B.Ed./M.Ed.

सेमेस्टर एवं तिमाही सेमेस्टर प्रणाली | सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली के लाभ

सेमेस्टर एवं तिमाही सेमेस्टर प्रणाली
सेमेस्टर एवं तिमाही सेमेस्टर प्रणाली

सेमेस्टर एवं तिमाही सेमेस्टर प्रणाली (Semester and Trisemester System)

परीक्षा में गतिशीलता परीक्षा के आयोजन – काल एवं आयोजन – विधि एवं संचालन-प्रक्रिया पर निर्भर रहती है। सामान्यतः परीक्षा का आयोजन वार्षिक के अतिरिक्त अर्द्धवार्षिक, त्रैमासिक या मासिक या पाक्षिक होता है। बाह्य परीक्षाएँ पाठ्यक्रम के समाप्त हो जाने पर वार्षिक, द्विवार्षिक भी आयोजित की जाती हैं। कभी-कभी एवं कहीं-कहीं आन्तरिक परीक्षाओं का आयोजन पाठ्यवस्तु की इकाई समाप्त होने पर किया जाता है जिसे इकाई परीक्षा जो कि सतत् मूल्यांकन प्रणाली का ही अंग होता है, कहते हैं।

बाह्य वार्षिक परीक्षा के मध्य अन्तराल एवं उनकी समन्वित पाठ्यक्रम के अध्यापनोत्तर शैक्षिक उपलब्धि की जाँच की त्रुटियों को दूर करने के उद्देश्य से ‘सेमेस्टर’ परीक्षा प्रणाली लागू की जाती है। सामान्यतः छात्र परीक्षा की तैयारी उसी समय शुरू करते हैं जब परीक्षा करीब आती है और परिणामस्वरूप कुछ चुनी हुई विषय-वस्तु को ही तैयार किया करते हैं। ऐसी परिस्थिति में पाठ्य सामग्री का अध्ययन मात्र परीक्षा की दृष्टि से ही किया जाता है न कि ज्ञानार्जन के लिए। साथ ही, छात्र अपना अधिकांश बहुमूल्य समय नष्ट किया करते हैं। अतः समय का अधिकाधिक विद्या अध्ययन हेतु सदुपयोग एवं शिक्षण अधिगमों का निरन्तर एवं वास्तविक अर्जन हेतु सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली का क्रियान्वयन किया गया है।

सेमेस्टर प्रणाली में इस प्रकार किसी विशेष उपाधि की प्राप्ति हेतु निर्दिष्ट पाठ्यक्रम या विषय-वस्तु यथोचित इकाइयों में बाँटी जाती है तथा उन इकाइयों का सुनियोजित अध्ययन, अध्यापन एवं परीक्षण हेतु उपयुक्त काल खण्ड का विभाजन भी किया जाता है। उदाहरणार्थ, दो वर्षों में पूरा किया जाने वाला स्नातकोत्तर उपाधि पाठ्यक्रम छह-छह महीनों के चार सेमेस्टरों में विभाजित कर दिया जाता है। इन चार सेमेस्टरों में अध्यापन हेतु चार पाठ्यक्रम जो सैद्धान्तिक एवं प्रयोगिक विषय-वस्तु होते हैं, पुनः इकाइयों में बाँट दिए जाते हैं। छह महीने के सेमेस्टर की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि की जाँच सैद्धान्तिक एवं प्रयोगिक विषय-वस्तु में ली जाती है जो बाह्य या आन्तरिक या सम्पूर्ण रूप से आन्तरिक परीक्षा द्वारा की जाती है। चारों सेमेस्टर की समाप्ति के अन्तर चारों सेमेस्टरों में अर्जित शैक्षिक उपलब्धियों के योग के आधार पर छात्र को उपाधि प्रदान की जाती है।

ट्राई सेमेस्टर (Tri Semester)

ट्राई सेमेस्टर को तिमाही सेमेस्टर अथवा त्रिकोणीय सेमेस्टर भी कहते हैं। इस सेमेस्टर में मूल्यांकन की सीमा तीन महीने बाद ही होती है अर्थात् प्रत्येक सत्र के शुरू होने के ठीक 3 महीने बाद परीक्षा कराकर मूल्यांकन का प्रावधान है। इस प्रकार एक वर्ष में 12 माह एवं 4 तिमाही सेमेस्टर होंगे। अध्यापन के पश्चात् शैक्षिक उपलब्धि की त्रुटियों को दूर करने के उद्देश्य से यह सेमेस्टर प्रणाली लागू की गयी है। पहले तो प्रत्येक 6 माह पर ही सेमेस्टर प्रणाली का विकास हुआ था लेकिन कुछ शैक्षिक समस्याओं को देखते हुए ट्राई सेमेस्टर की व्यवस्था लागू हो रही है। जिससे शैक्षिक वातावरण में बदलाव तेजी से आये एवं शिक्षण अधिगम का वास्तविक लाभ उठाया जा सके। परीक्षाओं की निकटता से तैयारी का वातावरण बना रहता है। इससे शीघ्र पाठ्यक्रम की तैयारी में सुगमता होगी।

