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वैदिक कालीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्रों पर प्रकाश डालिए।

वैदिक कालीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र
वैदिक कालीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र

वैदिक कालीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र

वैदिक कालीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र – वैदिक काल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था परिवारों एवं उच्च शिक्षा की व्यवस्था गुरुकुलों में होती थी। ये गुरूकुल प्रारम्भिक वैदिक काल में प्रायः जन कोलाहल से दूर, प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थापित होते थे। परन्तु उत्तर वैदिक काल में बड़े-बड़े नगरों और तीर्थ स्थानों पर स्थापित होने लगे। उस काल में तीर्थ स्थान धर्म प्रचार के केन्द्र होने के साथ-साथ उच्च शिक्षा के केन्द्रों के रूप में विकसित हुए। बड़े -2 नगरों में तक्षशिला, पाटिलपुत्र, मिथिला, धार, कन्नौज, केकय, कल्याणी, तन्जौर और मालखण्ड और तीर्थ स्थानों में प्रयाग, काशी, अयोध्या, उज्जैनी, नासिक, कर्नाटक और कॉची उस समय के प्रमुख शिक्षा केन्द्र थे। यहाँ उनमें से मुख्य शिक्षा केन्द्रों का वर्णन संक्षेप में प्रस्तुत है-

( 1 ) तक्षशिला- तक्षशिला उस काल में उत्तरी भारत के तत्कालीन गंधार राज्य की – राजधानी था। ऐसा उल्लेख मिलता है कि इस नगर को ही तत्कालीन गंधार नरेश भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम से बसाया था। आगे चलकर उसने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया और साथ ही यहाँ देश के विभिन्न भागों से विद्वानों को बुलाकर बसाया। उसने उन्हें गाँव के गाँव दान दिए और शिक्षा की व्यवस्था का कार्यभार सौंपा। इस प्रकार यह नगर उस समय राज्य की राजधानी के साथ साथ एक शिक्षा के नगर के रूप में विकसित हुआ। ऐसा उल्लेख मिलता है। कि यहाँ संस्कृत भाषा और साहित्य, व्याकरण, चारों वेदों, धर्म तथा दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान निवास करते थे। कोई संस्कृत भाषा, साहित्य और व्याकरण की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध थे। कोई किसी वेद की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध थे और कोई धर्म एवं दर्शन की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध थे। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कुछ विद्वान आयुर्विज्ञान के विशेषज्ञ थे। परिणामतः उस काल में तक्षशिला वैदिक साहित्यद्ध धर्म, दर्शन और आयुर्विज्ञान की शिक्षा के मुख्य केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। यहाँ कर्म (कला कौशल एवं व्यवसायों) की शिक्षा की भी उत्तम व्यवस्था थी। यही कारण है कि गंधार राज्य इस समय का वैभवशाली राज्य था। ई० पू० 7वीं शताब्दी तक यह वैदिक और ब्राह्मणीय शिक्षा का मुख्य केन्द्र रहा।

( 2 ) केकय- केकय मध्य भारत के तत्कालीन केकय राज्य की राजधानी था उपनिषद् काल में यह शिक्षा का मुख्य केन्द्र था। वहाँ संस्कृत भाषा, व्याकरण, साहित्य, वेद, धर्म और दर्शन की शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध था। प्राचीन ग्रन्थों में ऐसा उल्लेख मिलता हैं कि केकय नरेश अश्वपति स्वयं बड़े विद्वान थे वे विद्वानों का आदर करते थे। उन्होंने अपनी राजधानी में बड़े बड़े विद्वानों को बसाया था। वे समय-समय पर राजधानी में विद्वानों का सम्मेलन भी करते थे। • ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि उस समय इस नगर में एक भी व्यक्ति अशिक्षित नहीं था। यहाँ कला कौशलों, व्यवसायों और सैनिक शिक्षा की भी उत्तम व्यवस्था थी।

( 3 ) मिथिला – मिथिला का पूरा नाम विदेह था। यह स्थान उपनिषद् काल से ही शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र बन गया था। राजा जनक यहाँ धार्मिक विषयों पर शास्त्रार्थ किया करते थे। कृष्ण काब्य के रचयिता विद्यापति का जन्म यहाँ हुआ था। उन्होंने न केवल, बिहार वरन समस्त हिन्दी प्रदेश को अपनी मधुरवाणी से मन्त्रमुग्ध कर लिया था।

यहाँ साहित्य की शिक्षा के साथ वैज्ञानिक विषयों के अध्ययन अध्यापन पर बल दिया जाता था न्यायशास्त्र के लिए यह विश्वविद्यालय विशेष ख्याति प्राप्त कर चुका था। यहाँ के विद्वान न्यायशास्त्रियों ने न्यायशास्त्र को एक नवीन रूप प्रदान किया था। जो कि नव्य-न्याय के नाम से सुप्रसिद्ध हैं। इसके प्रर्वतक गनेश उपाध्याय ने ‘तत्वचिन्तामणि’ नामक ग्रन्थ का निर्माण किया था।

