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समाचार-पत्र में शीर्षक की भूमिका या आवश्यकता
समाचार पत्र की साज-सज्जा में शीर्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। शीर्षकों की सहायता से जहाँ एक ओर समाचार-पत्र आकर्षक और सुरुचिपूर्ण बनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर शीर्षक पाटक का पथ-प्रदर्शन भी करते हैं। शीर्षक की सहायता से पाठक समाचारों का महत्त्व भली-भाँति आँक सकता है। दिन-रात की भाग-दौड़ और आपा-धापी के आज के युग में पाठक के पास इतना समय कहाँ कि वह पहले सारे समाचारों को पढ़ें और उसके पश्चात् उनके महत्त्व का आँकलन करे। इसीलिए शीर्षक की सहायता से पाठक अपनी व्यस्तता के बीच भी उस दिन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाचार पर अँगुली रख सकता है।
समाचार के शीर्षक में निहित भाव- समाचार पत्र की नीति और स्वरूप भी अप्रत्यक्ष रूप से शीर्षकों में प्रतिबिम्बित होते हैं। शीर्षक के टाइप का चयन ही एक दृष्टि में यह स्पष्ट कर देता है पत्र की नीति गम्भीर तटस्थता का अनुसरण करती है अथवा पाठक को चौंका कर या उत्तेजित करके अपनी ओर आकृष्ट करने की उसकी नीति है। इसीलिए शीर्षक के टाइप और शीर्षक के आकार के सम्बन्ध में प्रत्येक समाचार पत्र की एक विशेष रूचि होती है और वह किसी विशेष परिवार के टाइप का ही अपने शीर्षकों में प्रयोग करता है। यही कारण है कि समाचार पत्र से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति के लिए शीर्षक के महत्त्व, उसकी उपादेयता और उसके प्रभाव को समझना नितान्त आवश्यक है।
शीर्षक में टाईप- आज के समाचार पत्रों में शीर्षकों के टाइप और आकार-प्रकार में जो विविधता के दिखाई पड़ती है, वह समाचार पत्रों के निरन्तर विकास की परिणति है। प्रारम्भ में समाचार पत्रों में शीर्षक एक पंक्ति में समाचार की विषय-वस्तु का संकेत मात्र दे देते हैं। प्रायः यह पंक्ति समाचारों के लिए प्रयुक्त टाइप के ही ‘आल कैप्स टाइप’ से बनती थी। शीर्षक की साज-सज्जा की ओर ध्यान अमेरिकी गृह युद्ध के समय दिया गया। उस समय सबसे पहले अधिक सनसनीखेज समाचारों के लिए बड़े टाइप का प्रयोग किया गया तथा अधिक पंक्तियों का उपयोग करके समाचार के महत्त्वपूर्ण अंश प्रस्तुत किये जाने लगे। इस प्रकार एक पंक्ति के स्थान पर बहुपंक्ति शीर्षकों का प्रयोग आरम्भ हुआ। उस समय तक समाचार पत्रों की साज-सज्जा ऊपर से नीचे की ओर अथवा ऊँचाई (Vertical) में होती थी शीर्षक की चौड़ाई बढ़ने के साथ ही समाचार-पत्रों की सज्जा बाई से दाहिनी ओर अथवा चौड़ाई (Horizontal) होने लगी।
किन्तु शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि केवल टाइप बड़ा कर देने से अथवा शीर्षक की पंकियां बढ़ा देने से काम नहीं चल सकता। उस समय के समाचार पत्रों में कहीं-कहीं तो शीर्षक में इतनी अधिक पंक्तियाँ होती थीं कि ऊपर से नीचे की ओर वे आधा कालम घेर लेती थीं। इस समस्या का समाधान दो या तीन पंक्तियों का एक खंड बना कर किया गया, जिसमें एक से अधिक समान पंक्तियाँ एक ही आकार के टाइप में एक-दूसरे के नीचे रख दी जाती है। इसी समय शीर्षकों में से एक नया प्रयोग भी हुआ, जिसे अंग्रेजी में हैगिंग इंडेन्ट कहते हैं। इस शीर्षक में प्रथम पंक्ति तो परे कालम की चौड़ाई में फैली रहती है, लेकिन उसे बाद की पंक्ति अथवा पंक्तियों में दोनों ओर खाली स्थान छूटा हुआ रहता है और वे क्रमशः छोटी होती जाती हैं।
सन् 1880 में एक और प्रकार के शीर्षक का प्रयोग हुआ, जिसे अंग्रेजी में ड्राप लाइन अथवा स्टेप हेडलाइन कहा जाता है। इसे सीढ़ीदार शीर्षक भी कह सकते हैं, क्योंकि इसमें शीर्षक के एक ही खंड की एक से अधिक पंक्तियों को इस प्रकार जमाया जाता है कि वे सीढ़ियों के समान दिखने लगती है।