इस सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली में छात्र गहराई से निर्दिष्ट पाठ्यक्रम को आत्मविश्वास के साथ पढ़ सकता है तथा पूर्णता प्राप्त कर सकता है। चूँकि सेमेस्टरोपरान्त पाठ्यक्रम (इकाई) की समाप्ति पर परीक्षा अनिवार्य है, अतः छात्र सम्पूर्ण सेमेस्टर भर एवं सम्पूर्ण चारों सेमेस्टरों में अध्ययन में रत रहते हैं एवं अनुशासनहीनता एवं अध्ययन के अतिरिक्त अन्य कार्यों हेतु उन्हें कम समय मिलता है। साथ-ही-साथ लगातार एक ही इकाई में गहन अध्ययन का अवसर मिलने के कारण अधिगम-अनुभव (Learning Experience) के अर्जन में छात्रों में न केवल आत्म-विश्वास (Self-confidence) बढ़ता है बल्कि विषय-वस्तु में उनकी पकड़ मजबूत हो जाती है। सेमेस्टर प्रणाली की इन विशेषताओं के कारण आजकल अनेक विश्वविद्यालयों में विज्ञान की पढ़ाई सेमेस्टर प्रणाली द्वारा की जाती है।

किन्तु इसके अतिरिक्त सेमेस्टर प्रणाली के दोष भी हैं। सेमेस्टर प्रणाली में बाह्य परीक्षा को उचित समय पर आयोजित करना और उचित समय पर शीघ्रातिशीघ्र परिणाम घोषित कर तुरन्त उन्हें अगले सेमेस्टर हेतु अग्रसर करना अपने आप में एक प्रत्यक्ष समस्या है। यदि सभी परीक्षाएँ आन्तरिक हों, तो उस उपाधि की विश्वसनीयता को चुनौती दी जाती है। इसके अतिरिक्त लगातार अनेक सेमेस्टरों में निरन्तर जुटे रहने से छात्रों में उन्मुक्त विचारों की कमी आ सकती है जिसके फलस्वरूप उनाक सर्वांगीण विकास अवरुद्ध हो सकता है।

वार्षिक परीक्षाओं के मध्य काफी समयान्तराल और अध्यापन के पश्चात शैक्षिक उपलब्धि की त्रुटियों को दूर करने के उद्देश्य से सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली को लागू किया गया। विद्यार्थी परीक्षा की तैयार सामान्यतः परीक्षा के निकट आने पर ही करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे समयाभाव के कारण केवल चयनित पाठ्यक्र की ही तैयारी करते हैं। इस प्रकार शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ‘ज्ञान प्रदान करना’ कहीं लुप्त हो जाता है और विद्यार्थियों का उद्देश्य किसी प्रकार परीक्षा उत्तीर्ण करना रह जाता है। अतः विद्या अर्जन से अधिक से अधिक समय दिया जा सके और इस प्रकार शिक्षण अधिगम का वास्तविक लाभ उठाया जा सके, इस हेतु सेमेस्टर प्रणाली को लागू किया गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर पढ़ाये जाने वाले विषयों के बीच अधिक लचीलापन और कार्यात्मकता की दृष्टि से सेमेस्टर प्रणाली की वकाल की गई थी। इस प्रणाली के समर्थन में सबसे बड़ा तर्क यह दिया गया था कि सेमेस्टर प्रणाली सामान्य मूल्यांकन और विशेष रूप से अधिगम प्रतिफलों के लिए सन्तोषप्रद उपकरणों एवं तकनीकों का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता देती है। यह इस सार्वभौम विश्वास का भी समर्थन करती है कि मूल्यांकन सतत् और व्यापक होना चाहिए और वह विकासात्मक एवं सुधारात्मक हो, न कि पूर्ण और निर्णयात्मक। ‘उच्चतर माध्यमिक शिक्षा और उसका व्यावसायीकरण’ ( एन. सी. ई. आर. टी. 1991-92) नाम से बने दस्तावेज में सेमेस्टर प्रणाली के प्रश्न पर उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण के सन्दर्भ में विचार किया गया है, जिसमें यह सिफारिश भी की गयी है कि सेमेस्टर प्रणाली शिक्षण और मूल्यांकन में लचीलेपन के लिए सुविधाजनक है। गत पन्द्रह वर्षों के दौरान देश की बहुत कम संस्थाओं में ही सेमेस्टर प्रणाली लागू की जा सकी है। अधिकांश मामलों में तो वर्ष भर के पाठ्यक्रम को एकतरफा ढंग से दो भागों में बाँट दिया गया है जिसे एक शिक्षा सत्र के दो आधे-आधे भागों में पूरा करना

