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पत्रकारिता की परिभाषा
पत्रकारिता का क्षेत्र इतना व्यापक है कि इसे परिभाषा की सीमित शब्दावली में बाँधना दुष्कर है। डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय का कथन कितना यथार्थ और सही है कि “परिभाषाएँ तो किसी सिद्धान्त की होती हैं, सिद्धान्तों के समूह की नहीं। पत्रकारिता स्वयं में सिद्धान्तों का समूह है। मानवीय स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आकांक्षा, सामाजिक आदर्शों के लिए प्रयत्न एवं समर्पण तथा विशाल विश्व में अपनी पहचान एवं अस्मिता को बनाये रखने की भावना का परिणाम ही पत्रकारिता है।”
इसलिए इसका परिभावीकरण करने में अनेक समस्याएँ आती रही हैं। फिर भी सम्पादकाचार्यो ने पत्रकारिता के रूप-स्वरूप में जो कूल बिन्दु संकेतित किये हैं। उनसे पत्रकारिता को संक्षेपतः जानने बूझने, समझने-समझाने के कतिपय सूत्र अवश्य मिल जाते हैं। पत्रकारिता के संदर्भ में विभिन्न संपादकों, विद्वानों और विचारकों ने अपने भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किये हैं। उनमें से कुछ प्रमुख अधोलिखित हैं।
पाश्चात्य मत- न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी के अनुसार “समाचारों के प्रकाशन, लेखन, संपादन का व्यवसाय ही पत्रकारिता है।”
चैम्बर्स डिक्शनरी के अनुसार- “सार्वजनिक दैनन्दिन विवरणों की प्रस्तुति का व्यवसाय ही पत्रकारिता है।”
जेम्स मैकडोनल्ड के अनुसार “पत्रकारिता रणभूमि से भी अधिक श्रेष्ठ है, यह व्यवसाय नहीं व्यवसाय से श्रेष्ठ वस्तु है। यह एक जीवन है।”
वस्तुतः पत्रकारिता जन-लेखन, जन सामान्य की स्थितियों— परिस्थितियों का लेखन तथा जर्नल्स की सुरक्षा एवं संग्रह की वृत्ति है।
भारतीय मत- पाश्चात्य विचारकों, संपादकों की तरह भारतीय दृष्टि से भी पत्रकारिता का यही आशय अभिव्यक्त हुआ है।
प्रो. एन.सी. पंत के अनुसार- “समय और समाज के संदर्भ में सजग रहकर नागरिकों में दायित्व बोध कराने की कला को पत्रकारिता की संज्ञा दी गयी है।”
मानक हिन्दी कोश के अनुसार- “पत्रकारिता वह विधा है, जिसमें पत्रकारों के कार्यों, कर्तव्यों, उद्देश्यों आदि का समाहार रहता है।”
.”पत्रकारिता अभिव्यक्ति की एक मनोरम कला है। इसका कार्य जनता तथा जन नेताओं के समक्ष लोक-कल्याण सम्बन्धी कार्यों की सूची प्रस्तुत करना है।” राष्ट्र के कोने-कोने में जागरण, नव-स्फूर्ति और नव-निर्माण के मंत्र को फूंकना ही पत्रकारिता का पावन लक्ष्य है। यह एक रचनाशील विद्या है जिससे साज का आमूल-चूल परिवर्तन सम्भव है। वर्तमान समय में समाज के विस्तृत क्षेत्र के सन्दर्भ में पत्रकारिता के निम्नलिखित दायित्व हैं-
1. सामाजिक जनमत की अभिव्यक्ति देना।
2. समाज को उचित दिशा निर्देशित करना।
3. जन-जन को स्वास्थ्य मनोरंजन की सामग्री देना।
4. सामाजिक कुरीतियों (बाल-विवाह, विधवा-उपेक्षा, दहेज, बहू हत्या, वेश्यावृत्ति, अन्धविश्वास) को मिटाने की दिशा में प्रभावी कदम उठाना।
5. धार्मिक और सांस्कृतिक पक्षों का दो-टूक विवेचन करना |
6. सामान्य-जन को उनकी ही भाषा में उनके अधिकारों को समझाना।
7. कृषि-जगत् की उपलब्धियों को साधारण जनता तक पहुँचाना।
8. उद्योग जगत् की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुँचाना।
9. सरकारी नीतियों का विश्लेषण एवं प्रसारण।
10. महिला-जगत्, बाल-जगत्, क्रीड़ा-जगत्, चलचित्र जगत के विविध कार्यक्रमों का प्रसार ।
11. स्वास्थ्य-जगत, परिवार कल्याण के प्रति नागरिकों को सचेत करना
12. शिक्षा, शिक्षक, विद्यार्थी वर्ग को समीचीन मार्ग बताना।
13. सर्वधर्म समभाव एवं सौहार्द्र भाव को पुष्ट करना।
14. संकटकालीन परिस्थितियों में राष्ट्र का मनोबल बढ़ाना।
15. ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का प्रसार करना।
इस प्रकार अन्याय का प्रतिरोध कर मित्र-विहीन लोगों को मित्रवत् मार्ग दिखाना ही पत्रकारिता है। समाज में मानव मूल्यों की स्थापना के साथ जनजीवन को विकासोन्मुख बनाना पत्रकारिता का दायित्व है। पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के अनुसार- “पत्रकारिता कोई पेशा नहीं है, यह जन सेवा का माध्यम है। लोकतान्त्रिक परम्पराओं की रक्षा करने, शान्ति और भाईचारे की भावना बढ़ाने में इसकी भूमिका है।”
मानव-जीवन में पत्रकारिता का अत्यधिक महत्त्व है। पत्र-पत्रिकाओं ने राष्ट्र के नवनिर्माण के अभियान में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रारम्भ में पत्रकारिता का उद्देश्य केवल जनहित था, किन्तु विकसित समय के साथ यह उद्देश्य व्यापक हो चुका है। पत्रकारिता एक बहुत बड़ी शक्ति है उसका उत्तरदायित्व भी बहुत ही बड़ा है, इसीलिए पत्रकारिता का उद्देश्य उदात्त होना चाहिए, उसके द्वारा सम्पूर्ण समाज का सही अर्थों में हित होना चाहिए। सत्य की जीत के लिए पत्रकारिता महत्त्वपूर्ण साधन है इसलिए जो कुछ भी लिखा जाये बहुत ही बुद्धिमत्ता से सोच-समझकर जन-कल्याण की भावना से लिखा जाये। पत्रकारिता का महत्त्व उज्ज्वल सामाजिक चेतना में अधिक है, क्योंकि बिना पत्रकारिता के मानव जीवन की जटिलताओं को सुलझाया नहीं जा सकता है।
पत्रकारिता आर्थिक, औद्योगिक, सांस्कृतिक विकास हेतु पथ-प्रदर्शन करती है। मानवीय चेतना के विकास में पत्रकारिता अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। साथ ही पत्रकारिता को भी उद्देश्ययुक्त बनाना चाहिए। उसका मुख्य उद्देश्य जनकल्याण अधिक होना चाहिए। पत्रकारिता का उद्देश्य जीवन ध्येय से जुड़ा होना चाहिए। गम्भीर संकट और नैतिक गिरावट की ऐसी परिस्थितियों में मानसिकता और मनः स्थिति को बदलने का कार्य उद्देश्य के प्रति समर्पित पत्रकारिता ही कर सकती है। पत्रकारिता के महत्त्व एवं उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा है- “हमारा पथ वही होगा जिस पर सारा संसार सुगमता से जा सके। उसमें छात्र धारण किये हुए चँवर से सुशोभित सिर की भी वही कीमत होगी, जो कृषकाय लकड़ी के भार से दबे मजदूर की होगी। हम मुक्ति के उपासक हैं। राजनीति या समाज में, साहित्य में या धर्म जहाँ भी हमारा पथ रोका जायेगा, ठोकर मारने बाले का प्रहार और घातक के शास्त्र का पहला वार आदर से लेकर मुक्ति के लिए हम प्रस्तुत रहेंगे। दासता से हमारा मतभेद रहेगा, फिर वह शरीर की हो या मन की ओह या शासितों की।”
पत्रकारिता और समाचरा-पत्र दोनों बड़ी शक्ति हैं। दोनों की बड़ी जिम्मेदारी को देखते हुए दोनों की समाज, राष्ट्र और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता एवं अपने उद्देश्य के प्रति निष्ठा जरूरी है। महात्मा गाँधी ने पत्रकारिता के उद्देश्य एवं महत्त्व को स्वीकारते हुए 18 फरवरी 1939 के ‘हरिजन’ अंक में लिखा था- ‘वे समाचार-पत्र, जो असत्य और अतिशयोक्ति में उलझे रहते हैं। अपने उद्देश्यों का अहित करते हैं पत्रकारिता का महत्त्व तथा उद्देश्य तभी सार्थक होता है जब पत्रकारिता जनमानस को प्रेरित एवं प्रभावित करने की क्षमता रखती हो। श्री गणेशशंकर विद्यार्थी ने पत्रकारिता के महत्त्व एंव उसके उद्देश्य के लिए कहा था— मैं पत्रकार को सत्य का पुजारी मानता हूँ। सत्य को प्रकाशित करने के लिए यह मोमबत्ती की भाँति जलता है।
अन्ततः कह सकते हैं कि पत्रकारिता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण, सार्थक एवं समाज के लिए उपयोगी है।
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