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विद्याभवन उदयपुर- प्रारम्भ तथा विद्या भवन का मुख्य उद्देश्य

विद्याभवन उदयपुर
विद्याभवन उदयपुर

विद्याभवन उदयपुर (Vidya Bhawan)

विद्या भवन की स्थापना 1931 में भारत के प्रगतिशील शिक्षा के क्षेत्र में अग्रदूतों में से प्रसिद्ध शिक्षाविद् डॉ. मोहन सिन्हा मेहता ने की थी। 1926-27 में डॉ. मेहता ने भारतीय समाज के परिवर्तन और पुनर्निर्माण के लिए एक नये स्कूल के विचार की कल्पना की थी। विद्या भवन स्कूल की नींव जुलाई, 1931 में रखी गई थी।

विद्या भवन स्कूल के स्थापना की अवधि के दौरान डॉ. मेहता ने वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने में शिक्षकों की भूमिका को एक साथ देखा। इस विद्या भवन कॉलेज के परिणामस्वरूप 1942 में शुरू किया गया था। यह राजस्थान में पहला शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज था। डॉ. मेहता के करीबी सहयोगी डॉ. के. एल. श्रीमाली जो बाद में शिक्षामंत्री बने। उन्हें ही इस भारतीय विद्यालय के प्रथम प्राध्यापक होने का गौरव प्राप्त हुआ।

1942 में स्थापित विद्या भवन शिक्षक कॉलेज उदयपुर 1941 में मेवार सोसाइटीज पंजीकरण अधिनियम संख्या VII के तहत पंजीकृत एक संघ विद्या भवन सोसाइटी संस्थानों में से एक है।

जयपुर राज्य के तत्कालीन प्रधानमंत्री सर मिर्जा इस्माइल ने 3 अक्टूबर, 1942 को इसकी नींव रखी थी। प्रारम्भ में, इस शिक्षक कॉलेज ने शिक्षण के प्रमाण पत्र के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण लिया जो कि छह साल अर्थात् 1942 से 1948 तक जारी रहा। इस अवधि के दौरान, यह हाईस्कूल और इण्टरमीडिएट शिक्षा बोर्ड, राजपूताना (अजमेर– मेवाड़ समेत), मध्य भारत और ग्वालियर, राजस्थान विश्वविद्यालय (औपचारिक राजपूताना) से संबद्ध था। एम. एड. पाठ्यक्रम 1951 में शुरू किया गया था।

सत्र 1964-65 के बाद से, कॉलेज बी. एड. के लिए उम्मीदवारों को तैयार कर रहा है, 1993 में कॉलेज को शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति में 1986 में शिक्षक शिक्षा के गुणात्मक सुधार की योजना के तहत उन्नत शिक्षा संस्थान (सीटीई) में अभ्युत्थान किया गया था।

भारतीय विद्या भवन शिक्षा के क्षेत्र का एक ऐसा वृक्ष है जिसकी शाखाएँ देश ही नहीं, विदेशों तक फैली हैं। इस वृक्ष में फलने वाले फल राजनीति, धर्म, अध्यात्म से लेकर मैनेजमेंट और पत्रकारिता सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपने ज्ञान की मिठास घोल रहे हैं। भारतीय विद्या भवन पिछले 75 वर्षों से कई पीढ़ियों को न सिर्फ पढ़ने बल्कि गढ़ने का भी काम कर रहा है।

भारतीय विद्या भवन से डिग्री लेने की बात हो या व्यवसायिक कोर्स की, इसका बस नाम ही पर्याप्त है। भारतीय विद्या भवन की ओर से संचालित 114 केन्द्र देश और सात केन्द्र विदेशों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। ये संस्थान, योग, वेदांत, संस्कृति, नेचुरोपैथी से लेकर प्रबंधन, मीडिया सहित विभिन्न व्यवसायिक पाठयक्रमों में विद्यार्थियों की फसल तैयार कर रहे हैं। नई दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित भारतीय विद्या भवन की मुख्य इमारत में प्रबंधन, मीडिया और ज्योतिष केन्द्र आदि संचालित हैं।

विद्याभवन का प्रारम्भ (Starting of Vidya Bhavan)

अन्तर्राष्ट्रीय फलक पर पहचान रखने वाले इस संस्थान ने गत सात नवम्बर को ही अपने 75 वर्ष पूरे किये हैं। भवन के दिल्ली केन्द्र की स्थापना वर्ष 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने की थी। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने वर्ष 1975 में केन्द्र का उदघाटन किया। अज कुल 4.84 एकड़ भूमि में स्थित इसके कैम्पस में कई इंस्टीटयूट संचालित हैं जहाँ विभिन्न विभागों में विद्यार्थियों को शैक्षिक, सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा भी दी जाती है।

