अनुक्रम (Contents)
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा देते हुए मूल्य और संस्कृति में सम्बन्ध प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर- संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning & Definition of Culture)
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा
शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज से पृथक नहीं रह सकता है। अतः अपने समाज के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये वह उसे पूर्ण रूप से संगठित करता है और एक निश्चित व्यवस्था को विकसित तथा स्थापित करता है। इसी निश्चित और सम्पूर्ण व्यवस्था को संस्कृति’ कहते हैं। प्रायः इस संस्कृति के अन्तर्गत, उस समाज के जिसमें मानव रहता है, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, उपकरण, यन्त्र, मशीनें, नैतिकता, कला, विज्ञान, धर्म, विश्वास,आस्था, सामाजिक संगठन, आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था आदि सभी का समावेश माना जाता है। संस्कृति का अर्थ है-किसी भी समाज में मानव के रहने का ढंग।
संस्कृति की परिभाषाएँ-
(1) “संस्कृति वह जटिल पूर्णता है, जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, रीति- रिवाज, नियम और समाज के सदस्य के रूप में मनुष्य द्वारा अर्जित की जाने वाली अन्य योग्यताए तथा आदतें सम्मिलित रहती हैं।” – बायलर
(2) “किसी विशेष समय और स्थान में निवास करने वाले विशेष व्यक्तियों के जीवन व्यतीत करने की सामूहिक विधि है।” – रोसेक
(3) “सामान्यतः ‘संस्कृति’ और ‘सामाजिक विरासत’ एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।” डॉ० सीमा मिश्रा
(4) “संस्कृति में कोई भी बात आ सकती है, जिसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित किया जा सकता है किसी भी राष्ट्र की ‘संस्कृति’ उसकी ‘सामाजिक विरासत’ होती है।” सदर लैण्ड व वुडवर्ड
(5) “संस्कृति सीखे हुए व्यवहारों के परिणाम का वह समग्र रूप है जिसके निर्माणकारी तत्व किसी विशिष्ट समाज के सदस्यों द्वारा प्रयुक्त तथा संचालित होते हैं। –Ralph Linton
अतः उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि संस्कृति का मूलाधार मानव मन में है न कि बाह्य शिक्षाशास्त्रियों ने संस्कृति के दो स्वरूप बतलाये हैं- (1) भौतिक तथा (2) अभौतिक
भौतिक संसकृति के अन्तर्गत वे सभी वस्तुएँ आती हैं, जिनका स्वरूप मूर्तवत् है, अर्थात् जिन वस्तुओं का निर्माण मानव जाति द्वारा किया गया है, जैसे- मकान, दुकान, वस्त्र, आभूषण, सड़क, इंजन, घड़ी, मशीन, रेडियो, टी0वी0 एवं संगणक आदि। अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत वे सभी बातें आती हैं, जिनका स्वरूप अमूर्त है। इन बातों का विकास जाति के सामूहिक रूप में रहने से होता है। जैसे- धर्म, भाषा, संगीत, कला, साहित्य, रूढ़ियाँ, रीतिरिवाज, जनरीतियाँ, आचार-विचार, प्रथाएँ, संस्कार एवं संस्थाएँ आदि अभौतिक संस्कृतिक के परिचायक हैं। संस्कृति की सबसे छोटी एवं सरल इकाई को ‘उपकरण’ कहते हैं। यह उपकरण भौतिक व अभौतिक दोनों ही प्रकार के हो सकते हैं। प्रायः प्रत्येक भौतिक उपकरण के साथ कोई न कोई अभौतिक उपकरण अवश्य सम्बद्ध रहता है। यही कारण है कि विभिन्न संस्कृतियों के विभिन्न उपकरण होते हैं। अतः उनमें विभिन्नता का पाया जाना स्वाभाविक ही है। यहाँ स्मरण रहे कि संस्कृति उपकरणों में गतिशीलता होती है। एक संस्कृति दूसरी संस्कृति के उपकरण को स्वीकार कर लेती है, यहाँ तक कि उन्हें दैनिक जीवन में अपना लेती है। उदाहरणार्थ-विदेशी काँटे और छूरी के माध्यम से भारतीयों का भोजन करना स्वीकार्य होना। प्रायः ऐसा देखा