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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई0 के गुण-दोष |राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का मूल्यांकन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई0 के गुण-दोष
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई0 के गुण-दोष

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई0 के गुण-दोष ( Evaluation of National Policy of Education 1986)

हम यहाँ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का मूल्यांकन उसके गुणों और दोषों के आधार पर करेगें। इस नीति को लागू होने में एक लम्बा समय बीत गया है और उसके परिणाम भी हमारे सामने हैं, अतः हम इसका मूल्यांकन भी इसी आधार पर करेंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा की मुख्य विशेषताएं

वैसे तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और उसके संशोधित रूप 1992 ई० में जो कुछ प्रस्तावित है वह सब कुछ बहुत अच्छा है। परन्तु इस नीति की कुछ बातें अन्य नीतियों से बहुत ऊपर है, उन्हें ही हम इसकी विशेषताएं मान सकते हैं जो निम्नलिखित हैं –

1. इस शिक्षा में शिक्षा को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित किया गया है वैसे तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986ई० में भी शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया गया था और उस पर बजट में 6 प्रतिशत व्यय करने की बात कही गयी थी परन्तु इस शिक्षा नीति में तो इसे उत्तम निवेश के रूप में स्वीकार किया गया है और उस पर बजट में 6 प्रतिशत का प्रावधान करना सुनिश्चित किया गया है।

2. यह भारत की ऐसी पहली शिक्षा नीति है जिसको क्रियान्वित करने के लिए पूरी कार्य योजना विस्तृत रूप में प्रस्तुत की गई और उसके लिए आवश्यक वित्त की व्यवस्था भी की गई।

3. इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968ई0 द्वारा घोषित 10+2+3 शिक्षा संचालन को पूरे देश में अनिवार्य रूप से लागू करने पर बल दिया गया है और 10 वर्षीय शिक्षा के लिए आधारभूत पाठ्यचर्या और +2 पर स्थान विशेष की आवश्यकता पाठ्यचर्या के निर्माण पर बल दिया गया है। उच्च स्तर की शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्माण का अधिकार विश्वविद्यालय को दिया गया है पर इस निर्देश के साथ कि ये पाठयक्रम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के होने चाहिए। इस प्रकार इस नीति में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हितों को बराबर का महत्व दिया गया है। यह भारतीय गणराज्य के अनुकूल है।

4. प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क करने की बात तो प्रारम्भ से ही कही जा रही है पर प्राथमिक विद्यालयों के सुधार की बात इस नीति में ही कही गई है और उसके लिए “ब्लैक बोर्ड योजना” बनायी गई और उसका क्रियान्वयन भी किया जा रहा है। अब तक लगभग 50 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों की दशा में सुधार किया जा चुका है। संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, में 1992 के तहत लगभग 75 हजार उच्च प्राथमिक स्कूलों को शिक्षण अधिगम सामग्री के क्रय हेतु 40-40 हजार रूपये दिये गये हैं।

5. इस शिक्षा नीति में माध्यमिक स्तर पर गति निर्धारक विद्यालय खोलने की घोषणा की गई थी और उसके तहत अब तक लगभग सभी जिलों में नवोदय विद्यालय स्थापित किये जा चुके हैं।

6. इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में खुले विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की गई थी, यह विश्वविद्यालय उन युवकों को उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान कर रहा है जो अन्यत्र प्राप्त नहीं कर पा रहे इसके अर्न्तगत दिल्ली में इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।

7. इस शिक्षा नीति में किसी भी स्तर की तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम को अद्यतन बनाने और तकनीकी शिक्षा संस्थाओं की दशा सुधारने पर बल दिया गया है और सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लिए वित्त व्यवस्था भी की गई है। “राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा परिषद” के निर्देशानुसार इस तकनीकी शिक्षा में काफी सुधार भी हुआ है।

