्वी प्रथम शताब्दी के बीच लिखे गये 73 लेख शृंखलाओं का संकलन है, जिनमें से 46 ओल्ड टेस्टामेंट में और 27 न्यू टेस्टामेंट में संकलित हैं। जहाँ ओल्ड टेस्टामेंट में यहूदियों के इतिहास और विश्वासों का वर्णन है, वहीं न्यू टेस्टामेंट में ईसा मसीह के उपदेशों एवं जीवन का विवरण है।

चर्च (Church) 

चर्च (Church) शब्द यूनानी विशेषण का अपभ्रंश है जिसका शाब्दिक अर्थ है “प्रभु का”। वास्तव में चर्च (और गिरजा भी) दो अर्थों में प्रयुक्त है; एक तो प्रभु का भवन अर्थात् गिरजाघर तथा दूसरा, ईसाइयों का संगठन। चर्च के अतिरिक्त ‘कलीसिया’ शब्द भी चलता है। यह यूनानी बाइबिल के ‘एक्लेसिया’ शब्द का विकृत रूप है; बाइबिल में इसका अर्थ है – किसी स्थानविशेष अथवा विश्व भर के ईसाइयों का समुदाय। बाद में यह शब्द गिरजाघर के लिये भी प्रयुक्त होने लगा।

सम्प्रदा –  List of Christian Denominations

यद्यपि ईसाई धर्म के अनेक सम्प्रदाय हैं, परन्तु उनमें दो सर्वप्रमुख हैं—

1). रोमन कैथोलिक चर्च–इसे ‘अपोस्टोलिक चर्च’ भी कहते हैं। यह सम्प्रदाय यह विश्वास करता है कि वेटिकन स्थित पोप ईसा मसीह का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी है और इस रूप में वह ईसाईयत का धर्माधिकारी है। अतः धर्म, आचार एवं संस्कार के विषय में उसका निर्णय अन्तिम माना जाता है। पोप का चुनाव वेटिकन के सिस्टीन गिरजे में इस सम्प्रदाय के श्रेष्ठ पादरियों (कार्डिनलों) द्वारा गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है।

2). प्रोटेस्टैंट–15-16वीं शताब्दी तक पोप की शक्ति अवर्णनीय रूप से बढ़ गई थी और उसका धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सभी मामलों में हस्तक्षेप बढ़ गया था। पोप की इसी शक्ति को 14वीं शताब्दी में जॉन बाइक्लिफ़ ने और फिर मार्टिन लूथर (जर्मनी में) ने चुनौती दी, जिससे एक नवीन सुधारवादी ईसाई सम्प्रदाय-प्रोटेस्टैंट का जन्म हुआ, जो कि अधिक उदारवादी दृष्टिकोण रखते हैं।

भारत  में  ईसाई  धर्म का प्रवेश – Christianity​ in India

कहा जाता है कि भारत में ईसाई धर्म का प्रचार संत टॉमस ने प्रथम शताब्दी में चेन्नई में आकर किया था। किंवदंतियों के मुताबिक, ईसा के बारह प्रमुख शिष्यों में से एक सेंट थॉमस ईस्वी सन 52 में पहुंचे थे। कहते हैं कि उन्होंने उस काल में सर्वप्रथम कुछ ब्राह्मणों को ईसाई बनाया था। इसके बाद उन्होंने आदिवासियों को धर्मान्तरित किया था। इसके बाद बड़े पैमाने पर भारत में ईसाई धर्म ने तब पांव पसारे जब मदर टेरेसा ने भारत आकर अपनी सेवाएं दी। इसके आलावा अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआ था तब भी ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ था।

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shubham yadav

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