गया है ना कि समय की गति के साथ-साथ संस्कृति के उपकरण पुष्पगुप्छ के समान एकत्र हो जाते हैं। इस प्रकार के एकत्रीकरण को संस्कृति के संकुल के रूप जाना जाता है। इन ‘सांस्कृतिक संकुल में कई उपकरण एक साथ उपस्थित होते हैं और वे सभी एक दूसरे उपकरण पर आश्रित होते हैं। उदाहरण के लिये दाम्पत्य सूत्र बन्धन (विवाह) एक ‘सांस्कृतिक संकुल’ है जिसमें संस्कार, बारात का आना, प्रीतिभोज व अन्य भौतिक क्रियायें उपकरण होती हैं। वर्तमान समय में हम अभी इस बात से परिचित हैं कि संस्कृति रूपी विरासत का हस्तान्तरण प्रमुख रूप में शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव हो पाता है और ऐसा ही होता आ रहा है। इस तथ्य को उजागर करते हुए ब्रामेल्ड ने लिखा है कि “संस्कृति की सामग्री से ही शिक्षा का प्रत्यक्ष रूप से निर्माण होता है और यही सामग्री, शिक्षा को न केवल उसके स्वयं के उपकरण, वरन् उसके अस्तित्व का कारण भी प्रदान करती है।”
मूल्य व संस्कृति में सम्बन्ध
मूल्य तथा संस्कृति में अत्यन्त ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। एक के अभाव में दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है। अर्थात् संस्कृति विहीन मूल्य निस्सार एवं निष्प्रयोजन है। यदि किसी समाज की शिक्षा में कोई विशिष्टता पाई जाती है तो उसका एक मात्र कारण उस समाज की संस्कृति है। प्रायः प्रत्येक समाज अपनी संस्कृति के अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था करता है। शिक्षा अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिये विविध प्रकार के संस्कृति की सेवा एवं सहायता करती है। साथ ही अपने कार्यों को सम्पन्न करने के लिये संस्कृति का सहयोग प्राप्त करती है। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा संस्कृति की सहयोगिनी है। मूल्य व संस्कृति के घनिष्ट सम्बन्ध के विषय में कुछ तथ्य इस प्रकार हैं-
(1) संस्कृति की निरन्तरता में सहायता करना।
(2) संस्कृति के हस्तान्तरण में सहायता करना।
(3) संस्कृति के परिवर्तन में सहायता करना।
(4) व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास में सहायता करना।
(5) व्यक्ति के विकास में सहयोग देना।
(6) शिक्षा में संस्कृति का समावेश करना।
(1) प्रायः संस्कृति किसी भी जाति या वर्ण के इतिहास का शुद्ध निष्कर्ष मात्र होती है। यह उन रीतियों और परम्पराओं के सहयोग से बनती हैं, जिनमें उस जाति के लम्बे समय के अनुभवों का निचोड़ होता है। इस सन्दर्भ में हुमायूँ कबीर ने लिखा है कि- “सांस्कृतिक परम्परा ही एक जाति के जीवित रहने की आवश्क शर्त होती है।” शिक्षा जातिगत सांस्कृतिक परम्पराओं की निरन्तरता में महान योग देती है। यह उसकी संस्कृति को बनाये रखती है तथा उसका क्षरण नहीं होने देती है। यही कारण है कि प्रगतिशील देशों ने अनेक प्रकार के विद्यालयों की स्थापना करके, उनमें शिक्षा का उत्तम प्रबन्ध किया है तथा उन पर संस्कृति की निरन्तरता का दायित्व डाल रखा है।
(2) मूलतः व्यक्तिं हर बात को नये रूप में सीखता है। सिखाना मूल्य शिक्षा व संस्कृति का कार्य है। यही कारण है कि व्यक्ति समाज के सदस्य के रूप में संस्कृति को ग्राह्य करता है। इतना ही नहीं, बल्कि ग्राह्य संस्कृति को दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित करता है। हस्तान्तरण के इस कार्य में शिक्षा अपना अपूर्व योगदान देती है। यह सत्य है कि व्यक्ति अज्ञात रूप में संस्कृति की प्रत्येक बातें सीखता है परन्तु यह भी सत्य है कि इस सीखने का माध्यम शिक्षा हो होती है। ओटावे का कथन है कि-“शिक्षा का एक कार्य समाज के सांस्कृतिक मूल्यों और व्यवहार के प्रतिमानों को अपने तरुण और समर्थ सदस्यों को हस्तान्तरित करना है।”
