बाल अपराध की परिभाषा
बालकों द्वारा किया जाने वाला समाज-विरोधी कार्य ही बाल-अपराध कहा जाता है। कानून की दृष्टि से एक खास आयु के बालक द्वारा समाज की रीति-नीतियों, प्रथाओं एवं मान्यताओं का उल्लंघन ही बाल अपराध है। बाल अपराध की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
1. डॉ. सुशील चन्द्र- “यह समाजविज्ञान की वह शाखा है जो बालकों के असामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करती है। प्रत्येक समाज, चाहे वह उन्नत हो या अशिक्षित, सामाजिक मूल्यों के एक संग्रह को जो उनकी संस्कृति और पीढ़ी की देन होती है, रखता है। उस समाज के रीति-रिवाज, प्रथाएँ-परम्पराएँ एवं रूढ़ियाँ सामाजिक आचरण को परिभाषित करती हैं ताकि मौलिक मूल्यों की रक्षा हो सके और वे टिक सकें। इस प्रकार से स्थापित आदर्श आचरण, जो सामाजिक सामान्य आचरण होते हैं, वे अलगाव अपराधी आचरण का द्योतक होती है।”
2. रेकलेस– “बाल अपराध शब्द अपराधी-विधि के उल्लंघन पर एवं व्यवहार संरूपण के उस अनुसरण पर लागू होता है जिसे बच्चों या वयस्कों द्वारा अच्छा नहीं समझा जाता है।”
3. न्यूमेयर- “अतः बालक-अपराध का अर्थ समाज-विरोधी व्यवहार का कोई प्रकार है। वह M व्यक्तिगत तथा सामाजिक विघटन का समावेश करता है। इसमें एक निर्धारित आयु से कम आयु का वह व्यक्ति होता है जो समाज विरोधी कार्य करता है तथा कानून की दृष्टि से अपराधी होता है।”
4. सेथना- “बाल अपराध के अन्तर्गत किसी बालक या ऐसे तरुण व्यक्ति के गलत कार्य आते है जोकि सम्बन्धित स्थान के कानून (जो उस समय लागू हो) के द्वारा निर्दिष्ट आयु सीमा के अन्दर आता हो।”
इस प्रकार एक निश्चित आयु के बालक द्वारा किया गया समाज विरोधी कार्य ही बाल अपराध कहा जा सकता है।
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