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बेंथम का उपयोगितावाद। Bentham’s Utilitarianism In Hindi। Jeremy Bentham
बेंथम को उपयोगितावाद का प्रवर्तक कहा जाता है. यद्यपि उपयोगितावादी दर्शन का क्रमबद्ध रूप में प्रतिपादन सर्वप्रथम डेविड ह्यम ने किया था. प्रीस्टले हचसन, हाल्वेक आदि प्रमुख उपयोगितावादी विचारक थे लेकिन सभी विचारको में उपयोगितावादी दर्शन का व्यापक रूप में प्रतिपादन तथा राजनीति के क्षेत्र में इसे लागू करने का श्रेय बेंथम को ही दिया जाता है. कभी-कभी उपयोगितावाद को बेंथमवाद भी कहा जाता है.
जन्म-1784 लंदन में,
मृत्यु-1832 में.
15 वर्ष की अवस्था में क्वीन्स कालेज से स्नातक,
लिंकंस इन से बैरिस्टरी.
1772 से वकालत लेकिन जल्द छोड़कर विधिशास्त्र तथा न्यायशास्त्र के क्षेत्र में कार्य.
रचनाएं-
Fragment Of Government 1776.
Defence of Usury 1787.
Introduction to the Principles of Morals and Legislation 1789.
Principles of International Law.
Manual of Political Economy.
Essays on Political Tactics 1791.
बेंथम का उपयोगितावाद-
उपयोगितावाद, बेंथम के चिंतन तथा विचारधारा की आधारशिला है, बेंथम ने तत्कालीन समय में प्रचलित नैतिकता की धाराओं का खंडन किया और उपयोगितावाद को नैतिकता तथा मानवीय जीवन का आधार बनाया. लेकिन बेंथम ने ईश्वरीय इच्छा, प्राकृतिक विधि और अंतःकरण इन सबको व्यक्ति या आत्मगत कल्पनाएं माना और यह कहा कि मनुष्य को जो कुछ अच्छा लगता है उसी को ईश्वरीय इच्छा, प्राकृतिक विधि और अंतरात्मा के अनुकूल कह देता है. ईश्वरीय इच्छा, प्राकृतिक विधि या अंतरात्मा के संबंध में प्रामाणिक रूप से हमारे द्वारा
कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. इसलिए यह सभी धारणाएं निरर्थक है.
बेंथम सुखवाद में विश्वास करता है उसके उपयोगितावाद की धारणा सुख-दुख की मात्रा पर आधारित है. जिस कार्य से मानव सुख में वृद्धि होती है वह उपयोगी और उचित है, और जिस कार्य से मानव को दुख प्राप्त होता है वह अनुपयोगी और अनुचित है. मनुष्य के सभी कार्यों की कसौटी उपयोगिता है.
उपयोगितावादी सिद्धांत से आशय उस सिद्धांत से है जिससे व्यक्ति की प्रसन्नता बढ़ती या घटती है और जिसके आधार पर वह प्रत्येक कार्य को उचित या अनुचित ठहराता है. इसी आधार पर बेथम का मानना है कि सुख तथा दुख या प्रसन्नता और पीड़ा मनुष्य के दो सार्वभौम शासक हैं. बेंथम कहता है कि “प्रकृति ने मानव को सुख दुख नामक दो प्रभुत्व पूर्ण स्वामियों के शासन में रखा है, हमें क्या करना चाहिए या हम क्या करें यह केवल वे ही निश्चित कर सकते हैं. एक मनुष्य अपने शब्दों द्वारा उसके शासन से बचने का दिखावा भले ही करें किंतु वास्तव में वह सदैव उसके अधीन ही रहता है.”
बेंथम के अनुसार किसी वस्तु की उपयोगिता का एकमात्र मापदंड यह है कि वह कहां तक सुख में वृद्धि करती है और दूुख को कम करती है. बेंथम और उसके अनुयायियों ने उपयोगितावाद के सुखवादी (Hedonistic) व्याख्या की है.
बेंथम कार्यों के उद्देश्य की अपेक्षा परिणाम को महत्वपूर्ण मानता है, कोई काम किस उद्देश्य से किया जाता है इसका कोई महत्व नहीं है, महत्व की चीज तो उसका परिणाम है और वह यही मानता है कि जो वस्तु हमें सुख की अनुभूति देती है वह अच्छी, ठीक और उपयोगी है और जिस वस्तु से हमें दुख के अनुभूति होती है वह बुरी, गलत और अनुपयोगी है.