(3) मूल्य शिक्षा संस्कृति के परिवर्तन में सहायता करती है। शिशु जैसे- बड़ा होता जाता है वह वैसे-वैसे अपनी संस्कृति को अपनाता जाता है। वह समाज, परिवार के रीति-रिवाजों, आदतों, नियमों आदि को सीखता जाता है। सामान्यतः वह इन बातों को अपने माता-पिता, परिवार, समाज के लोगों तथा विद्यालय के गुरुजनों से सीखता है। इसके फलस्वरूप उसके व्यवहार में निरन्तर परिवर्तन होता जाता है। परिवर्तन का यह कार्य चेतन और अचेतन दोनों प्रकार होता रहता है।
(4) मूल्य शिक्षा व्यक्ति के सांस्कृतिक विकास में सहायता करती है। भारतीयों में जो ज्ञान आदिकाल से आज तक का संचित है वह सब हमारी संस्कृति का ही एक अंग है। प्रायः अमर योगियों की जीवनियों को अनुप्राणित करने वाला वर्णन तथा वीरों की महानता की एक झलक भी हमारी संस्कृति के विकास के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा के माध्यम से इतिहास का अध्ययन सांस्कृतिक झलकियों को प्रकाशित करता रहता है।
(5) सामान्यतः बालक के व्यक्ति का विकास, संस्कृति के सहयोग के बिना सम्भव नहीं हो सकता है। यही कारण है कि मूल्य शिक्षा बालक को संस्कृति के अनेक उपकरण उपलब्ध कराती हैं जिनका प्रयोग बालक के बौद्धिक, चारित्रिक, संवेगात्मक और अध्यात्मिक विकास के लिये करती है। ओटावे ने लिखा है- “जिस संस्कृति में व्यक्तित्व का विकास होता है, उसके द्वारा उसका आंशिक निर्माण किया जाता है।”
इसी भी पढ़ें…
- TET/CTET NOTES and Pevious Year paper एक ही pdf में download करे-
- UP TET 2014 Previous Year paper pdf में download करे-
- CTET SYLLABUS: कक्षा 1 से 5 तक के लिए हिंदी मीडियम अभ्यर्थियों हेतु
- CTET Exam Previous Year and Practice Set Paper PDF in Hindi
दोस्तों अगर आपको किसी भी प्रकार का सवाल है या ebook की आपको आवश्यकता है तो आप निचे comment कर सकते है. आपको किसी परीक्षा की जानकारी चाहिए या किसी भी प्रकार का हेल्प चाहिए तो आप comment कर सकते है. हमारा post अगर आपको पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ share करे और उनकी सहायता करे.
You May Also Like This
- सम-सामयिक घटना चक्र GS प्वाइंटर सामान्य भूगोल PDF Download
- भारत व विश्व का भूगोल ( Indian and World Geography ) बिषय से संबंधित सभी प्रकार की PDF यहाँ से Download करे
- सम-सामयिक घटना चक्र (GS Pointer) भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन PDF
- सम-सामयिक घटना चक्र आधुनिक भारत का इतिहास PDF नोट्स हिंदी में Download
- सम-सामयिक घटना चक्र अतिरिक्तांक GS प्वाइंटर पूर्वालोकन सार सामान्य विज्ञान (भौतिक विज्ञान) PDF Download
- Chronicle IAS Academy notes HINDI AND ENGLISH MEDIUM
- Topper’s Notes For UPSC Civil Services Exam 2018
- मुझे बनना है UPSC टॉपर-Complete eBook Download in Hindi
- IAS की तैयारी से सम्बंधित आपके कुछ सवाल और मेरे जवाब
- Rakesh Yadav SSC Mathematics(Chapterwise)Full Book Download
- Lucent Samanya Gyan संपूर्ण बुक PDF में डाउनलोड करें
- Lucent’s Samanya Hindi pdf Download
- क्या आप पुलिस में भर्ती होना चाहतें है – कैसे तैयारी करे?
- Maharani Padmavati क्यों खिलजी की चाहत बनी पद्मावती
- News and Events Magazine March 2018 in Hindi and English
- Banking Guru February 2018 in Hindi Pdf free Download
- Railway(रेलवे) Exam Book Speedy 2017 PDF में Download करें
- मौर्य वंश से पूछे गये महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर हिंदी में
- IAS बनना है तो कुछ आदतें बदल लें, जानें क्या हैं वो आदतें