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सीखने की विभिन्न विधियाँ | अधिगम के क्षेत्र | अधिगम के व्यावहारिक परिणाम

सीखने की विभिन्न विधियाँ
सीखने की विभिन्न विधियाँ

सीखने की विभिन्न विधियाँ | अधिगम की विधियाँ | सीखने के क्षेत्र या अधिगम के क्षेत्र | अधिगम के व्यावहारिक परिणाम | Behavioral Outcomes of Learning in Hindi 

अनुक्रम (Contents)

सीखने की विभिन्न विधियाँ या अधिगम की विधियाँ

सीखने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-

1. अवलोकनात्मक अधिगम (Observational Learning)-

इस अधिगम विधि में मूलत: तीन पक्षों का समावेश होता है, अन्तर्सम्बन्ध, अन्तर्दृष्टि तथा अनुकरण। इनके माध्यम से अधिगमकर्ता सीखने वाली विषय-वस्तु या क्रियाओं के मध्य अन्तर्सम्बन्धों का अवलोकन या निरीक्षण करने में सफल होता है तथा परिणाम की कल्पना को लेकर अन्तर्दृष्टि (सूझ) का विकास होता है।

2. प्रयास एवं सफलता अधिगम (Trial and Success Learning)-

अधिगम की यह विधि मूलतः प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त पर आधारित होती है। अर्थात् प्रयासों की मात्रा तथा त्रुटियों की मात्रा में विलोम अनुपात होता है। जैसे-जैसे प्रयासों की संख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे त्रुटियों की सम्भावना कम होती जाती है। इस प्रकार के अधिगम में समय अधिक लगता है फिर भी कुछ प्रयासों के उपरान्त इसमें अन्तर्दृष्टि के आधार पर अधिगम का विकास होता है।

3.सामान्यीकरण (प्रत्यय निर्माण)(Generalisation)-

सामान्यीकरण प्रत्यय निर्माण अधिगम का एक आवश्यक तत्व है। जब हमें स्पष्ट अनुभवों से ज्ञान की प्राप्ति होती है तो इससे प्रत्ययों का निर्माण एवं सामान्यीकरण होता है। बिना प्रत्ययों के विकास के किसी व्यक्ति के लिए अपने पूर्व ज्ञान का उपयोग नई परिस्थिति में कर पाना सम्भव नहीं है।

4. प्रोजेक्ट विधि (Project Method)-

यह मूलत: शिक्षण की विधि है। इस विधि से अधिगम प्रायः अवसरजन्य होता है। इस प्रकार के अधिगम के स्थायीकरण के लिए उसकी पुनरावृत्ति का विशेष महत्त्व होता है।

5. समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)-

अधिगम की एक महत्त्वपूर्ण विधि समस्या समाधान की है। इस विधि द्वारा अधिगम कर्त्ता में चिन्तन की प्रकृति का विकास होता है।

अधिगम के व्यावहारिक परिणाम (Behavioural Outcomes of Learning)

अधिगम के व्यावहारिक परिणामों को संक्षेप में निम्नवत समझा जा सकता है –

1. जटिल सामर्थ्य स्पष्ट करना (Describe Complex Abilities) –

व्यावहारिक उद्देश्य खण्डित व्यावहारिक कौशल विकास तथा शिक्षक-केन्द्रित निर्देशात्मक उद्देश्य शिक्षण प्रक्रिया को इंगित करते हैं। जबकि अधिगम के परिणाम अधिगम के निष्कर्ष के रूप में जटिल सामर्थ्य को बताते हैं। ये परिणाम वास्तविक जीवन में अनुकरणीय होते हैं।

2. कौशल का पता लगना (Describe Skills) –

अधिगम के परिणाम ऐसे कौशल और क्षमताओं का वर्णन करते हैं जो एक छात्र को पाठ्यक्रम के अंत तक दिया गया या विकसित किया गया। अधिगम इच्छित परिणाम पाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

3. छात्रों को अपेक्षाएँ प्राप्त होना (Provide Expectations to Students)-

शिक्षक समझते हैं कि अधिगम के परिणाम वे अपने पाठ्यक्रमों के लिए उद्देश्यों को निर्धारित करने में पहले ही पूरा कर चुके कार्य को प्रतिस्थापित नहीं करते हैं। इसके बजाय, अतिरिक्त विवरण प्रदान करके परिणाम अधिगम के उद्देश्यों को पूरा करते हैं। जब शिक्षक अधिगम की प्रक्रिया (उद्देश्यों) और इच्छित परिणाम दोनों को स्पष्ट करते हैं, तो छात्रों को पूर्ण और पारदर्शी अपेक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षकों का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि वे अधिगम के अतिरिक्त पाठ्यक्रम के अंत में अपेक्षित अधिगम पर ध्यान केन्द्रित करें।

4. उद्देश्यों, शिक्षण विधियों आदि का निर्धारण (Articulation of Objectives, Teaching Methods etc.)-

अधिगम के परिणाम अपेक्षित छात्र क्षमताओं को स्पष्ट करते हैं और ऐसा करने में अधिगम के व्यावहारिक परिणाम, उद्देश्यों को स्पष्ट करने, शिक्षण विधियों को तय करने, अधिगम की गतिविधियों, आकलन रणनीतियों और उपकरणों की सहायता करते हैं।

5.अंतिम गन्तव्य का वर्णन करना (Describe Final Destination)-

अधिगम के परिणाम अंतिम गंतव्य का वर्णन करते हैं तथा सफलता की सीढ़ियों से होकर नई ऊँचाइयों की ओर अग्रसर करते हैं। मेगर और उनके अनुयायियों के अनुसार, एक व्यवहार उद्देश्य (अधिगम के परिणाम) स्पष्ट शब्दों में लिखे जाने चाहिए जिससे कि शिक्षक या छात्र स्पष्टीकरण की आवश्यकता के बिना समझ सके।

