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अंतरिक्ष पत्रकारिता अथवा अंतरिक्ष जनसंचार
प्रथमतः ‘ज्ञान को शक्ति कहा गया और वैज्ञानिक युग में विज्ञान को शक्ति माना गया पर आज सूचना ही शक्ति है। आज की सूचना आकाशीय ग्रहों और उपग्रहों पर आधारित हो गई है। किसी भी ग्रह के चारों ओर जब कोई आकाशीय पिंड एक निश्चित कक्षा में घूमता रहता है, तो उसे उपग्रह कहते हैं। हम सभी यह जानते हैं कि पृथ्वी एक बहुत बड़ा गोला है, जो अन्तरिक्ष में घूमता रहता है। पृथ्वी घूमते हुए सूर्य का परिभ्रमण करती है। सूर्य का सबसे नजदीक पृथ्वी ही उपग्रह ही पृथ्वी के अलावा आठ और ग्रह सूर्य के परिवार में आते हैं, वे भी सूर्य के चारों तरफ घूमते रहते हैं। उदाहरणस्वरूप- पृथ्वी के चारों तरफ चन्द्रमा घूमता रहता है। ये उपग्रह दो प्रकार के होते हैं (1) प्राकृतिक उपग्रह-पृथ्वी, चन्द्रमा (2) कृत्रिम उपग्रह- कृत्रिम उपग्रह किसी मनुष्य द्वारा ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए भेजे जाते हैं। कृत्रिम उपग्रह भी दो प्रकार के होते हैं-
1. कक्षीय उपग्रह- जो हमेशा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता रहता है।
2. भूस्थिर उपग्रह – यह पृथ्वी के किसी स्थान के सापेक्ष स्थिर रहते हैं। इन्हें संचार उपग्रह भी कहते हैं।
सन 1956 के बाद कई कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं में स्थापित किये गये हैं। इन उपग्रहों को स्थापित करने के लिए रॉकेट की सहायता ली जाती है। इस रॉकेट को लांचर कहते हैं। सबसे पहले रॉकेट को काफी वेग से छोड़ा जाता है, जिससे यह वांछित ऊँचाई पर पहुँच जाय। फिर अपने आप रॉकेट से उपग्रह एक निश्चित वेग से निकलकर निश्चित कक्षा में स्थापित हो जाता है और तुरन्त पृथ्वी के चारों ओर घूमने लगता है। घूमने साथ उपग्रह पर एक अभिकेन्द्र बलकार्य करने लगता है। यह बल पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति जो उपग्रह पर लगती है, को संतुलित करता है, जिससे उपग्रह अपनी कक्षा में घूमता रहता है, नीचे नहीं आता। यदि उपग्रह की गति कम हो जाए तो यह गिर कर नष्ट हो जाएगा।
सबसे पहले पृथ्वी से कोई भी सिग्नल उपग्रह की ओर भेजा जाता है, उपग्रह इन्हें ग्रहण करते हैं, फिर इनका आवर्धन करते हैं। तत्पश्चात उपग्रह इन्हें विभिन्न दिशाओं में प्रेषित करते हैं। इन सिग्नलों को पृथ्वी पर स्थित अनेक केन्द्र ग्रहण करते हैं तथा प्रसारित भी।
उपग्रहों के कारण आजकल संचार की दुनिया में काफी विकास हुआ है। समस्त विकास उपग्रहों के कारण ही हुआ। इसके लिए विषवत रेखा के ऊपर एक निश्चित ऊँचाई पर उपग्रह को स्थापित किया जाता है। इन उपग्रहों को भूस्थिर उपग्रह कहते हैं। ये प्रसारण में सुविधा देते हैं, जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय संचार प्रणाली विकसित होती है। यदि कोई उपग्रह पृथ्वी की किसी कक्ष में एक जगह पर स्थिर होता है, तो वह भी पृथ्वी के साथ-साथ घूमने लगता है। इस प्रकार उपग्रह का परिक्रमा करने का समय तथा पृथ्वी के स्वयं अपनी कक्षा में घूर्णन का समय बराबर होगा। इन्हीं को संचार उपग्रहों की तरह काम में लाते हैं।
