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शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयाम

शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयाम
शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयाम

शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयाम (Educational Innovation and New Dimensions of Education)

शैक्षिक नवाचार शिक्षा में सुनियोजित सकारात्मक परिवर्तन का नाम है। बदलती परिस्थितियाँ, आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक परिवर्तन शैक्षिक नवाचार के अन्तर्गत किये जाते हैं। शैक्षिक नवाचार के अन्तर्गत हुए परिवर्तनों के फलस्वरूप जिन शैक्षिक कार्यक्रमों, शैक्षिक विचारों, पाठ्यक्रमों एवं नीतियों को अंगीकार किया जाता है, उन्हें ‘शिक्षा के नूतन आयाम’ कहा जाता है।

‘शिक्षा के नूतन आयाम’ शिक्षा की आधुनिक प्रवृत्तियों पर आधारित शैक्षिक नवाचार हैं। ‘शिक्षा के नूतन आयाम’ ज्ञान-विज्ञान में नवीन अनुसंधानों तथा वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों पर आधारित नवीन शैक्षिक कार्यक्रम हैं।

शिक्षा के नूतन आयामों की स्थापना परिवर्तन के कारण होती है। वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के कारण मानव का दृष्टिकोण भौतिकता से प्रभावित है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि, उपभोक्तावाद के उदय, तीव्र आर्थिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तनों के कारण व्यक्ति के समक्ष नई चुनौतियाँ एवं समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। वैज्ञानिक उपकरणों के आविष्कार, यथा जनसंचार के साधन, स्वचालित यंत्र, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, अंतरिक्ष सम्बन्धी शोध एवं तकनीकी ज्ञान के विस्तार से हमारे रहन-सहन, जीवन-शैली, जीवन के प्रति दृष्टिकोण आदि में व्यापक परिवर्तन हो गया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कम्प्यूटर के प्रयोग, सूचना क्रान्ति के कारण सिमटती दुनिया ने जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये हैं।

तकनीकी दृष्टिकोण, सामाजिक परिवर्तन एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण में नवाचार की आवश्यकता एवं क्षेत्र (Need and Scope in view of Technological, Social Change & Scientific Temper)

सदैव से ही शिक्षा और समाज का घनिष्ठ सम्बन्ध है। ज्ञान की अभिवृद्धि एवं तकनीकी प्रगति तथा भौतिकता के संचार के कारण समाज तेजी से बदल रहा । लोगों की सोच, रहन-सहन का स्तर एवं आवश्यकताएँ बदल रही हैं। समाज में सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन भी तेजी से हो रहे हैं। इन परिवर्तनों के अनुरूप शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन आवश्यक है। अतएव शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन के अनुरूप लाने एवं जन आकांक्षाओं की प्रतिपूर्ति हेतु सक्षम बनाने के लिए नए विचारों, नई तकनीकों, नई विधियों एवं नूतन आयामों की आवश्यकता है।

सम्पूर्ण विश्व की भाँति भारत में परिवर्तनों का चक्र गतिमान है। वर्ष 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के फलस्वरूप राजनैतिक ढाँचे में मौलिक परिवर्तन हुआ। वर्ष 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ, जिसमें मौलिक अधिकारों और नीति-निदेशक तत्त्वों द्वारा भारतीय जनता को कतिपय अधिकार और आश्वासन दिये गए। इन अधिकारों एवं आश्वासनों की प्रतिपूर्ति एवं क्रियान्वयन हेतु लॉर्ड मैकाले द्वारा तैयार शिक्षा प्रतिरूप (मॉडल) में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव होती है।

भारतीय समाज एवं उसकी संरचना में भी परिवर्तन हुए हैं। जातियों का बंधन शिथिल हुआ है, लिंग आधारित भेदभाव के विरुद्ध चेतना जाग्रत हुई है और साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ाने की आवश्यकता तीव्रता से अनुभव की जा रही है। सामाजिक शोषण के विरुद्ध नवीन चेतना का प्रकटीकरण हो रहा है। ये और ऐसे ही अनेक परिवर्तन नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयामों की आवश्यकता प्रतिपादित करते हैं।

पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय संस्कृति से बढ़ती विमुखता के कारण समाज में मूल्यों का क्षरण हुआ है। भौतिकता की वृद्धि और आध्यात्मिक चिंतन का लोप हो रहा है। रहन-सहन, वेश-भूषा, आचार-व्यवहार, चिंतन एवं चरित्र बदल रहा है। इन सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा प्रणाली में नूतन आयामों को अपनाने की आवश्यकता अपरिहार्य हो गयी।

इस प्रकार देश में हो रहे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन आवश्यक है। शिक्षा में नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयामों की आवश्यकता को निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है

1. कल्याणकारी राज्य की स्थापना हेतु- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में ‘लोकतांत्रिक संसदात्मक शासन प्रणाली को अंग्रीकार किया गया है। ऐसी शासन प्रणाली लोक कल्याण के लिए प्रवृत्त होती है। भारत में भी कल्याणकारी राज्य की स्थापना का संकल्प लिया गया है। ऐसी शासन प्रणाली में सभी को प्राथमिक शिक्षा, अवसरों की समानता, जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति आदि का आश्वासन एवं गारण्टी दी जाती है। शिक्षा पर गठित आयोगों ने एवं शिक्षाशास्त्रियों ने भारत में लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हेतु शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन में सुझाव दिए हैं। शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण निःशुल्क शिक्षा, जनशिक्षा जैसे अनेक कार्यक्रम इसी का परिणाम हैं। शिक्षा के इन नवीन कार्यक्रमों के संचालन एवं अध्ययन के लिए नूतन आयामों का अध्ययन आवश्यक है।

2. वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली- वर्तमान युग विज्ञान का युग है। सम्पूर्ण विश्व में विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में नूतन अनुसंधान एवं खोजें हो रही हैं। पाताल से लेकर आसमान तक विज्ञान के चमत्कार दृष्टिगोचर हो रहे हैं। घर, कार्यालय, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, उद्योग, बैंक, परिवहन सर्वत्र वैज्ञानिक उपकरणों का प्रचुर प्रयोग हो रहा है। दूरदर्शन, कम्प्यूटर, जीरॉक्स आदि अनेक उपकरण शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रान्ति ला रहे हैं। इन वैज्ञानिक उपकरणों से संचालन, रख-रखाव एवं आगे विकसित करने के लिए शिक्षा में नवीन विधियों एवं पद्धतियों का समावेश करना आवश्यक है। अतः विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में हो रहे परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा में नई पहल एवं नूतन आयामों की आवश्यकता है।

3. सामाजिक परिवर्तन के अनुरूप शिक्षा- समाज में विविध परिवर्तन हो रहे हैं। नगरीकरण, औद्योगीकरण, वैश्विक निकटता आदि के कारण नए प्रकार के समाज एवं सामाजिक मानदण्ड स्थापित हो रहे हैं। महिलाओं की दशा में सुधार, ग्रामीण समाज में सुधार, बाल श्रम उन्मूलन, सामुदायिक विकास कार्यक्रम जैसे अनेक कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। इन सुधारों एवं परिवर्तनों के अनुरूप शिक्षा प्रणाली को विकसित करने हेतु शिक्षा में नए विचारों एवं नूतन आयामों को सम्मिलित करना आवश्यक है।

4. पर्यावरण प्रदूषण जनित समस्याओं के समाधान हेतु- आर्थिक विकास, औद्योगीकरण रहन-सहन की शैली में परिवर्तन रासायनिक परिवर्तन, परमाणु ऊर्जा या विकास, जनसंख्या में वृद्धि और वनों के विनाश आदि अनेक कारणों से वातावरण एवं पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।

वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में हुए विश्व सम्मेलन के पश्चात् विश्व भर का ध्यान पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर आकृष्ट हुआ है। अब यह समस्या इतनी विकराल हो रही है कि मानव का अस्तित्व ही संकट में पड़ता जा रहा है। प्रदूषण के कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं। इन समस्याओं के समाधान हेतु शिक्षा प्रणाली में नए विचारों एवं तकनीकों को सम्मिलित करने की आवश्यकता है।