बेंथम इन सुखों के स्रोत भी बताता है. प्राकृतिक, वह है जो प्राकृतिक घटनाओं के कारण होता है. राजनीतिक, राजनीतिक अवस्था अथवा कानून के कारण मिलता है, नैतिक, जब कोई सुख या दुख नैतिक दृष्टि से अच्छा या बुरा काम करने पर होता है, सामाजिक जब किसी कार्य को करने पर समाज हमें पुरस्कार या दंड देता है. और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार या विरुद्ध काम करने पर जो सुख या दुख मिलता है इसका स्रोत धर्म होता है,
इसके अलावा बेंथम के उपयोगितावादी सिद्धांत की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि सुखों में केवल मात्रा का अंतर होता है,गुण का नहीं. मनुष्य के कार्य करने का उद्देश्य सुख की प्राप्ति होता है और मनुष्य सदैव सुख से प्रेरित होता है और दुख से बचना चाहता है. इसके अनुसार विभिन्न सुख एक दूसरे से कम या अधिक हो सकते हैं किंतु गुण में भिन्न नहीं होते हैं. यदि उपयोगिता के सिद्धांत के अनुसार सुखों के बीच गुणात्मक अंतर मान लिया जाए तो उपयोगिता अच्छाई का मापदंड नहीं रहेगी और फिर हमें अच्छाई का कोई दूसरा मापदंड ढूंढना होगा.
विभिन्न सुख में केवल मात्रा का भेद होता है और इस संबंध में उसका महत्वपूर्ण कथन है- “सुख की मात्रा समान होने पर पुष्पिन (एक प्रकार का बच्चों का खेल) भी उतना ही श्रेष्ठ है जितना कि काव्य पाठ.”
अपनी विचारधारा में बेंथम एक आनंद मापक पद्धति (Felicific Calculus) की बात करत है, जिसके अनुसार सुख और दुख को मापा जा सकता है. सुख और दख को मापने के संबंध में को मापने के लिए 7 बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए- वह कहता है की सुख और दुख तीव्रता, अवधि, निश्चितता, निकटता, उत्पादकता, और विशुद्धता और विस्तार. उसके अनुसार नाप-तोल करके सरकार यह ज्ञात कर सकती है कि उसके किसी कार्य की सामान्य प्रवृत्ति सुख में वृद्धि करता है अथवा नहीं.
बेंथम जिन सात आधारों की बात करता है उनमें से पहले 6 बाते व्यक्तिगत सुख-दुख की मापक हैं लेकिन समूह अथवा बहुमत के व्यक्तियों के सुख का परिणाम निकालने के लिए विस्तार पर ध्यान दिया जाता है. इसीलिए बेंथम कहता है कि व्यक्ति के लिए कौन सा कार्य उपयोगी होगा इसके लिए उसे सात आधारों को अंक देकर अधिक अंक वाला कार्य अपनाना होगा.
दुखों की गणना करके किसी निश्चित परिणाम प पहुंचने के लिए बेंथम ने एक सूत्र सुख दिया है जो इस प्रकार है- समस्त सुखों के समस्त मूल्यों को एक ओर तथा समस्त दुखों के समस्त मूल्यों को दूसरी ओर एकत्र कर लेना चाहिए. यदि एक को दूसरे में से घटाकर सुख शेष रह जाता है तो वह कार्य ठीक है लेकिन यदि दुख शेष रहे तो यह समझ लेना चाहिए कि वह कार्य ठीक नहीं है.
इसके अलावा बेंथम मानता है कि यदि किसी कार्य का प्रभाव दूसरों पर भी पड़ता है तो यह उचित होगा कि हम उस प्रक्रिया में को उनमें से प्रत्येक पर भी लागू करें और उनके हितों को ध्यान में रखें और इसी को सुख का विस्तार कहा जाता है.
कानून निर्माण या विधायन के क्षेत्र में वह कहता है कि कानून बनाते समय यह देखना चाहिए कि सुख और दुख में किसकी मात्रा अधिक है. यदि वह सुख के पक्ष में है तो यह मानना चाहिए कि कानून प्रत्येक नागरिक के लिए सुखदायक है और यदि वह दुख के पक्ष में हो तो यह समझना चाहिए कि कानून जनसाधारण के लिए दुखदायी या कष्टकारक है.
बेंथम व्यक्तिगत सुख को महत्व देने के बाद सामाजिक सुख को भी अधिक महत्व देता है. वह कहता है कि सामाजिक जीवन में राज्य का उद्देश्य “अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख” के सिद्धांत के आधार पर किया जाना चाहिए. उपयोगिता का सिद्धांत सब कार्यों के औचित्य का मापदंड है और राज्य के वही कार्य उपयोगी हैं जो अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुख पहुंचाते हैं.
बेंथम के उपयोगितावाद की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह इस सार्वभौम सिद्धांत को मानता कि मानवीय आचरण और व्यवहार की सभी व्याख्याएं सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से उपयोगितावाद के सिद्धांत पर आधारित है. उपयोगितावाद का सिद्धांत निश्चित और वस्तुपरक है और उसे प्रयोग द्वारा सिद्ध भी किया जा सकता है. इस कारण यदि हम मानवीय संबंधों के संचालन को एक सुनिश्चित विज्ञान का रूप देना चाहते हैं तो हमें उपयोगिता के सिद्धांत को अपनाना होगा और यही हितकर और शुभकारक भी होगा.
बेंथम के विचारों की आलोचना। Criticism of Bentham In Hindi
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