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रौलेट एक्ट 1919 (Rowlatt Act 1919 in Hindi) गांधीवादी युग

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रौलेट एक्ट 1919

रौलेट एक्ट 1919

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रौलेट एक्ट 1919 (Rowlatt Act 1919 in Hindi) गांधीवादी युग

रौलट एक्ट, 1919

अंगेजी शासन के विरूद्ध पनप रहे असंतोष तथा पढ़ती हुई क्रांतिकारी गतिविधियों से प्रभावशाली ढंग से निपटने हेतु लार्ड चेम्सफोर्ड द्वारा किंग्स न्यायपीठ के न्यायाधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति का कार्य भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों के स्वरूप और प्रसार की जाॅच करना तथा आवश्यक हो तो उनसे प्रभावशाली ढंग से निपटने के लिए विधेयक प्रस्तावित करना था। इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर केन्द्रीय विधान परिषद् में दो विधेयक प्रस्तुत किए गए। भारतीय सदस्यों के तीव्र विरोध के परिणामस्वरूप प्रथम विधेयक को निरस्त कर दिया गया, किंतु द्वितीय विधेयक जिसका नाम ’क्रांतिकारी एवं अराजकतावादी अधिनियम’ था, मार्च 1919 में पारित कर दिया गया। इस रौलेट अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार किसी को भी जब तक चाहे बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद रख सकती थी। इसलिए इसे बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील वाला कानून भी कहा गया।

रौलेट समिति (Rowlatt Committee) की स्थापना की घोषणा 10 दिसम्बर 1917 को हुई. समिति ने लगभग चार महीनों तक “तहकीकात” की. रौलेट समिति की रिपोर्ट में भारत के जोशीले देशभक्तों द्वारा किये गए बड़े और छोटे आतंकपूर्ण कार्यों को बढ़ा-चढ़ाकर बड़े उग्र रूप में चित्रित किया गया था. रौलेट समिति के सभापति ने 15 अप्रैल, 1918 के दिन अपनी रिपोर्ट भारत मंत्री के सेवा में उपस्थित की और उसी दिन वह भारत में भी प्रकाशित की गई. वह रिपोर्ट “रौलेट समिति की रिपोर्ट” कहलाई.

रौलेट एक्ट 1919  (ROWLATT BILL / ROWLATT ACT ) में जिक्र था कि —

  1. क्रांतिकारियों के मुक़दमे हाईकोर्ट के तीन जजों की अदालत में पेश हों, जो शीघ्र ही उनका फैसला कर दें. निचली कचहरियों में उनके जाने की आवश्यकता नहीं ताकि अपील की भी कोई गुंजाइश न रहे.
  2. जिस व्यक्ति पर राज्य के विरुद्ध अपराध करने का संदेह हो, उससे जमानत ली जा सके और उसे किसी विशेष स्थान पर जाने तथा विशेष कार्य करने से रोका जा सके.
  3. प्रांतीय सरकारों को यह अधिकार दिया गया कि वे किसी भी व्यक्ति को जिस पर उन्हें संदेह हो, गिरफ्तार करके कहीं नजरबन्द कर सकती हैं और यदि संदेहास्पद आदमी जेल में हो तो उसे वहीं रोककर रख सकती है.
  4. गैरकानूनी सामग्री का प्रकाशन व वितरण करना या करने के लिए अपने पास रखना, अपराध होगा.

जब 6 फरवरी 1919 के दिन सर विलियम विन्सेंट ने रौलेट बिल को बड़ी कौंसिल में उपस्थित किया, तब सरकार को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि न केवल कौंसिल के बाहर अपितु अन्दर भी कड़े विरोध का भाव विद्दमान है.

रिपोर्ट के प्रकाशित होने पर देश में बैचेनी पैदा हो गयी. रौलेट बिल के प्रति देश में विरोध का भाव था. समाचार पत्रों में रौलेट रिपोर्ट और उस पर आधारित बिलों का कठोर विरोध किया जा रहा था फिर भी सरकार ने उन्हें छोड़ा नहीं. भारतीय प्रतिनिधियों ने बिल का डटकर विरोध किया. पं.मालवीय, श्रीयुत विट्ठल भाई पटेल, मजरुल हक आदि लोक नेताओं ने सरकार को समझाने का बहुत प्रयत्न किया पर सरकार ने उनकी एक न मानी. सरकार ने यह युक्ति दी कि उनका उद्देश्य राजनीतिक आन्दोलन को दबाना नहीं, अपितु देश को आतंकवाद से छुड़ाना है. देश सरकार की इस युक्ति की नि:सारिता को वर्षों के कटु अनुभव से जान चुका था. जो रस्सी आतंकवाद के नाम पर बनाई जाती थी, वह प्रायः राजनीतिक आन्दोलन के गले में कसी जाती थी.

कांग्रेस ने रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) का स्पष्ट विरोध किया. समाचार पत्रों ने घोर प्रतिवाद किया और कौंसिल के भारतीय सदस्यों ने बार-बार चेतावनी दी परन्तु सरकार अपने हठ पर तुली रही. Rowlatt Act के आने से अमृतसर के जालियाँवाला बाग़ में सैंकड़ों भारतवासियों के रुधिर की धारा बह गई.

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shubham yadav

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