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अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा,अधिगम के नियम, प्रमुख सिद्धान्त एवं शैक्षिक महत्व
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अधिगम का अर्थ
सिखना किसी क्रिया /स्थिति के प्रति-सक्रिया प्रतिक्रिया/अनुक्रिया
> स्कीनर के अनुसार :- “सीखना व्यवहार में उत्तरोत्तर सामजस्य की प्रक्रिया है।”
वुडवर्थ के अनुसार :- “नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है।”
> गेट्स एवं अन्य के अनुसार :- “सीखना अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।”
» क्रों एण्ड क्रों के अनुसार :- “सीखना आदतों ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।”
अधिगम की विशेषताएँ :-
1. अधिगम जीवन पर्यन्त चलता है।
2. अधिगम उद्देश्य पूर्ण है।
3. अधिगम व्यवहार में परिवर्तन
4. अधिगम विकास है।
5. अधिगम अनुकूलन हैं।
6. अधिगम सार्वभौमिक हैं।
7. अधिगम विवेकपूर्ण हैं।
8. अधिगम निरन्तर है।
9. अधिगम खोज करना।
10. अधिगम सक्रिय प्रक्रिया है।
11. अधिगम व्यक्तिगत व सामाजिक होता है।
12. अधिगम एक नया कार्य है।
13. अधिगम अनुभवों का संगठन ।
14. अधिगम वातावरण की उपज है।
15. अधिगम विकास है।
अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक व दशाएँ :-
- वातावरण
- परिपक्वता
- बालको का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य
- विषय सामग्री का स्वरूप ।
- सीखने का समय व थकान ।
- प्रेरणा
- सीखने की इच्छा
- अध्यापक व सीखाने की प्रक्रिया ।
- सीखने की विधि
- सम्पूर्ण परिस्थिति
अधिगम के सिद्धांत /नियम :-
> रायर्बन के अनुसार :- “यदि शिक्षण विधियों मे इन नियमों व सिद्धांत का अनुसरण किया जाता है। तो सीखने का कार्य अधिक संतोष होता है।”
»थार्नडाइक के सीखने के नियम :-
इन्होने कुल सीखने के 8 नियम दिए जिसमें 3 प्रमुख व 5 गौण या सहायक नियम दिए ।
> मुख्य नियम :-
1.तत्परता का नियम :- किसी कार्य को करने के लिए व्यक्ति रहता है तो आसानी से कर पाएगा या तत्काल कर देगा ।
उदाहरण :- घोडे को पानी के तालाब तक ले जाया तो जा सकता है, लेकिन पानी पीने के लिए बाध्य नह किया जा सकता क्योकि घोड़ा पानी पीने के लिए तत्पर नहीं है।
2. अभ्यास का नियम :- करत-करत अभ्यास ते जडमति होत सुजान
(i) उपयोग का नियम :- यदि कोई कार्य पहले किया हुआ है और जब उसकों दुबारा किया जाता है तो वह हमारे मस्तिष्क में पुनः आ जाता है, अर्थात स्थाई हो जाता है।
(ii) अनुपयोग का नियम- यदि किसी किए हुए कार्य को पुनः नहीं करते है। तो हमारा मस्तिष्क उसे भूला देता है
3. प्रभाव/ सन्तोष/असंतोष का नियम :- यदि किसी कार्य को करने पर हमें संतोष प्राप्त होता है। तो हम उस कार्य को दुबारा करेंगे। और यदि कार्य को करने पर हमें असंतोष होता है। तो हम उस कार्य को दुबार नहीं करेगे।
गौण या सहायक नियम :-
4. बहुप्रतिक्रिया का नियम- कोई नया कार्य करने के लिए कई प्रकार की प्रतिक्रियाओं को अपनाया जाता तथा उसमें से सही प्रतिक्रिया का पता लगाकर भविष्य में काम लेता हैं।
5. मनोवृत्ति का नियम :- किसी कार्य को जिस मनोवृत्ति से (मन या मेहनत) से करेगे। वैसी ही सफलता मिलेगी।
6. आंशिक क्रिया का नियम- किसी कार्य को छोटे-छोटे भागों में बाँटकर किया जाता हैं तो उस कार्य में सफलता अधिक मिलती हैं। उदाहरण :- सचिन तेंदुलकर
7. आत्मीकरण का नियम :- (सादृशीकरण) कोई नया कार्य करने पर किसी पुराने किये गये कार्य का ज्ञान नये ज्ञान में मिला देना।
8. सम्बन्धित परिवर्तन का नियम- क्रिया का रूप तो वही रखा जाता हैं लेकिन परिस्थितियों में परिवर्तन कर दिया जाता हैं। जैसे :- पावलव का कुत्ता
इसी भी पढ़ें…
(1) प्रयास एवं त्रुटी का सिद्धांत
(2) प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत
(3) आवृत्ति (बार-बार) का सिद्धांत
(4) उद्दीपक (Stimulus) अनुक्रिया (Respones) का सिद्धांत
(5) S-RBond का सिद्धांत
(6) सम्बन्धवाद का सिद्धांत
(7) अधिगम का बन्ध सिद्धांत
पुनर्बलन का सिद्धांत/ हल का सिद्धांत
- प्रबलन का सिद्धांत
- अर्तनोद न्यूनता का सिद्धांत
- सबलीकरण का सिद्धांत
- यथार्थ अधिगम का सिद्धांत
- सतत अधिगम का सिद्धांत
- क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत
- चालक न्यूनता का सिद्धांत
बान्डुरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत
क्रिया-प्रसुत का अधिगम् सिद्धांत
1. R.S. का सिद्धांत
2. सक्रिय अनुबंधन का सिद्धांत
3. व्यवहारिक सिद्धांत
4. नेमेन्तिकवाद का सिद्धांत
5. कार्यात्मक प्रतिबधता का सिद्धांत
पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत
1. शरीर शास्त्री का सिद्धांत
2. शास्त्रीय अनुसंधन सिद्धांत
3. क्लासिकल सिद्धांत/क्लासिकल अनुबंधन
4. अनुबंधित अनुक्रिया का सिद्धांत
5. सम्बन्ध प्रतिक्रिया का सम्बन्ध
6. अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धांत
7. अस्वभाविक अनुक्रिया का सिद्धांत
कोहलर का अर्न्तदृष्टि या सूझ का सिद्धांत
- गेस्टाल्ट सिद्धांत
- समग्र सिद्धांत
- कोहलर का अर्न्तदृष्टि का सिद्धांत
- कोहलर का सूझ का सिद्धांत
- अन्तर्दृष्टि या सूझ का सिद्धांत
- कोहलर का सिद्धान्त
- अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त
- गेस्टाल्टवादियों का सिद्धान्त
जीन पियाजे का संज्ञानवादी सिद्धांत
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