8. इस शिक्षा नीति में शिक्षकों के स्तर और उनके प्रशिक्षण में सुधार पर बल दिया गया है। यूँ तो इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में बहुत बल दिया गया था और तदनुकूल शिक्षकों के वेतनमान बढ़ाए गये थे और उनकी सेवाशर्तो में सुधार किया गया था परन्तु इस शिक्षा नीति में शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार हेतु प्रत्येक जिले में “जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान “स्थापित किए गए हैं । कुछ स्तर के शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों को शिक्षक शिक्षा और शिक्षा उच्च अध्ययन केन्द्र में समुन्त किया गया है। साथ ही “राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् को और अधिक अधिकार दिए गए हैं। अब देश की समस्त शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाएं उसके नियंत्रण में है और उनमें उसके निर्देशानुसार सुधार हो रहा है।

9. इस शिक्षा नीति में परीक्षा को विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाने और सतत मूल्यांकन पर बल दिया गया है। इस बीच परीक्षा एवं मूल्यांकन प्रणाली में काफी सुधार हुआ है।

10. इससे पहले हमारे देश में जितनी भी शिक्षा नीतियाँ घोषित हुई उनमें आदर्श बातें तो बहुत की जाती रहीं परन्तु उनके क्रियान्वयन के लिए न तो ठोस योजनायें बनायी गयी और न ठोस उपाय सुझाये गए। यह पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति है जिसमें योजना भी बनाई गई और उसके क्रियान्वयन के लिए ठोस सुझाव भी दिए गये। इसमें शिक्षा व्यवस्था को कारगार बनाने हेतु किसी भी स्तर की शिक्षा के लिए “न्यूनतम अधिगम मानक” बनाने, शिक्षकों एवं शिक्षा प्रशासकों की जवाबदेही निश्चित करने और छात्रों के उत्तरदायित्व निश्चित करने पर बल दिया गया है। जब तक छात्र, शिक्षक और शिक्षा प्रणाली से जुड़े सभी व्यक्ति अपने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते तब तक कोई भी शिक्षा योजना सफल नहीं हो सकती।

11. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 और उसके संशोधित रूप 1992 ई० में शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति के लिए और इसके लिए ठोस कदम उठाने पर बल दिया गया है और इसकी प्राप्ति के लिए वित्त व्यवस्था भी की गई है। यह बात दूसरी है कि इस दशा में जब तक जो भी कार्य किए गए हैं, वे वोट की राजनीति पर अधिक आधारित है, लोकतन्त्र की माँग पर कम।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई0 के दोष

इस शिक्षा नीति में जो कुछ भी कहा जाए वह सब बड़ा लुभावना है। परन्तु इस शिक्षा नीति के तहत जो कुछ किया गया है, उसमें काफी दोष हैं।

नीतिगत दोष उन्हें कहना तो उचित नहीं होगा उन्हें क्रियान्वयन प्रक्रिया दोष कहना चाहिए और ये दोष हैं।

1. इस शिक्षा नीति में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के शैक्षिक अधिकार एवं उत्तरदायित्व निश्चित नहीं किये गये हैं। 1976ई0 में संविधान अधिनियम द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची पर लाया गया, परन्तु उसमें केन्द्र एवं राज्य सरकारों के शैक्षिक अधिकार एवं कर्तव्यों को सुनिश्चित नहीं किया गया।

यह कार्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति निर्माताओं को करना चाहिए था, उन्होंने भी नहीं किया। परिणम यह है कि प्रान्तीय सरकारें केन्द्र की उन शिक्षा योजनाओं को तो लागू कर देता है, जिनके लिए केन्द्र शतप्रतिशत आर्थिक अनुदान देता है। प्रायः उन योजनाओं को लागू नहीं करती जिन पर आंशिक सहायता अनुदान मिलता है। परिणाम यह है कि पूरे देश में शिक्षा की व्यवस्था नहीं है।

2. वित्त के क्षेत्र में जन सहयोग के स्थान पर जन शोषण हो रहा है। इस शिक्षा नीति में शिक्षा की व्यवस्था हेतु जन सहयोग के प्रोत्साहन की बात कही गयी है। इसे प्राप्त करने के लिए शिक्षा संस्थाओं में अभिभावक समिति बनाने और इस समिति के माध्यम से जन सहयोग प्राप्त करने की कार्य योजना प्रस्तुत की गयी है।