एक संचार उपग्रह में मुख्य दो भाग होते हैं—(1) रिसीवर तथा ट्रांसमिशन रिसीवर द्वारा प्राप्त हुए सिग्नल को त्वर्धक द्वारा बड़ा करते हैं। इन सम्पूर्ण कार्यों में ऊर्जा सूर्य से ली जाती है। सौर ऊर्जा को विद्युत में बदलने के लिए सोलर सेल (सौर ऊर्जा) में रहना पड़ता है। संचार उपग्रह में कोई चेम्बर, टेलीफोन तथा दूरदर्शन के सिग्नल के लिए होते हैं। सर्वप्रथम सिग्नल को उपग्रह तक काफी ऊँची आवृत्ति वाले सूक्ष्म तरंगों द्वारा भेजते हैं। यह उपग्रह में लगे हुए एण्टीना द्वारा ग्रहण किया जाता है, फिर आवर्धन के बाद यह ट्रांसमीटर द्वारा भेजा जाता है। सिग्नल को ट्रांसपाउन्डर और शक्तिशाली बनाया जाता है। जिससे यह कई हजार किलोमीटर की दूरी तय कर सके।
भारत में अंतरिक्ष-संचार प्रणाली भी शुरू हो चुकी है। जिसकी सहायता से समाचारों और चित्रों के सम्प्रेषण में एक क्रांति-सी आ गई है। अन्तरिक्ष यान ही राष्ट्रों की आँख और कान हैं। सन् 1962 में अन्तरिक्ष समिति के गठन के पश्चात अंतरिक्ष के माल पर भारत की सफलता अंकित हुई। धुम्बा भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण केन्द्र, 1962, त्रिवेन्द्रम स्थित अन्तरिक्ष विज्ञान और तकनीकी केन्द्र, 1965, अहमदाबाद स्थिर प्रायोगिक उपग्रह संचार भू-केन्द्र, 1967, आर्यभट्ट 1975, भास्कर प्रथम 1979, प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘एस० एल० बी0-3’ 1980, एपल (1981) एवं भास्कर द्वितीय (1981) के कारण भारत विश्व स्तर पर उभरकर आया। 30 अगस्त 1983 को बहु उद्देशीय उपग्रह इन्सेट-1 बी, अमेरिकी अंतरिक्ष शटल ‘चैलेन्जर’ द्वारा प्रक्षिप्त हुआ। जिसने मौसम सम्बन्धी सूचनाएँ दी तथा संचार एवं प्रसारण के क्षेत्र में क्रान्ति कर दी। इन्सेट-1 बी, अन्तरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, मौसम विभाग, आकाशवाणी और दूरदर्शन संगठनों का सामूहिक प्रयास है। ये विभाग अपनी आवश्यकताओं हेतु उपग्रह का उपयोग करते हैं। इनमें समन्वय बना रहे इसलिए एक उच्च स्तरीय इन्सेट समन्वय समिति का गठन हुआ।
भारत का दूसरा उपग्रह-‘आई0आर0 एस01’ का प्रक्षेपण 17 मार्च, 1988 को सोवियत संघ से हुआ। समुद्र विज्ञान, मौसम विज्ञान, मत्स्य पालन, सूखे और बाढ़ की मॉनीटरिंग, पेट्रोलियम उद्गमों एवं प्राकृतिक संसाधनों सम्बन्धी सामयिक सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए इस उपग्रह का उपयोग हुआ। 22 जुलाई, 1988 को भारत का बहुउद्देशीय उपग्रह, ‘इन्सेट-1 सीं’ की स्थापना हुई। पृथ्वी पर मौसम की सतत् जानकारी, रेडियो के क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रसारण, पूरे देश में दूरदर्शन कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण एवं दूरसंचार व्यवस्था को विकसित करना ही इसका लक्ष्य था, पर यह समाप्त हो गया था। इन्सेट-1 बी का यह सहयोगी उपग्रह है। सन् 1991 को इन्सेट-1 डी का प्रक्षेपण किया गया। जो इस समय कार्य कर रहा है। इसका प्रक्षेपण स्थान-मास्को था।
