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अवलोकन का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, उपयोगिता, दोष अथवा सीमाएँ

अवलोकन का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, उपयोगिता, दोष अथवा सीमाएँ
अवलोकन का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ, उपयोगिता, दोष अथवा सीमाएँ

अवलोकन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Observation)

आर्थिक अनुसंधानों हेतु निरीक्षण पद्धति का प्रयोग महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। निरीक्षण शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Observation’ का पर्यायवाची है, जिसका अर्थ होता है ‘देखना ‘ ‘अवलोकन करना’, ‘निरीक्षण करना’ आदि किन्तु सामाजिक अध्ययन की एक व्यवस्थित पद्धति के रूप में निरीक्षण का एक अपना पृथक् ही अर्थ होता है। यदि संक्षेप में कहा जाये तो निरीक्षण का अर्थ है ‘कार्य-कारण’ अथवा ‘पारस्परिक सम्बन्ध को जानने के लिए स्वाभाविक रूप से घटित होने वाली घटनाओं का सूक्ष्म निरीक्षण ।’

डॉ. पी. वी. यंग के द्वारा “निरीक्षण को नेत्रों द्वारा सामूहिक व्यवहार एवं जटिल सामाजिक संस्थाओं के साथ-ही-साथ सम्पूर्णता की रचना करने वाली पृथक् इकाइयों के अध्ययन की विचारपूर्ण पद्धति के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है ।”

प्रो. सी. ओ. मोजर ने निरीक्षण के बारे में कहा है कि ‘ठोस अर्थ में निरीक्षण में कानों तथा वाली की अपेक्षा आँखों के प्रयोग की स्वतन्त्रता है।”

कुर्ट लेविन (Kurt Lewen) के अनुसार, “सभी प्रकार के अवलोकन, अन्ततः विशेष घटनाओं का विशेष समूहों में वर्गीकरण होते हैं। वैज्ञानिक विश्वसनीयता, सही प्रत्यक्षीकरण और वर्गीकरण पर आधारित है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट ही है कि एक निरीक्षण प्रविधि प्राथमिक सामग्री (Primary data) के संग्रहण की प्रत्यक्ष प्रविधि है। निरीक्षण का तात्पर्य उस प्रविधि से है जिसमें नेत्रों द्वारा नवीन अथवा प्राथमिक तथ्यों का विचारपूर्वक संकलन किया जाता हो, साथ ही इस प्रविधि में अनुसंधानकर्ता अध्ययन के अन्तर्गत आये समूह के दैनिक जीवन में भाग लेते हुए अथवा उससे दूर बैठकर उनके सामाजिक एवं व्यक्तिगत व्यवहारों का अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा निरीक्षण करता है।

अवलोकन प्रविधि की विशेषताएँ (Characteristics of Observation Technique)

उपर्युक्त लिखी परिभाषाओं के आधार पर निरीक्षण प्रविधि की कुछ प्रमुख विशेषताएँ जो निम्नलिखित हैं-

(1) मानवीय इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग- निरीक्षण प्रविधि में मानवीय ज्ञान इन्द्रियों का पूर्ण उपयोग होता है। यद्यपि निरीक्षण में हम कानों एवं वाक्शक्ति का भी प्रयोग करते हैं, परन्तु इनका उपयोग अपेक्षाकृत कम होता है। इसमें विशेषकर नेत्रों के प्रयोग पर ही अधिक महत्त्व दिया जाता है। निरीक्षणकर्त्ता जो भी कुछ देखता है, वही संकलित कर लेता है।

(2) प्रत्यक्ष अध्ययन – निरीक्षण प्रविधि की एक विशेषता यह है कि इसमें प्रत्यक्ष अध्ययन किया जाता है। अनुसंधानकर्त्ता स्वयं ही अनुसंधान क्षेत्र में जाता है, निरीक्षण करता है और आँकड़ों का संकलन करता है। यही प्रत्यक्ष अध्ययन है।

