गृहविज्ञान

कढ़ाई कला का अर्थ | कढ़ाई के सामान्य नियम

कढ़ाई कला का अर्थ
कढ़ाई कला का अर्थ

कढ़ाई कला का अर्थ

कढ़ाई कला का अर्थ- कढ़ाई भी एक कला है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही यह कला प्रचलित है। गृह के वातावरण को आकर्षक एवं सौन्दर्यपूर्ण बनाने में इस कला का भी महत्वपूर्ण स्थान है। यदि गृहणी कशीदाकारी में निपुण है तो वह सस्ते वस्त्रों को कढ़ाई के द्वारा आकर्षक एवं सुन्दर बना सकती है। परदे, पलंगपोश, मेजपोश, पेटीकोट, साड़ियाँ, फ्राको आदि पर बहुधा कढ़ाई का कार्य किया जाता है। घर में प्रयुक्त कढ़ी हुई वस्तुएँ गृहिणी की सौन्दर्यात्मक अभिरुचि की प्रतीक होती हैं। कढ़ाई का कार्य करते रहने से उनकी यह अभिरुचि परिष्कृत होती रहती है। साथ ही परिणामतः पारिवारिक जीवन में सरसता एवं सुन्दरता का समावेश होता है। अतः घर के जीवन को आकर्षक एवं सौन्दर्यपूर्ण बनाने की दृष्टि से गृहिणी को कशीदाकारी में भी प्रवीण होना चाहिए।

यदि गृहिणी कढ़ाई कला में निपुण है तो वह सस्ते और पुराने वस्त्रों को भी कढ़ाई के द्वारा आकर्षक और सुन्दर बना सकती है। परदों, मेजपोश, बैड कवर, साड़ियों, कुर्ता- पायजामों, शॉल, रूमाल, आदि पर बहुधा कढ़ाई की जाती है। घर में प्रयुक्त होने वाली वस्तुओं पर कढ़ाई करने से गृहिणी की सौन्दर्यता और अभिरूचि की जानकारी मिलती है। कढ़ाई का कार्य करते रहने से उनकी यह अभिरूचि परिष्कृत होती रहती है। साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों में सौन्दर्यात्मक अभिरूचि का विकास होता रहता है। परिणामतः पारिवारिक जीवन में सरसता एवं सुन्दरता का समावेश होता है।

प्रारम्भ में गहरे रंग के वस्त्रों पर सफेद धागे से कढ़ाई की जाती थी। कालान्तर में यह कला और विकसित हुई। राजाओं के रेशमी एवं मखमली वस्त्रों पर सोने-चाँदी के तारों से कशीदाकारी की जाने लगी। मुगल काल में जूतों, कुर्सी की गद्दियाँ, मसनदों और तकियों पर भी महीन तारों एवं रेशम से की गई कढ़ाई के नमूने आज भी अपना विशेष महत्व रखते हैं। कढ़ाई कला के प्रारम्भिक चरण में सूत गिन गिनकर कल्पना के बेल-बूटे से नमूने काढ़े जाते थे। फिर लकड़ी के ठप्पों पर नमूने निर्मित होने लगे। प्रगति के साथ-साथ कढ़ाई अब मशीनों से होने लगी है। किन्तु हाथ की कढ़ाई का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। कढ़ाई की सौन्दर्यता कढ़ाई करने वाले हाथों तथा धागों के रंग संयोजन पर निर्भर करती है।

कढ़ाई के सामान्य नियम

1. कढ़ाई के डिजाइन का चुनाव करते समय यह बात दृष्टिगत रखनी चाहिए कि वस्त्र किस काम में आयेगा तथा उसका क्या आकार एवं प्रकार होगा। जैसे- मेजपोश का डिजाइन ट्रे कवर से भिन्न होगा। गोल मेजपोश का डिजाइन चौकोर मेजपोश के डिजाइन से भिन्न होगा।

2. डिजाइन का चुनाव करने के पश्चात् इस बात की ओर भी ध्यान देना चाहिए कि वह डिजाइन वस्त्र के किस भाग में तथा किस स्थिति में ट्रेस किया जाए कि वह अधिक से अधिक सुन्दर दिखायी दे । ट्रेस करते समय स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए।

3. कढ़ाई के लिए नुकीली व चिकनी सुई का प्रयोग करना चाहिए। मोटी कढ़ाई के लिए सुई चौड़ी तथा बड़ी और बारीक कढ़ाई के लिए सुई पतली तथा छोटी होनी चाहिए।

4. कढ़ाई करते समय सुई में बहुत लम्बा धागा नहीं डालना चाहिए। इससे कढ़ाई करने में कठिनाई होती है।

5. कढ़ाई करते समय समस्त धागों के रंगों का चुनाव बड़ी सावधानी से करना चाहिए। रंग स्वाभाविक व आकर्षक होने चाहिए। जो वस्तु जिस रंग की प्राकृतिक रूप में होती है, उसको काढ़ने के उसी रंग के धागे का प्रयोग करना चाहिए जैसे लाल व नीचले रंग की पत्तियाँ देखने में अस्वाभाविक एवं भद्दी लगेंगी। धागे का रंग से मेल खाता हुआ होना चाहिए।

6. कढ़ाई के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला धागा मजबूत तथा पक्के रंग का होना चाहिए। यदि धागा कच्चे रंग का होगा तो धुलने पर डिजाइन भद्दा हो जायेगा तथा वस्त्र की सुन्दरता को नष्ट कर देगा।

7. कढ़ाई में यथासम्भव गाँठों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ये देखने में भद्दी लगती हैं तथा धागा प्रयोग में लाते समय पक्का टाँका ले लेना चाहिए ताकि कढ़ाई खुल न जाये।

8. कढ़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि डिजाइन में झोल न आने पाये। अतएव कढ़ाई के टाँके बहुत कसे होने चाहिए।

9. कढ़ाई करते समय यदि धागा तोड़ना हो तो कैंची का प्रयोग करना चाहिए। खींचकर धागा तोड़ने से कढ़ाई में झोल आ जाता है।

10. डिजाइन काटने के उपरान्त इस्तरी करने से कढ़ाई बैठ जाती है तथा नमूना देखने में सुन्दर लगता है।

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shubham yadav

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