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शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में जनसंचार माध्यमों का महत्त्व
प्रभावशाली शिक्षा एवं शिक्षण के लिये माध्यम की आवश्यकता होती है। सामान्यत: शैक्षिक सम्प्रेषण के भौतिक साधनों को जनसंचार कहा जाता है; जैसे- पुस्तकें, छपी हुई सामग्री, कम्प्यूटर, स्लाइड, टेप, फिल्म एवं रेडियो आदि। जनसंचार साधनों के द्वारा मनुष्य अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है तथा नवीन ज्ञान को जनसाधारण तक पहुँचाता है। दृश्य-श्रव्य शिक्षण साधन व्यक्ति के सम्प्रेषण का आधार हैं। जब सम्प्रेषण किसी जनसंचार माध्यम और व्यक्ति के बीच होता है तो हम उसे मास मीडिया (Mass Media) कहते हैं अर्थात् वह सम्प्रेषण साधन, जिसमें व्यक्ति की अनुपस्थिति में छपी हुई सामग्री, रेडियो अथवा दृश्य-श्रव्य सामग्री (दूरदर्शन) द्वारा सम्प्रेषण होता है जनसंचार कहलाते हैं। इन साधनों के माध्यम से एक समय में अनगिनत (Uncounted) व्यक्तियों के साथ एकतरफा सम्प्रेषण होता है अर्थात् सम्प्रेषणकर्ता को पृष्ठ- पोषण प्राप्त नहीं होता। जनसंचार के इन माध्यमों को शिक्षा के प्रभावी कारक के रूप में इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. शैक्षिक रेडियो (Educational Radio) – आधुनिक संचार के सभी माध्यमों में रेडियो सर्व-सुलभ माध्यम है। भारत में 99% से अधिक जनसंख्या में यह माध्यम अपनी पहुँच रखता है। इटली निवासी जी, मारकोनी ने 19वीं शताब्दी में इसका आविष्कार किया था। यह रेडियो विद्युत चुम्बकत्व के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
रेडियो वर्तमान समय में जनसंचार का सबसे मितव्ययी साधन है, इस कारण यह विभिन्न आयु वर्गों तथा दूर-दराज के क्षेत्र में अपनी पहुँच रखता है। इसकी सर्व-सुलभता तथा उपयोगिता को देखते हुए शैक्षिक उद्देश्यों के लिये इसका अधिक प्रयोग हो रहा है। रेडियों के प्रयोग से एक कुशल तथा प्रभावशाली शिक्षक को बहुत अधिक व्यक्ति अथवा विद्यार्थी एक साथ श्रवण तथा मनन कर सकते हैं, जबकि कक्षागत शिक्षण में कुछ 40-60 छात्र ही लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त रेडियो के माध्यम से कार्यक्रम का प्रसारण रुचिकर लगता है क्योंकि इसका प्रसारण अनुभवी व्यक्तियों की सहायता से किया जाता है। इस प्रकार रेडियो के माध्यम से अनुदेशन प्रदान करने से विद्यार्थी में अधिगम के प्रति एक नवीन उत्साह उत्पन्न होता है। रेडियो प्रसारण के माध्यम से विद्यार्थी में शब्दों के प्रयोग, एकाग्रता, सूक्ष्मता से श्रवण करना तथा उत्साही वार्तालाप में वृद्धि होती है। अत: इसे औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा के विकास के लिये प्रयोग किया जाता है। रेडियो के माध्यम से विद्यार्थियों तथा विद्यालय के साथ-साथ अन्य व्यक्ति भी जैसे- सामाजिक कार्यकर्त्ता, वरिष्ठ नागरिक, स्वस्थ कर्मी, अशिक्षित तथा महिलाएँ इत्यादि लाभान्वित होते हैं। रेडियो कार्यक्रमों से शैक्षिक अवसरों की स्थापना एवं उनके विस्तार में सहायता प्राप्त होती है। इन सभी कारणों से भारत में भी शैक्षिक रेडियो का उपयोग हो रहा है।
2. शैक्षिक दूरदर्शन (Educational Television)- बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तथा इक्कीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में सूचना माध्यमों ने निःसन्देह मानव तथा मानव के जीवन को पूर्णरूप से परिवर्तित कर दिया। इस परिवर्तन में सबसे अधिक योगदान संचार माध्यम; जैसे-दूरसंचार सेवाओं तथा दूरदर्शन सेवाओं के कारण सम्भव हुआ। इस समयकाल में इन तकनीकी सेवाओं ने इतनी प्रगति की है। सम्पूर्ण विश्व एक वैश्विक ग्राम के रूप में ही परिवर्तित हो गया है। अब मानव के लिये दूरियों (Distances) का कोई अधिक महत्त्व नहीं रह गया है। यदि व्यक्ति विश्व के एक कोने से दूसरे कोने में जाये तो वह कुछ ही घण्टों से पहुँच सकता है तथा यदि वह विश्व के किसी भी अन्य भाग में उपस्थित अपने मित्र अथवा सम्बन्धी से वार्तालाप करना चाहे तो वह ऐसा पलक झपकते ही कर सकता है। अतः यह कहना तनिक भी अनुचित नहीं होगा कि आधुनिक सम्प्रेषण माध्यमों ने मानव के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न कर दिया है।