शीर्षक के आकार-प्रकार- शीर्षकों के आकार-प्रकार के महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय घटना चक्र के साथ क्रांतिकारी परिवर्तन आने लगे। समाचार पत्रों के बीच निरन्तर बढ़ती हुई प्रतियोगिता भी इस भारी परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। अमेरिका और स्पेन के बीच हुए युद्ध के समय विलियम रेण्डल्फ हर्स्ट के ‘न्यूयार्क जर्नल’ तथा जोजेफ ‘पुलित्जर के ‘न्यूयार्क वर्ल्ड’ नामक समाचार पत्रों के बीच युद्ध सम्बन्धी समाचारों को अधिक से अधिक आकर्षक और उत्तेजक ढंग से प्रस्तुत करने की जो कड़ी प्रतियोगिता हुई उसने अनेक नये प्रकार के शीर्षकों को जन्म दिया। पूरे पृष्ठ की चौड़ाई में फैले हुए एक बड़े शीर्षक का उपयोग इसी समय पहली बार किया गया, जिसे आज बैनर अथवा प्रमुख शीर्षक पंक्ति कहा जाता है। दो कालम, तीन कालम आदि की चौड़ाई वाले शीर्षकों का प्रयोग भी इसी समय आरम्भ हुआ।
इस परिवर्तन का एक यांत्रिक कारण भी था। इस समय तक समाचार पत्रों के मुद्रण के लिए जिन मशीनों का प्रयोग होता था, उनमें टाइप वाला फर्मा ही छपता था और उसे मशीन पर कसने के लिए लम्बी मोटी रूलों का प्रयोग किया जाता था। इसलिए एक से अधिक कालम के शीर्षकों का प्रयोग मुद्रण की दृष्टि से असुविधाजनक होता है। लगभग इसी समय इन मशीनों का स्थान स्टीरियो रोटरी मशीन ने ले लिया था, जिसमें न टाइप उखड़ने का भय था और न पेज टूटने का, समाचार पृष्ठ की चौड़ाई वाली साज-सज्जा में समाचार प्रदर्शन और पाठकों को आकर्षित करने की क्षमता को इन दोनों ही समाचार पत्रों ने अच्छी तरह समझा और अमेरिका स्पेन युद्ध के समय इस क्षमता का पूरा-पूरा उपयोग भी किया। सचित्र पत्रकारिता भी इसी समय पनपी युद्ध समाप्त हो जाने के पश्चात् कुछ समय के लिए स्थिति पूर्ववत् हो गई और समाचार पत्रों की साज-सज्जा पहले जैसी ही अनाकर्षक और सीधी सादी होने लगी। लेकिन इसके बाद ही प्रथम विश्व युद्ध का सूत्रपात हुआ और पुनः पूरे पृष्ठ के मोटे-मोटे शीर्षकों का प्रयोग होने लगा। इस समय तक साज-सज्जा और समाचार पत्र की बिक्री के बीच सीधे सम्बन्ध को पहचाना गया। यह देखा गया कि तड़क भड़क वाले शीर्षकों से अखबार बिकता है। अतः समाचार पत्रों को ज्यादा से ज्यादा भड़कीला बनया जाने लगा और धीरे-धीरे पाठक भी इसी प्रकार के समाचार पत्र पढ़ने के आदी हो गये। इसीलिए प्रथम महायुद्ध समाप्त हो जाने के बाद भी शीर्षकों का आकार प्रकार वहीं बना रहा।
प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच की अवधि में शीर्षकों के आकार-प्रकार में कोई अन्तर नहीं आया, यह नहीं कहा जा सकता। इस अवधि में समाचार पत्र उद्योग को अनेक युद्धोपरांत संकटकालीन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अखबारी कागज की कमी के कारण शीर्षकों का सिकुड़ना भी अनिवार्य हो गया। ऐसी ही परिस्थिति में बाईं ओर ‘फ्लश’ होने वाले शीर्षक का जन्म हुआ, जिसके लिखने में समय कम लगता है और देखने में भी अच्छा लगता है।
इसी समय अंग्रेजी के शीर्षकों में एक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अभी तक शीर्षकों में ‘आत कैप्स’ टाइप का प्रयोग किया जाता था, किन्तु अनेक सर्वेक्षणों और अनुभव के आधार पर यह महसूस किया गया कि ‘आप कैप्स’ टाइप में बने शीर्षक को पढ़ने में कठिनवाई होती है तथा उसकी अपेक्षा ‘कैप्स और लोअर कैस’ टाइप में बना शीर्षक पढ़ने में कठिनाई होती है तथा उसकी अपेक्षा ‘कैप्स और लोअर कैस’ टाइप में बना शीर्षक पढ़ने में आसान होता है। इस आधार पर शीर्षकों ‘आल कैप्स’ टाइप का प्रयोग लगभग समाप्त हो गया और उसके स्थान पर ‘कैप्स और लोअर केस’ टाइप में बनी शीर्ष-लाइन प्रचलित हो गई, जो आज तक चली आ रही है।
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