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संघात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? उसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर-शासन शक्तियों का प्रयोग मूलत: एक स्थान से किया जाता है अथवा अनेक स्थानों से। शासन शक्ति के प्रयोग के स्थान के आधार बनाकर शासन प्रणाली के दो प्रकार बतलाये गये। हैं-एक एकात्मक और दूसरा संघात्मक। जब शासन की सम्पूर्ण शक्ति एक केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होती है, तो उसे एकात्मक शासन प्रणाली की संज्ञा प्रदान की जाती है और जब इसके विपरीत शासन की शक्तियों का विभाजन केन्द्र और राज्यों के बीच रहता है, तो उसे संघात्मक शासन प्रणाली कहा जाता है। कहने का मतलब यह है कि राज्य की शत्तियों का संकेन्द्रित या विभाजित होना, एकात्मक एवं संघात्मक सरकार के भेद का आधार होता है। ग्रेट ब्रिटेन और. फ्रांस में एकात्मक शासन प्रणाली है, जबकि अमेरिका और स्विट्जरलैण्ड में संघात्मक शासन व्यवस्था है। ‘संघ’ आंग्ल भाषा के शब्द’ फेडरेशन’ का हिन्दी रूपान्तर है, जिसकी व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द फोएडस’ से हुई है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। इसलिए शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर समझौते के माध्यम से निर्मित शासन को संघ कहा जा सकता है वस्तुतः इससे अभिप्राय ऐसे शासन से है जो संविधान द्वारा ही केन्द्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारों के मध्य शक्ति का विभाजन कर दिया जाता है और इस प्रकार व्यवस्था कर दी जाती है कि दोनों में कोई एक अकेला इस शक्ति विभाजन को परिवर्तित न कर सके।
संवैधानिक दृष्टिकोण से संघात्मक शासन से मतलब ऐसे शासन से है जिसमें संविधान द्वारा ही केंद्रीय सरकारों के बीच शक्ति विभाजन कर दिया जाता है और ऐसा प्रबन्ध कर दिया जाता कि दोनों पक्षों में से कोई एक अ्केला इस शक्ति विभाजन में परिवर्तन न कर सके। गार्नर के शब्दों में, “संघात्मक सरकार वह पद्धति है जिसमें समस्त शासकीय सत्ता एक केन्द्रीय सरकार तथा उन विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय उपविभागों की सरकारों के बीच विभाजित एवं वितरित रहती है जिनको मिलाकर संघ बनता है।”डायसी के शब्दों में, “संघात्मक राज्य एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्यों के अधिकारों में मूल स्थापित करना है।” हैमिल्टन के अनुसार, “संघ राज्यों का एक समुदाय है जो नये राज्य का निर्माण करता है। हर्मन फाइनर के शब्दों, में”संशात्मक राज्य वह है जिसमें सत्ता एवं शक्ति का एक भाग संघीय इकाइयों में निहित रहता है और दूसरा भाग केन्द्रीय संस्था में जो क्षेत्रीय इकाइयों के समुदाय द्वारा जानबूझ कर संगठित की जाती है।”
संघात्मक शासन की विशेषताएं
संघात्मक शासन की विशेषताओं को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. संध का आधार पारस्परिक संगठन है, एकता नहीं, संघ में इकाइयों की स्वायत्तता और स्परूप को सुरक्षित रखा जाता है।
2. संघ निर्माण के पश्चात् अव्यवी एकक अपनी सम्प्रभुता खो देते हैं। सम्प्रभुता नवनिर्मित संघ राज्य में निहित हो जाती है। यहाँ इस बात का जिक्र कर देना आवश्यक है कि यद्यपि सम्प्रभुता विभाजित कदापि नहीं की जा सकती, किंतु फिर भी संघवाद में इसकी अभिव्यक्ति दो साधनों यानी केन्द्रीय एवं प्रांतीय सरकारों के माध्यम से होती है। स्पष्ट है कि संघवाद में जो इकाइयाँ होती है उन्हें अपनी सत्ता केन्दीय सरकार से प्राप्त नहीं होती बल्कि संविधान द्वारा प्राप्त नहीं होती बल्कि संविधान द्वारा प्राप्त होती है और उनकी स्थिति अधीनता की ना होकर समानता की होती है
3. संघ शासन के एकक दो प्रकार के होते हैं-केन्द्रीय सरकार और इकाइयों की सरकारें।
4. शासन शक्तियों का केन्द्रीय तथा इकाइयों की सरकारों के बीच विभाजन होता है ।यह शक्ति विभाजन सामान्यत: संविधान के द्वारा ही कर दिया जाता है। साधारणत: कन्द्राय सखकार के अधिकार-क्षेत्र में सामान्य हित तथा राष्ट्रीय महत्व के विषय और इकाइयों के अधिकार क्षेत्र में स्थानीय-महत्व के विषय रहते हैं।
5.संघ स्वयं उत्पन्न नहीं हो जाता, बल्कि उसका निर्माण किया जाता है।
6. संघ शासन में लिखित संविधान का होना नितांत आवश्यक है । क्योंकि लिखित संविधान ही एक प्रकार से केन्द्र एवं इकाइयों के मध्य समझौते का प्रपत्र होता है और इसलिए उसका लिखित होना अत्यन्त आवश्यक होता है।
7. संघवाद के लिए कठोर संवधिान होना चाहिए ताकि इकाइयाँ आश्वस्त रहें कि केन्द्र मनमाने ढंग से संविधान में परिवर्तन नहीं कर देगा। यदि कभी परिवर्तन करना भी परहे से परिवर्तित करने की प्रक्रिया सामान्य विधि निमाण प्रक्रिया से भिन्न हो और संशोधन करने से एवं इकाइयाँ दोनों की ही भागेदारी हो।
8. इसमें संविधान सर्वोच्च होता है। यह तो हम देख ही चुके हैं कि संघीय सरकार समझौते द्वारा स्थापित होती है। यह समझौता संविधान में होता है और इसी में इस समझौते को परिवर्तित, परिवर्धित करने की प्रक्रिया की भी व्यवस्था होती है। अत: संघात्मक संरचना में संविधान को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होता है और केन्द्रीय सरकार, प्रान्तीय सरकारें और सरकार के विभिन अंग-कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका संविधान के विरुद्ध कोई कार्य सम्पादित नहीं कर सकते।
9. संघ विभिन्न राज्यों के मध्य स्थायी ऐक्य स्थापित करता है।
10. स्वतन्त्र न्यायपालिका एक अनिवार्यता है। सभी संघात्मक राज्यों में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की जाती है जो संविधान की व्याख्या एवं उसकी रक्षा करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है| यह सर्वोच्च न्यायपालिका किसी भी स्तर की सरकार और सरकार के किसी भी अंग के द्वारा संविधान विरुद्ध किए गए कार्यों को अवैध घोषित कर सकती है| केंद्रीय सरकार प्रांतीय सरकार में परस्पर उठने वाले सभी प्रकार के विवादों का समाधान सर्वोच्च न्यायालय ही करता है| हस्किन के शब्दों में “संघीय शासन में सर्वोच्च न्यायालय शासन तंत्र में संतुलन रखने वाला पहिया है”
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