अनुवाद का इतिहास जितना प्राचीन है उतना ही उसका महत्व है। कहा जाता है कि अनुवाद की परम्परा लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष से मिलती है। स्पष्ट है उसका महत्व तभी से आँका गया है। आज अनुवाद का महत्व प्रौद्योगिकी, विज्ञान और इलेक्ट्रानिकी की भाँति ही मूल्यवान हो गया है। अभिप्राय यह है कि अनुवाद वर्तमान समय की पहली आवश्यकता है और वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वव्यापी है। डॉ० कैलाशचन्द्र भाटिया ने ठीक ही लिखा है कि- ‘दूर-दूर सीमाओं में बँटी मानव जाति अनुवाद के माध्यम से ही समीप आती जाती है।’
अनुक्रम (Contents)
अनुवाद का महत्व
प्राचीनकाल की संस्कृतियों के विकास में अनुवाद का भारी योगदान रहा है। अनुवादों के सहयोग से ही विश्व साहित्य की अवधारणा प्रकाश में आयी। उदाहरणार्थ- भारत का प्राचीन कथा संग्रह ‘पंचतन्त्र’ अरबी एवं अन्य यूरोपीय भाषाओं में अनूदित होकर ‘अलिफ लैला’ ईसप आन कहानियों का आधार बना। जर्मन साहित्यकार गेटे ने कालिदास कृत ‘अभिज्ञान साकुन्तलम’ नाटक का अनुवाद पढ़कर ही विश्व साहित्य की परिकल्पना की। अनुवाद के माध्यम से ही प्रेमनन्द्र, टैगोर, चेखव, टालस्टाय आदि की रचनाएँ विश्व भर में चर्चित रहीं। स्पष्ट है कि अनुवाद के माध्यम से ही साहित्य एवं कला की विश्वचेतना का विकास हुआ और हो रहा है।
भारत जैसे बहुभाषा-भाषी विकासशील देशों के राष्ट्रीय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। विकासशील देशों की एक अन्य आवश्यकता विकसित देशों के वैज्ञानिक, शैक्षणिक, तकनीकी एवं व्यावसायिक साहित्य की अधिकाधिक जानाकरी अपने देश के लोगों को सहज सुलभ कराने की होती है। इस प्रयोजन हेतु भी अनुवाद का महत्व स्वयंसिद्ध है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि अनुवाद समकालीन मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास का प्रथम सोपान है। अनुवाद के महत्व को कई दृष्टियों से रेखांकित किया जा सकता है।
1. अनुवाद ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनीक, इंजीनियरिंग आदि के अधुनातन ज्ञान का संवाहक है- संसार के विविध देशों में विशिष्ट विज्ञानों, इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी, खगोल, हार्टिकल्चर आदि विभिन्न विषयों के क्षेत्र में विशिष्ट विकास हो रहा है। विकासशील देशों में विकास के लिए इन विशिष्ट विज्ञानों से सम्बन्धित अनसंधानों और अन्वेषणों से परिचित होन लाजिमी है। यही नहीं, अब हम सैटेलाइट के युग में प्रवेश कर गये हैं, इसलिए अन्तरिक्ष विज्ञान सम्बन्धी विकास आज की पहली आवश्यकता है और यह कार्य विकसित देशों में बिना अनुवाद के सम्भव नहीं है। संसार में लगभग 3500 भाषाएँ बोली जाती हैं और लगभग 350 भाषाओं में साहित्य प्रकाशन तथा संचार का काम होता है। स्पष्ट है कि इतनी भाषाएँ कोई एक व्यक्ति नहीं जान सकता। अतः इस विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिए अनुवाद ही एकमात्र विकल्प है।
2. आयुर्विज्ञान संबंधी शोधों से परिचित होना- आयुर्विज्ञान ने आज लगभग 95% असाध्य रोगों का उपचार खोज निकाला है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा अन्य संगठन इस सम्बन्ध में विविध भाषाओं में शोध कार्य कर हैं। इनसे परिचित होने के लिए अनुवाद ही एकमात्र जरिया है। इस तरह अनुवाद मानव सभ्यता और स्वास्थ्य निर्माण का महत्वपूर्ण कारक है।