इनमें निम्नलिखित बुनियादी तत्वों को शामिल करना चाहिए –

1. यह बताना चाहिए कि छात्र अधिगम के अंत में क्या करने में सक्षम होने चाहिए अर्थात् आवश्यक निर्दिष्ट करना चाहिए।

2. उन स्थितियों या बाधाओं का विवरण देना चाहिए जिनके अन्तर्गत व्यवहार का प्रदर्शन किया जाये।

स्पष्ट व निष्पक्ष व्यवहारिक शर्तों के अन्तर्गत अधिगम के परिणामों को तैयार करना बेहद मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इसमें काफी कौशल और अभ्यास की आवश्यकता होती है। स्पष्ट है कि यदि मेगर के मानदंडों का कड़ाई से पालन किया जाता है, तो शिक्षण या प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए अधिगम के परिणामों की एक पूरी सूची तैयार करना एक कठिन कार्य होगा। परिणामस्वरूप यह सूची शायद अत्यधिक भारस्वरूप होगी और मूल्यांकन व्यवहार में अप्रभावी होगा। पाठ्यक्रमों के लिए अधिगम के परिणाम लिखने में शिक्षाविद लचीलेपन को बनाए रखना चाहते हैं।

सीखने के क्षेत्र या अधिगम के क्षेत्र –

मानवीय व्यवहार में गत्यात्मकता का गुण होता है और व्यक्ति पर्यावरण से प्राप्त भिन्न-भिन्न अनुभवों के साथ अलग प्रकार की अनुक्रिया करता है। शैशवावस्था से हम लगातार नए-नए कौशलों को सीखते आ रहे हैं अपने चारों ओर के वातावरण के बारे में ज्ञान अर्जित करते आ रहे हैं। और भिन्न-भिन्न विश्वास एवं अभिवृत्ति को विकसित करते आ रहे है। ये विभिन्न प्रकार के व्यवहार अधिगम के क्षेत्रों का निर्माण करते हैं। मुख्यत: अधिगम के क्षेत्र को संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनश्चालक क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है।

अधिगम के संज्ञानात्मक क्षेत्र –

संज्ञानात्मक शब्द की उत्पति ज्ञान शब्द से हुई है। जिसका अभिप्राय जानना है और जानना ज्ञानार्जन का अनिवार्य घटक है। अतः शैक्षिक प्रक्रिया में अधिगम का मुख्य बिन्दु या क्षेत्र संज्ञानात्मक होता है। जिनके प्रयोग से वातावरण में ज्ञान का संचालन होता है। ज्ञान का यह चालन इन्द्रियजन्य होता है। ब्लूम. ग्रुमलंड मेगर सहित कई मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने संज्ञानात्मक क्षेत्र के छ: स्तर बताए हैं

(1) ज्ञान (2) अवबोध (3) अनुप्रयोग (4) विश्लेषण (5) संस्लेशित तथा (6) मूल्यांकन

अधिगम के भावात्मक क्षेत्र-

अधिगम करते समय विद्यार्थी एक व्यक्ति के रूप में पूर्णतया बौद्धिक क्रिया-कलापों में लिप्त रहता है। दूसरे शब्दों में अधिगम अवस्थिति विद्यार्थी की भावनाओं, रुचियों, संवेगों तथा दृष्टिकोणों को प्रभावित करती है। यही कारण है कि कुछ विद्यार्थियों की दूसरे विद्यार्थियों की अपेक्षा किसी विषय-विशेष में अधिक रुचि होती है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक उद्देश्य व्यक्ति की वांछनीय विश्वासों, मूल्यों, दृष्टिकोणों के विकास में सहायक होते हैं। अत: भावात्मक क्षेत्र के अन्तर्गत अधिगम में रुचि, दृष्टिकोण भावनाओं आदि में परिवर्तन सम्मिलित होता है। ये सभी प्रकार के व्यवहार विद्यार्थी का समाज में अधिक अच्छा समायोजन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जहाँ संज्ञानात्मक क्षेत्र में अधिगम या अध्यापन का मुख्य संगठनात्मक सूत्र या सिद्धान्त सरल से कठिन मूर्त से अमूर्त’ की ओर होता है वही भावात्मक क्षेत्र में यह उद्दीपन प्राप्ति, अभिक्रिया
करना, महत्व देना, संगठन करना लक्षण वर्णन पर आधारित होता है।

अधिगम के मनश्चालक क्षेत्र –

यह क्षेत्र मनश्चालक कौशलों पर आधारित होता है जो कि एक विशेषज्ञ या कुशल व्यक्ति के पर्यवेक्षण के अन्तर्गत विकसित किया जा सकता है।

उदाहरणार्थ-कार चलाने का कौशल-एक कुशल अनुदेशक के प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण में प्रभावी रूप से अर्जित किया जा सकता है। मनश्चालक कौशलों में तीन विशेषताएँ होती हैं

(1) अनुक्रिया की कड़ियाँ (2) समन्वय (3) अनुक्रिया के स्वरूप

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  1. थाईडाइक के सीखने के सिद्धांत
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  4. क्रिया-प्रसुत का अधिगम् सिद्धांत
  5. पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत
  6. कोहलर का अर्न्तदृष्टि या सूझ का सिद्धांत
  7. जीन पियाजे का संज्ञानवादी सिद्धांत

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shubham yadav

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