छोटी पुरुआत से लेकर भारतीय विद्या भवन के 114 केन्द्रों से कई शैक्षिक आन्दोलन चलाये गये। इसमें केन्द्र के विदेशों में स्थापित आठ सेंटर भी शामिल रहे। भारतीय विद्या भवन ने देश के साथ यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका, कनाडा, पुर्तगाल, साउथ अफ्रीका, कुवैत, मैक्सिको और आस्ट्रेलिया में भी अपनी पहचान दर्ज कराई है। भवन के 280 वैध केन्द्रों के अलावा यहाँ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में कॉलेज भी खुले ।

विद्या भवन का मुख्य उद्देश्य (Main Objectives of Vidya Bhavan)

भारतीय विद्या भवन का उद्देश्य केवल पाठ्यक्रम या व्यवसाय आधारित शिक्षा ही नहीं है, बल्कि यहाँ संस्कृति, कला, योग और वैदिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा ही मुख्य ध्येय है। भवन द्वारा संचालित 90 स्कूल भी हैं जो देश-विदेश में संचालित हैं।

अध्ययन एवं अनुसंधान केन्द्र (Study and Research Centre)

भारतीय विद्या अध्ययन एवं अनुसंधान केन्द्र में आठ विभागों में भाषा (संस्कृत, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश) आर्किटेक्चर, कला, संगीत, नृत्य, पुरातन भारतीय इतिहास, आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष की शिक्षा दी जाती है। केन्द्र में अनुसंधानकर्त्ताओं की मदद से इन्हीं विषयों पर नए शोध के लिए प्रेरित किया जाता है।

फिल्म एण्ड टी. वी. स्टडीज (Film and T. V. Studies)

फिल्म एण्ड टी. वी. स्टडीज के क्षेत्र में भारतीय विद्या भावन की सालोंसाल पुरानी धमक
[8:30 pm, 01/05/2022] Shubham Yadav: है। यहाँ मीडिया मैनेजमेंट, रेडियो एण्ड टी. वी. जर्नलिज्म के अलावा टेलीविजन डाइरेक्शन, टी. वी. प्रोडक्शन, कम्प्यूटर प्रैक्टिस, टी. वी. एक्टिंग, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, कैमरा एण्ड लाइटिंग और फोटोग्राफी आदि से सम्बन्धित विभिन्न कोर्स कराए जाते हैं।

बुक यूनिवर्सिटी (Book University)

भारतीय विद्या भवन का पब्लिकेशन डिवीजन पुस्तक भारती अत्यन्त प्रसिद्ध है। देश भर में इसके 375 केन्द्र हैं। भवन द्वारा संचालित बुक यूनिवर्सिटी का मुख्य उद्देश्य ऐसी पुस्तकें प्रकाशित करना है जिनमें प्राचीन संस्कृति को सहेजते हुए आधुनिक शिक्षा दी जाए। अपनी स्थापना के 75 वर्षों में भवन की ओर से 1800 टाइटल प्रकाशित किये जा चुके हैं। शिक्षा, कला-संस्कृति और साहित्य की 29 लाख मिलियन विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित करके भवन ने अपना इतिहास रचा है। भवन द्वारा इंग्लिश में प्रकाशित की जाने वाली रामायण और महाभारत की 1.1 मिलियन पुस्तकें प्रति वर्ष माँग में रहती हैं। इस तरह देखा जाए तो पुस्तकों के प्रकाशन में इतिहास रचा जा चुका है। यहाँ भवन के जर्नल्स के अलावा बाल साहित्य, कला, संस्कृति, साहित्य की किताबों के अलावा भागवत् गीता, आदि की माँग रहती है। इसके अलावा गांधी साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्रचुर संख्या में उपलब्ध है।

ज्योतिष का सबसे बड़ा अनुसंधान केन्द्र (Greatest Research Centre of Astrology)

दीपक कपूर सहित ज्योतिष के क्षेत्र के कई ऐसे नाम हैं जो संस्थान से जुड़े हैं। यहाँ सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों से भी विद्यार्थी ज्योतिष सीखने आते हैं। भारतीय विद्या भवन एक शैक्षिक संस्था होने के साथ चैरिटेबल ट्रस्ट भी है, इसलिए भवन द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों की फीस बहुत अधिक नहीं है। यहाँ विभिन्न पाठ्यक्रमों की फीस सामान्य परिवार के विद्यार्थियों की पहुँच में है। संस्था द्वारा संचालित पाठ्यक्रमों की फीस और अन्य जानकारियाँ भवन की वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं।