उपग्रह ‘एपल’ के सहारे 13 अगस्त, 1981 को भारतीय दूरदर्शन के इतिहास में एक अनोखी घटना घटित हुई थी। उस समय इसी उपग्रह के कारण दिल्ली, बम्बई, मद्रास तथा तीन अन्य महानगरों में हजारों लोगों ने दूरदर्शन पर देखा कि प्रधानमंत्री, श्रीमती इन्दिरा गाँधी दिल्ली दूरदर्शन की स्टूडियो से अहमदाबाद के स्पेस सेन्टर में इकट्ठे हुए वैज्ञानिकों से इस तरह बातचीत कर रही हैं, जैसे एक-दूसरे से प्रत्यक्ष वार्तालाप हो रहा है।
अंतरिक्ष के पत्रकार (स्पेस रिपोर्टर)
21 सितम्बर, 1989 को टोकियो में यह तय किया गया कि- सोवियत और जापान की साझा अन्तरिक्ष उड़ान में जापानी टी०वी० बी० एस० टेलीविजन के दो स्टाफ रिपोर्टर जायेंगे। वे लोग अन्तरिक्ष में जाने वाले दुनिया के पहले रिपोर्टर होंगे। उड़ान सोवियत ग्लाव कास्मोस के अन्तरिक्ष संगठन एवं टी०वी० एस० के तहत हुए एक व्यावसायिक समझौते के तहत 1919 में होनी है। 27 साल के रिओकोकिकुशी और 47 साल के तोइहिरो अकयिमा पत्रकारों के सामने चमकते अन्तरिक्ष सूट में आये थे। उनके सूट के बाँहों पर सोवियत और जापानी झंडे लगे हुए थे और सीने पर ‘स्पेस रिपोर्टर’ लिखा था।
सेटलाइट (उपग्रह) द्वारा प्रेषित संवाद दिन-रात पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं, जिसे रेडियो और दूरदर्शन द्वारा सुना तथा देखा जा सकता है। इन्हीं उपग्रहों द्वारा सुदूर अंतरिक्ष की अज्ञात बातो की जानकारी हो जाती है। इनकी सहायता से विज्ञान नित-नूतन शोध कर रहा है, ज्ञान-विज्ञान के आयाम खुल रहे हैं। समाचार के क्षेत्र में भी चमत्कार हो रहा है। ‘इन्सेट-वी’ के सहारे चैन्नई (मद्रास) में आधी रात को तैयार समाचार पत्र ‘दि हिन्दू’ गुड़गाँव (हरियाणा) में प्रकाशित हो रहा है। दक्षिण भारत में पत्र की तैयारी हो और हजारों मील दूर उत्तर भारत में उसी समय पत्र का प्रकाशन हो, यह चमत्कार अंतरिक्ष के अनुसंधान में लगे उपग्रहों की सार्थकता के कारण सम्भव हो पाया है। लम्बे लेख, समाचार, अभिलेख तत्काल अभिलेख प्रेक्षक द्वारा पलक झपकते ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच रहे हैं, जिसके फलस्वरूप समाचार पत्र अत्यंत क्षित्र गति से ताजे समाचारों से विश्व के बुद्धिजीवियों को सुपरिचित बना रहे हैं। फोटों ट्रॉसमीटर द्वारा एक देश में खेले जा रह’ मैच का चित्र कुछ ही घंटों बाद दूसरे देश के पत्रों में प्रकाशित होते हैं। उपग्रह के कारण ही समाचार पत्रों के पृष्ठों के साँचों की प्रतिच्छाया एक केन्द्र से दूसरे मुद्रण केन्द्र को प्रेषित हो रहे हैं। परिणामस्वरूप समाचार पत्रों का स्वरूप ही बदल चुका है। वस्तुतः उपग्रहों ने पत्रकारिता जगत में चारों तरफ क्रांति ही क्रांति ला दी है।
उपग्रहों के कारण एक ही पत्र के कई संस्करण विभिन्न नगरों से एक साथ प्रकाशित हो रहे हैं। भारत के मात्र एक पत्र ‘इन्डियन एक्सप्रेस’ का मुद्रण उपग्रहों द्वारा होता है। इलेक्ट्रॉनिक्स विधियों द्वारा विजुअल डिस्पले टर्मिनल पर मुद्रण, सम्पादन, प्रति-वाचन एवं पृष्ठ-सज्जा का कार्य एक ही व्यक्ति द्वारा पूरा हो रहा है। इसी पद्धति द्वारा हर समाचार, शीर्षक, लेख, फोटो, विज्ञापन को एक कमाण्ड नम्बर दिया जाता है। कमाण्ड के अनुसार वीडियो स्कीन पर बटन दबाकर प्रत्येक सामग्री को देख लिया जाता है और उनको महत्व के अनुसार पृष्ठ पर समायोजित किया जाता है। पृष्ठ बन जाने पर इसका निगेटिव या पाजिटिव स्वतः यूनिट से बाहर आ जाता है। इसी पृष्ठ से प्लेट तैयार करके मुद्रण मशीन में भेजा जाता है। तरंगों पर तैरते आज के संसार को द्रुतगति से समाचार पत्रों को सुलभ करने में उपग्रहों की अपनी महिमा है।
