अनुक्रम (Contents)
डेविड ईस्टन द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था सिद्धान्त | डेविड ईस्टन के आगत-निर्गत सिद्धान्त
राजनीतिक विज्ञान में व्यवस्था की अवधारणा का प्रयोग करने वाले विद्वानों में ईस्टन का नाम अग्रणी है। सन् 1953 में प्रकाशित पुस्तक ‘दि पोलिटिकल सिस्टम’ में उसने राजनीति विज्ञान में एक ‘सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त’ निर्माण का विचार प्रस्तुत किया था।
डेविड ईस्टन के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तर क्रियाओं का ऐसा समूह है जिसके अन्तर्गत माँगों को निर्णत में बदला जाता है।” राजनीतिक व्यवस्था संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं का एक जटिल समूह है जो समाज के भीतर आधिकारिक मूल्यों का विनियोजन करती है। हम राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन इसलिए करते है क्योंकि उनके अधिकारपूर्ण निर्णय के परिणामों का समाज के लिए बहुत महत्व है और इन परिणामों को निर्गत कहा जाता है। किसी भी व्यवस्था को जीवित रखने के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निरन्तर निवेश होता रहे। निवेश के बिना कोई भी व्यवस्था कार्य नहीं कर सकती। निर्गत के बिना उसके कार्यों को समझा पहचाना नहीं जा सकता।
निवेश कार्य- निवेश कार्य से तात्पर्य ‘माँग’ तथा समर्थन से है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था के सामने पर्यावरण से कुछ ‘माँगे रखी जाती है। इन माँगों के पीछे माँग रखने वालों का समर्थन होता है जो राजनीतिक व्यवस्था में निर्णय लेने वालों का ध्यान उन माँगों की ओर आकर्षित करता हैं इसके साथ ही साथ ‘समर्थन’ राजनीतिक व्यवस्था को विभिन्न प्रकार की माँगों से निपटने की शक्ति भी प्रदान करता है क्योंकि राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व इस बात पर निर्भर करता है कि उसे जनता का कितना समर्थन प्राप्त है। यह समर्थन उसकी माँगों की पूर्ति की क्षमता पर निर्भर करता है। माँगें हमें यह समझने में सहायता करती है कि किस तरह पर्यावरण संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था पर अपना प्रभाव डालता है क्योंकि माँगों का जन्म सामाजिक पर्यावरण से होता है। माँगों की वैधता, व्यवस्था की क्षमता तथा स्थायित्व को समझने में समर्थन सहायता करती है।
माँगें – माँग मन की अभिव्यक्ति है जिसके द्वारा किसी वस्तु विशेष के प्राधिकारिक आबंटन के लिए उन लोगों से जो कि इसको करने के लिए उत्तरदायी है कहा जाता है कि ऐसा होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। माँगे कई प्रकार की हो सकती है संकीर्ण, विशिष्ट तथा सामान्य उनकों – व्यक्त करने वाले लोगों तथा उनके उद्देश्यों पर यह निर्भर करता है।
माँगों की अपनी एक निर्दिष्ट दिशा होती है। उनका बहाव सदैव सत्ता की ओर होता है। माँगों के दो रूप होते है – सुझाव तथा निर्देश। माँगें दो प्रकार की होती हैं स्पष्ट तथा अस्पष्ट माँगें वैयक्तिक स्वार्थ तथा जनहित दोनों से सम्बन्धित हो सकती है।
समर्थन- राजनीतिक व्यवस्था कुछ कार्य करती है। कार्य करने के लिए समर्थन का होना बहुत ही आवश्यक है। समर्थन एक महत्वपूर्ण निवेश है जिसके होने या न होने से महत्वपूर्ण परिणाम निकलते हैं। बिना समर्थन के माँगों का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। यह एक ऐसा बल है जो अधिकारियों का ध्यान माँगों की ओर आकर्षित करता हैं। समर्थन एक ऐसी कड़ी है जो राजनीतिक व्यवस्था को पर्यावरण से जोड़ती है। यदि अधिकारियों को व्यवस्था में समर्थन प्राप्त नहीं है तो ‘माँगों’ का निवेश के रूप में विधायन करना सम्भव नहीं हो पायेगा। बिना समर्थन के शासन में स्थिरता नहीं आ पाती । सामाजिक एकता बनाये रखने के लिए समर्थन आवश्यक है।
