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अनौपचारिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं?
अनौपचारिक शिक्षा अनियमित शिक्षा कहलाती है। अनियमित शिक्षा, वह शिक्षा है जिसमें किसी निश्चित समय, पाठ्यक्रम, शिक्षण, विद्यालय, अनुशासन तथा वातावरण की आवश्यकता नहीं है। भारतीय विचारधारा के अनुसार तो शिक्षा माँ के गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाती है और मृत्यु तक चलती रहती है; जैसे-चक्रव्यूह का तोड़ना अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही सीख लिया था। व्यावहारिक रूप में हम देखते हैं कि छात्र आरम्भ में अपनी माँ से, उसके उपरान्त पिता, भाई, बहन, परिवार, पड़ोस, समाज, देश, शिक्षक तथा वातावरण आदि से अनेक तथ्यों को सीखता है। प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य की प्राप्ति निर्धारित अवधि में न होने के कारण वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में प्रदेश में ‘अनौपचारिक शिक्षा योजना’ का आरम्भ किया गया है।
जो संस्थाएँ अनौपचारिक शिक्षा का प्रबन्ध करती हैं, उन्हें अनौपचारिक संस्थाएँ कहा जाता है। अनौपचारिक शिक्षा के शाब्दिक अर्थ से स्पष्ट होता है कि जो शिक्षा औपचारिक नहीं है, अनौपचारिक कहलाती है। अनौपचारिक शिक्षा व्यावहारिक होती है और उसका सम्बन्ध मनुष्य की विशिष्ट आवश्यकताओं से होता है। अनौपचारिक शिक्षा में अनौपचारिकताओं का स्थान गौण होता है तथा अप्रधानता लिये रहता है, जबकि औपचारिक शिक्षा नियमबद्ध होती है तथा उसका विधान होता है। अनौपचारिक शिक्षा के नियम ढीले तथा लचीले रहते हैं। इसमें शिक्षा का पाठ्यक्रम, संगठन तथा व्यवस्था का अभाव रहता है। राज्य शिक्षा संस्थान के अनुसार, “अनौपचारिक शिक्षा औपचारिकता से मुक्त एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था है, जो औपचारिक शिक्षा की सीमाओं और कमियों की पूर्ति करती है।
अनौपचारिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of informal education ) –
अनौपचारिक शिक्षा की आवश्यकता अग्रलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु होती है-
(1) भावी जीवन की उन्नति तथा समृद्धि हेतु।
(2) संवैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु ।
(3) औपचारिक शिक्षा की कमियों तथा उनकी पूर्ति हेतु ।
(4) शैक्षिक स्तर के उन्नयन हेतु ।
(5) शिक्षा स्तर में गिरावट तथा छात्रों में उसके प्रति उदासीनता के समाधान हेतु।
(6) जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न कठिनाइयों के निवारण हेतु ।
उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति औपचारिक शिक्षा के द्वारा नहीं हो सकती, परम्परागत शिक्षा व्यवस्था उपयोगी सिद्ध नहीं होगी। इसी कारण आजकल अनौपचारिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है। अनौपचारिक शिक्षा अब केवल कल्पना ही नहीं, वरन् अनिवार्य आवश्यकता भी बन गयी है। भारत जैसे निर्धन देश में सभी छात्रों को औपचारिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। सभी छात्रों को शिक्षित करने के लिये न तो सरकार के पास धन है और न ही सभी अभिभावक अपने छात्रों को शिक्षा देने में समर्थ हैं। अभी तक संविधान में व्यक्त की गयी अनिवार्य सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। जो कुछ औपचारिक शिक्षा विद्यालयों में दी जाती है, वह भी अनुपयोगी सिद्ध होती है। यह शिक्षा छात्र को न तो योग्य नागरिक बनाती है और न उसे जीविका कमाने में समर्थ बनाती है। इसी कारण औपचारिक शिक्षा प्रणाली का कोई विकल्प ढूँढना ही होगा। अनौपचारिक शिक्षा ही इसका विकल्प है। यह शिक्षा औपचारिक शिक्षा के पूरक की भाँति कार्य करेगी।
अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ
अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं-
(1) अनौपचारिक शिक्षा का उद्देश्य वास्तविक तथा समयानुसार होता है। यह व्यक्ति निहित आवश्यकताओं तथा समस्याओं की जानकारी तथा उसके समाधान से सम्बन्धित होता है।
(2) यह शिक्षा व्यावहारिक होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं से होता है।
(3) इस शिक्षा का क्षेत्र सीमित होता है। अनौपचारिक शिक्षा के नियमों तथा क्रमों में लचीलापन होता है।
(4) यह शिक्षा वर्तमान पर अधिक बल देती है।
(5) इस शिक्षा के पाठ्यक्रम का उद्देश्य सीमित तथा सम-सामयिक वातावरण हेतु होता है।
(6) इस शिक्षा की शिक्षण विधियाँ, उद्देश्य एवं आवश्यकताओं के अनुरूप होती हैं।
(7) इस शिक्षा का संगठन एवं प्रशासन व्यक्ति की मूल आवश्यकताओं, समस्याओं, भौतिक साधनों की उपलब्धि एवं मानवीय साधनों की प्राप्ति हेतु होता है।
(8) अनौपचारिक शिक्षा व्यावहारिक होती है। इसका सम्बन्ध मनुष्य की प्रत्यक्ष आवश्यकताओं से होता है। अनौपचारिक शिक्षा का आधार यथार्थ होता है।
(9) इसका लक्ष्य भी विशिष्ट होता है।
(10) अनौपचारिक शिक्षा पाठ्यक्रम के चयन का मुख्य आधार आसन्न समस्याएँ होती हैं। इसी कारण इसके उद्देश्य सीमित होते हैं।
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