अनुक्रम (Contents)
शीतयुद्ध का विकास; प्रमुख घटनाएं: Cold War History and Story in Hindi
शीतयुद्ध का विकास; प्रमुख घटनाएं: Cold War History and Story in Hindi –हेलो दोस्तों जैसा कि आप सभी लोग जानते ही होंगे कि currentshub.com एकमात्र ऐसी वेबसाइट है जहां पर नौकरी और तैयारी से संबंधित सभी कुछ बहुत ही सरलतम तरीके से उपलब्ध है. उसी तरह आज हम आपके लिए “शीतयुद्ध का विकास; प्रमुख घटनाएं: Cold War History and Story in Hindi,” नोट्स लेकर आये है जिसमे सभी प्रश्नों को बहुत ही सरलतम रूप में रखा गया है |और इसमें महत्वपूर्ण विषय में बताया गया है, जो किसी भी परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैऔर इसके उपरांत कई एक दिवसीय परीक्षा में हर वर्ष प्रश्न पूछे जाते हैं |
भारत की विदेश नीति India’s Foreign Policy- Download pdf Now
Indian Foreign Policy Handwritten Notes By B.L Choudhary
भारत की विदेश नीतिः गुटनिरपेक्षता एवं पंचशील
शीत युद्ध (COLD WAR)के विशिष्ठ साधन
अंतराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव
शीत युद्ध की समाप्ति के आधुनिक परिणाम,भारत और शीत युद्ध
शीत युद्ध(COLD WAR) विभिन्न परिभाषाएं in hindi
शीतयुद्ध का विकास; प्रमुख घटनाएं: Cold War History and Story in Hindi
शीत युद्ध को सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित चार भागों में बांटा जा सकता है-
पहला चरण(१९४६-१९५३)
१- चर्चिल का फुल्टन भाषण
- अनेक विद्वान् शीतयुद्ध का उद्भव विंस्टन चर्चिल का फुल्टन भाषण से मानते हैं |
- इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के 5 मार्च 1946 को भाषण दिया ,जिसमें उन्होंने कहा था कि “हमें तानाशाही के एक स्वरुप के स्थान पर उसके दूसरे स्वरूप की स्थापना रोकनी चाहिए | स्वतंत्रता के दीपशिखा प्रज्वलित रखने एवं इसाई सभ्यता की सुरक्षा के लिए आंग्ल अमेरिकी गठबंधन स्थापित किया जाना चाहिए| साम्यवाद के प्रसार को सीमित रखने के लिए हरसंभव नैतिक-अनैतिक उपायों का अवलंबन किया जाना चाहिए”| और 19 फरवरी 1947 को अमेरिकी सीनेट के सम्मुख राज्य सचिव हीन एचिसन ने कहा कि ‘सोवियत संघ की विदेश नीति आक्रामक और विस्तार वादी है|’
- इस प्रकार पूर्व और पश्चिम में एक दूसरे के विरुद्ध शीत युद्ध का वातावरण उग्र होता गया|
२-ट्रूमैन सिद्धांत
- साम्यवाद विरोध के नाम पर अमेरिका ने 12 मार्च 1947 को विश्व के अन्य देशों के लिए ट्रूमैन सिद्धांत का प्रतिपादन किया| कहा गया कि संसार में जहां कहीं भी शांति को भंग करने वाला परोक्ष या अपरोक्ष आक्रामक कार्य होगा तो अमेरिका सुरक्षा संकट समझेगा तथा उसे रोकने के लिए भरसक प्रयास करेगा | अमेरिका द्वारा ट्रूमैन सिद्धांत की घोषणा से स्पष्ट है कि यह उसने सोवियत संघ के प्रति अपने मन मुटाव ,घृणा ,वैमनस्य , और अविश्वास के कारण की|
३-मार्शल योजना
- विश्व को साम्यवादी क्रांति के कथित खतरे से बचाने के लिए 8 जून 1947 को अमेरिका ने मार्शल योजना की घोषणा की| 26 अप्रैल 1947 को इसकी जरूरत पर बल देते हुए अमेरिका के विदेश सचिव ने कहा था कि- यदि इस समय तत्काल यूरोप के आर्थिक पुनरुत्थान का प्रयत्न नहीं किया गया तो वह साम्यवाद हो जाएगा | इससे अमेरिका और रूस के बीच विरोध पहले की अपेक्षा और बढ़ा |
४-कोमेकोन की स्थापना
- सोवियत गुट के तो नौ यूरोपीय देशों ने तो मार्शल योजना का करारा जवाब देने के लिए 25 अक्टूबर 1947 को कोमेकोन का गठन किया कर दिया | इसका उद्देश्य फ्रांस इटली सहित यूरोप की साम्यवादी दलों को संगठित करना था | इससे अमेरिका तथा इसके पश्चिम यूरोप के मित्र देश सोवियत संघ के खिलाफ हो गए |