निर्गत प्रकार्य – निर्गत वे उत्पादित वस्तुएँ है जो निवेश के रूपान्तरण के बाद प्राप्त होती है। निवेश को समर्थन द्वारा सूत्रबद्ध करके व्यवस्था के सामने निर्णय लेने के लिए रखा जाता है। राजनीतिक व्यवस्था विभिन्न प्रकार के निवेशों पर निर्णय लेती है। निर्गत व्यक्तियों द्वारा रखी गयी माँगों पर राजनीतिक व्यवस्था का निर्णय है।
पुनर्निवेशन – निर्गत का उद्देश्य सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। -व्यवस्था के निर्गत से सदस्यों की आवश्यकताएँ पूरी या नहीं, जनता की इस संबंध में क्या प्रतिक्रिया है, इस सम्बन्ध में जो सूचनाएँ अधिकारीगणों के पास आती है उसे ‘पुनर्निवेशन’ कहते है।
राजनीतिक व्यवस्था के भीतर सम्पादित होने वाले सभी कार्यो में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य ‘पुनर्निवेशन चक्र’ का है, क्योंकि इसके द्वारा सम्पादित कार्य की प्रक्रिया से राजनीतिक कार्यों का चक्र संचालित होता है।
पर्यावरण– राजनीतिक व्यवस्था सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था में अन्य उप-व्यवस्थाओं (आर्थिक, धार्मिक की तरह एक उप-व्यवस्था की भूमिका अदा करती है। इसके पर्यावरण से आंशिक रूप से इसकी सहयोगिनी उप- व्यवस्थाओं का बोध होता है जिन्हें आन्तरिक सामाजिक पर्यावरण की संज्ञा दी गयी है। आन्तरिक सामाजिक पर्यावरण को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक व्यवस्था वातावरण, जैविक तत्व तथा समाज की पद्धतियों द्वारा प्रभावित होती है।
समीक्षा – डेविड ईस्टन का सामान्य व्यवस्था सिद्धान्त या निवेश-निर्गत विश्लेषण में संरचनात्मक कार्यात्मक विश्लेषण की भाँति व्यापकता होने के बावजूद इस पर अगतिशीलता का आरोप नहीं लगाया जा सकता । इस सिद्धानत ने पुनर्निवेशन जैसी धारणाओं को शामिल कर अपने आपकों गतिशील सिद्धान्त के रूप में पेश किया है इसने किसी खास राजनीतिक व्यवस्था के साथ अपने को आबद्ध करने से बनाकर तुलनात्मक विश्लेषण को नई अन्तदृष्टि प्रदान की है।
- तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति तथा विषय क्षेत्र
- सन्त टॉमस एक्वीनास का स्कालेस्टिकवाद Saint Thomas Aquinas scholasticism in Hindi
- कार्ल मार्क्स के राजनीतिक विचार Political Thought of Karl Marx in Hindi
- कार्ल मार्क्स के राजनीतिक विचार Political Thought of Karl Marx in Hindi
इसी भी पढ़ें…
- नागरिकशास्त्र नागरिकता का विज्ञान एवं दर्शन है, संक्षेप में लिखिए।
- नागरिकशास्त्र की प्रकृति तथा इसकी उपयोगिता
- प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ
- प्राचीन एवं आधुनिक राजनीतिक चिन्तन में अन्तर
- नागरिकशास्त्र विज्ञान है अथवा कला या दोनों
- अधिनायक तंत्र किसे कहते हैं?
- संसदीय शासन प्रणाली के गुण एवं दोष
- संसदीय शासन प्रणाली के लक्षण
- अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षण
- एकात्मक सरकार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, गुण एवं दोष
- संघात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? उसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- संघ एवं परिसंघ में अन्तर
- एकात्मक एवं संघात्मक शासन में क्या अन्तर है?