3. प्रथम 10 वर्षीय आधाभूत पाठ्यचर्या का अनुपालन आज तक नहीं किया जा सका है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968ई0 की घोषणा के बाद 1975 में “राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद” ने एक 10 वर्षीय आधारभूत पाठ्यचर्या तैयार की थी। उसके बाद उसने 1988 में उसका दूसरा प्रारूप प्रस्तुत किया और 2000 में तीसरा पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में आधारभूत पाठ्यचर्या के अनुपालन पर बल दिया जाने के बावजूद सभी प्रान्तों में अपने अपने तरह की पाठ्यचर्या लागू है। केन्द्र का दोषारोपण है कि प्रान्तीय सरकारें मनमानी कर रहीं है और प्रान्तीय सरकारों का दोषारोपण है कि केन्द्र सरकार क्षेत्रीय स्थिति के अनुसार पाठ्यचर्या निर्माण में बाधा डाल रही है।

4. ब्लेक बोर्ड योजना के अन्तर्गत प्राथमिक स्कूलों के जो भवन बनाए गये हैं और उनके लिए जो फर्नीचर एवं सामग्री भेजी गयी है, वे बहुत घटिया किस्म के है। संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं कार्य योजना 1992 के अनुसार अभी तक लगभग 75 हजार प्राथमिक स्कूलों को ही 40-40 हजार धनराशि दी गई है।

5. नवोदय विद्यालय केवल सफेद हाथी सिद्ध हुई है। नवोदय विद्यालय इस आशा से स्थापित किये गये थे कि इनमें पिछड़ें क्षेत्रों, पिछड़े वर्गों और उपेक्षित जातियों के योग्य बच्चों को प्रवेश दिया जा सकेगा, उन्हें अपने विकास के अवसर दिये जा सकेंगे तथा पहली बात तो यह है कि ऐसे नियमों के होते हुए भी बड़ी हेरी फेरी हो रही है। उनका लाभ ये नहीं उठा पा रहे जिनके लिए ये स्थापित किये गये थे।

6. इस बीच जिन प्रान्तों में +2 पर जो भी व्यावसायिक पाठयक्रम शुरू किये गये वे असफल रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि जिन विद्यालयों में ये पाठयक्रम शुरू किये गये उनमें संसाधनों और प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी थी दूसरी बात यह भी है कि ये पाठ्यक्रम अपने न पूर्ण थे और न उपयोगी।

7. उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में दोहरी नीति अपनाई गई है। इस शिक्षा नीति में एक तरफ उच्च शिक्षा में प्रवेश पर नियन्त्रण की बात कही गई है और दूसरी तरफ उच्च शिक्षा के अवसर सभी को सुलभ कराने और इस हेतु खुले विश्वविद्यालयों की स्थापना और पत्राचार पाठ्यक्रम शुरू करने की बात कही गयी है। इससे उच्च शिक्षा की अधिकतर संस्थाओं में आयोग्य छात्रों का प्रवेश हो रहा है।

8. इस शिक्षा नीति में कैपीटेशन फीस के लिए इस बन्धन के साथ स्वीकृति दे दी गई कि ये संस्थाएं सरकार द्वारा चयनित छात्रों को एक निश्चित प्रतिशत मात्र में बिना कैपीटेशन फीस के प्रवेश देंगी।

9. शैक्षिक अवसरों की समानता के नाम पर वोट की राजनीतिक की गई है। भारत में शैक्षिक अवसरों की समानता का अर्थ है कि देश के सभी बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा सुलभ करना, किसी भी आधार पर भेद भाव किये बिना सभी को अपनी योग्यतानुसार माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के साथ साथ विशिष्ट शिक्षा सुलभ करना।

10. इस शिक्षा नीति में बाह्य मूल्यांकन की अपेक्षा आन्तरिक मूल्य पर अधिक बल दिया गया है। जिन संस्थाओं ने भी इसे लागू किया गया है वहां इसका दुरूपयोग हुआ है। इससे लाभ के स्थान पर हानि हुई है। श्रेणी के स्थान पर ग्रेड देने का भी कोई लाभ नहीं हुआ है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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