(3) उद्देश्यपूर्ण एवं सूक्ष्म अध्ययन- निरीक्षण प्रविधि में निरीक्षण सदैव ही उद्देश्यपूर्ण एवं सूक्ष्म होता है। इस रूप से यह सामान्य निरीक्षण से भिन्न हैं। प्रत्येक मनुष्य हर समय सदैव ही कुछ-न-कुछ देखता रहता है, परन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे निरीक्षण नहीं कहा जा सकता। निरीक्षण का तो एक विशेष उद्देश्य होता है, इसलिए वह अति सूक्ष्म एवं गहन भी होता है। अनेक प्रकार की सामाजिक व सांस्कृतिक घटनाएँ तो सभी मानवों के समक्ष घटित होती ही हैं परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि एक सामाजिक वैज्ञानिक उसमें से अपने सिद्धान्त निकाल लेता है, जबकि दूसरे को उसमें कोई विशेषता दिखाई नहीं पड़ती है।

(4) सामूहिक व्यवहारों का अध्ययन (Study of the collective behaviour)- निरीक्षण प्रविधि की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस प्रविधि का प्रयोग ‘सामूहिक व्यवहार’ के अध्ययन के लिए किया जाता है। ‘वैयक्तिक व्यवहार’ की जिस प्रकार सबसे अच्छी प्रविधि ‘वैयक्तिक अध्ययन’ (case study) है, उसी प्रकार सामूहिक व्यवहार के अध्ययन की सबसे उत्तम प्रविधि ‘निरीक्षण प्रविधि’ है।

(5) स्पारिक एवं कार्य-करण सम्बन्ध का पता लगाना- निरीक्षण प्रविधि की अन्तिम विशेषता यह है कि इसका उद्देश्य ‘पारस्परिक एवं कार्य-करण सम्बन्धों का पता लगाना है। यद्यपि किसी भी प्रकार के गहन या उद्देश्यपूर्ण निरीक्षण को हम ‘निरीक्षण’ कह सकते हैं, परन्तु वैज्ञानिक पद्धति के रूप में इसका उद्देश्य कार्य-करण सम्बन्ध का पता लगाना होता है।

सहभागी और असहभागी निरीक्षण में अन्तर (Distinction between Participant and Non-participant Observation)

सहभागी और असहभागी निरीक्षण की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर हम इन दोनों में निम्नलिखित अन्तरों का उल्लेख कर सकते हैं-

(1) सहभागी निरीक्षण निरीक्षण का वह प्रकार है जिसमें अनुसंधानकर्त्ता स्वयं उस समुदाय में जाकर बस जाता है जिसका कि उसे अध्ययन करना है। इसके ठीक विपरीत असहभागी निरीक्षण में अवलोकनकर्त्ता उस समुदाय में जाकर बस नहीं जाता। अपितु कभी-कभी आवश्यकता अनुसार वहाँ जाकर एक तटस्थ दर्शक के रूप में निरीक्षण करता है।

(2) सहभागी निरीक्षण में अनुसंधानकर्त्ता न जाकर उस समुदाय में बस जाता है बल्कि उसकी एक आवश्यक इकाई बन जाता है और उस रूप में समुदाय के समस्त क्रिया-कलापों, उत्सवों आदि में भाग लेता है परन्तु असहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्त्ता एक बाहरी आदमी है ( an outsider) ही बना रहता है और समुदाय के क्रियाकलापों में प्रत्यक्ष भाग नहीं लेता।

(3) सहभागी निरीक्षण के द्वारा एक समुदाय या समूह के गुप्त पक्षों के सम्बन्धों में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है जबकि असहयोगी निरीक्षण में निरीक्षणकर्ता एक अजनबी के होने के कारण सभी गुप्त पक्ष उसके लिए गुप्त रह जाते हैं।

(4) सहभागी निरीक्षण में समुदाय के जीवन के गहरे स्तर तक पहुँचकर उसका गहन आन्तरिक तथा सूक्ष्म अध्ययन करना सम्भव है इसके विपरीत असहभागी निरीक्षण के द्वारा सामुदायिक जीवन के केवल बाहरी पक्षों अर्थात् ऊपर ही ऊपर दिखाई देने वाली घटनाओं का ही अध्ययन किया जा सकता है।