यहाँ परीक्षा प्रणाली का भी प्रचलन था। परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान किये जाते थे। विद्यालय की शिक्षा समाप्त होने पर जो परीक्षा ली जाती थी उसको ‘शलाक परीक्षा’ कहा जाता था। 12वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक यह शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बना रहा।

( 4 ) कॉची- पल्लव राज्य की राजधानी कॉची प्राचीनकाल में दक्षिण भारत का सर्वप्रथम सांस्कृतिक केन्द्र तथा शिक्षण केन्द्र बना रहा। इसको दक्षिण का काशी कहा जाता है। यहाँ ब्राह्मणीय तथा बौद्ध दोनों ही शिक्षाओं का अध्ययन अध्यापन होता है तथा दोनों के पृथक पृथक केन्द्र भी थे। यहाँ किसी एक धर्म की शिक्षा नहीं बल्कि अन्य धर्मों की भी शिक्षा दी जाती थी। तर्कशास्त्र, न्यायशास्त्र और व्याकरण साहित्य की भी शिक्षा यहाँ प्रदान की जाती थी।

अपने सुविख्यात विद्वानों के लिए काँची भी एक प्रसिद्ध स्थान रहा है। तर्कशास्त्र के सुप्रसिद्ध विद्वान वात्सायन जिन्होंने न्याय भाष्य की रचना की थी, काँची के ही आचार्य कहे जाते हैं। दिंगनाथ में भी यही शिक्षण ग्रहण की थी और पाँचवीं सदी में व महायान वंश के मयूर वर्मा भी यहाँ उच्च शिक्षा ग्रहण करने आये थे तथा तर्कशास्त्र के रचयिता सुप्रसिद्ध विद्वान कौटिल्य (चाणक्य) की जन्मस्थली भी काँची ही थी।

प्रसिद्ध चीनी ह्वेनसांग लगभग 620 ई0 में काँची आया था। वह काफी समय तक यहाँ रहा। काँची की विद्या सम्पन्नता पर उसने अपने लेखों में काफी विस्तार के साथ लिखा है। उसका कहना है कि कॉची में वैष्णव, शैव, दिगम्बर जैन व महायन बौद्ध रहते थे तथा बौद्धों के लगभग 100 विहार थे जिनमें 10,000 भिक्षु थे। इस तरह प्राचीन शिक्षा के विकास में काँची का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।

( 5 ) काशी – वैदिक काल में काशी न तो तीर्थ और न शिक्षा के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध थी लेकिन उत्तर वैदिक उपनिषद में इसे अवश्य आर्य सभ्यता व धर्म का केन्द्र माना जाने लगा। काशी का राजा अजातशत्रु औपनिषदिक ज्ञान के लिए विख्यात था और काशी के अनेक राजाओं. ने अपने पुत्रों को तक्षशिला में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा था। लेकिन आगे चलकर काशी स्वयं शिक्षा केन्द्र के रूप में ख्याति प्राप्त कर गया। सातवीं शताब्दी ई० में काशी उत्तर भारत का महत्वपूर्ण शिक्षा केन्द्र था। तक्षशिला की भाँति यहाँ भी वेदों के अतिरिक्त 18 शिल्पों की शिक्षा दी जाती थी तथा इसे हिन्दू धर्म का केन्द्र बिन्दु माना जाने लगा था। प्राचीन धार्मिक नेता पहले काशी में आये तथा यहाँ पर अपने धर्म का प्रचार किये। स्वयं भगवान बुद्ध ने भी अपने उपदेश का प्रचार सर्वप्रथम काशी में ही करना चाहा था। काशी के समय लगभग 5 या 6 मील दूर सारनाथ में उन्होंने प्रथम बार अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान की।

विद्वान दार्शनिक शंकराचार्य को भी काशी जाकर यहाँ के पण्डितों से अपने सिद्धान्तों की पुष्टि करवाना आवश्यक हो गया। सत्रहवीं शताब्दी में भी यह भारत का प्रमुख केन्द्र था तथा ब्राह्मणीय शिक्षा की अविच्छिन परम्परा को जीवित किए हुए था।

( 6 ) प्रयाग- भारत के पूर्वी भाग में स्थित प्रयाग (इलाहाबाद) प्रारम्भ से ही ऋषियों की प्रयाग तपोभूमि रही हैं। वैदिक काल में इस क्षेत्र के गंगातटवर्ती क्षेत्रों में अनेक ऋषि आश्रम थे। ये आश्रम धर्म और दर्शन की शिक्षा के मुख्य केन्द्र थे। यह एक तीर्थ स्थान तथा धार्मिक स्थल था और ऋषियों की तपोभूमि था। इसलिए यह धर्म एवं दर्शन की शिक्षा के केन्द्र के रूप में ही विकसित हुआ।

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shubham yadav

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