3. विधि, न्याय, प्रशासन, प्रजातंत्र आदि संबंधी ज्ञान के सम्बर्धन के लिए अनुवाद की भूमिका – मानव सभ्यता हाजरों वर्षों की विकास प्रक्रिया के बाद प्रजातंत्र और गणतंत्र के युग प्रवेश कर गयी है। अतः शासन, प्रशासन, प्रजातंत्रीय प्रणाली आदि के उत्तरोत्तर विकास के लिए इससे सम्बन्धित विशिष्ट जानकारी के लिए अनुवाद ही एक मात्र महत्वपूर्ण साधन है।
4. राजनीति, कूटनीति तथा परराष्ट्र नीति के सम्वर्द्धन हेतु इसकी उपयोगिता-इस दृष्टि से अनुवाद और आशु अनुवाद की महत्ता असंदिग्ध है। एक देश दूसरे देश से राजनयिक सम्बन्ध, सांस्कृतिक सम्बन्ध आदि के निर्वाह के लिए शिष्ट मंडल, राजदूत मंत्री आदि को भेजकर आदान प्रदान करता है। उस समय निरन्तर आशु अनुवाद का सहारा लिया जाता है।
5. धर्म, संस्कृति, दर्शन सम्बन्धी अन्तः सम्बन्धों के विकास का सेतु-अनुवाद एक सांस्कृतिक सेतु है। संशिलष्ट संस्कृति के निर्माण का मूल कारक है। मानव चेतना के उत्कर्ष के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सौख्य के निर्वाह के लिए हमारे पास एक ही माध्यम है-अनुवाद। विश्व मैत्री का साधन है— अनुवाद। भावात्मक एकता और राष्ट्रीय सामाजिक संस्कृति के विकास का सोपान है-अनुवाद।
6. पर्यटन, वाणिज्य, व्यापार के सम्वर्द्धन के लिए अनुवाद- आज विश्व व्यापार के बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं। पर्यटन से हम विदेशी मुद्रा अर्जित करते हैं और प्रकृति के रम्य दृश्यों से परिचित होते हैं। इन सभी के लिए अनुवाद की भूमिका मूल्यवान है।
7. तुलनात्मक साहित्य और सामान्य ज्ञान तथा विदेशी भाषा- शिक्षण की दृष्टि से अनुवाद का महत्व — इन सभी के ज्ञानार्जन के लिए हम अनुववाद के आश्रित हैं। मानव की प्रवृत्ति होती है अधिक से अधिक ज्ञानार्जन, अधिक से अधिक जानना, अपनी जन्मजात जिज्ञासाओं के समाधान खोजना। इन सबमें अनुवाद ही हमारी सहायता करता है।
8. संचार और मीडिया में अनुवाद का योगदान- संसार की लगभग 350 भाषाओं में रेडियो, दूरदर्शन प्रसारण और पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का कार्य हो रहा है। स्पष्ट है कि फिल्मों और सीरियलों तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हम घर बैठे ही विश्व के घटनाचक्रों से, संसार की गतिविधियों से और विविध भाषाओं की कला-चेतना से परिचित हो सकते हैं। इस परिचय का सम्वाहक है— अनुवाद। इस तरह हम देखते हैं कि अनुवाद की भूमिका मानव जीवन और मानव मूल्यों के संवर्द्धन एवं संरक्षण में गुणात्मक एवं विशिष्ट है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि संसार में आज अनुवाद केन्द्रीय स्थिति में है। डॉ० जी० गोपीनाथन के शब्दों में ‘बीसवीं सदी अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सदी है और इस काल से इसे अनुवाद की शताब्दी भी कहा गया है। सम्प्रेषण के नये माध्यमों के आविष्कारों ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की उपनिषदीय कल्पना को साकार बना दिया गया है। हम इसमें और जोड़ना चाहेंगे कि आगामी इक्कीसवीं शताब्दी में समर्पित अनुवाद ही हमारे सर्वतोमुखी विकास का सोपान बनेगा।
- अनुवाद किसे कहते हैं?
- अनुवाद के प्रकार
- अनुवाद का महत्व
- पत्रकारिता का अर्थ | पत्रकारिता का स्वरूप
- समाचार शब्द का अर्थ | समाचार के तत्त्व | समाचार के प्रकार
- विश्व पत्रकारिता के उदय तथा भारत में पत्रकारिता की शुरुआत
- हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव और विकास
- टिप्पण-लेखन के विभिन्न प्रकार
- अर्द्धसरकारी पत्र का अर्थ, उपयोगिता और उदाहरण देते हुए उसका प्रारूप
You May Also Like This
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?