5. विशिष्टीकरण की वृद्धि एवं तद्जनिक समस्याओं की पूर्ति हेतु- सभ्यता के विकास के साथ ही विशिष्टीकरण (Specialisation) में वृद्धि हो रही है। विशिष्टीकरण का अभिप्राय ज्ञान की किसी विशेष शाखा में महारत या विशेषज्ञता प्राप्त करना है। प्रत्येक क्षेत्र में और विषय में शाखा, उपशाखा एवं विशिष्ट अध्ययन का प्रचलन है। इसी प्रकार शिक्षाशास्त्र की भी इनके शाखाएँ एवं उपशाखाएँ विकसित हुई हैं, यथा- पिछड़े बालकों की शिक्षा, विकलांगों के लिए शिक्षा, मंदबुद्धि बालकों की शिक्षा आदि। विशिष्टीकरण की अभिवृद्धि के साथ प्रचलित शिक्षा प्रणाली मेल नहीं खा रही है। इसलिए शिक्षा में नूतन आयामों को अपनाने की आवश्यकता है

6. रोजगार के अवसरों में वृद्धि हेतु- आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भरता की प्राप्ति शिक्षा का लक्ष्य रहा है। आर्थिक आवश्यकताओं में वृद्धि, भौतिकवादी प्रवृत्ति एवं जनसंख्या में तीव्र वृद्धि ने शिक्षा के उद्देश्यों में रोजगार के उद्देश्य को प्रमुखता प्रदान की है। आज जनसाधारण ऐसी शिक्षा को निरर्थक मानता है, जो व्यक्ति को आजीविका प्रदान करने में सहायता न करे। इस बदली मानसिकता के साथ शिक्षा में ऐसे परिवर्तन आवश्यक हैं जो शिक्षा को रोजगारपरक बनाने में सहायता करें। रोजगारपरक एवं व्यवसाय-उन्मुखी शिक्षा की अवधारणा का विकास नूतन आयामों का एक प्रमुख अंग है।

7. मानस संसाधन का विकास करने हेतु- बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मानव संसाधन एवं मानव पूँजी निर्माण (Human Resources and Human Capital Formation ) की धारणा का विकास हुआ। मानव पूँजी निर्माण का अर्थ है- मानव के लिए अधिक शिक्षा, चिकित्सा, प्रशिक्षण एवं कौशल निर्माण की व्यवस्था कर उसकी योग्यता में अभिवृद्धि करना । इसे जनसंख्या का गुणात्मक सुधार भी कहा जाता है। मानव संसाधन विकास के लिए शिक्षा में नवीन विचारों एवं आयामों का सम्मिलित किया जाना आवश्यक है।

8. तीव्र आर्थिक विकास हेतु- आज विश्व का प्रत्येक देश आर्थिक विकास के लिए प्रयत्नशील है। निर्धनता, अज्ञानता एवं बीमारी मानव के लिए समस्या के रूप में विद्यमान है। भारत में ये सभी समस्याएँ और भी उग्र हैं। इनके निवारण हेतु आर्थिक विकास की गति तेज करना आवश्यक है। शिक्षा को आर्थिक विकास का उपयुक्त माध्यम माना गया है; क्योंकि आर्थिक विकास हेतु भौतिक पूँजी ही नहीं, मानवीय पूँजी भी आवश्यक है। इसलिए शिक्षा को आर्थिक विकास की चुनौती स्वीकार करनी होगी और उसमें नए विचार, नए कार्यक्रमों एवं नूतन आयामों का समावेश करना होगा।

9. जनसंख्या की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय 33 करोड़ जनसंख्या थी, जो अब एक अरब से भी अधिक हो गयी है। इस विशाल जनसंख्या की आवश्यकताएँ भी विशाल हैं। इन्हें खाद्यान्न, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन आदि की आवश्यकता है; क्योंकि परम्परागत शिक्षा प्रणाली में इनकी पूर्ति सम्भव नहीं है। ‘जनसंख्या शिक्षा को इसीलिए शिक्षा के नूतन आयामों में स्थान दिया गया है।

10. अन्य कारणों से आवश्यकता- शिक्षा के क्षेत्र में अन्य कारणों से भी नूतन आयामों को अपनाने की आवश्यकता है। आर्थिक क्षेत्र में निजीकरण एवं उदारीकरण के प्रचलन, स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) की बढ़ती भूमिका, वैश्वीकरण आदि के कारण नवीन विचारों एवं नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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