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क्या मानवाधिकार को स्थगित किया जा सकता है?
नागरिक व राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के अनुसार उन्हें दो वर्गों में बाँटा गया है : पहले वर्ग के वे नागरिक व राजनीतिक अधिकार हैं, जिन्हें राज्य द्वारा स्थगित किया जा सकता है व दूसरी श्रेणी में वे अधिकार आते हैं, जिन्हें स्थगित नहीं किया जा सकता अर्थात् राज्यों के लिए उन्हें मानना अपरिहार्य है। औपचारिक रूप से घोषित सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति में, जब राष्ट्र संकट की स्थिति में हो, नागरिक व राजनीतिक अधिकारों को परिसीमित या प्रतिबन्धित किया जा सकता है । किन्तु कुछ ऐसी भी अधिकार हैं, जिन पर संकटकालीन स्थिति में भी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता। इस प्रकार के अधिकारों, जिन्हें मानना राज्य के लिए अपरिहार्य है, का उल्लेख नागरिक व राजनीतिक अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय समझौते में किया गया है, जो निम्नलिखित हैं :
- जीवन का अधिकार
- यातना, आधीन करने या अमानवीय क्रूरव्यवहार व दंड के विरुद्ध अधिकार
- दासता व जबरन अधीनता के विरुद्ध अधिकार
- किसी भी प्रकार की कार्यवाही या भूल से किए गए किसी व्यवहार के द्वारा (जो ऐसे व्यवहार व कार्यवाही किए जाने के समय राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय कानून के द्वारा परिभाषित अपराध की श्रेणी में न आता हो) या एक फौजदारी अपराध के एवज में दो बार मुजरिम न ठहराए जाने का अधिकार। एक अपराध के अन्तर्गत दिए गए दंड से अधिक दंड न दिए जाने का इस प्रकार प्रावधान किया गया है।
- केवल किसी किए गए अनुबन्ध की शर्त को पूरा करने में असमर्थता के आधार पर जेल किए जाने के विरुद्ध अधिकार
- कानून के समक्ष एक व्यक्ति के रूप में मान्यता पाने का अधिकार
- विचार, धर्म व आस्था की स्वतन्त्रता । इस अधिकार के अन्तर्गत हर व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत धर्म, अपनी आस्था के अनुरूप किसी धर्म, विश्वास को अपनाने व निजी रूप में या अन्य समानधर्मी या मतावलम्बियों के साथ मिलकर निजी या सामूहिक रूप से अपने धर्म या विश्वास के अनुरूप, पूजा-उपासना करने या ऐसे आयोजनों, उत्सवों व प्रवचनों में हिस्सेदारी करने का अधिकार ।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद-359 के अन्तर्गत आपातकालीन घोषणा के लागू रहते राष्ट्रपति के आदेश द्वारा मौलिक अधिकारों को किसी सक्षम अदालत द्वारा लागू करने के अधिकार को स्थगित किया जा सकता है। किन्तु इस प्रकार का कोई भी प्रतिबन्ध 21 वें अनुच्छेद मं निर्दिष्ट जीवन के अधिकार के सम्बन्ध में नहीं लगाया जा सकता; यही स्थिति 20वें अनुच्छेद के अन्तर्गत व्यक्ति को उपलब्ध सुरक्षा के प्रावधान में भी है। दूसरे शब्दों में जीवन का अधिकार, तथा ऐसे किसी काम/यत्न/कार्यवाही जो किए जाने के समय दंडनीय अपराध की श्रेणी में न आता हो, के लिए दंडित न किए जाने का अधिकार तथा समान अपराध किए जाने पर एक बार से अधिक दंडित न किए जाने व सजा न पाने का अधिकार व अपने विरुद्ध गवाही देने को बाध्य न किए जाने का अधिकार- ये तमाम अधिकार भारतीय संविधान में गैर-स्थानीय अधिकार हैं।
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