पड़ता है। सेमेस्टर आधारित शिक्षा शिक्षण को सुविधाप्रद इकाइयों में बाँट देती है जिससे शैक्षिक स्तर को काफी ऊँचा उठाया जा सकता है। आधुनिकीकरण, अध्ययन-अध्यापन में सुधार प्रक्रिया को यह शुरू करके जारी रखती है और व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुरूप की ही पाठ्यक्रम का चयन करने के लिए लचीलापन प्रदान करती है। यह अन्तर्विषयक उपागम तथा अध्ययन में सवंर्धन, पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले शिक्षकों द्वारा आन्तरिक मूल्यांकन तथा उसकी तकनीक में सुधार की ओर ले जाती है।

क्रेडिट अर्जित और जमा करने की प्रणाली सेमेस्टरीकरण का आधार जो केवल उच्चस्तरीय अध्ययन की कुछ ही संस्थाओं में अपनायी जाती है। सामान्य रूप से पाठ्यचर्या और मूल्यांकन मे इस सुधार को अभी तक लागू न कर पाने के शैक्षिक, वित्तीय और प्रशासनिक कारण हैं ही, साथ ही परीक्षा एजेन्सियों द्वारा लगातार परीक्षा संचालित करने के भौतिक आयाम भी इसके कारण हैं। इसलिए अब वक्त आ गया है कि आवश्यक तैयारी करके व्यावसायिक और अकादमिक दोनों ही शिक्षा क्षेत्रों में और ज्यादा लचीलापन एवं विविधता सुनिश्चित करने के लिए विद्यालयी व्यवस्था में प्रयास प्रारम्भ किये जायें। वर्तमान परिदृश्य में जबकि उद्योग सहित विभिन्न सेक्टरों में बहु-कौशल युक्त कार्य करने वालों को वरीयता दी जा रही है, क्रेडिट पर आधारित सेमेस्टर प्रणाली एक व्यावहारिक समाधान देती है।

सेमेस्टर प्रणाली में छात्रों के पास यह विकल्प है कि वे कितनी भी संख्या में क्रेडिट घण्टे अपनी आवश्यकता, क्षमता और सीखने की गति के अनुसार ले सकते हैं।

सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली के लाभ (Advantages of Semester Examination System)

सेमेस्टर प्रणाली में पाठ्यक्रम को निश्चित इकाइयों में विभाजित कर उस पर गहन अध्यापन कराया जाता है। सेमेस्टर प्रणाली में दो वर्षों में पूरा किया जाने वाला पाठ्यक्रम छह-छह महीने के चार भागों में विभाजित कर दिया जाता है। छः माह के सेमेस्टर में, सेमेस्टर की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपब्धियों और अधिगम की जाँच की जाती है जो प्रायः आन्तरिक परीक्षा द्वारा या बाह्य और आन्तरिक परीक्षा के मिलाप से किया जाता है। इस प्रकार चारों सेमेस्टरों के योग के आधार पर छात्र की उपाधि प्रदान की जाती है।

सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली में एक सेमेस्टर में सीमित पाठ्यक्रम होने के कारण छात्र पाठ्यक्रम को गहराई से पढ़ और समझ कर वास्तव में उस मान का ज्ञान प्राप्त कर पाता है। इसके अतिरिक्त सेमेस्टर प्रणाली में छुट्टियों कम होती हैं। अतः पठन-पाठन के लिये अधिक समय भी उपलब्ध हो जाता है। हर सेमेस्टर के अन्त में परीक्षा अनिवार्य होती है अतः छात्र अधिकांश समय अध्ययन में व्यस्त रहता है। इन्हीं कारणों से अधिकांश विश्वविद्यालयों में सेमेस्टर प्रणाली को लागू कर दी गई है।

है। इस प्रकार वार्षिक परीक्षा प्रणाली में जहाँ अधिकांश शिक्षक शिथिलता से कार्य करते थे और सेमेस्टर प्रणाली में अध्यापकों को भी निरन्तर सजग और कार्य में व्यस्त रहना पड़ता प्रविष्ट अध्यापन या अन्य क्रिया-कलापों में व्यस्त रहते थे, वह प्रवृत्ति परिवर्तित हो जाती है।

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment