गृहविज्ञान

दृश्य-श्रव्य सामग्री का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, विशेषताएँ

दृश्य-श्रव्य सामग्री का अर्थ
दृश्य-श्रव्य सामग्री का अर्थ

दृश्य-श्रव्य सामग्री से आप क्या समझते हैं?

दृश्य-श्रव्य सामग्री का अर्थ- आजकल शिक्षण में सहायक सामग्री का प्रयोग प्रचुर मात्रा में किया जा रहा है। इससे सैद्धान्तिक, मौखिक तथा नीरस पाठों को सहायक, साधनों के प्रयोग से अधिक स्वाभाविक, मनोरंजन व उपयोगी बनाया जा सकता है। वास्तव में यह सत्य है कि सहायक सामग्री का उद्देश्य श्रवण एवं दृष्टि की ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाकर ज्ञान चक्षु खोल देना है। अतः श्रव्य दृश्य सामग्री वे साधन हैं जिन्हे हम आँखों से देख सकते हैं, कानों से उनसे सम्बन्धित ध्वनि सुन सकते। वे प्रक्रियायें जिनमें दृश्य तथा श्रव्य इन्द्रियाँ सक्रिय होकर भाग लेती हैं, श्रव्य दृश्य साधन कहलाती है।

परिभाषा – श्रव्य-दृश्य की परिभाषा विभिन्न विद्वानों द्वारा निम्नानुसार दी गई है –

1. एलविन स्ट्रॉग के अनुसार, “श्रव्य दृश्य सामग्री के अन्तर्गत उन सभी साधनों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी सहायता से छात्रों की पाठ में रुचि बनी रहती है और उसे सरलतापूर्वक समझते हुए अधिगम के उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं।

2. डैण्ट के अनुसार, श्रव्य दृश्य सामग्री वह सामग्री है जो कक्षा में या अन्य शिक्षण परिस्थितियों में लिखित या मौखिक पाठ्य सामग्री के समझने में सहायता प्रदान करती है।

3. कार्टर ए, गुड के अनुसार, “कोई भी ऐसी सामग्री जिसके माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को उद्दीपित किया जा सके या श्रवणेन्द्रिय संवेदनाओं के द्वारा आगे बढ़ाया जा सके, श्रव्य दृश्य सामग्री कहलाती है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि श्रव्य दृश्य सामग्री वह सामग्री तथा उपकरण हैं जिनके माध्यम से विभिन्न शिक्षण परिस्थितियों में छात्रों और समूहों के मध्य प्रभावशाली ढंग से ज्ञान का संचार होता है। श्रव्य दृश्य सामग्री का अर्थ निम्नांकित चित्र के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

 

श्रव्य दृश्य सामग्री के प्रयोग से शिक्षण मनोरंजक हो जाता है तथा छात्रों के मन पर स्थायीय प्रभाव छोड़ जाता है।

श्रव्य-दृष्य सामग्री के उद्देश्य

शिक्षा में श्रव्य दृष्य सामग्री का उपयोग विशेष रूप से निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किया जाता है-

1. बालकों में पाठ के प्रति रुचि उत्पन्न करना तथा विकसित करना।

2. बालकों में तथ्यात्मक सूचनाओं को रोचक ढंग से प्रदान करता।

3. सीखने में रुकने की गति में सुधार करना।

4. छात्रों को अधिक सक्रिय बनाना।

5. पढ़ने में अधिक रुचि बढ़ना।

6. तीव्र तथा मन्द बुद्धि बालकों को योग्यतानुसार शिक्षा देना।

7. पाठ्य सामग्री को स्पष्ट, सरल तथा बोधगम्य बनाना।

8. बालक का अवधान पाठ की ओर केन्द्रित करना।

9. बालकों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना।

10. अमूर्त पदार्थों को मूर्त रूप प्रदान करना।

11. बालकों को मानसिक रूप से नये ज्ञान की प्राप्ति हेतु तैयार करना तथा प्रेरणा प्रदान करना।

श्रव्य दृष्य सामग्री की विशेषताएँ

प्रसार शिक्षा में उपयोगी श्रव्य दृश्य सामग्री को निम्नलिखित विशेषताओं के कारण आधुनिक युग में अधिक महत्व दिया जाने लगा है-

1. श्रव्य-दृश्य सामग्री स्थानीय रूप से सीखने एवं समझने में सहायक होती है।

2. यह अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्रदान करती है।

3. यह नैरेशन के माध्यम से शिक्षा देती है।

4. यह समय की बचत करती है तथा रुचि में वृद्धि करती है।

5. यह विचारों में प्रवाहात्मकता प्रदान करती है।

6. भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है।

7. विभिन्न प्रकार की विधाओं का प्रयोग करती है।

8. छात्र अधिक सक्रिय व जागरूक रहते हैं और पाठ को सरलता से याद कर सकते हैं।

9. वैज्ञानिक प्रवृत्ति विकसित होती है।

10. छात्र स्वयं कार्य करने पर अपने को अधिक योग्य व आत्मनिर्भर मानने लगते हैं।

11. विभिन्न विषयों से संबंधित अन्वेषण के प्रति उत्सुकता जाग्रत होती है।

12. वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने का अवसर मिलता है।

13. प्राकृतिक एवं कृत्रिम वस्तुओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं।

14. विद्यार्थियों को उपकरण प्रयोग करने की विधि का ज्ञान होता है।

15. सहायक सामग्री बातों को सरलता से समझा देती है तथा छात्रों की कल्पना एवं विचार शक्ति का विकास करती है।

16. इससे छात्रों की ज्ञानेन्द्रियों को प्रेरणा मिलती है तथा छात्रों को निश्चिय ज्ञान प्राप्त होता है।

17. यह हमारी ज्ञानेन्द्रियों को उद्दीप्त करके शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया को सुगम बनाती है।

श्रव्य दृश्य सामग्री की शिक्षण प्रक्रिया में भूमिका

श्रव्य दृश्य सामग्री शिक्षण को प्रभावशाली बनाने में मदद करती है। यह शिक्षण को अधिक रोचक बनाती है तथा छात्रों के समक्ष प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण प्रस्तुत करती है। यह शिक्षक, छात्र व विषय सामग्री के मध्य अन्तः प्रक्रिया को तीव्रतम गति पर लाकर विद्यार्थियों को शिक्षोन्मुखी व जिज्ञासु बना देती है। शिक्षक को सम्बन्धित श्रव्य दृश्य सामग्री की आवश्यकता, विभिन्न प्रकार की सामग्री व उसकी उचित उपयोग-प्रक्रिया तथा सावधानियों के विषय में समुचित ज्ञान होना चाहिए। यह छात्रों के मस्तिष्क पर स्थायी चिन्ह उत्पन्न करके अधिगम को स्थानी बनाती है। श्रव्य दृश्य सामग्री छात्रों में अधिगम के प्रति प्रेरणा उत्पन्न करती है, वे शिक्षण प्रक्रिया में पूरी तरह से खो जाते हैं तथा अपने प्रत्ययों को ज्यादा स्पष्ट रूप से समझने में छात्रों को समर्थ बनाती है। छात्रों की कल्पना शक्ति के विकास हेतु श्रव्य दृश्य सामग्री अपनी अद्भुत भूमिका का निर्वाह करती है। साथ ही शिक्षण-प्रक्रिया में धारावाहिता, विचारों की तारतम्यता एवं प्रकरण को समझने में निरन्तरता बनाये रखती है।

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shubham yadav

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