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पंजाब की फुलकारी पर एक लघु निबन्ध
पंजाब की फुलकारी– फुलकारी शब्द ‘फूल तथा कारी’ से मिलकर बना है यहाँ फूल का अर्थ फूल रूपी चित्र तथा कारी का अर्थ काम से है। अतः फुलकारी का अभिप्रायः फूल युक्त काम से है। वस्त्रों पर फुलकारी विशेषकर पंजाब में प्रचलित है। यहाँ की फुलकारी कला समस्त भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। यह पंजाबियों की एक महत्वपूर्ण परम्परागत कढ़ाई है। प्रारम्भ से ही पंजाब के सभी भागों में विवाह के अवसर पर पहने जाने वाले वस्त्रों पर फुलकारी कढ़ाई की जाती थी। पंजाब के सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह कढ़ाई प्रचलन में है किन्तु रोहतक, करनाल, हिसार, गुड़गाँव आदि भागों में फुलकारी का काम व्यापक रूप में किया जाता है। प्रारम्भ में यह काम खद्दर के कपड़े पर किया जाता था लेकिन वस्त्रों की लोकप्रियता में परिवर्तन के साथ सभी प्रकार के कपड़ों पर फुलकारी का काम किया जाने लगा है।
पंजाब के कुछ भागों में फुलकारी को ‘बाग’ भी कहा जाता है। इस प्रकार की कढ़ाई में समस्त वस्त्र पर ‘फुलकारी’ की जाती है जिससे सम्पूर्ण वस्त्र घने बाग के समान प्रतीत होता है।
‘फुलकारी’ में सीधी, आड़ी, चौकोर, तिरछी तथा त्रिकोण रेखाओं से आकृति दी जाती है। रंग योजना में पीला, सफेद, लाल, नारंगी रंग प्रमुखता से काम में लाया जाता है । फुलकारी में लम्बे व छोटे टाँकों का उपयोग होता है। टाँका पास-पास और सघन रहते हैं। डिजाइन वस्त्र की उल्टी सतह पर बनाया जाता है। ये नमूने कभी-कभी दूर दूर भी बनाये जाते हैं। इनमें भूमिति विन्यास वाले नमूने भी बनाये जाते हैं। डिजाइन को वस्त्र की छापते हैं या बनाते नहीं हैं बल्कि धागों को गिन कर बनाया जाता है। फुलकारी का काम पंजाब की महिलाओं द्वारा बड़े ही लगन और उत्साह से वर्ष भर किया जाता है। फुलकारी को कन्या के लिए मातृ-स्नेह, समृद्धि, गौरव, परिचर्या, निष्ठा तथा सुहाग का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि कन्या के जन्म के साथ ही उसके विवाह में उपहार स्वरूप देने के लिए फुलकारी निर्माण की तैयार प्रारम्भ कर दी जाती थी।
फुलकारी के प्रकार
(1) सुभर- इस प्रकार की फुलकारी सामान्यतः लाल रंग के शॉल पर की जाती है। इसमें शॉल के मध्य भाग में पाँच नमूने एक साथ बनाये जाते हैं तथा अधिक आकर्षण लाने के शॉल के चारों कोनों पर उक्त नमूने का चित्रण किया जाता है। विवाह के अवसर पर फेरों के समय सुलभ से अलंकृत शॉल को दुल्हन को पहनाया जाता है
(2) चोप- इस प्रकार की कढ़ाई लाल रंग के चादर पर की जाती है। यह कढ़ाई सुनहरे पीले रंग के रेशमी धागों से दोहरी टंकाई के टाँके से की जाती है। जो कि चद्दर को दोनों ओर स्पष्ट दिखाई देती है। यदि यह कार्य कुशलतापूर्वक किया जाता है तो सीधे और उलटे पक्ष को एक प्रारूप में पहचानना कठिन होता है। चोप को ओर अधिक आकर्षित बनाने के लिए चद्दर के चारों कोनों पर काले रंग के रेशमी धागों से छोटे-छोटे बूटे भी बनाये जाते हैं। पंजाब में नानी द्वारा अपनी नातिन के विवाह के अवसर पर इस प्रकार की कढ़ाई युक्त चद्दर उपहार स्वरूप देने की परम्परा है।
(3) शीशेदार फुलकारी- शीशेदार फुलकारी में नमूनों के बीच-बीच में अभ्रक या – शीशे के टुकड़ों को कॉज से वाले टाँके से टाँक दिया जाता है। शीशेदार फुलकारी किसी भी प्रकार के रेशे से निर्मित वस्त्र पर की जा सकती है किन्तु यह साटिन या रेशमी वस्त्रों पर की अधिक आकर्षित लगती है। इसमें वस्त्र की पृष्ठभूमि गहरे रंग की रखी जाती है। इस प्रकार की कढ़ाई का प्रचलन सिन्ध प्रदेशों में अधिक है।
(4) कच्छ की फुलकारी- इस प्रकार की कढ़ाई विशेष रूप से कच्छ प्रदेश में की जाती है। इसमें वस्त्र के चारों ओर उत्कृष्ट बोर्डर बनाये जाते हैं तथा वस्त्र के मध्य भाग में फूल- पत्ती या पशु-पक्षी जैसे हाथी, मोर, तोते, कबूतर आदि की आकृति चित्रित की जाती है। ये नमूने श्रृंखलाबद्ध एवं हेरिंग बोन टाँके से बनाये जाते हैं।
(5) निलक- यह कढ़ाई नीले रंग के खद्दर के वस्त्रों पर की जाती है। इसके लिए – पीले अथवा क्रीमसन रंग के रेशमी धागों को उपयोग में लाया जाता है। प्रायः वस्त्र पर घरेलू उपयोग में काम आने वाली सामग्री जैसे पंखा, छाता, कंघी आदि को नमूनों के रूप में चित्रित किया जाता है।
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