विद्या भवन की उपलब्धियाँ (Achievements of Vidya Bhavan)

भारतीय विद्या भवन से शिक्षा प्राप्त लोग हर क्षेत्र में हैं। इनमें से फिल्मों में कलाकार आशीष विद्यार्थी, टी. वी. कलाकार हर्ष छाया, मैग्सेसे विजेता समाजसेवी अरुणा रॉय, पत्रकारिता के क्षेत्र में विनोद शर्मा, देवांग मेहता, पूर्व केन्द्रीय मंत्री के. एम. चन्द्रशेखर आदि नाम शामिल हैं।

संस्थान से जुड़े व्यक्तित्व (Personality Related to Institute)

यहाँ फैकल्टी में जहाँ श्रीराम ग्रुप के एम. दामोदरन, मृणाल पांडे, उमा वासुदेव, एच. के.
[8:30 pm, 01/05/2022] Shubham Yadav: दुआ, प्रेम शंकर झा, एस. एल. शंखधर, जय शुक्ल, आर. एस. पाठक जैसे नाम हैं। वहीं संस्थान से जुड़े लोगों में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस आर. एस. पाठक, पं० जवाहर लाल नेहरू की बहन कमला हत्ती के पति जयशंकर लाल हत्ती (पूर्व गवर्नर पंजाब), सुरिंदर सैनी से लेकर प्रिंस, चार्ल्स, दलाईलामा जैसे नाम भी जुड़े हैं।

विद्या भवन को प्राप्त सम्मान (Reward Achieved to Vidya Bhavan)

सभी क्षेत्रों में समग्र रूप से अग्रणी रहने के कारण भारतीय विद्या भवन के खाते में कई सम्मान आए हैं। भवन को इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल एमीनेंस होने का गौरव तो प्राप्त है ही, साथ ही भारत सरकार की ओर से कम्युनल हार्मोनी अवार्ड, राजीव गांधी अवार्ड फॉर नेशनल इंटीग्रेशन और इन सबसे उच्च इंटरनेशनल गांधी पीस प्राइज भी मिल चुका है।

पीजी प्रोग्राम की उपलब्धता (P. G. Programme Available)

सरदार पटेल कॉलेज ऑफ कम्युनिकेशन एण्ड मैजेनमेंट की ओर से कई पीजी प्रोग्राम चलाए जाते हैं। यह कॉलेज वर्ष 1967 में भारतीय विद्या भवन ने मुम्बई के डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन एण्ड मैनेजमेंट के साथ शुरू किया। यहाँ पोस्ट ग्रेजुएट स्तर की पढ़ाई हो या प्रोफेशनल स्टडी अपनी सुविधा के अनुसार रेगुलर या पार्ट टाइम आकर भी कर सकते हैं। शैक्षिक डिग्री के अलावा यहाँ प्रोफेशनल स्तर पर भी पढ़ाई होती है.

नया सत्र नए कोर्स (New Session and New Course)

के. एम. मुंशी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल लीडरशिप ने हालिया शैक्षिक सत्र में तीन नये कोर्स ऑफर किये हैं। ये पाठ्यक्रम अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। जो निम्न हैं-

(1) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन स्कूल एजुकेशन एण्ड मैनेजमेंट

(2) डिप्लोमा इन क्रियेटिव राइटिंग इन इंग्लिश

(3) डिप्लोमा इन अर्ली चाइल्डहुड केयर एण्ड एजुकेशन।

अपनी ख्याति में विद्या भवन अकेला है (Vidya Bhavan is only one in its Popularity)

भारतवर्ष में भारतीय विद्या भवन अपने आप में एक ही है। शैक्षिक संस्था, चैरिटेबल ट्रस्ट के तौर पर पिछले 75 साल में भवन ने देश-विदेश में जो करके दिखाया है, इस कड़ी में किसी संस्था का नाम नहीं आता। भवन का उद्देश्य कभी भी धनार्जन न होकर शिक्षा, संस्कृति का प्रसार है। आज भवन के कई उपकेन्द्र हैं। विदेशों में भी बड़ी-बड़ी शाखाएँ हैं जो वहाँ भारतीय संस्कृति की जड़ें मजबूत कर रही हैं।

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shubham yadav

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