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पत्रकारिता का अर्थ
पत्रकारिता एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो हमारे जीवन की विविधताओं, नित्य नूतनताओं और दैनिक घटनावलियों-प्रसंगावलियों को शीघ्र प्रस्तुत करने की अतुल क्षमता रखता है।
बीसवीं शताब्दी का जीवन जितना घटना-बहुल और वैचित्र्य-विरोधमूलक हैं, उसे सही रूप में प्रस्तुत, पुनर्प्रस्तुत और समासित करने के लिए पत्रकारिता एक अमोध अस्त्र भी हैं और जीवन्त माध्यम भी। वस्तुतः यही वह माध्यम हैं जिसके अन्तर्गत हम विश्व जीवन के संयुक्त होते हैं। आज के सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक व्यस्तता प्रधान जीवन में समाचार पत्र हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चला है। जिस तरह शारीरिक भूख शांत करने के लिए भोजन जरूरी हैं उसी तरह मानसिक तृप्ति के लिए पत्र-पत्रिकाएँ जीवन के लिए अनिवार्य बन चली हैं।
अर्थ- पत्रकारिता आधुनिकता की एक विशिष्ट उपलब्धि है। पत्रकारिता का सामान्य अर्थ है ‘पत्रकार का काम या व्यवसाय । दूसरे रूप में हम कह सकते हैं कि पत्रकारिता स्पष्ट रूप से तीन रूपों में सामने आती हैं-
(1) पत्रकार होने की अवस्था या भाव
(2) पत्रकार का काम तथा
(3) वह विधा जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्तव्यों, उद्देश्यों आदि का विवेचन होता है।
डॉ. बद्रीनाथ कपूर ने वैज्ञानिक परिभाषा कोश में कहा है कि, “पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार, लेख आदि एकत्रित तथा सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश आदि देने का कार्य हैं। ” ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, पत्रकार के व्यवसाय का प्रमुख साधन हैं: पत्रकारिता – लेखन और जन सामान्य की स्थितियों का लेखन और संग्रह व ‘जनरल्स’ की सुरक्षा और संग्रहवृत्ति ।
चेम्बर्स डिक्शनरी के अनुसार
“आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की होड़, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धन्धों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुन्दर छपाई और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुँचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अन्तर्गत आ गये हैं।” “पत्रकारिता वह धर्म है जिसका सम्बन्ध पत्रकार के उस वर्ग से हैं जिसके वह तात्कालिक घटनाओं और समस्याओं का सबसे अधिक सही और निष्पक्ष विवरण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करें और समस्त जनमत जागृत करने का श्रम करें।”
पत्रकारिता का स्वरूप
1. समाज की गतिविधियों का दर्पण- पत्रकारिता समाज की गतिविधियों का दर्पण हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः जिस समाज में मनुष्य रहता हैं। उस समाज के बारे में वह अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहता है। समाज में कब, कहाँ, क्यों, कैसे, क्या हो रहा है? इस सबको जानने का एकमात्र साधन पत्रकारिता हैं। “पत्रकारिता वह माध्यम हैं जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क