
पाठ्यपुस्तकों की आवश्यकता के कारण
1. छात्रों एवं शिक्षकों को यह जानकारी मिलती है कि किस कक्षा स्तर के लिये कितनी विषय-वस्तु का अध्ययन-अध्यापन करना है।
2. छात्रों का मानसिक स्तर इतना नहीं होता कि वे विद्यालय में पढ़ायी हुई विषय वस्तु को एक ही बार में सीख सकें। उन्हें विषय-वस्तु को कई बार दोहराना भी पड़ता है। इस कार्य में पाठ्यपुस्तकें सहायक हैं।
3. पाठ्य-पुस्तकें अध्यापक की पूरक होती हैं। अध्यापक के उपस्थित न रहने पर यदि छात्र चाहे तो स्वअध्ययन से पाठ को आगे पढा सकते हैं।
4. छात्रों एवं शिक्षकों के समय की बचत होती है।
5. स्वाध्याय द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
6. पाठ को दोहराने अथवा गृहकार्य कराना बच्चों को अत्यन्त सहायक सिद्ध होता है।
7. बच्चों में स्वाध्याय की आदत का विकास होता है।
8. पुस्तकों की सहायता से शिक्षा की प्रक्रिया बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चलती है और अध्यापक पूरे समय हेतु योजना बना सकते है।
9. पाठ्यपुस्तकें पाठ्यक्रम में निर्धारित उद्देश्यों को पूर्ण करने में सहायक हैं।
10. पाठ्यक्रम के अनुसार विषय का संगठित ज्ञान एक स्थान पर मिल जाता है।
11. जब कक्षा छात्र कक्षा ज्ञान में अधूरे रहते हैं। तब पुस्तकों का सहारा लेकर उस अधूरे ज्ञान को स्पष्ट एवं निश्चित करते हैं। शिक्षक केवल पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करता है।
12. कक्षा-कार्य तथा मूल्यांकन संभव होता है।
13. बच्चों की स्मरण शक्ति एवं तर्क शक्ति का विकास होता है।
14. कमजोर तथा प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के बच्चों के लिये उपयोगी होती हैं। 15. विषय-वस्तु को तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जिससे बच्चों के लिए विषय-वस्तु सरल एवं सुगम हो जाती है।
16. पाठ्य-पुस्तकें समस्याओं को हल करने में सहायता करती है तथा कुछ पहेली टाइप समस्याओं से छात्रों का मनोरंजन भी हो सकता है।
17. ज्ञान को व्यवस्थित करने में पाठ्यपुस्तकें सहायक होती हैं।
18. अध्ययन में एकरूपता आ जाती है।
19. शिक्षकों एवं छात्रों को विद्वानों के विचारों से परिचित कराती है।
20. कक्षा शिक्षण की कमियों को दूर करती हैं।
21. परीक्षा लेने में भी पाठ्य पुस्तकें शिक्षकों की सहायता करती हैं क्योंकि प्रश्न पाठ्य पुस्तकों में से रखकर प्रश्न-पत्रों को पाठ्यक्रम के अनुसार सीमित तैयारी के साथ परीक्षा में अथवा मूल्यांकन में सफल हो जाते हैं।
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