५-‘नाटो’ का गठन
- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन 1 अप्रैल 1949 को अमेरिका के नेतृत्व में कनाडा और पश्चिम की 10 देशों (बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आयरलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, हालैंड, पुर्तगाल, ब्रिटेन, और नार्वे ) ने नाटो नामक सैनिक समझौते पर हस्ताक्षर किए, इसमें कहा गया कि यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में किसी एक या अनेक देशों पर किया गया सशस्त्र आक्रमण समझौते के सभी सदस्यों के खिलाफ हमला समझा जाएगा| यह सोवियत संघ को खुली चेतावनी थी कि यदि उसने नाटो के किसी भी देश पर हमला किया तो अमेरिका उसका मुंह तोड़ जवाब देगा, अमेरिका द्वारा नाटो का निर्माण सोवियत संघ का सैनिक स्तर पर विरोध विरोध करना था |
६-कोरिया संकट
- जून 1950 में कोरिया संकट ने भी अमेरिका और सोवियत संघ में शीत युद्ध में वृद्धि की | इस युद्ध में उत्तरी कोरिया को सोवियत संघ तथा दक्षिणी कोरिया को अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों का समर्थन व सहयोग प्राप्त था, दोनों महाशक्तियों ने परस्पर विरोधी व्यवहार का प्रदर्शन करके शीत युद्ध को वातावरण में और अधिक गर्मी पैदा कर दी | कोरिया युद्ध का तो हल हो गया लेकिन दोनों महाशक्तियों में आपसी टकराव की स्थिति कायम रही |
- 1951 में जब कोरिया युद्ध चल ही रहा था, उसी समय अमेरिका ने अपने मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर जापान से शांति संधि कर ली और संधि को कार्य रुप देने के लिए सान फ्रांसिस्को नगर में एक सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय किया सोवियत संघ ने इसका कड़ा विरोध किया| अमेरिका ने इसी वर्ष जापान के साथ एक प्रतिरक्षा संधि करके विरोध की खाई को और अधिक गहरा कर दिया | अमेरिका की इन कार्यवाहियों ने सोवियत संघ के मन में देश की भावना को बढ़ावा दिया इन संधियों को सोवियत संघ ने साम्यवाद के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा माना और उस की निंदा की |
शीत युद्ध का दूसरा चरण (1953 से 1958)
- शीत युद्ध के दूसरे चरण में महाशक्तियों की राजनीतिक नेतृत्व में परिवर्तन हुआ | अमेरिका ट्रूमैन की जगह पर आइजनहावर राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ में स्टालिन की मृत्यु के बाद बुल्गानिन और उसके बाद ख्रूचेव ने शासन सत्ता की बागडोर संभाली | शीत युद्ध के दूसरे चरण की प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित है |
१-रूस द्वारा परमाणु परीक्षण
- 1953 में सोवियत संघ ने पहली बार परमाणु परीक्षण किया | जिससे उसका परमाणु क्षेत्र में अमेरिका के समकक्ष होने का मार्ग प्रशस्त हो गया | रूस ने सफल परमाणु परीक्षण संपन्न कर जहां परमाणु हथियारों का निर्माण आरंभ किया, वही उसके प्रतिद्वंदी अमेरिका तथा पश्चिम के राष्ट्रों को सुरक्षा का खतरा महसूस हुआ | परिणाम स्वरुप दोनों महाशक्तियों में नए घातक परमाणु शस्त्रों का आविष्कार कर उनका ढेर लगाने की होढ प्रारंभ हो गई | सोवियत संघ द्वारा स्पुतनिक नामक कृत्रिम उपग्रह का इसका सबसे अच्छा उदाहरण है |
२-हिन्द चीन की समस्या
