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सीमित राजतंत्र सम्बन्धी सिद्धान्त | लॉक का सीमित राजतन्त्र सम्बन्धी विचार
सीमित राजतंत्र सम्बन्धी लॉक के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए
सीमित राजतन्त्र सम्बन्धी सिद्धान्त –लॉक का विचार है कि प्राकृतिक दशा में तीन कमियाँ थीं- (1) सुनिश्चित तथा ज्ञात कानून का अभाव, (2) न्यायाधीशों का अभाव तथा (3) कानून एवं निर्णयों को क्रियान्वित करने वाली शासन सत्ता का अभाव ।
इन अभावों की पूर्ति करके व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति के अधिकारों को सुरक्षित मनाना ही राज्य का प्रधान लक्ष्य है।
राज्य के कार्य-
उपर्युक्त लक्ष्य की प्राप्ति हेतु राज्य निम्नलिखित तीन कार्य करता है-
1. सर्वप्रथम वह प्राकृतिक कानून की व्याख्या द्वारा व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षित रखता है। आजकल यह कार्य कानून बनाने वाली विधानसभाओं का समझा जाता है। लॉक इसे राज्य सर्वोच्च सत्ता’ मानता है, किन्तु सर्वोच्च होते हुए भी वह मनमाना कानून नहीं बना सकता। उसके सब नियम प्राकृतिक कानून (Natural Law) से अनुकूलता रखने वाले होने चाहिए। यदि समुदाय बहमत से कानून निर्माण का अधिकार एक व्यक्ति को देता है, तो वह राजतंत्र होता है, कुछ व्यक्तियों को देने पर कुलीन तंत्र तथा समूची जनता को यह अधिकार देने पर लोकतन्त्र होता है । विधिपूर्वक व्यवस्थापिका सभा में एकत्र होने वाले व्यक्तियों को सार्वजनिक कल्याण के लिए ही नियम बनाने चाहिए।
2. राज्य का दूसरा अंग कानूनों को लागू करते हुए शासन का कार्य चलाना है। उसका मत है कि कानून बनाना तथा उसे क्रियान्वित करना दोनों विभिन्न प्रकार के कार्य हैं। पहला कार्य जल्दी समाप्त हो जाता है, शासन का कार्य सदैव चलता रहता है। अत: ये दोनों कार्य पृथक् व्यक्तियों को दिये जाने चाहिए। उसका मत है कि कानून बनाने वालों को इन्हें क्रियान्वित करने का कार्य देना बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं है, क्योंकि इस अवस्था में ये अपने बनाये कानून के पालन से अपने को मुक्त समझने लगेंगे और कानून का निर्माण तथा क्रियान्वयन अपने वैयक्तिक इच्छा से करने लगेंगे। यह शेष समदाय की इच्छा से भिन तथा समाज और राज्य के उद्देश्य के प्रतिकूल हो सकता है।
3. राज्य का तीसरा कार्य विधानसभा द्वारा बनाये कानूनों का उल्लंघन करने वाले अपराधियों को दण्ड देने का कार्य है। यह न्याय विभाग तथा न्यायाधीशों द्वारा होता है।
राज्य की विशेषतायें-
लॉक ने व्यक्ति, समुदाय तथा सरकार के सम्बन्ध में जो विचार प्रकट किये हैं उनसे राज्य की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
1.सहमति पर आधारित-लॉक का राज्य जन-सहमति पर आधारित है। उसका कहना है कि नागरिक अपने हितों की सुरक्षा की दृष्टि से राज्य के आदेशों का पालन करना स्वीकार करते. हैं। यदि शासक इन हितों के प्रतिकूल आचरण करते हैं और उनकी सहमति के बिना शासन करते हैं तो इस दशा में प्रजा को विद्रोह करने का अधिकार है।
2. जनकल्याण- राज्य का उद्देश्य जनकल्याण है। राज्य की सत्ता जनता के लिए है। कि जनता राज्य के लिए है। वह बार-बार इस बात पर बल देता है कि सरकार का लक्ष्य समुदाय की भलाई करना है। वस्तुत: राज्य रूपी यंत्र का निर्माण राज्य की भलाई के लिए। हुआ है।
3. राज्य प्रतिबन्धित-लॉक ने हॉब्स के असमान राज्य को सीमित और प्रतिबंधित किया है। कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राज्य की रचना की गई। प्राकृतिक अवस्था में कुछ कठिनाइयाँ र्थी जिसके चलते उस अवस्था में जीवन, स्वतंत्रता तथा सम्पत्ति की रक्षा नहीं हो सकती थी। उन कठिनाइयों को दूर करने तथा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए राजनीतिक समुदाय का अवतरण हुआ। अतः समुदाय या राज्य उन कठिनाइयों को दूर करने तथा उन अधिकारों को रक्षा करने को बाध्य है। अत: वह सीमित और प्रतिबंधित है।
4, राज्य वैधिक और संवैधानिक-लॉक ने राज्य का निर्माण प्राकृतिक विधि के सम्बन्ध में उठने वाली समस्याओं और साथ ही मिलने वाली सुविधाओं या अधिकारों के प्रसंग में किया है। व्यक्ति जो भी सामाजिक समझौता करते हैं वह राज्य और जनता के लिए सदैव अटल और अपरिवर्तनीय रह जाता है। राज्य जिस प्राकृतिक विधि की व्याख्या करता है उससे प्रतिबंधित और बाधित है। लॉक ने राज्य को हर तरह से कानूनी बंधन में बाँधकर उसके स्वेच्छाचारी होने की संभावना को रोका है। अत: उसके राज्य की स्थिति पूर्णत: वैधिक तथा संवैधानिक है।
5. राज्य में सहिष्णुता-लॉक ने राज्य में सहिष्णुता का समर्थन किया है। उसका राज्य एक धर्म-सहिष्णु राज्य है। धर्म का सम्बन्ध उसके मत में आत्मा और भावना से होता है। राज्य को कभी भी धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उसका मुख्य कार्य नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा करना तथा उसके लिए सुख-सुविधा का प्रबन्ध करना है।
परन्तु धार्मिक क्षेत्र में राज्य की सहिष्णुता के दो अपवाद लॉक के दर्शन में मिलते हैं। प्रथम राज्य को किसी ऐसे धार्मिक सम्प्रदाय के विरुद्ध बल-प्रयोग का अधिकार है जिसकी गतिविधियाँ अव्यवस्था पैदा करती हैं। द्वितीय राज्य कैथोलिकों, मुसलमानों तथा नास्तिकों के प्रति सहिष्णु नहीं रहेगा।
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