में उस दुनिया के बारे में समस्त सूचनाएँ संकलित करते हैं, जिसे हम स्वतः कभी नहीं जान सकते।” इस प्रकार जब सामाजिक जीवन प्रगतिशील तत्वों को अपनाता हुआ निर्माण और उत्थान की ओर अग्रसर होता है तब भी जो स्वस्थ जीवन-मूल्य संरचित होते हैं, उन्हें भी पत्रकारिता अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं। इस प्रकार पत्रकारिता सामाजिक जीवन की सत्-असत् दृश्य-अदृश्य और शुभ-अशुभ छवियों का दर्पण हैं।
2. सूक्ष्म शक्ति- पत्रकारिता वह सूक्ष्म शक्ति है जो परिवेश के शरीर और उसके अन्तःकरण को निरूपित करती है। आज हमारा जीवन पर्याप्त जटिल और संकुल हो गया है। आये दिन कुच न कुछ ऐसी करुणाजनक, भयावह और कंपा देने वाली घटनाएँ घटित होती रहती हैं कि मनुष्य आश्चर्यचकित हो जाता है। मानवीय सम्बन्ध आज जिस रूप में बदल रहे है इनका कारण कुछ भी हो, किन्तु इतना निश्चित है कि उन सम्बन्धों का सूक्ष्म निरूपण और प्रस्तुतिकरण अनके बार हमें समाचार पत्रों से मिलता हैं। समाज के सजग प्रहरी के रूप में एक पत्रकार समाज में घटित घटनाओं की गहराई में प्रवेश करता हैं और निरन्तर बदलते हुए परिवेश और मानव सम्बन्धों की जटिलता के कारणों, प्रतिक्रियाओं और परिणामों को विश्लेषित करता हैं। ऐसा करने से सामाजिकों को समाज में चल रहे घटनाचक्र की जानकारी भी होती है और वह अपने जीवन में सतर्क बने रहने के लिए प्रेरणाप्रद शक्ति भी प्रदान करता है ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता हैं कि पत्रकारिता परिवेश के परिवेश के शरीर अर्थात् स्थूल घटनाचक्र के साथ-साथ मन अर्थात् सूक्ष्म सम्बन्धों तक को उजागर करती हैं।
3. नीर-क्षीर विवेक- पत्रकारिता पूर्णतः निषेधात्मक माध्यम नहीं हैं। एक स्वस्थ पत्रकारिता का लक्षण नीर-क्षीरवत् विवेचन करना होता है। इतना ही नहीं, विवेचन के साथ-साथ निर्णय का काम भी पत्रकारिता करती हैं। जो पत्रकारिता गहराई तक अपनी पहुँच रखती हैं उसे मात्र निषेधात्मक मानना औचित्यपूर्ण है क्योकि एक पत्रकार भविष्यदृष्टा होता है। वह समस्त राष्ट्र की जनता की चित्तवृत्तियों, अनुभूतियों और आत्मा का साक्षात्कार करता है।
4. कशुल चिकत्सक- पत्रकारिता एक कुशल चिकित्सक की तरह सामायिक परिस्थितियों और घटनाचक्र की नाड़ी की जाँच कर उसके स्वास्थ्य को सुधारने का कार्य करती हैं। पत्रकार के पास एक तीखी व तेज नजर तो होती ही है अपितु शिव जैसी तीसरी आँख भी होती हैं। यही कारण है कि पत्रकार परिवेश के शरीर में शरीर में दौड़ते हुए रक्त अथवा उसके रक्तचाप की परीक्षा करता हैं, उसकी धड़कनों का हिसाब रखता हैं। जब वह अधिक विकृत होने लगता हैं तब पत्रकार कुशलतापूर्वक सामाजिक परिवेश की एक्स-रे रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर देता है। यह काम वह फोटो पत्रकारिता के जरिये करता है क्योंकि चित्र पत्रकारिता घटना की सत्यता को प्रमाणित करने के साथ-साथ एक चश्मदीद गवाह का भी काम करती हैं। यही नहीं, कई बात को किन विचित्र परिस्थितियों के कारण यह घटना घटित हुई; यह भी इसके चित्र से मिल जाता हैं। ऐसा करने से प्रत्येक घटना, प्रत्येक स्थिति, स्पंदन कम्पन और विकृतियाँ-सशक्तियाँ सामने आती हैं। पत्रकार का कार्य किसी भी कुशल चिकित्सक जैसा हैं।