- हिंदचीन क्षेत्र (वियतनाम, काम्पुचिया और लाओस) में दोनों महाशक्तियां अपनी-अपनी समर्थक सरकारे स्थापित करने के प्रयास में लग गई | इस क्षेत्र में फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के विरोध चलने वाले संघर्ष में गृहयुद्ध, सैनिक टकराव या अव्यवस्था आम बात हो गई | फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासको द्वारा हिन्द चीन छोड़ने के लिए, निर्णय के बाद अमेरिका का बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में प्रवेश शीत युद्ध के कारण ही प्रेरित था | अपने को मुकाबले की विश्व शक्ति प्रमाणित करने के लिए सोवियत संघ को भी रणभूमि में उतरना पड़ा |
- 1954 में दिएन-बीएन फू के सैनिक गढ़ के पतन के बाद जेनेवा बुलाया गया | जिससे हिंद चीन में कम्पूचिया और लाओस को स्वतंत्र राष्ट्रों के रुप में स्थापित किया | वियतनाम का विभाजन अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त हुआ| जेनेवा समझौतों में यह बात मानी गई कि 2 वर्ष बाद जनमत संग्रह होगा और वियतनाम के राजनीतिक भविष्य, एकीकरण आज का निर्माण लिया जाएगा| हिंद चीन में अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षण नियंत्रक आयोग में कनाडा, भारत, पोलैंड में शामिल किए गए | परंतु शीत युद्ध के इस चरण में इस समझौते को लागू किया जाना संभव नहीं हुआ | वह शीत युद्ध का ही प्रभाव था कि दोनों प्रतिस्पर्धी पक्षों को एक या दूसरी महाशक्ति का समर्थन मिल गया |
३-सीटो और सेंटो का गठन
- अमेरिका में तीसरी दुनिया के देशों में साम्यवाद का प्रचार रोकने के लिए सीटो एवम् सैनिक समझौते को क्रमशः 1954 एवम् 1955 में परिवर्तित किया| इन समझौतों द्वारा सदस्य देशों को सैनिक एवं अन्य प्रकार के सुरक्षा गारंटी दी गई | निश्चित रूप से यह रूस विरोधी अमेरिका प्रयास था|
४-वारसा पैक्ट का गठन
- अमेरिका द्वारा साम्यवाद का प्रसार रोकने के लिए प्रवर्तित सीटो ,सेंटो एवं नाटो के निर्माण के प्रत्युत्तर में सोवियत संघ भी कहां चूकने वाला था अतः उसने जवाबी कार्यवाही के लिए 14 मई 1955 को पूर्व -यूरोपीय देशों को वारसा पैक्ट में शामिल कर सैनिक तथा अंय प्रकार की सुरक्षा की गारंटी प्रदान की | निश्चित रूप से यह सोवियत प्रयास अमेरिका विरोधी था| वारसा पैक्ट मूलतः अमेरिकी नाटो का जवाब था इससे रूस और उसके आठ पूर्व यूरोपी साथी राष्ट्र सम्मिलित हुए 1991 में वारसा पैक्ट समाप्त कर दिया गया|
५-आइजनहावर सिद्धांत की घोषणा
- जून 1957 में अमेरिका द्वारा आइजनहावर सिद्धांत की घोषणा की गई | इस सिद्धांत के अनुसार अमेरिकी कांग्रेस ने राष्ट्रपति को पश्चिम एशिया के किसी भी देश में साम्यवादी आक्रमण को रोकने के लिए अपने विवेक के अनुसार सेना भेजने तथा सैनिक कार्यवाही करने का अधिकार दिया | दूसरी तरफ यह हुआ कि आज हावर सिद्धांत की घोषणा पर रूसी प्रतिक्रिया हुई कि उसने इसको पश्चिम एशिया के लिए घातक बताया | फलस्वरूप इस क्षेत्र में अमेरिका तथा रूस ने अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र जमाना आरंभ कर दिया | परिणामस्वरुप सामरिक महत्व के पश्चिम क्षेत्र और तेलकुओ पर प्रभुसत्ता जमाने के लिए अमेरिका और रूस दोनों एक दूसरे के विरुद्ध कूटनीतिक चालें चलते रहे |
६-स्वेज नहर का संकट
- 1956 में स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के जवाब में फ्रांस और ब्रिटेन ने मिस्र पर सैनिक हमला कर दिया| अमेरिका ने मिस्र पर हमले में फ्रांस और ब्रिटेन का साथ नहीं दिया फिर भी यह हमला उनके मित्र राष्ट्रों द्वारा किया गया था| सोवियत संघ ने इस हमले को की कड़ी आलोचना की | इसने एक बार फिर से युद्ध में गर्माहट उत्पन्न कर दी |
शीत युद्ध का तीसरा चरण( 1959-1962 )
- तीसरे चरण में अंतरराष्ट्रीय राजनीति अमेरिका और रूस की अनबन, पिघलाव , और गर्माहट दोनों की ओर छलांगे लगाती रही |
- ख्रूचेव द्वारा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की वकालत से अनेक राजनीतिक टिप्पणीकारों ने सोचा कि अब महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध शिथिल हो जाएगा,
- किन्तु प्रारंभिक सफलताओं के बाद दोनों में कभी पिघलाव कभी गर्माहट रही|
- इस चरण की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं-
१-1959 में ख्रूचेव की अमेरिका यात्रा
- स्टर्लिंग की मृत्यु ( 1953 )के बाद बुल्गानिन और उसके हटने के पश्चात ख्रूचेव के सत्ता में आने (1956) के बाद 3 अगस्त 1959 को मास्को और वाशिंगटन की एक साथ घोषणा हुई कि कुछ ही दिनों में सोवियत प्रधानमंत्री ख्रूचेव अमेरिका की और अमेरिका राष्ट्रपति आइजनहावर सोवियत संघ की यात्रा पर जाएंगे | 15 सितंबर 1959 को ख्रूचेव अमेरिका पहुंचे और वह एक महीने तक उस देश के स्थानों पर भ्रमण करते रहे उनका सर्वत्र भव्य स्वागत किया गया | कैंप डेविड नामक स्थान पर आइजनहावर विचार विमर्श किया | यह तय किया गया कि 16 मई 196० से पेरिस में निशात्रिकरण की समस्या सुलझाने के लिए शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाए और वहीं से राष्ट्रपति यात्रा आइजनहावर यात्रा पर रवाना हो | इस प्रकार की ख्रूचेव अमेरिका यात्रा से दोनों देशों के बीच शीत युद्ध की शिथिलता के आसार दिखाई देने लगा | इसे “कैंप डेविड की भावना” के नाम से पुकारा गया |
२- यू-२ विमान कांड एवं पेरिस शिखर सम्मेलन की असफलता
- पेरिस सम्मेलन के 2 सप्ताह पूर्व अर्थात 1 मई 1960 को यू -२ विमान कांड के होने से कैंप डेविड की भावना पर पानी फिर गया | अमेरिका का एक जासूसी विमान सोवियत सीमा का उल्लंघन करके 2000 किलोमीटर अंदर घुस गया| रूस को इसका पता चलने पर उसने विमान चालक को पहले नीचे उतारने को कहा | ऐसा ना होने पर उसने राकेटों की सहायता से उसे नीचे गिरा कर उसके चालक गैरी पावर को जिंदा गिरफ्तार कर लिया | अमेरिका ने इसके प्रति अपने अभिज्ञता प्रकट की| गैरी पावर द्वारा जासूसी के इरादों की स्वीकारोक्ति से अमेरिका ने यह माना | सोवियत संघ ने इसके लिए कड़ी शब्दों में आलोचना किया | इसका परिणाम पेरिस शिखर सम्मेलन की असफलता के रूप में सामने आया |
३-क्यूबा संकट
- कोरियाई महाद्वीप में स्थित कि क्यूबा हर दृष्टि से दोनों महाशक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है | एक ओर रूस लिए वह लकड़ घोड़ा(frogon-house) हो सकता है तो दूसरी ओर अमेरिका के लिए गठिया रोग जैसा हो सकता है| अप्रैल 1961 में सोवियत संघ के नेताओं को यह चिंता सता रही थी कि अमेरिका साम्यवादियों साम्यवादियों द्वारा साशित क्यूबा पर आक्रमण कर देगा और इस देश के राष्ट्रपति की दल कास्त्रो का तख्तापलट हो जाएगा | क्यूबा अमेरिका के तट से लगा हुआ एक छोटा सा द्वीपीय देश है | क्यूबा का जुड़ाव सोवियत संघ से था और सोवियत संघ उसे कूटनीतिक या कूटनयिक तथा वित्तीय सहायता देता था | सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रूचेव ने क्यूबा को रूस के ‘सैनिक अड्डे’ के रूप में बदलने का फैसला किया | 1962 में ख्रूचेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइल तैनात कर दी | इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमेरिका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया| हथियारों की तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमेरिका के मुख्य भूभाग के लगभग दोगुने ठिकानों यस शहरो पर हमला बोल सकता था |
