अर्थशास्त्र (Economics)

अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं। इनके गुण व दोषों को स्पष्ट कीजिये।

अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं। इनके गुण व दोषों को स्पष्ट कीजिये।
अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं। इनके गुण व दोषों को स्पष्ट कीजिये।

प्रश्न -अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं। इनके गुण व दोषों को स्पष्ट कीजिये।

अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं। इनके गुण व दोषों को स्पष्ट कीजिये-अप्रत्यक्ष कर वे कर हैं, जिनका भुगतान दूसरे व्यक्तियों पर टाला जा सकता है। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार के कर का आपात किसी एक व्यक्ति पर पड़ता है जो इस कर के मौद्रिक भार को अन्य व्यक्तियों के कंधे पर डाल देता है|

अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं

“डाल्टन” के अनुसार “अप्रत्यक्ष कर किसी एक व्यक्ति पर लगाया जाता है किन्तु उसका भुगतान पूर्णत: या अंशत: दूसरे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।” वस्तुओं और सेवाओं पर लगाये गये कर अप्रत्यक्ष कर होते हैं, जैसे बिक्री कर, आयात एवं निर्यात कर, इत्यादि।इन करों: करदाता वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य में कर के अनुसार वृद्धि कर इनके भार को उपभोक्ताओं पर टाल देता है|

अप्रत्यक्ष कर के गुण-

अप्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों के निम्नांकित प्रमुख गुण बतलाये जाते हैं…

(क) ये कर सुविधाजनक होते हैं-इन करों का भुगतान वस्तुओं को खरीदते समय करना होता है। चूंकि वस्तुएं एक बार बहुत बड़ी मात्रा में नहीं खरीदी जाती हैं, अतएव इस कर का भुगतान भी थोड़ा-थोड़ा करके ही किया जाता है। इससे करदाता को इस कर का भार अनुभव नहीं होता। सरकार के लिए भी यह कर सुविधाजनक होता है क्योंकि सरकार इस कर की रकम को उत्पादकों या आयातकर्ताओं से एक बार में ही वसूल कर लेती है

(ख)कर-अपवंचन-परोक्ष करों से बचना पाय: कठिन होता है क्योंकि ये वस्तु को खरीदते समस्त विक्रेता कोई दिए जाते हैं| अतः प्रत्येक खरीददार को वस्तु खरीदते समय यह कर अवश्य ही देने पड़ते हैं|

(ग) यह कर प्रत्येक नागरिक से वसूल किया जाता है-राज्य की सहायता प्रत्येक नागरिक को करनी चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए धनी और निर्धन प्रत्येक तक पहुंचने का यह कर एक अच्छा साधन है क्योंकि उन वस्तुओं को सब प्रकार के व्यक्ति खरीदते हैं जिन पर उनको कर देना पड़ता है|

(घ) यह कर लोचदार होता है-यदि यह कर अनिवार्यताओं पर लागू किया जाय, तो यह बहुत लोचदार हो सकता है। कर की दर बदलने पर इससे प्राप्त आय की मात्रा में भी घट-बढ़ करदाता वस्तुओं तथा सव पर टाल देता है। समय वस्तु विक्रेता को ही दिये जाते हैं । अतः प्रत्येक खरीददार को वस्तु खरीदते समय से अवश्य ही देने पड़ते हैं।” कर देना पड़ता है। हो जाती है, जैसे नमक कर। इसके अतिरिक्त इन करों से प्राप्त आय जनसंख्या तथा उत्पत्ति में वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती जाती है।”

(ङ) इस कर से सामाजिक लाभ प्राप्त होता है-शराब तथा अन्य मादक पदार्थों एवं विलासिताओं पर कर लागू करने से इसका उपभोग कम किया जा सकता है। इस प्रकार परोक्ष कर सामाजिक हित का एक अच्छा साधन है।

(च) कर-प्रणाली का आधार विस्तृत हो जाता है-किसी एक मद पर भारी कर सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। परन्तु परोक्ष कर का आधार विस्तृत होने से कर अनेक साधनों द्वारा प्राप्त होने से कर प्रणाली का उक्त दोष दूर हो जाता है।

अप्रत्यक्ष कर के दोष-

परोक्ष अथवा अप्रत्यक्ष करों के विरुद्ध अनेक आपत्तियाँ उठाई जाती हैं जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-

(क) ये कर कर-दान योग्यता पर आधारित नहीं होते-परोक्ष करों में धनी एवं निर्धन दोनों ही वों को कर लगी हुई वस्तु का उपभोग करने पर कर का भुगतान समान दर से करना पड़ती हैं जिससे व्यवहार में ये प्रतिगामी हो जाते हैं क्योंकि इनका भार धनिकों की अपेक्षा निर्धनों पर ही अधिक पड़ता है, अत: ये कर न्याययुक्त नहीं होते।

(ख) अप्रत्यक्ष करों से समाज में आर्थिक विषमता फैलती है-ये कर समानता के सिद्धान्त
का उल्लंघन करते हैं। ये कर प्रायः अनिवार्यताओं पर अधिक लगाये जाते हैं । चूँकि निर्धन व्यक्ति अपनी आय का अधिकांश भाग अनिवार्यताओं पर ही व्यय करते हैं । इसलिये इन्हें धनी व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक कर देना पड़ता है। इस तरह इस कर का भार धनी व्यक्तियों की अपेक्षा निर्धन व्यक्तियों पर ही अधिक पड़ता है जिससे ये कर प्रतिगामी हो जाते हैं । परन्तु कर नीति ऐसी होनी चाहिए कि समाज में धन का वितरण अधिक समान हो। अत: परोक्ष करों का यह दोष है कि ये धन के वितरण की असमानता को प्रोत्साहित करते हैं।

(ग) ये कर प्राय: अनिश्चित होते हैं-अनिवार्यताओं पर लगे कर को छोड़ कर अन्य करों से प्राप्त होने वाली आय अनिश्चित होती है, क्योंकि उन वस्तुओं पर लगे करों की दर में वृद्धि होने से उनकी माँग बहुत कम हो जाती है, जिससे सरकार की आय भी घट जाती है। इसके अतिरिक्त कर की मात्रा तथा उसके वसूल करने का समय भी सदा अनिश्चित रहता है।

(घ) इनमें मितव्ययिता नहीं रहती-इन करों को वसूल करने में खर्च बहुत अधिक होता है जबकि इनसे प्राप्त आय इतनी अधिक नहीं होती।

(ङ) उत्पादन पर बुरा प्रभाव-इन करों का उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये उपभोग को हतोत्साहित कर वस्तुओं की मांग को घटा देते हैं, अतएव इनसे उत्पादन भी कम होता है।

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shubham yadav

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