उपग्रहों से जन-संचार में इतना बल मिलेगा कि दिल्ली, बम्बई और मद्रास जैसे शहरों के बीच की दूरी नगण्य होकर बड़ी-बड़ी गोष्ठियाँ एक ही समय में हो सकेंगी, प्रतिभागी एक-दूसरे को देख भी सकेंगे, आपस में बातचीत भी कर सकेंगे। इसी प्रकार दिल्ली का अध्यापक बम्बई और मद्रास में चल रही कक्षाओं में विद्यार्थियों को पढ़ा सकेंगे और आमने-सामने उनके प्रश्नों के उत्तर भी देंगे। निकट भविष्य में बैंकों द्वारा इसका प्रयोग किया जायेगा, क्योंकि इसके माध्यम से लेन-देन का कार्य द्रुतगति से होगा। रेलगाड़ियों के समय और आवश्यकतानुसार आने जाने के काम को सुचारू रूप से किया जायेगा। किसी भी उपग्रह को भूस्थैतिक स्थिति में रोक रखने में सफलता अब तक कुछ देशों को प्राप्त हुई है— रूस, अमेरिका, फ्रांस और कैनेडा अब भारत, जापान भी इस समुदाय के सदस्य हो गये हैं।
पंजाब चुनाव परिणाम का प्रसार उपग्रह द्वारा हो रहा था। इसी उपग्रह द्वारा दूरदर्शन का ‘द वई दिस वीक’ का प्रसारण होता है। (1) म्यूजिक (2) साइंस (3) खेल (4) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक घटनाएँ एवं प्रमुख घटनाएँ।
इन्सेट-डी का परिणाम है- दूरदर्शन पर दो सिनेमा का प्रसारण। उपग्रह द्वारा ही अमेरिका ने ईराक को युद्ध में परास्त किया। अमेरिका ने ईराक संचार व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था। टेलीफोन-बम्ब द्वारा नष्ट किये। रेडियो और दूरदर्शन को अधिक आवृत्ति का प्रवाह करके उसको समाप्त कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप युद्ध विराम के बावजूद भी इराकी सैनिक मारे गये।
उपग्रह, कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स के नाते संवादों का द्रुतगति से जाल फैल रहा है। पहले बाहुबल था, पुनः भाप की शक्ति, तत्पश्चात, तेलशक्ति और आज आणविक उपग्रह की शक्ति है। आज गति और विस्तार एकाकार हो चुके हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स आविष्कारों के फलस्वरूप विस्मयकारी संचार उपकरण उपलब्ध हो रहे हैं। जिसका परिणाम समाचार संकलन, सम्पादन, मुद्रण, प्रति संशोधन, प्रकाशन और प्रसारण में विचित्र परिवर्तन हो रहे हैं। ‘न्यू इंग्लैंड न्यूजपेपर आपरेशन्स एसोजिएशन की 46 वीं कान्फ्रेंस में रोमैनो ने कहा-शीघ्र ही कम्प्यूटर वर्तमान समाचार पत्र कार्यालय के कम्पोजिंग रूप को निरर्थक सिद्ध करने वाला है। अब तो कम्प्यूटर के परदे पर इलेक्ट्रॉनिक विधि से कम्पोजिंग होगी। इस प्रकार वह दिन दूर नहीं, जबकि प्रत्येक व्यक्ति पत्रकार होगा, उसका अपना पत्र होगा, समाचार के लिए दूसरे पर आश्रित न होगा। केन्द्रीय स्थल से समाचार-पत्र घर-घर में ‘टेलीव्यू’ के कारण उपलब्ध होगा। सम्प्रेषण, मुद्रण, प्रसारण के क्षेत्र में क्षण-प्रतिक्षण हो रहे आविष्कारों-उपग्रहों, कम्प्यूटर, बैकों, लेसर किरणों ने वस्तुतः पत्रकारिता में अद्भुत बदलाव ला दिया है।
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