मिसाइल संकट
- क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की भनक अमेरिकियों को 3 हफ्ते बाद लगी | अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी और उनके सलाहकार ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिसमें दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो जाए| लेकिन इस बात को लेकर दृढ़ थे की ख्रूचेव क्यूबा से मिसाइलों और परमाणु हथियारों को हटा ले | केनेडी ने आदेश दिया कि अमेरिकी जंगी बेड़ो को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए | इस तरह अमेरिका सोवियत संघ के मामले के प्रति अपनी गंभीरता की चेतावनी देना चाहता था ऐसी स्थिति में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा इसी को क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में जाना गया | इस संघर्ष की आशंका ने पूरी दुनिया को बेचैन कर दिया | यह टकराव कोई आम युद्ध नहीं होता | अंततः दोनों पक्षों ने युद्ध हटाने का फैसला किया और दुनिया ने चैन की सांस ली | सोवियत संघ के जहाज में या तो अपनी गति धीमी कर ली या वापसी का रूख कर लिया |
शीत युद्ध का चौथा चरण (1963 से 1979)
चौथे चरण में जहां दोनों महाशक्तियों के बीच तनाव शैथिल्य आरंभ हुआ वहां छुटपुट प्रतिद्वंदिता चलती रही | इस चरण में शीत युद्ध की शिथिलता की प्रमुख घटनाएं निम्नांकित हैं-
१- परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि
- क्यूबा संकट के बाद दोनों महाशक्तियों ने महसूस किया कि यदि उन्होंने आपसी टकराव को रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया तो महायुद्ध कभी भी छिड़ सकता है| निशस्त्रीकरण के क्षेत्र में 23 जुलाई 1963 को मास्को में रूस ,अमेरिका और ब्रिटेन ने वायुमंडल ब्रह्म अंतरिक्ष और समुद्र में परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध पर हस्ताक्षर किए | इसके बाद चीन फ्रांस तथा कुछ अन्य राष्ट्रों को छोड़कर करीब 100 से अधिक देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए |
२- हॉटलाइन समझौता
- 1963 में क्रेमलिन (मास्को )तथा वाइट हाउस (वाशिंगटन) के बीच हॉटलाइन के जरिए सीधा संपर्क स्थापित करने का समझौता हुआ | इस सीधे संपर्क का उद्देश्य यह था कि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय या द्विपद्नीय संकट के दौरान महाशक्तियों में भूल ,आकस्मिक दुर्घटना, या गलतफहमी के कारण उत्पन्न टकराव को टाला जाए | इसके द्वारा दोनों देशों के शासनाध्यक्ष सीधा संपर्क कर संकट का निवारण कर सकते हैं |
३ – परमाणु अस्त्र -प्रसार रोक संधि
- 1968 में सोवियत संघ अमेरिका और ब्रिटेन ने अन्य देशों के साथ ‘परमाणु अस्त्र अप्रसार रोक संधि’ पर हस्ताक्षर किए | सन्धि के अनुसार वे अन्य देशों द्वारा परमाणु अस्त्र अप्रसार करने में किसी भी प्रकार की सहायता नहीं करेंगे | इसका उद्देश्य परमाणु अस्त्रों की होड़ रोककर तनाव कम करना था |
४- मास्को बोन समझौता
- 1970 में सोवियत संघ और पश्चिमी जर्मनी के बीच यह समझौता हुआ | इस समझौते के द्वारा दोनों देशों ने यथास्थिति को स्वीकार कर एक दूसरे के खिलाफ शक्ति प्रयोग नहीं करने का निर्णय लिया | इसलिए दो महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध का तनाव काफी कम हुआ |
