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राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
राजनीतिक संस्कृति में केवल विरोध की ही क्रिया नहीं होती है, सहयोग तथा परम्परागत स्थितियों की रक्षा की भी प्रवृत्ति होती है। जहाँ राजनीतिक आवरण का स्पष्टीकरण किसी जनसमूह की राजनीतिक संस्कृति से होता है, वहाँ राजनीतिक संस्कृति का स्वरूप व्यक्तियों की राजनीतिक मान्यताओं तथा विश्वासों से निर्धारित होता है।
आमण्ड ने राजनीतिक संस्कृति के 4 प्रकार बताये हैं जो राजनीतिक संस्कृति के भी हैं- 1. पश्चिमी राजनीतिक संस्कृति, 2. यूरोपियन राजनीतिक संस्कृति, 3. अपश्चिमी राजनीतिक संस्कृति, 4. अधिनायकवादी राजनीतिक संस्कृति।
इन सब की अलग-अलग विशेषतायें हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. पश्चिमी राजनीतिक संस्कृति
(a) पश्चिमी राजनीतिक संस्कृति में ढाँचों का स्थायित्व स्थापित रहता है। आमण्ड के अनुसार इसमें Fusion व Fusion Culture होता है, अर्थात् इसमें पुरानी परम्पराओं पर आधुनिक विचारों का भी मिश्रण होता है इसका उदाहरण ब्रिटेन में आधुनिक राजनीतिक प्रणाली (जैसे संसद) के साथ राजतन्त्र भी है।
(b) जहाँ राजनीतिक संस्थाएँ स्थायी होती हैं, वहाँ इनमें इनको चलाने वालों की पूर्ण आस्था रहती है। आमण्ड के अनुसार ये सबसे स्थायी परिपक्व राजनीतिक संस्कृति है।
2. यूरोपियन राजनीतिक संस्कृति
इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति में पारस्परिक विश्वास व आधुनिक विचारों का अलग-अलग महत्व है। आमण्ड के अनुसार पृथकतावादी राजनीतिक संस्कृति की अपेक्षा कम होती है। उन्होंने फ्रांस का उदाहरण देकर बताया है कि यहाँ की राजनीतिक प्रणाली मैं उथल-पुथल होती रहती है। इस प्रकार की संस्कृति में इस संस्कृति को चलाने वाले की इसमें आस्था और इसकी ओर झुकाव भी इसकी प्रमुख विशेषता है। उदाहरणार्थ ब्रिटेन का संसद सदस्य व अमेरिका का सीनेटर अपनी राजनीतिक प्रणाली के प्रति फ्रांस या जर्मनी के संसद सदस्य से अधिक जागरूक रहता है।
3. अपश्चिमी राजनीतिक संस्कृति
(a) अपश्चिमी राजनीतिक संस्कृति में आपसी विचार व आधुनिकीकरण एक साथ चलते हैं। इनके आपसी टकरावस्वरूप राजनीतिक संस्कृति उद्भूत होती है। आमण्ड इसे सहयोगी या उप-संस्कृति मानते हैं। पिछड़े देशों की संस्कृति इसी स्वरूप में आती है।
(b) इस प्रकार की संस्कृति का आधुनिकीकरण के कारण स्वरूप बदलता रहता है। यहाँ की राजनीतिक संस्थाओं में स्थायित्व व परिपक्वता कम होती है, क्योंकि यहाँ राजनीतिक प्रणाली अपना पूर्ण स्वरूप नहीं ले पाती है।
(c) इस प्रकार की संस्कृति में प्रणेताओं का विश्वास व आस्था राजनीतिक व्यवस्था को नहीं समझने देते। यही कारण है कि पिछड़े देशों की राजनीतिक संस्कृति सदा एक सी नहीं रहती।
4. अधिनायकवादी राजनीतिक संस्कृति
अधिनायकवादी राजनीतिक संस्कृति एक विशिष्ट वर्ग अथवा संगठन द्वारा जनता को दी जाती है। आमण्ड के अनुसार ये Non consensule राजनीतिक संस्कृति है। इस संस्कृति के प्रति आम आदमी कम जागरूक होता है। इसमें विशिष्ट वर्ग राजनीतिक संस्थाओं को स्थायित्व देने का प्रयत्न करता है, परन्तु इस प्रकार की संस्कृति में आम आदमी व प्रणाली संचालकों में संघर्ष होता रहता है, परन्तु अदृश्य। इस स्थिति से प्रेरित होकर आम जनता इन राजनीतिक संस्थाओं को बदलने का प्रयत्न करती है।
सैनिक कार्यभार के आधार पर वर्गीकरण
देश के राजनीतिक जीवन में सेना का जो प्रभाव हो सकता है, उस प्रभाव के आधार पर प्रो. फाइनर राजनीतिक संस्कृतियों को निम्नलिखित तीन वर्गों में रखते हैं-
1. परिपक्व राजनीतिक संस्कृति
अमेरिका, आस्ट्रेलिया, नीदरलैण्ड में इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति पाई जाती है, इसमें राजनीतिक सहमति और संगठन बहुत ऊँचे स्तर के होते हैं, सरकार को सेना की सहायता पर कम से कम निर्भर होना पड़ता है, यदि वह व्यवस्था दीर्घकाल तक रहती है तो जनता और सेना दोनों पर ही यह प्रभाव होता है कि वे नागरिक सत्ता के
2. विकसित राजनीतिक संस्कृति
जनता का अत्यन्त संगठित होना इस प्रकार के सिद्धान्त में विश्वास करने लगते हैं। समाजों का विशिष्ट गुण होता है, परन्तु कभी-कभी ऐसे कारणों से परस्पर विरोधी ध्रुव भी देखे जाते हैं जैसे संविधानों अथवा विधियों की वैधता, या उन व्यक्तियों को वैधता जिनके आधार पर पदों पर पहुँचे हैं, कभी-कभी नागरिकों तथा नागरिक सरकारों पर सेना का दबाव दिखाई देता है, या तो जनता सैनिक शक्ति से दबकर शान्त रहती है, अन्यथा राजनीतिक परकीकरण (Political Alienation) से त्रस्त रहता है जैसे का मिस्र, अल्जीरिया और क्यूबा में देखा जा सकता है।
3. निम्न राजनीतिक संस्कृति
जहाँ इस प्रकार की संस्कृति होती है जहाँ जनता असंगठित होती है और इस प्रकार की संकीर्णता से ग्रसित होता है, जैसा कि दक्षिणी वियतनाम, सीरिया, वर्मा, ईराक, इण्डोनेशिया आदि देशों में है, प्रायः यह देखा जाता है कि राज्य की वैधता से सम्बन्धित प्रश्नों पर जनता में मतभेद है। जनता के असंगठित होने के कारण जनमत भी असंगठित होता है और अत्यन्त दुर्बल भी, उसमें यह सामर्थ्य नहीं होती कि कभी भी सर्वसत्ताधिकारी राज्य के विरुद्ध कोई आवाज उठा सके।
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