अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक बताइये।
अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक का उल्लेख निम्नलिखित है –
1. प्रोत्साहन-छात्रों के व्यवहार को उत्तेजित एवं निर्देशित करने के लिए प्रोत्साहन का विशेष महत्त्व होता है। प्रशंसा व निन्दा, प्रोत्साहन के अन्तर्गत प्रयुक्त किये जाने वाले प्रमुख कारक होते हैं। इनके माध्यम से बालकों को वांछित लक्ष्य की दिशा में प्रोत्साहित किया जा सकता है। छात्रों के शैक्षणिक निष्पत्ति अधिगम या व्यवहार परिवर्तनों पर इन कारकों का समुचित प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त बालकों के गृहकार्य का सही मूल्यांकन, उनमें प्रतियोगिता की भावना का विकास अथवा अपेक्षा के अनुरूप उपलब्धि आदि भी प्रोत्साहन सम्बन्धी अभिप्रेरकों में शामिल किये जाते हैं। प्रोत्साहन एक प्रकार से वह लक्ष्य होता है, जिसकी दिशा में बालक का अग्रसरित होना होता है। यह लक्ष्य जब बालक को सतत् रूप से गति प्रदान करने में सहायक होता है तो इसे प्रोत्साहन की संज्ञा दी जाती है।
2. जागरूकता-शिक्षार्थियों को सुनिर्धारित व्यवहार की दिशा में अग्रसर करने के लिये जागरूकता महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। छात्रों में जागरूकता होने पर वे शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में अबाध गति से भाग ले सकते हैं। बालकों के विकास एवं शैक्षणिक उपलब्धियों को भी जागरूकता प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। शिक्षार्थी इस स्थिति में सावधान रहकर लगातार सक्रिय रहता है, जिससे उसके विकास की संभावनाओं में वृद्धि होती है। जागरूकता के तीन स्तर होते हैं
(i) उच्च स्तर की जागरूकता, (ii) मध्यम स्तर की जागरूकता, (iii) निम्न स्तर की जागरूकता।
उच्च स्तर की जागरूकता में छात्र लक्ष्य की दिशा में चिन्तामग्न दिखाई देता है। मध्यम एवं नितान्त स्तर की जागरूकता में निद्रा अथवा सचेत अवस्था में दिखाई देता है। जागरूकता के दो प्रमुख स्रोत होते हैं
(i) आंतरिक स्रोत,
(ii) बाह्य स्रोत।
आन्तरिक स्रोत के अन्तर्गत छात्रों की अभिवृत्तियों, आकांक्षाओं तथा विचार आदि होते हैं तथा बाह्य पर्यावरण से प्राप्त होने वाले उद्दीपन जागरूकता के बाह्य स्रोत कहलाते हैं। शिक्षालय में शिक्षण के मध्य अध्यापक को शिक्षार्थियों में मध्यम स्तर की जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिये।
3.आकांक्षा-शिक्षार्थियों की कोई भी क्रिया उद्देश्यहीन नहीं होती। उद्देश्य की दिशा में छात्रों के व्यवहार का स्वरूप, योग्यता तथा ज्ञानार्जन पर आधारित होता है। निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने की समस्त छात्रों की गति अलग-अलग होती है, क्योंकि उनकी आकांक्षा अलग-अलग होती है। जिस बालक में जितनी उच्चाकांक्षा होगी, वह उतनी ही शीघ्र अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करेगा। जागरूकता पर आकांक्षा, अवधान, रुचि, गति आदि का परोक्ष प्रभाव पड़ता है। आकांक्षा को विभिन्न प्रेरकों के द्वारा सबल बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त लक्ष्य की स्पष्टता, बालक की योग्यता, क्षमता तथा प्रगति के लगातार वस्तुनिष्ठ ज्ञान से भी आकांक्षा उत्पन्न होती है।
4. दण्ड-शिक्षार्थियों द्वारा असामाजिक व्यवहार करने तथा अनुशासनहीनता की स्थिति में उन्हे दण्डित किया जाता है। ऐसी स्थिति में दण्ड का प्रयोग अत्यन्त प्रभावी सिद्ध होता है, क्योंकि कष्ट से बचने या दर्द की अनुभूति से बचने के लिये छात्र वांछनीय व्यवहार की दशा में अग्रसरित होने लगता है। शिक्षार्थियों को मात्र असामाजिक व्यवहार करने पर, उचित समय पर, उचित मात्रा में दण्ड देना चाहिये। दण्ड देते समय उनकी आयु, बुद्धि एवं संवेगों को भी ध्यान में रखना चाहिये। दण्ड देते समय शिक्षक को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिये-
(i) अवांछनीय अथवा असामाजिक व्यवहार करने पर ही छात्रों को दण्ड देना चाहिये, अन्यथा उनमें कुण्ठा, तनाव, भय विकसित हो जायेगा।
(ii) शिक्षार्थियों के असामाजिक व्यवहार की निन्दा तथा अच्छे व्यवहार की प्रशंसा करनी
चाहिये।
(iii) दण्ड देते समय, बालकों को दण्ड देने के कारण भी बताने चाहिये।
(iv) दण्ड तत्काल तथा दूसरों के सामने देना चाहिये।
5. आवश्यकतायें-आवश्यकता को आविष्कार की जननी माना जाता है, व्यक्ति कोई भी कार्य आवश्यकता के कारण ही करता है। यही प्रवृत्ति बालक में होती है। अत: शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वह छात्रों को पाठ्य-वस्तु की आवश्यकता का अनुभव कराये।
6. संवेगात्मक स्थिति-संवेगात्मक स्थिति भी अभिप्रेरणा को प्रभावित करती है। इसलिए शिक्षक के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि वह छात्रों की संवेगात्मक स्थिति का पूर्णरूप से ध्यान रखे तथा शिक्षक को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिये कि वह जो भी ज्ञान छात्रों को प्रदान कर रहा है, उस ज्ञान के प्रति घृणा न हो, क्योंकि अधिगमित ज्ञान के साथ छात्र का संवेगात्मक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। ज्ञान के साथ संवेगात्मक सम्बन्ध स्थापित हो जाने पर छात्र सहजता से प्रेरणा प्राप्त कर सकता है।
7. प्रगति का ज्ञान-प्रगति का ज्ञान भी छात्रों को अभिप्रेरित करने में सहायक होता है, इसलिये समय-समय पर उन्हें उनकी प्रगति से अवगत कराना चाहिये जिससे छात्र सक्रिय होकर अधिकाधिक ज्ञान प्राप्त कर सकें।
8. प्रतियोगिता–छात्रों में सामान्यत: प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा की भावना पाई जाती है। अत: शिक्षक बालकों को प्रतियोगिता के द्वारा नवीन ज्ञानार्जन की प्रेरणा प्रदान कर सकता है। वह दो प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित कर सकता है
(i) वैयक्तिक प्रतियोगिता, तथा (ii) सामूहिक प्रतियोगिता।
इन कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारक भी हैं – शिक्षालयी वातावरण, परिचर्या में सम्मेलन, रुचि, आदतें आदि जो अभिप्रेरणा को प्रभावित करते हैं।
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