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तुलनात्मक राजनीति : प्रकृति

तुलनात्मक राजनीती की प्रकृति विवाद का विषय रही है|कुछ राजनितिक विद्वानों के अनुशार तुलनात्मक राजनीती का स्वरुप लम्बात्मक है तहत कुछ के अनुसार इसका स्वरुप क्षेतिज है|

इसके लम्बत्मक स्वरुप के समर्थको के अनुसार तुलनात्मक राजनीति एक ही देश में स्थित विभिन्न स्तरों पर स्थापित सरकार में परस्पर तुलना कि जाती है| उनका कहना है कि राज्य में कई स्तरों पर सरकारें होती हैं,जिन्हें मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित करते हैं- सार्वजनिक सरकार और स्थानीय सरकार| जिन राज्यों में एकात्मक शासन प्रणाली अपने जाती है वह,एक राष्ट्रिय व कई स्थानीय सरकार होती हैं| जिन राज्य में संघीय सरकार अपने जाती है,वह केन्द्रीय व प्रांतीय सरकार होती है| इन सरकारों मे परस्पर तुलना को ही लम्बात्मक तुलना कहते हैं|

तुलनात्मक राजनीति कि दूसरी धारणा के अनुसार तुलनात्मक राजनीति को राष्ट्रीय सरकारों कि क्षैतिज तुलना कहा जाता है|इस धरना के अनुसार तुलनात्मक राजनीती में यह ही देश में मौजूद राष्ट्रीय सरकार की विभिन्न कालों कि तुलना कि जाती है| तुलनात्मक राजनीती कि प्रकृति के सम्बन्ध में यह धारणा अधिक मान्य है|

तुलनात्मक राजनीती विभिन्न समाजों में कार्यरत राजनतिक व्यवस्थाओं कि तुलना व व् अध्ययन करती है| एसा करते हुए यह तीन प्रमुख तत्वों को ध्यान में रखती है-

  • राजनीतिक क्रिया (Political Activity)
  • राजनीतिक प्रक्रिया (Political Process)
  • राजनीतिक शक्ति (Political Power)

यह राजनीति के वस्तुनिस्ठ व मूल्य रहित आनुभविक अध्ययन पर बल देता है और तुलनात्मक सरकार के आदर्शवादी विधि को कम महत्व देता है| यह विकसित और विकासशील दोनों ही देशों कि राजनीतिक प्रक्रियाओ का अध्ययन करता है|

    तुलनात्मक राजनीति : विषय क्षेत्र

तुलनात्मक राजनीति में विभिन्न राजनितिक प्रणालियों के अनुभवों,प्रक्रियाओं तथा व्यवहारों का इस प्रकार अध्ययन किया जाता है जिसके कारणसंविधान के अभिकरण भी अध्ययन का विषय बन जाते हैं| चाहे उनका सरकार के औचारिक अंगों के साथ कोई भी सम्बन्ध हो या ना हो|

सिडनी वर्बा ने उचित ही कहा था,”वर्णन मात्र से आगे सैधांतिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण समस्याओं की ओर देखो तथा पश्चिमी यूरोप से आगे एशिया,अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के नए राष्ट्रों को देखो”

अभी तक इसके विषय क्षेत्र का सीमांकन नही किआ जा सका है|यह एक ऐसा विषय है जो संक्रमण काल की स्थिति से गुजर रहा है| तुलनात्मक राजनीति के विचारक ओने अध्ययन को केवल राज्य और सरकार के ढांचे तक ही सीमित रखते हैं जबकि आधुनिक विद्वानों के विचार में इसका क्षेत्र दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है,तथा इसमें नए विषयो का समावेश हो रहा है|

जे.के.रोबर्ट्स ने लिखा कि,”तुलनात्मक राजनीति या तो सबकुछ है, या फिर कुछ भी नही है|”

तुलनात्मक राजनीति: क्या एवं क्यों जरूरी? 

(COMPARATIVE POLITICS: WHAT IS AND WHY IS IT NECESSARY?)

राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र के रूप में तुलनात्मक राजनीति का एक वृहत एवं विशिष्ट स्थान रहा है। यह एक गतिशील विषय है तथा इसके अध्ययन के विषय वस्तु में परिवर्तन व बदलाव आते रहे हैं। तुलनात्मक राजनीति का इतिहास उतना पुराना है जितना कि राजनीतिक विज्ञान का इतिहास।

‘अरस्तु’ को ही तुलनात्मक राजनीति का जनक माना जाता है। 2500 वर्ष पूर्व अरस्तु पहले तुलनावादी अध्ययनकर्ता माने जाते हैं,जिन्होंने ग्रीक के नगर राज्यों का विश्लेषण किया। उन्होंने 158 संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन किया, उन्होंने ना केवल नगर राज्यों के औपचारिक संवैधानिक प्रावधानों का बल्कि आधारभूत सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आधारो तथा समय के साथ में हुए परिवर्तनों का भी अध्ययन किया। इन सब की तुलना करने का एक प्रमुख उद्देश्य ‘बेहतर शासन व्यवस्था’ की खोज करना था।ग्रीक प्लेटो तथा रोमन सिसरो ने भी तुलनात्मक उपागम का प्रयोग न केवल राजनीतिक व्यवस्था के वर्गीकरण में किया बल्कि एक आदर्श प्रकार के राजनीतिक व्यवस्था का सुझाव देने में भी किया।

उत्तर 1500 आधुनिक युग में मैकियावेली आया। उसे प्रथम आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक माना जाता है जब राजा व् पोप के मध्य संघर्ष हो रहे थे तब उसने राजा को शक्तिशाली बनाने की पैरवी की।उसने अपनी पुस्तक ‘The Prince’  में  राजा की शक्तियों को बनाए रखने के उपाय बताएं।

मान्टेस्क्यू ने ‘शक्ति का विभाजन’ का सिद्धांत दिया। आधुनिक युग में मैकियावेली,जीन बेदीन,मान्टेस्क्यू जो अमेरिकी व्यवस्था के शक्ति के विभाजन के निर्माता थे, वे सभी तुलनावादी थे।

एडम स्मिथ,कार्ल मार्क्स जो मूलतः अर्थशास्त्री थे, उन्होंने भी राजनीतिक व्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन किया। मार्क्स के अध्ययन में विशेष रुप से तुलनात्मक आंकड़ों की झलक मिलती है जो जर्मनी फ्रांस आइसलैंड के जीवन अनुभव पर आधारित है।

संक्षेप में तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन हमारे आस-पास के विश्व में होने वाली घटनाओं को समझने के लिए एक व्यवस्थित,सुसंगत तथा यथार्थवादी तरीका है।दूसरे शब्दों में राजनीति विज्ञान में तुलनात्मक राजनीति का अध्यन बहुत ही महत्वपूर्ण है।

परंपरागत उपागम के प्रति असंतोष ने तुलनात्मक राजनीति के इस नए विज्ञान के विकास में सहयोग किया।बीसवीं शताब्दी में इसके क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन देखे जा सकते हैं। यह परिवर्तन  मुनरो,सी०ऍफ़०स्ट्रांग,फाइनर,एलमंड,पॉवेल आदि बहुत से राजनीतिज्ञों के प्रयासो से आए।

तुलनात्मक राजनीति: अर्थ तथा परिभाषा

तुलनात्मक राजनीति में, विश्व की राजनीतिक व्यवस्थाओं का व्यवस्थित और तुलनात्मक अध्ययन शामिल है। यह व्यवस्था इसलिए है क्योंकि यह सभी राजनीतिक व्यवस्था में विभिन्न पैटर्न, नियमितताओं और नई प्रवृत्तियों का अध्ययन करता है।वहीं दूसरी ओर तुलनात्मक इन अर्थो में है , जब यह व्यवस्थाओं तथा उनके बीच समानताओं, विभिन्नताओं के साथ ही साथ विकासात्मक परिवर्तन का वर्णन करता है।

  • जान ब्लोण्डेल के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति समकालीन विश्व में सरकार के प्रतिरुपो का अध्ययन है।”
  • एम जी स्मिथ के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति, राजनीतिक संगठनों के प्रकार उनके गुण, संबंधो विभिन्नताओं और परिवर्तन के तरीकों का अध्ययन है।”

इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि तुलनात्मक राजनीति न केवल संस्थाओं व उनके यांत्रिक व्यवस्थाओं का, बल्कि इसमें राजनीतिक व्यवहार की राजनीतिक प्रक्रियाओ, गैर संस्थानिक और गैर राजनीतिक निर्धारकों का आनुभविक व वैज्ञानिक विश्लेषण भी शामिल है।

तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन क्यों?

