अनुक्रम (Contents)
शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर वृत्तिक सूचनाओं के अध्ययन के उद्देश्य
प्राथमिक स्तर
इस स्तर बालकों की आयु इतनी कम होती है कि उनको जीविकोपार्जन की धारणा का कोई ज्ञान नहीं होता है। इस आयु में बालक अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे—भोजन, निद्रा, सुरक्षा और विश्वास की भावनाएँ, मित्रों और सामाजिक स्वीकृति की इच्छा, अवकाशकालीन कार्यों की सन्तुष्टि के प्रति सचेष्ट रहता है। प्रारम्भिक स्कूल का औसत छात्र स्कूल और स्कूल के कार्यों में रुचि लेता है। वह साथियों के साथ हँसना, कूदना, दौड़ना, चिल्लाना, गाना आदि क्रियाओं में भाग लेकर आनन्द अनुभव करता है। इस आयु में वह सृजनात्मक कार्यों में अधिक रुचि लेता है। अतः इस स्तर पर आवश्यक है कि बालकों के सृजनात्मक गुण का विकास किया जाये। इस स्तर पर वृत्तिक सूचनाओं के अध्ययन का कोई ठोस उद्देश्य नहीं है किन्तु किसी वृत्ति में सफलता के लिये आवश्यक गुणों के विकास को निर्देशन का प्रमुख उद्देश्य माना जा सकता है। इस स्तर पर प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं-
1. छोटे बच्चों में भावनात्मक असन्तुलन को विकसित होने से रोकना।
2. गम्भीर भावनात्मक कठिनाई वाले बच्चों को पहचानने में शिक्षकों की सहायता करना।
3. किसी अध्ययन क्षेत्र में पिछड़ रहे बालक की सहायता करना।
4. घर और स्कूल के मध्य संचार को सुविधाजनक बनाने में सहायता करना।
5. बच्चों में समूह में कार्य करने की प्रवृत्ति को विकसित करना।
6. बच्चों में सहकारिता की भावना को बढ़ावा देना।
जूनियर हाईस्कूल स्तर
भारतवर्ष में इस स्तर में प्रायः कक्षा 6,7,8 को सम्मिलित किया जाता है। इन कक्षाओं में 12 से 15 वर्ष की आयु तक के बालक अध्ययन करते हैं। इस आयुवर्ग के बच्चे जीविकोपार्जन के उद्देश्य को समझने लगते हैं और भविष्य में जिस वृत्ति में जाना चाहते हैं उसकी घोषणा भी करने लगते हैं। प्रायः जीविका चयन की घोषणा माता-पिता के प्रभाव अथवा वातावरण के प्रभाव के कारण होती है। जिसका कोई ठोस आधार नहीं होता है। यह ऐसा समय है जब छात्र को व्यवसायों तथा वृत्तिकाओं का ज्ञान करवाना चाहिये। इस स्तर पर वृत्तिक सूचनाओं के अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते है-
1. वृत्तिक सूचना के द्वारा बालकों में व्यवसाय के प्रति चेतना का विकास किया जा सकता है।
2. इन सूचनाओं द्वारा वृत्तिक विविधताओं सम्बन्धी छात्रों के ज्ञान का विस्तार किया जा सकता है।
3. वृत्तिक सूचनाएँ छात्र में वृत्तिक रुचि का विकास करने में सहायता करती हैं।
4. किसी जीविका में प्रवेश या स्थापन के लिये आवश्यक शर्तों का ज्ञान कराना।
5. इन सूचनाओं के माध्यम से छात्रों में व्यावसायिक साहित्य के अध्ययन में रुचि पैदा की जा सकती है।
6. गिन्सबर्ग के अनुसार 12 से 14 वर्ष की आयु की अवस्था क्षमता अवस्था होती है जिसमें बालक वृत्तिक की वास्तविकताओं के निकट आने लगता है। ये सूचनाएँ उसको सोचने के लिये बाध्य करती हैं कि उसकी क्षमतायें किस वृत्ति के लिये उपयुक्त हैं। ।
7. कक्षा 8 के छात्रों के आत्म-विश्लेषण के लिये प्रेरित करना
माध्यमिक स्तर
माध्यमिक स्तर पर पहुँचने वाले बालक प्रायः 15-16 वर्ष आयु के होते हैं। गिन्सबर्ग ने इस अवस्था को मूल्य अवस्था कहा है। इस आयु में बालक समाज में वृत्ति के सम्मान, आर्थिक लाभ, कार्य दशाओं के सन्दर्भ में वृत्ति का मूल्यांकन करना प्रारम्भ कर देते हैं। माध्यमिक स्तर पर वृत्तिक सूचनाओं के अध्ययन के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
1. आत्मविश्लेषण से ज्ञान अपनी क्षमता तथा रुचि का वृत्तिका के लिये आवश्यक शर्तों से मिलान करने के लिये प्रेरित करना
2. अधिक-से-अधिक वृत्तकों के बारे में जानने की जिज्ञासा का विकास करना।
3. कल्पना काल से हटाकर वृत्तिका से सम्बन्धित वास्तविकता के पटल पर लाना।