जब मानवीय जीवन का प्रत्येक पक्ष आधुनिक संचार माध्यम से सकारात्मक रूप से प्रभावित है तो शिक्षा का क्षेत्र इससे कैसे अप्रभावित रह सकता है? वर्तमान समय में शिक्षा के क्षेत्र में दूरदर्शन अपना पूर्ण योगदान प्रदान कर रहा है। दूरदर्शन को शैक्षिक कार्यक्षेत्र में कार्य करने के कारण शैक्षिक दूरदर्शन भी कहा जाता है। वस्तुत: शैक्षिक दूरदर्शन एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत एक केन्द्रीय अभिकरण के द्वारा निर्मित कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न पाठ्य वस्तुओं से सम्बन्धित अधिगम सामग्री प्रस्तुत तथा प्रसारित की जाती है। दूरदर्शन शैक्षिक प्रसारणों के लिये एक महत्त्वपूर्ण तथा प्रभावशाली माध्यम सिद्ध हो चुका है क्योंकि इसमें जनशिक्षा के क्षेत्र की अधिकांश बाधाओं का समाधान प्रदान करने की क्षमता है।
प्राय: औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा दूरदर्शन के माध्यम से प्रदान की जा सकती है। इसके प्रयोग से सम्पूर्ण देश अथवा विश्व को एक कक्षा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है तथा एक व्यक्ति अपने निवास स्थान पर ही कक्षा में अध्ययन का अनुभव प्राप्त कर सकता है। दूरदर्शन, शिक्षा के लिये तो एक वरदान सिद्ध हुआ है क्योंकि इसने इस प्रणाली की अनेक सीमाओं को पार करके इसे अधिक प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है।
3. बहु-माध्यमीय शैक्षिक कार्यक्रम एवं इसका कक्षा में उपयोग (Multi-Media Edu. cational Programmes and its Use in Class)-मल्टी-मीडिया एक तकनीक है जो वर्तमान में आधुनिक कम्प्यूटर का एक आवश्यक अंग बन चुका है। पूर्व में मल्टी-मीडिया का अर्थ संचार के विभिन्न साधनों के मिले-जुले स्वरूप से लगाया जाता था, किन्तु सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इस शब्द का अर्थ एक ही कम्प्यूटर पर टेक्स्ट, ग्राफिक्स, एमीनेशन, आडियो, वीडियो इत्यादि सुविधाओं के प्राप्त होने से लगाया जाता है। मल्टी-मीडिया तकनीक से युक्त कम्प्यूटरों पर टेलीविजन के कार्यक्रम देखे जा सकते हैं तथा संगीत भी सुना जा सकता है। सी. डी. लगाकर विभिन्न विषयों की जानकारी ली जा सकती है। आम व्यक्तिगत कम्प्यूटरों की तुलना में मल्टी-मीडिया कम्प्यूटरों में ध्वनि ब्लास्टर कार्ड, स्पीकर, माइक्रोफोन एवं काम्पैक्ट डिस्क ड्राइव सम्मिलित हैं। जिन्हें संयुक्त रूप से मल्टी-मीडिया किट कहा जाता है। मल्टी-मीडिया कम्प्यूटर में सॉफ्टवेयर के रूप में मल्टी-मीडिया प्रोग्राम का प्रयोग किया जाता है, जिसे सी. डी. रोम कहा जाता है। उत्पादन सूचना मनोरंजन शिक्षा तथा सृजनात्मक कार्यों में मल्टी-मीडिया का अत्यधिक उपयोग है। मल्टी-मीडिया प्रोग्राम दो प्रकार के हो सकते हैं। लीनियर एवं इण्टरएक्टिव प्रोग्रामों में विषय की प्रस्तुति एक बँधे बँधाये रूप में होती है। इसमें उपभोक्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं होता, जबकि इण्टरएक्टिव प्रोग्रामों में उपभोक्ता हस्तक्षेप कर सकता है। मल्टी-मीडिया की डिजिटल तकनीक ने शिक्षा एवं मनोरंजन के क्षेत्र में अत्यधिक क्रान्ति पैदा कर रखी है। फिल्मों तथा विज्ञापन फिल्मों में काल्पनिक दृश्यों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया जाना आज मल्टी-मीडिया के कारण ही सम्भव हुआ है। बहुचर्चित फिल्म (जुरासिक पार्क) के अधिकांश दृश्य इसी तकनीक द्वारा तैयार किये गये हैं।