5. समप्रेषण का माध्यम- पत्रकारिता सम्प्रेषण का सामाजिक माध्यम है। आज का युग विज्ञान का युग हैं। इस विज्ञान ने हमें रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, समाचार पत्र आदि ऐसे माध्यम दिये हैं जिसके द्वारा समाज में किसी भी क्षेत्र में घटित घटनाएँ हमें तुरन्त आँख झपकते ही मालूम हो जाती हैं और उस घटना को सुनते ही या देखते ही अगर हमें किसी हानि की सम्भावना नजर आती है तो तुरन्त आँख झपकते ही मालूम हो जाती हैं और उस घटना को सुनते ही या देखते ही अगर हमें किसी हानि की सम्भावना नजर आती है तो हम तुरन्त उससे बचने के उपाय कर सकते हैं। पत्रकारिता जनता को सचेत करती हैं साथ ही उसे शिक्षित करती हुई उसे सुरुचिपूर्ण मनोरंजन भी प्रदान करती हैं। यही वह साधन हैं जो हमें विश्व में होने वाले सम्पूर्ण नवीन आविष्कारों, घटनाओं और अनसुंधानों से परिचित कराकर प्रभावित करता हैं। विश्वपटल पर जो विभिन्न उत्सव आयोजन और घटनाक्रम दौड़ते हैं उन्हें एक कुशल पत्रकार ‘फीचर’ शैली के माध्यम से अभिव्यक्ति देता हैं। घटनाओं के अतिरिक्त पत्रों में फीचर और साक्षात्कार जैसे संप्रेषण के माध्यमों द्वारा ज्ञानवर्द्धन व चिन्तनधारा को प्रभावित करने वाले लेख भी जन-जीवन को आलोकित करते रहते हैं।
6. महान् लक्ष्य- पत्रकारिता का लक्ष्य महान् हैं। वह जन-सामान्य की भावनाओं की अभिव्यक्ति देती हैं और मनोरंजन का कार्य भी करती हैं। समाज का कोई भी पहलू या राष्ट्र की कोई भी चिन्ता पत्रकारिता के माध्यम से ही अभिव्यक्ति पाती हैं। जैसे जन-सामान्य में फैले रूढ़िगत विचार आदि पर समय-समय पर टिप्पणियाँ व लेख-विशेष प्रकाशित कर, जनमानस को हुए छुआछूत, अन्धविश्वास, अपने अनुकूल विचारों में ढाल लेती हैं। यही नहीं, जनता के विचारों को सबके सम्मुख रखती है। जिस रोज का जो विषय होता है, उस पर जन-सामान्य की क्या प्रतिक्रिया हुई, उसे पत्रकारिता ही व्यक्त करती हैं।
7. सन्देश-प्रेषण का सशक्त माध्यम- पत्रकारिता को एक शक्ति तो देती है अपितु सन्देश प्रेषण का माध्यम भी बनती है। वह एक ऐसा शक्ति केन्द्र है जो मनुष्य की बिखरी हुई शक्तियों को मिलाता है और जन-मानस में जो भाव-विचार और शक्ति-कण बिखरे हुए होते हैं, वे सबक सब पत्रकारिता के द्वारा ही संगठित होकर किसी एक बड़ी शक्ति का विरोध करने में सक्षम होते हैं। ऐसी शक्तिमती पत्रकारिता सन्देश-प्रेषण का भी सशक्त माध्यम हैं। आये दिन हम देखते हैं कि माँ-बाप के ममत्व से बिछुड़े हुए बालकों, गुमराह हुए व्यक्तियों और उत्तरदायित्व से भागे हुए इन्सानों को नियमित, व्यवस्थित और उपयुक्त सन्देश देने का कार्य भी पत्रकारिता करती हैं।
