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राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण की मुख्य मान्यताएं
राजनीति के उदारवादी दृष्टिकोण की मुख्य-मुख्य मान्यताएं ये हैं:
राजनीति समूहों की गतिविधि है
राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण व्यवहार के धरातल पर समाज के बहुलवादी दृष्टिकोण का समर्थन करता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार विभिन्न व्यक्ति विभिन्न समूहों के सदस्यों के रूप में अपने-अपने हितों की देखरेख करते हैं। अतःसमाज में बहुत सारे समूह बन जाते हैं, जो कुछ-न कुछ संगठित होते हैं। ये समूह अपने प्रतिस्पर्धी समूहों के हितों के विरूद्ध अपने-अपने सदस्यों के हितों कों बढ़ावा देने का प्रयत्न करते हैं। इन्हे हित-समूह कहा जाता है। उदाहरण के लिए, दुकानदारों और उपभोक्ताओं के समूह अपने-अपने सदस्यों के परस्पर विरोधी हितों को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं। इसी तरह मालिक और मजदूर, जमींदार और किसान, मकानदार और किराएदार अपने-अपने हित-समूहों के माध्यम से अपने-अपने हितों को बढ़ावा देते हैं। इन परस्पर विरोधी हितों के टकराव से ही आगे चलकर राजनीति का जन्म देती है। राजनीतिक दल विभिन्न हित-समूहों की मांगों में तालमेल स्थापित करने का प्रयास करते हैं।
राजनीति में आधिकारिक सत्ता का प्रयोग होता है
राजनीति में विभिन्न समूहों की परस्पर विरोधी मांगों का समाधान ढूंढने के लिए ऐसी नीतियां, निर्णय और कानून बनाए जाते हैं जो उन समूहों को मान्य हों; यह कम-से-कम वे उनका पालन करने को तैयार हों। यह सच है कि इनसे सब समूहों की सब मांगे पूरी नहीं हो जातीं, परंतु जनसाधारण को यह विश्वास होना चाहिए कि ये कानून उचित अधिकारियों या उचित संस्थाओं के द्वारा उचित रीति से बनाए गए हैं, और उनमें सबके हितों का ध्यान रखा गया है। ऐसा विश्वास होने पर लोग अपने मन से कानून का पालन करेंगे। फिर भी इन कानूनों को पूरी तरह लागू करने के लिए सरकार के पास शक्ति होना जरूरी है। उदाहरण के लिए, सड़कों पर सभी प्रकार के यातायात की सुविधा के लिए यातायात के नियम बनाए जाते हैं, संकेत लगाए जाते हैं, लाल और हरी बत्तियों की व्यवस्था की जाती है और पुलिस कांस्टेबल तैनात किए जाते हैं। साधारणतः लोग अपने-आप इस व्यवस्था का पालन करते हैं, परंतु नियमों और संकेतों का उल्लघंन करने वालों को पकड़ने और दंड दिलवाने के लिए यातायात पुलिस की व्यवस्था की जाती है। इस तरह आधिकारिक सत्ता के प्रयोग से ही राजनीति का कार्य सार्थक होता है।
राजनीति परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य का साधन है उदारवादी दृष्टिकोण के अनुसार आधिकारिक सत्ता का प्रयोग किसी वर्ग पर दूसरे की इच्छा को थोपने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि यह ऐसी इच्छा को व्यक्त करती है जहां परस्पर-विरोधी वर्गों में समझौता हो जाता है। दूसरे शब्दों में, उदार समाज अंतर्गत परस्पर-विरोधी वर्ग अपने अपने हितों की पूर्ति के लिए एक-दूसरे के विरूद्ध कार्य नहीं करते बल्कि सुलह-समझौते के आधार पर कोई ऐसा समाधान निकाल लेते हैं जिसमें सबके हितों का ध्यान रखा गया हो। राजनीति का प्रयोग ऐसा समाधान ढूंढने के लिए ही किया जाता है। अतः राजनीति मूलतः ‘संघर्ष’ के समाधान का साधन’ है। राजनीति के माध्यम से ही समाज में ऐसी नीतियां, निर्णय और नियम बनाए और लागू किए जाते हैं जो परस्पर विरोधी समूहों के हितों में सामजंस्य का साधन हों। उदाहरण के लिए, ऐसे नियम मालिक और मजदूर, निर्माता और उपभोक्ता, जमींदार। और किसान, मकान मालिक और किराएदार या किसी चौराहे पर विभिन्न दिशाओं में आने वाले वाहनों के परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करते हैं।
संक्षेप में, राजनीति के माध्यम से ही समाज की संगठित शक्ति के द्वारा समाज की समस्याओं और विवादों का वैध और न्यायसंगत समाधान निकाला जाता है। राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण यह स्वीकार करके चलता है कि समाज में सुलह-समझौते तथा वैध बल-प्रयोग के द्वारा किसी भी तरह के मतभेद, संघर्ष या विवाद को सुलझाया जा सकता है। राजनीति समाज में शांति, व्यवस्था और न्याय की स्थापना का साधन है।
राजनीति ‘सामान्य हित’ को बढ़ावा देने का साधन है
राजनीति का उदारवादी दृष्टिकोण यह स्वीकार करता है कि समाज में विभिन्न वर्गों के हितों में जो विरोध, मतभेद या विवाद पाया जाता है, वह बहुत गहरा नहीं होता। जब विभिन्न वर्ग अपने अपने संकीर्ण हितों से थोड़ा हटकर सोचते हैं तो उन्हें ‘सामान्य हित’ दिखाई दे जाता है, जिसे पहचानने में देर नहीं लगती। उदारवाद की दृष्टि में ‘सामान्य हित’ कोई एकसार वस्तु नहीं है बल्कि वह परस्पर विरोधी हितों में संतुलन की अवस्था है। राजनीति का ध्येय लोगों को इसी ‘सामान्य’ हित’ तक पहुँचने में सहायता देना और उसकी सिद्धि के साधन जुटाना है । ‘सामान्य हित’ में सभी समूहों के हितों को आपस में जोड़ने और उनमें समायोजन स्थापित करने की गुजांइश रहती है। परस्पर-विरोधी वर्ग एक-दूसरे को समझा-बुझाकर, विश्वास दिलाकर या एक-दूसरे के दिल में जगह बनाकर ऐसे नियम और तरीके ढूंढ लेते हैं जो ‘सामान्य हित’ के प्रतीक हों। यहां यह याद रखना जरूरी है कि ‘सामान्य हित के बारे में उदारवाद की धारणा समुदायवाद की धारणा से ‘सर्वथा भिन्न है। उदारवाद के अंतर्गत यह आशा की जाती है कि आधिकारिक पदों के लिए होने वाले, चुनाव में अपने-अपने दृष्टिकोण का खुला प्रचार, वोटों की गिनती, व्यापक महत्त्व के मुद्दों पर विपक्ष के साथ सलाह-मशविरा और निश्चित अंतराल के बाद फिर से चुनाव – ये सब चीजें विभिन्न समूहों को ‘सामान्य हित’ तक पहुँचने और उसे पूरा करने का मौका देती हैं।
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