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एकल संक्रमणीय मत पद्धति single transferable vote system
भारती्य राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मण्डल द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है। यह निर्वाचन मण्डल संसद तथा राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों को मिला कर गठित होता है।मनोनीत सदस्यों को निर्वाचन में मत देने का अधिकार नहीं होता। एकल-संक्रमणीय अनुपातिक पद्धति के द्वारा राष्ट्रपति निर्वाचित किया जाता है। कुल वैध मतों का स्पष्ट बहुमत प्राप्त उम्मीदवार ही राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होता है। साधारण बहुमत को चुनाव के लिए पर्याप्त नहीं माना जाता। निर्वाचक मण्डल के मतों का भार निकालने के लिए जिन सूत्रों का प्रयोग किया जाता है,
न्यूनतम कोटे का निर्धारण निम्नांकित सूत्र के आधार पर किया जाता है –
वैध मतों की संख्या
——————————————————— + 1
निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या +1
क्योंकि राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होता है और विधानसभाओं के सदस्य अलग-अलग जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य उनकी जनसंख्या के अनुपात में निर्धारित किया जाता है ताकि उनके मतों में समानता लायी जा सके। इसके लिए तो सूत्र प्रयोग में लाए जाते हैं –
1. किसी राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य
= राज्य की कुल जनसंख्या
—————————————————— ×1000
राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या
2. संसद के प्रत्येक सदन के सदस्य के मत का मूल्य
= समस्त राज्यों की विधानसभा के समस्त निर्वाचित सदस्यों के मतों का मूल्य
——————————————————————————————————————-
संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या
इस प्रकार निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य निर्धारण किया जाता है। मतों की गिनती करते समय प्रत्येक वोट को मूल्य के अनुसार गिना जाता है।
राष्ट्रपति का चुनाव एकल संक्रमणीय मत पद्धति के अनुसार होता है। इसमें प्रत्येक मतदाता को एक ही मत देने का अधिकार होता है। परंतु वह मतपत्र पर उम्मीदवारों के नामों के सामने अपनी पसंद के अनुसार 1,2 या 3 इत्यादि लिख देता है अर्थात् मतदाता यह कहना चाहता है कि जिसके नाम के समक्ष उसने एक लिखा है वह उसको अपना मत दे रहा है परंतु यदि वह निश्चित कोटा प्राप्त कर सके तो उसका मत 2 को या इसी प्रकार अगली प्राथमिकता वाले को हस्तांतरित कर दिया जाए।
विधानसभा भंग होने पर भी राष्ट्रपति का चुनाव संभव है
1974 जबकि राष्ट्रपति का चुनाव होना था, गुजरात विधानसभा भंग की जा चुकी थी, अतः यह प्रश्न उत्पन्न हुआ कि क्या गुजरात विधानसभा भंग होने की स्थिति में राष्ट्रपति के चुनाव हो सकते हैं।
इस संबंध में राष्ट्रपति ने 29 अप्रैल 1974 को Article 143 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा और Supreme Court ने अपने परामर्श में कहा कि राष्ट्रपति का चुनाव, वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व में होना चाहिए और एक या एक से अधिक राज्यों की विधानसभा भंग होने की स्थिति में भी यह चुनाव हो सकते हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष क्यों
संविधान सभा में राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति पर पर्याप्त वाद विवाद हुआ था। कुछ सदस्य चाहते थे कि राष्ट्रपति का चुनाव भारतीय जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाना चाहिए।
उनका विचार था कि प्रत्यक्ष निर्वाचन ही लोकतंत्र के अनुकूल होगा और इस प्रकार से निर्वाचित व्यक्ति ही उचित रूप से भारत राष्ट्र के प्रतीक के रूप में कार्य कर सकता है, लेकिन अंत में अप्रत्यक्ष निर्वाचन की पद्धति अपनाई गई क्योंकि भारत की संसदात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल एक औपचारिक या वैधानिक प्रधान होता है और वास्तविक कार्यपालिका सत्ता उत्तरदायी मंत्रिमंडल के हाथ में रहती है।
श्री संथानम के शब्दों में, “यह महसूस किया गया कि जब राष्ट्रपति को औपचारिक प्रधान मात्र बनाना है, तो फिर उसे प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित करना व्यर्थ ही परिश्रम होगा।”
यह भी सोचा गया कि करोड़ों मतदाताओं वाले देश में प्रत्यक्ष निर्वाचन को अपनाने में बड़ी बाधा और कठिनाईयां उपस्थित होंगी।
विधानसभा में यह भी भय प्रकट किया गया कि ऐसा सोचना उचित ही था कि शायद प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति राष्ट्र का केवल वैधानिक प्रधान बना रहना स्वीकार न करें और उस स्थिति में उसका मंत्रिमंडल से संघर्ष हो सकता है, जिसका परिणाम संवैधानिक द्वंद्व होगा।
यद्यपि राष्ट्रपति के निर्वाचन की यह पद्धति पर्याप्त क्लिष्ट है, लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति के पद से संबंधित इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो रही है कि राष्ट्रपति एक वैधानिक प्रधान के रूप में कार्य करें और राष्ट्रपति (president) को भारतीय संघ के सर्वोच्च प्रधान के रूप में सर्वोच्च आदर और सम्मान की स्थिति प्राप्त रहे।
राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित किसी भी विवाद का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है। निर्वाचन विषयक विवाद को छोड़कर राष्ट्रपति से संबंधित किसी भी विवाद का निर्णय संसद द्वारा किया जाता है।
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