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शीत युद्ध विभिन्न परिभाषाएं|भारत की विदेश नीतिः गुटनिरपेक्षता एवं पंचशील
शीत युद्ध विभिन्न परिभाषाएं|भारत की विदेश नीतिः गुटनिरपेक्षता एवं पंचशील-हेलो दोस्तों जैसा कि आप सभी लोग जानते ही होंगे कि currentshub.com एकमात्र ऐसी वेबसाइट है जहां पर नौकरी और तैयारी से संबंधित सभी कुछ बहुत ही सरलतम तरीके से उपलब्ध है उसी तरह आज हम आपके लिए “शीत युद्ध विभिन्न परिभाषाएं|भारत की विदेश नीतिः गुटनिरपेक्षता एवं पंचशील” नोट्स लेकर आये है जिसमे सभी प्रश्नों को बहुत ही सरलतम रूप में रखा गया है |और इसमें महत्वपूर्ण विषय में बताया गया है,जो किसी भी परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसके उपरांत कई एक दिवसीय परीक्षा में हर वर्ष प्रश्न पूछे जाते हैं
*के.पी.एस.मेनन के अनुसार –
“शीतयुद्ध दो विरोधी विचारधाराओ- पूंजीवाद और साम्राज्यवाद,दो व्यवस्थाओं -बुर्जुआ लोकतंत्र तथा सर्वहारा तानाशाही ,दो गुटों -नाटो और वार्सा समझौता , दो राज्यों -अमेरिका और सोवियत संघ तथा दो नेताओ -जांन फास्टर इल्लास तथा स्टालिन के बीच युद्ध था, जिसका प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ा’ |”
*पण्डित जवाहर लाल नेहरु ने शीत युद्ध की स्थिति को “निलंबित मृत्यु का वातावरण” कहकर संबोधित किया
*जोसेफ फ्रेंकेल के शब्दों में
“शीतयुद्ध को दो बड़े राज्यों के बीच विद्धमान गहरी प्रतियोगिता अर्थात चालों तथा प्रतिचालों का सिलसिला माना जा सकता है”
*डी.एफ.फ्लेमिंग ने अपने कृति “THE COLD WAR AND ITS ORIGINS,1917-59“ लिखा है की “शीतयुद्ध एक ऐसा युद्ध है , जो युद्ध क्षेत्र में नही, बल्कि मनुष्य के मस्तिष्क में लड़ा जाता है तथा इसके द्वारा उनके विचारो पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है “
* जांन फास्टर डलेस के शब्दों में
“शीत युद्ध नैतिक द्रष्टि से धर्म युद्ध था , अच्छाइयो के लिए बुराइयों के विरुद्ध , सत्य के लिए गलतियों के विरुद्ध और धर्म प्राण लोगो के लिए नास्तिको के विरुद्ध संघर्ष था |”
शीत युद्ध की प्रकृति
शीत युद्ध की प्रकृति कूटनीतिज्ञ युद्ध सी है जो अत्यंत उग्र होने पर सशस्त्र युद्ध को जन्म दे सकती है | इस शीत युद्ध में दोनों ही पक्ष आपस में शांतिकालीन कूटनीतिज्ञ सम्बन्ध बनाये रखते हुए भी शत्रु भाव रखते हैं | और सशस्त्र युद्ध के अलावा अन्य सभी उपायों में एक- दूसरे को कमजोर बनाने का प्रयास करते हैं| इस युद्ध में दोनों ही पक्ष अपने प्रभाव क्षेत्र के लिए अपनी सिद्धांतिक विचारधाराओं और मान्यताओं पर बल देते हैं| दूसरे देशों को प्रभाव क्षेत्र में लेने के लिए आर्थिक सहायता देना, प्रचार अस्त्र को काम में लेना, जासूसी, सैनिक हस्तक्षेप ,शस्त्र सप्लाई, शस्त्रीकरण ,सैनिक गुटबंदी और प्रादेशिक संगठनों का निर्माण आदि शीत युद्ध के अंग है |
शीत युद्ध के प्रमुख लक्षण
शीत युद्ध में दो सिद्धांतों का ही नहीं, अपितु भीमाकार शक्तियों रूस और अमेरिका का संघर्ष है| इसमें का महत्व है, यह एक वाकयुद्ध है| इस वातावरण में दोनों महाशक्तियां व्यापाक प्रचार, गुप्तचरी, सैनिक हस्तक्षेप, सैनिक संधियों तथा प्रादेशिक संगठनों की स्थापना करके अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने में लगी रहती हैं | दोनों शिवरों के मध्य तनावपूर्ण संबंधों की स्थिति को शीत युद्ध कहा जाता है| यह गरम युद्ध से भी अधिक भयानक है इसे “मस्तिष्क में युद्ध” के विचारों को प्रश्रय देने वाला युद्ध कहा गया है| विभिन्न विद्वान इस का उद्भव द्वितीय विश्व युद्ध के तत्काल बाद मानते हैं | कुछ अन्य विशेषज्ञ इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के 5 मार्च 1946 मार्च को दिए गए फुल्टन भाषण से , जिसमें उन्होंने कहा था कि हमें तानाशाही के एक स्वरूप के स्थान पर दूसरे स्वरूप की स्थापना रोकनी चाहिए| स्वतंत्रता की दीप शिखा प्रज्वलित रखने एवं इसाई सभ्यता की सुरक्षा के लिए हर संभव नैतिक-अनैतिक उपायों का अवलंबन किया जाना चाहिए| असल में शीतयुद्ध के बारे में किसी निश्चित दिन अथवा समय को बताना असंभव है, क्योंकि यह युद्ध एक लंबी प्रक्रिया थी जिसके अंतर्गत दो महाशक्तियों में आपसी हितों के टकराव से विभिन्न संकट भिन्न-भिन्न समय पर लगातार पैदा हुए अर्थात दोनों के बीच तनाव धीरे-धीरे बढ़ता गया और इसे ही शीत युद्ध कहा गया |
भारत की विदेश नीति India’s Foreign Policy- Download pdf Now
Indian Foreign Policy Handwritten Notes By B.L Choudhary
भारत की विदेश नीतिः गुटनिरपेक्षता एवं पंचशील
शीत युद्ध (COLD WAR)के विशिष्ठ साधन
अंतराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव
शीत युद्ध की समाप्ति के आधुनिक परिणाम,भारत और शीत युद्ध
शीत युद्ध(COLD WAR) विभिन्न परिभाषाएं in hindi
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