राजनीति विज्ञान (Political Science)

राजनीतिक समाजीकरण के साधन | राजनीतिक सामाजीकरण के अभिकरण

राजनीतिक समाजीकरण के साधन
राजनीतिक समाजीकरण के साधन

राजनीतिक सामाजीकरण के साधन (अभिकरण)

राजनीतिक सामाजीकरण के साधन (अभिकरण)- राजनैतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया में अनेक साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवार, शिक्षण संस्थाएँ, व्यावसायिक संस्थान आदि को इसके प्राथमिक साधनों के अन्तर्गत लिया जा सकता है क्योंकि ये लोगों के प्रारम्भिक जीवन में राजनीतिक संस्कृति के प्रति अभिमुखन पैदा करते हैं। जन-संचार, शिष्ट जन समूह आदि दूसरे साधन द्वितीय साधन हैं क्योंकि ये दूसरे क्रम के राजनैतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं

राजनैतिक सामाजीकरण के प्रमुख साधन अग्रलिखित है-

(1) परिवार (2) शिक्षण संस्थाएँ (3) शिष्ट-जन समूह (Peer Group) (4) कार्य अथवा नौकरी का अनुभव (5) जन-प्रसार के साधन (6) राजनीतिक व्यवस्था से सीधे सम्बन्ध

(1) परिवार- आमण्ड तथा पावेल ने परिवार के अन्तर्गत होने वाली राजनैतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया के सम्बन्ध में लिखा है कि “जिस सामाजीकरण के संगठन का सामना व्यक्ति सबसे पहला करता है, वह है-परिवार।” व्यक्ति के जीवन के प्रारम्भिक समय में परिवार में उस पर जो प्रभाव पड़ते हैं, वे आजीवन उससे सम्बद्ध रहते हैं। परिवार में उसके कुछ विषयों के बारें में दृष्टिकोण निर्मित होते हैं। सामाजिक व्यवस्था का वह सबसे पहले परिवार से ही ज्ञान प्राप्त करता है और परिवार में ही वह सर्वप्रथम सत्ता, शक्ति तथा प्रभाव का नियन्त्रण अनुभव करता है।

अतः स्पष्ट है कि परिवार राजनैतिक सामाजीकरण की प्रथम इकाई है।

रॉबर्ट लेविन–ने लिखा है कि परिवार तीन प्रकार से राजनैतिक विश्वासों की आधारशिला रखता है। यथा-

(i) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष निश्चित ज्ञान देकर, (ii) बच्चे को एक विशेष सामाजिक पृष्ठभूमि देकर और (iii) बच्चे के व्यकित्व का निर्माण करके।

(2) शिक्षण संस्थाएँ– शिक्षण संस्थाएँ राजनैतिक सामाजीकरण की दूसरी महत्वपूर्ण इजेन्सियाँ हैं। आमण्ड तथा पावेल ने इनके सम्बन्ध में लिखा है कि “राजनीति के खेल के अलिखित नियमों के विषय में दृष्टिकोण को आकार देने में विद्यालय भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।” आमण्ड तथा वर्बा ने पांच देशों की राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन में यह पाया कि | शिक्षित लोग अपने जीवन पर सरकार के प्रभाव के विषय में अधिक सचेत थे, वे राजनीति की और अधिक ध्यान देते थे और उन्हें राजनीतिक प्रक्रियाओं की अधिक जानकारी प्राप्त थी।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि शिक्षण संस्थाएँ मूल्यों और परिस्थितियों के विषय में जागृति पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(3) शिष्ट-जन समूह अभिजन समूह- आधुनिक समाजों में शिष्ट-जन समूह तथा मित्र-मण्डलों की भूमिका राजनैतिक सामाजीकरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण होती जा रही है। आस्टिन रेने ने इसके कारणों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि परिवार और शिक्षण संस्थाओं के बाद अधिकतर व्यक्ति अपना अधिकतर समय अपनी उम्र के लोगों, जिनका स्तर, समस्याएँ तथा लगाव समान होते हैं, विशिष्ट समूहों तथा परिवार के बाहर के बीच ही व्यतीत करते हैं। अमेरिका के सम्बंध में जेम्स कोलमैन ने कहा है कि वहाँ माँ-बाप तथा अध्यापकों का प्रभाव अल्डड्रपन में ही समाप्त हो जाता है और फिर उनके ऊपर शिष्ट-जन समूहों के प्रभाव अधिक होने लगता है।

(4) कार्य या नौकरी अनुभव – परिवार, शिक्षण संस्थाएँ तथा शिष्ट जन समूहों के बाद व्यक्ति के राजनैतिक सामाजीकरण करने में महत्वपूर्ण एजेन्सी या साधन की भूमिका निभाते हैं— उसके कार्य या नौकरी के अनुभव। नौकरी के अन्तर्गत उसके चारों ओर औपचारिक और अनौपचारिक संगठन व्याप्त होते हैं, ये संगठन उसकी राजनीतिक सूचना तथा विश्वासों के साधन बनते हैं। दबाव-समूह तथा हित-समूहोंकी गतिविधियाँ भी राजनीतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करती है।

(5) राजनीतिक व्यवस्था से सीधा सम्पर्क – राजनैतिक सामाजीकरण का एक अन्य रूप है— राजनीतिक व्यवस्था से सीधा सम्पर्क का। आमण्ड तथा पावेल के अनुसार व्यवस्था में विशिष्ट वर्गों से सीधा औपचारिक और अनौपचारिक सम्बन्ध व्यवस्था के प्रति लोगों के झुकावों को आकार देने का एक शक्तिशाली रूप है। राजनीतिक दलों, जन-प्रतिनिधियों, (व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका के सदस्यों) से सीधा सम्पर्क इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पीटर मर्कल के राजनीतिक, खेल, विशेषकर राजनीतिक प्रभाव-तथा चुनाव की प्रतियोगिता, युवाओं अनुसार, और प्रौढ़ों के लिए महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।

निष्कर्ष – उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राजनीतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया में परिवार, शिक्षण संस्थाएँ, विशिष्ट जन-समूह नौकरी तथा कार्य के अनुभव तथा हित समूह, जन संचार के साधन और राजनीतिक व्यवस्था से सीधा सम्पर्क आदि साधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया तथा एजेन्सियों की प्रकृतियों के सम्बन्धों की व्याख्या करते हुए रश तथा अल्तौफ ने लिखा है कि “जितनी स्थायी नीति होगी उतने ही अधिक स्पष्ट राजनीतिक सामाजीकरण के माध्यम होंगे, इसके विपरीत गैर-निरंकुश नीति में जितना परिवर्तन होगा,उतनी ही राजनीतिक सामाजीकरण की एजेन्सियाँ अस्पष्ट तथा बिखरी हुई होगी।”

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shubham yadav

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