8. प्रेरणादायी व जागरूक— पत्रकारिता किसी भी राष्ट्र या देश की प्रेरणादायिनी हो सकती है। पत्रकारिता सामाजिक जागरूकता की जगमगाती किरण है। समाचार-पत्रों में केवल समाचार ही प्रकाशित नहीं होते वरन् मत या निर्णय भी प्रकाशित होते हैं। समाचार-पत्रों में सम्पादकीय टिप्पणियाँ बड़ी महत्त्वपूर्ण होती है, जिनमें सम्पादक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक स्थितियों पर मुक्त मस्तिष्क से अपना विचार व्यक्त कर सकता है। अतः समाचार पत्र राष्ट्र को प्रेरणा भी देते हैं। और उसका दिशा-निर्देश भी करते हैं। भारत में ‘स्वतन्त्रता आन्दोलन’ को पत्रकारिता के द्वारा ही शक्ति मिली। पत्रकारिता ने ही देशवासियों के सुप्त स्वाभिमान को जागृत किया तथा उन्हें यह प्रेरणा दी की स्वतन्त्रता, राष्ट्रीयता और एकता जैसे जीवन-मूल्य ही मनुष्य के अस्तित्व को सुरक्षित रख सकते हैं। राष्ट्रीय भावना व जनमत को बनाने का महान् कार्य समाचार पत्रों द्वारा ही सम्भव हो सका।
9. मानवीय गुणों के विकास में सहायक- पत्रकारिता मानवीय गुणों को विकसित करती हुई उसे उसके अंतदृष्टि पर पड़े आवरण को चीरकर ज्ञानलोक में ले जाती हैं। एक पत्रकार जो कुछ भी कहता है वह निर्भीक व स्पष्ट कथन होता है। मानव नित्य समाचार पढ़ता है, अपने सहज स्वभाव के कारण ही किसी खबर को पढ़कर वह आन्दोलित हो उठता है जिसमें निर्भीकता, साहस के साथ, स्वतन्त्र निर्णय की क्षमता का विकास होता है और मनुष्य समाज व देश की स्थिति का अवलोकन करता हुआ अपनी अन्तर्दृष्टि को सही दिशा में ले जा सकता है। परिणामतः वह स्वयं ही अपने लिए उपयुक्त दिशा-पथ चुन सकता है।
10. सुदृढ़ कड़ी— पत्रकारिता शासन और समाज के बीच सम्बन्धों की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी निभाती है। जीवन के विविध क्षेत्रों की जानकारी देने वाली पत्रकारिता लोगों को राष्ट्र से और राष्ट्र को लोगों से जोड़ती है। सरकार की मान्यताएँ, नीतियाँ, समय-समय पर की गयी घोषणाएँ आदि समाचार पत्रों में प्रकाशित होती हैं जिनके द्वारा जन-जीवन को यह पता चलता है कि शासनतन्त्र किन नीतियों का अनुसरण कर रहा है। समाचार पत्र इन नीतियों के प्रति जन-सामान्य में व्याप्त प्रतिक्रियाओं को प्रतिबिम्बित करते हैं और यह निर्धारण करने में सहायक होते हैं कि लागू की गई नीतियाँ सही अथवा त्रुटिपूर्ण हैं। पत्रों में प्रकाशित प्रतिक्रिया के आधार पर शासनतन्त्र नीतियों में संशोधन आदि करता है अन्यथा जनमत स्वयं शासनतन्त्र में ही आमूल परिवर्तन कर देता है।
11. जीवन का आधार- पत्रकारिता वर्तमान जीवन का आधार है। सभी वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति, व्यक्तित्व निर्माण और भविष्य निर्माण के रूप में पत्रकारिता का अत्यधिक महत्त्व है। वर्तमान मानव आज अपनी व्यस्तता के कारण चाहता है कि समस्त संसार में घटने वाली घटनाओं का लेखा-जोखा तो पत्रों में होता ही हैं, साथ ही साहित्य, विज्ञान, फिल्म आदि से सम्बद्ध पृष्ठ भी इससे होते हैं अर्थात् जीवन का प्रत्येक क्षेत्र समाचार-पत्रों से प्रभावित होता हैं क्योंकि समाचार-पत्र में प्रकाशित घटनाएँ, सूचनाएँ हमारे ही आसपास के जीवन सन्दर्भों से जुड़ी हुई होती हैं जो मानव के वर्तमान जीवन का आधार बनती हैं।
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