लोगों के मन में तुलना की धारणा मानव समाज के अस्तित्व के साथ ही विकसित हुई है। तुलना दूसरों के जीवन,व्यवहार तथा कर्मों के बारे में जानने के क्रम में आत्म मूल्यांकन के लिए मानव स्वभाव के एक हिस्से के रूप में उभरी।

माहेश्वरी के अनुसार,”मानव इसलिए ऐसा करते हैं क्योंकि वह तुलना करने वाले प्राणी है वह हमेशा इस बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं कि दूसरे कैसे जीते हैं,वे कार्य व्यवहार कैसे करते हैं।”

यूनानी राजनीतिक शास्त्री अरस्तू ने इस पद्धति के सफलतापूर्वक प्रयोग किया।उन्होंने अनेक यूनानी नगर राज्यों की अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक संरचनाओं की तुलना की,ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस प्रकार सामाजिक व आर्थिक परिवेश राजनीतिक संस्थाओं और नीतियों को प्रभावित करता है। आधुनिक समाज में इसकी शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात से मानी जाती है।

तुलनात्मक राजनीति का अर्थ केवल विभिन्न राजनीतिक प्राणियों में समानता और अंतर की खोज करना ही नहीं अपितु उसके लिए उत्तरदाई कारकों की खोज करना भी है। उदाहरण के लिए,तुलनात्मक राजनीति का काम केवल यह देखना नहीं है कि एक चुनाव में उम्मीदवार को कितने मत मिले।उसका काम यह भी पता करना भी है कि एक उम्मीदवार को अधिक या कम वोट क्यों मिले।

तुलनात्मक विश्लेषण किसी भी स्तर की राजनीति को समझने में सहायक सिद्ध होता है। तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर हम राजनीतिक व्यवहार की नियमितताओं और अंतरों को समझ सकते है।

तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक विश्लेषण न केवल राजनीतिक क्षेत्र में घटित घटनाओं को समझने में सहायक होता है अपितु या संभावित घटनाओं व व्यवहारों को समझने में भी मदद करता है जैसे-यदि किसी एक विशेष देश में संसदीय प्रजातंत्र असफल रहा हो,तो अन्य देशों में संसदीय प्रजातंत्र के तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर यह जाना जा सकता है कि इस क्षेत्र में संसदीय प्रजातंत्र की असफलता कि क्या कारण है तथा इसे किस प्रकार सफल बनाया जा सकता है।

तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर कुछ स्थितियों का पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है।उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र अमेरिका  व ग्रेट ब्रिटेन में प्रचलित ज्यूरी व्यवस्था(Jury System) के तुलनात्मक विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ज्यूरी प्रणाली कठोर दंड व्यवस्था के विरुद्ध साबित होगी। सार्वजनिक मनोवैज्ञानिक के आधार पर भी इसे स्पष्ट किया जा सकता है।

जीन ब्लांडेल ने अपनी पुस्तक में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि तुलनात्मक विश्लेषण का महत्व केवल ज्ञान की दृष्टि से नहीं अपितु सामान्य हित के लिए भी है। तुलनात्मक विश्लेषण केवल राजनीति के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं लाभकारी है अपितु शासन में कार्यरत व्यक्तियों तथा राजनीति के विशेषज्ञों के लिए भी लाभकारी है।

विस्तृत जानकारी के लिए आप इन पुस्तकों को देख सकते हैं-

TULNATMAK RAJNEETI : SANSTHAYE AUR PRAKRIYEN (तपन बिस्वाल)

Tulnatmak Rajniti : Sansthaye Evam Parikriyae (तपन बिस्वाल)

Tulnatmak Rajniti (जे.सी.जौहरी)

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