4. जीविकोपार्जन के प्रति उसकी रुझान पैदा करना ।
5. आत्म-विश्लेषण द्वारा उसके उपयुक्त वृत्तिका के प्रति रुचि का विकास करना ।
6. अपनी रुचि की वृत्तिकाओं के बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये छात्र को अभिप्रेरित करना।
7. वृत्तिक वार्ता का आयोजन करके छात्रों के व्यवसाय सम्बन्धी ज्ञान का विस्तार करना।
8. विषयों तथा रोजगार के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में वृत्तिका सूचनाएँ सहायता करती हैं।
उच्चतर माध्यमिक स्तर
उच्चतर माध्यमिक स्तर पर पहुँचने वाले छात्र प्रायः 17-18 वर्ष आयु वर्ग के होते हैं। गिंसबर्ग के अनुसार 17 वर्ष की आयु संक्रमण अवस्था होती है। इस अवस्था में छात्र कल्पना और सम्भावना अवस्था से बाहर निकलकर वास्तविकता की अवस्था में आता है। 18 वर्ष की आयु से प्रारम्भ काल को वास्तविकता काल कहा है। इसको भी उसने तीन उपकालों में बाँटा है। प्रथम अन्वेषण अवस्था है जिसमें वह विविध वृत्तिकों से सम्बन्धित सूचनाएँ संकलित कर विभिन्न वृत्तिकों के बारे में ज्ञान का विस्तार करना है। दूसरी स्फटिक अवस्था है जिसमें वह एक वृत्तिक का चयन करके उसमें प्रवेश करता है। तीसरी विशिष्टीकरण की अवस्था है। इसमें विशिष्टीकरण से अतिरिक्त दक्षता अर्जित करके अन्य उच्च स्तरीय वृत्तिका में प्रवेश करता है। शिक्षा के इस स्तर पर वृत्तिका सूचना अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
1. वृत्तिक सूचनाओं के अध्ययन द्वारा छात्रों के वृत्तिकाओं सम्बन्धी ज्ञान को व्यापक बनाना।
2. वृत्तिक सूचनाओं के अध्ययन से वृत्तिक और पाठ्य विषयों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में निपुण बनाना।
3. आत्म विश्लेषण से ज्ञात स्वयं के गुणों तथा वृत्तिका के लिये आवश्यक गुणों का मिलान करने में छात्रों को सक्षम बनाना।
4. वृत्तिका का चयन करने का निर्णय छात्र द्वारा स्वयं लेने के लिये उसे अभिप्रेरित करना।
5. सूचनाओं से छात्र द्वारा चुनी गयी वृत्तिका के कार्यों, कर्त्तव्यों और दायित्वों के बारे में ज्ञान
6. सूचनाएँ छात्र को वृत्तिकाओं पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करने और सूचना के होगा। विश्लेषण की प्रविधि को सीखने में सहायता करेंगी।
7. वृत्तिका के पूर्व प्रशिक्षण से सम्बन्धित संस्थाओं द्वारा प्रदत्त सुविधाओं का ज्ञान प्राप्त करने में सूचनाएँ सहायता प्रदान करेंगी।
8. सूचनाएँ वृत्तिका में प्रवेश के बाद वहाँ समायोजित होने में सहायता करेंगी।
इसी भी पढ़ें…
- मनोगामक कौशलों हेतु प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? | कौशल शिक्षण के सोपान
- वृत्तिका विकास से आप क्या समझते हैं?
- वृत्तिका विकास तथा रोजगार चयन को प्रभावित करने वाले कारक
- रोयबर द्वारा वृत्तिक विकास के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त
- वृत्तिका विकास का बहुलर द्वारा किए गए वर्गीकरण
- निर्देशन का महत्त्व
- निर्देशन के विभिन्न सिद्धान्त
- निर्देशन कार्यक्रम की विशेषताएँ
- निर्देशन कार्यक्रम को संगठित करने के उपाय, विशेषताएँ तथा प्रकार
- निर्देशन का क्षेत्र, लक्ष्य एवं उद्देश्य
- निर्देशन का अर्थ | निर्देशन की परिभाषा | निर्देशन की प्रकृति | निर्देशन की विशेषताएँ
- निर्देशन की आवश्यकता | सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता
- अभिप्रेरणा क्या है ? अभिप्रेरणा एवं व्यक्तित्व किस प्रकार सम्बन्धित है?
- अभिप्रेरणा की विधियाँ | Methods of Motivating in Hindi
- अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार
- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक
- अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार, महत्त्व, उपयोग/लाभ, सीमाएँ
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अनुप्रयोग
- शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का क्षेत्र