(5) सहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्त्ता स्वयं ही विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में बार-बार भाग लेता है। अतः संकलित सूचनाओं की शुद्धता की परीक्षा करने का अवसर उसे कई बार मिलता है। असहभागी निरीक्षण में निरीक्षणकर्त्ता कभी-कभी समुदाय में बस जाता है। अतः सूचनाओं की शुद्धता की परीक्षा करने का अधिक अवसर उसे नहीं मिलता।

(6) सहभागी निरीक्षण प्रविधि अत्यधिक खर्चीली है और साथ ही अधिक समय खर्च करने वाली है क्योंकि अनुसंधानकर्ता को कई महीने और कभी-कभी कई साल तक उस समुदाय में जाकर रहना पड़ता है। असहभागी निरीक्षण में कम समय और कम धन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि अनुसंधानकर्ता को निरीक्षण करने के लिए कभी-कभी समुदाय में जाना पड़ता है।

अवलोकन की उपयोगिता (Utility of Observation )

अवलोकन प्रविधि का निम्न कारणों से सामाजिक अनुसंधान में अधिक प्रयोग हो रहा है-

(1) प्रत्यक्ष अध्ययन- अवलोकन में अध्ययनकर्ता घटना स्थल एवं घटनाओं को स्वयं देखकर तथ्यों को वास्तविक रूप में संकलित करता है। इसे ही प्रत्यक्ष अध्ययन कहते हैं।

(2) मानव इन्द्रियाँ (विशेषकर नेत्रों) का प्रयोग- इस प्रणाली में विशेष रूप से नेत्रों का प्रयोग किया जाता है जो कुछ दिखाई, सुनाई देता है अथवा अनुभव होता है उसे संकलित किया जाता है।

(3) विश्वसनीय आँकड़े- मोजर के शब्दों में, “व्यक्तियों की दैनिक जीवन की क्रियाओं का अवलोकन करके समाजशास्त्री उन तथ्यों को प्राप्त कर सकता है जिन्हें दूसरे किसी स्रोत से विश्वसनीय ढंग से प्राप्त करना कठिन होता है। आँख से स्वयं देखी बातें सत्य एवं विश्वसनीय तथा दूसरे के मुँह से सुनी बातें असत्य हो सकती हैं।

(4) गहन अध्ययन– उद्देश्य निश्चित होने से सर्वेक्षणकर्त्ता सोच-विचारकर, जो कुछ उसे दिखाई देता है, सभी सत्य संकलित करता है जिनके द्वारा गहन अध्ययन सम्भव है।

(5) प्राथमिक सामग्री–अवलोकन में अध्ययनकर्ता घटनास्थल पर जाकर सभी सामग्री साक्षात्कार, अनुसूची आदि द्वारा स्वयं संकलित करता है। यह सूचनाएँ पहले से संकलित रूप में प्राप्त नहीं होती हैं।

(6) पारस्परिक व कार्यकारण सम्बन्धों की जानकारी- अवलोकन पद्धति में कारणों का हम पता लगाते हैं। इन कारणों और परिणामों में हम सह-सम्बन्ध स्थापित करते हैं। अवलोकन प्रणाली घटनाओं की विभिन्नताओं, समानताओं, उत्पन्न करने वाले कारणों में सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करती है।

(7) वैज्ञानिक पद्धति- इस पद्धति में वैज्ञानिक यन्त्रों, कैमरे, टेपरिकार्ड आदि का प्रयोग होता है। मोजर के शब्दों में, “अवलोकन को वैज्ञानिक खोज की एक अत्यन्त उच्च कोटि की विधि कहा जा सकता है।”

(8) सामूहिक व्यवहार- इससे सम्पूर्ण समूह को देखकर जानकारी प्राप्त करते हैं।

(9) सरलता – मनुष्य को देखने से ही प्राथमिकता का ज्ञान होता है। एक सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति भी अपने नेत्रों से किसी भी घटना का अवलोकन कर सकता है। इस पद्धति को सीखने की जरूरत नहीं होती।

