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विचलन अथवा विक्षेपण का अर्थ
विचलन अथवा विक्षेपण (Dispersion) वह गुण हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि पदों के नाम उसके माध्यमों (या माध्य, मूल्यों) से किस सीमा से विचलित है। यह सत्य है कि माध्य मूल्यों (माध्य, मध्यांक व बहुलक) से सम्पूर्ण श्रेणी का पूर्ण तथा निश्चित ज्ञान विशेष। विशेषकर उस अवस्था में नहीं हो पाता है। जबकि पदमान व अन्य पद मूल्यों में अधिक अन्तर होता है।
उदाहरणार्थ- यदि किसी परिवार के पाँच व्यक्तियों की आमदनी क्रमशः 20, 60, 200, 50 – और 70 रुपये हो तो उनकी आमदनी का मध्यमान 80 रुपये हो । यदि हमें इन पाँचों आँकड़ों का पृथक्-पृथक् ज्ञान न हो तो मध्यमान के आधार पर हम यही समझेंगे कि परिवार के प्रत्येक व्यक्ति की आमदनी 80 या 80 रु. के आसपास होगी जबकि वास्तविक स्थिति इससे कहीं भिन्न है। अतः ऐसी दशाओं में किसी ऐसे माप की आवश्यकता पड़ती है जो अधिक-से-अधिक पद मूल्यों की जानकारी देती है। पद मूल्यों का मध्यमान कितना विचलन हैं इन्हीं मापों को विचलन के माप कहा जाता है।
विचलन के अर्थ को एक ओर उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। दो विद्यार्थियों के चार विषयों में प्राप्तोक 28, 60, 60, 92 और 56, 60, 60, 64 हैं जबकि प्रत्येक विषय में पूर्णाक 100 है और पास होने के लिए 33 अंक अवश्यक हैं। इन विद्यार्थियों के स्तर को जानने के लिए यदि समान्तर माध्य ज्ञात करें तो दोनों विद्यार्थियों के लिए करें । अतः इस आधार पर दोनों विद्यार्थियों का स्तर समान प्रतीत होता है। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। अतः स्पष्ट है कि केवल मध्यमान के आधार पर ही श्रेणी के स्वरूप का पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता। इस बिखराव को ही विचलन कहते हैं।
विचलन की मापों के प्रकार
(1) परिसर (Range),
(2) चतुर्थांशीय विचलन (Quartile Deviation),
(3) माध्य विचलन (Mean Deviation) –
(क) समान्तर माध्य (ख) मध्यांक (ग) बहुलक से।
(4) मानक विचलन (Standard Deviation )
विचलन के महत्व
सांख्यिकीय अनुसन्धान को एक यथार्थ स्तर तक ले जाने के लिए विचलन की गणना वास्तव में महत्वपूर्ण है। माध्य, मध्यांक या बहुलक से पद-मूल्यों की समस्त विशेषताओं का ज्ञान नहीं होता है और इसीलिए यह सम्भावना सदा बनी रहती है कि हमारा निष्कर्ष भ्रमपूर्ण हो। इस भ्रम से दूर करने में विचलन की देन वास्तव में उल्लेखनीय है। वास्तव में माध्य और विचलन दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं और एक के बिना दूसरा कुछ अधूरा-सा ही रह जाता है माध्य और विचलन की संयुक्त गणना ही सही स्थिति का परिचय दे सकती है उदाहरणार्थ जब हम किसी देश के निवासियों के प्रति व्यक्ति औसत आय व्यक्त करते हैं तो हमें उस देश के लोगों की गरीबी या अमीरी का पूरा-पूरा ज्ञान नहीं रहता है। यदि देश में कुछ लोगों के हाथों में धन या सम्पत्ति का केन्द्रीकरण हो गया है और वे बहुत अमीर हैं तो प्रति व्यक्ति औसत आय जो कुछ हमें गणना के द्वारा पता चलेगा वह लोगों की वास्तविक आय से कहीं ज्यादा होगी अतः वास्तविक स्थिति का ज्ञान तब तक नहीं हो सकता जब तक विचलन का भी ध्यान रखा जाए। अतः विचलन माध्य का पूरक है। विचलन का एक और महत्व है कि यह तथ्यों की एक श्रेणी में पाये जाने वाली समान अभिन्न व स्थिर तथ्यों को प्रकट करता है।
विचलन हमारी भविष्यवाणी करने वाली शक्ति को बढ़ा देता है अर्थात् विचलन का ज्ञान न हो जाने पर एक तथ्य के भविष्य के विषय में अनुमान लगाना हमारे लिए सरल हो जाता है। विचलन हमें अपने सुनिश्चित निष्कर्ष से विचलन होने से बचाता है।
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