५- बर्लिन समझौता
- 3 सितंबर 1971 को अमेरिका, सोवियत संघ,ब्रिटेन तथा फ्रांस के बीच करीब 18 महीने की लंबी बातचीत के बाद बर्लिन समझौते पर हस्ताक्षर हुए | इसके अंतर्गत ‘पश्चिम बर्लिन के निवासियों को पूर्वी भरली तथा पूर्वी जर्मनी’ आने की अनुमति देने की व्यवस्था थी | इसके पहले इस पर रोक थी | बर्लिन समस्या का यह हल खोजकर तनाव कम किया गया |
६- दो जर्मन राज्यों का सिद्धांत
- 8 नवंबर 1972 को पश्चिम जर्मनी की राजधानी बॉन में दो जर्मन राज्यों का सिद्धांत स्वीकार कर लिया गया | इसमें हुए समझौते में पूर्वी तथा पश्चिमी जर्मनी के बीच संधि हुई | इन दोनों को 1973 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य सदस्यता प्रदान की गई | इस मसले पर सुरक्षा परिषद में दोनों महाशक्तियों ने न तो कोई आपत्ति प्रकट की और ना ही वीटो का प्रयोग किया | इसने महाशक्तियों के बीच तनाव को कम करने का मार्ग प्रशस्त किया |
७- यूरोपीय सुरक्षा सम्मेलन
- 3 जुलाई 1973 को फिनलैंड फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग सम्मेलन हुआ | जेनेवा में यह सम्मेलन 17 सितंबर 1973 से 27 जुलाई 1975 तक जारी रहा और 1 अगस्त 1975 को यह हेलसिंकी में समाप्त हुआ | इसमें 35 देशों ने भाग लिया | सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य यूरोपीय देशो में आपसी संबंध सुधारना तथा उसने सुदृढ़ करना एवं यूरोप में शांति ,न्याय और सहयोग बढ़ाना था| सम्मेलन में निम्नांकित सिद्धांतों की घोषणा की गई-
१- संयुक्त राष्ट्र संघ में आस्था तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा और न्याय की स्थापना में उसकी भूमिका तथा प्रभावकारिता को बढ़ावा देना |
२- राज्यों में मैत्रीपूर्ण संबंधों का विकास करना |
३-समस्त राज्यों में सार्वभौमिक समानता का आदर करना |
४ -शक्ति का प्रयोग व उसके प्रयोग की धमकी ना देना |
५- सीमाओं का उल्लंघन ना करना |
६ – राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता में विश्वास |
७- राज्यों के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अकेले या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप ना करना |
८- विचार अंतरात्मा धर्म या विश्वास सहित मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति आदर करना |
९- लोगों के समान अधिकारों और आदमी के अधिकार को स्वीकार करना स्वीकार करना |
१०- राज्यों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना |
११- अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत उत्तरदायित्व का शिक्षा से पालन करना इत्यादि |
Note: इसके साथ ही अगर आपको हमारी Website पर किसी भी पत्रिका को Download करने या Read करने या किसी अन्य प्रकार की समस्या आती है तो आप हमें Comment Box में जरूर बताएं हम जल्द से जल्द उस समस्या का समाधान करके आपको बेहतर Result Provide करने का प्रयत्न करेंगे धन्यवाद।
अगर आप इसको शेयर करना चाहते हैं |आप इसे Facebook, WhatsApp पर शेयर कर सकते हैं | दोस्तों आपको हम 100 % सिलेक्शन की जानकारी प्रतिदिन देते रहेंगे | और नौकरी से जुड़ी विभिन्न परीक्षाओं की नोट्स प्रोवाइड कराते रहेंगे |
Disclaimer:currentshub.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है ,तथा इस पर Books/Notes/PDF/and All Material का मालिक नही है, न ही बनाया न ही स्कैन किया है |हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- currentshub@gmail.com