(10) प्राक्कल्पना निर्माण में सहायक- अनुसंधानकर्ता के लगातार विभिन्न घटनाओं का निरीक्षण (अवलोकन) करते रहने से उसके अनुभव में वृद्धि हो जाती है। इन अनुभवों के कारण ही वह नई-नई अनेक प्राक्कल्पनाओं को बनाता है।

(11) सर्वाधिक प्रचलित पद्धति- सभी विज्ञानों में इसका प्रयोग होने से यह विधि बहुत प्रचलित एवं परिमार्जित हो गई है।

अवलोकन के दोष अथवा सीमाएँ (Demerits or Limitations of Observation)

अवलोकन प्रविधि में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-

(1) व्यवहार में कृत्रिमता– जब अवलोकन किये जाने वाले समूह को यह ज्ञात होता है कि उनकी क्रियाओं एवं व्यवहार का अध्ययन किया जा रहा है तो वह बनावटीपन ले जाते हैं। थॉमस, जहोदा एवं कुक ने भी इस ओर संकेत किया है।

(2) अमूर्त तथ्यों का अवलोकन सम्भव नहीं— अमूर्त तथ्य (विचार, संवेग, प्रवृत्तियाँ, भावनाएँ) आदि दिखाई नहीं देते हैं जिससे उन्हें अवलोकित नहीं किया जा सकता है।

(3) मन्द गति तथा खर्चीली- अवलोकन में घटना को प्रत्यक्ष देखकर अध्ययन करते हैं। घटना तब अध्ययन हो। अतः समय अधिक लगता है जिससे धन व शक्ति अधिक व्यर्थ जाती है तथा प्रगति भी धीरे-धीरे होती है।

(4) घटना का निरीक्षण के अयोग्य होना- बहुत-सी जीवन की क्रियाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें कर्त्ता किसी अजनबी को अवलोकित करने की आज्ञा नहीं दे सकता। जैसे प्रेमी-प्रेमिका का प्रेमालाप, विवाहित सम्बन्धों का अवलोकन आदि ।

(5) अवलोकनकर्त्ता की अनुपस्थिति- सामाजिक घटनाओं का समय प्रायः निश्चित नहीं होता है। प्रायः घटनाएँ उस समय घटती हैं जबकि अवलोकनकर्ता अनुपस्थित रहता है। जैसे पति-पत्नी का झगड़ा, कोई नहीं कह सकता कि कब ये लड़ पड़ेंगे ?

(6) अवलोकनकर्त्ता का पक्षपात- हर वस्तु को विभिन्न अवलोकनकर्ता अपने-अपने दृष्टिकोण से देखते हैं। पैतृक मूल्यों व आदर्शों का प्रत्येक व्यक्ति पर तथा इनका उसके अध्ययन पर प्रभाव पड़ता है। वह बहुत-सी सूचनाएँ बेकार समझकर छोड़ देता है। अतः पक्षपात विचार आदि अवलोकनकर्त्ता अपने अध्ययन में समाविष्ट कर लेता है ।

(7) विश्वसनीयता का अभाव– प्रत्येक अवलोकनकर्त्ता अपनी प्रिय घटना का अध्ययन करता है ज्ञानेन्द्रियाँ कभी-कभी भ्रमात्मक निष्कर्ष देती हैं। पी. वी. यंग के शब्दों में, “विशिष्ट नाटकीय और रुचिकर कारकों की ओर आकर्षित होना सरल है ।”

अतः स्पष्ट है कि अवलोकन विधि ही पूर्ण नहीं है। इसके साथ प्रविधि की अन्य प्रणालियों का प्रयोग करना चाहिए। अवलोकन प्रणाली के दोषों को पी. वी. यंग ने इस प्रकार स्पष्ट किया है, “समस्त घटनाएँ अवलोकनीय नहीं होती हैं । अवलोकन योग्य सभी घटनाओं के समय अवलोकनकर्त्ता उपस्थित नहीं हो पाता तथा सभी घटनाओं का अवलोकन पद्धतियों द्वारा अध्ययन सम्भव नहीं होता।”

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shubham yadav

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