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आनुभविक अनुसन्धान से आप क्या समझते हैं ?
आनुभविक अनुसंधान – अनुभववाद, अध्ययन का वह दृष्टिकोण है जिसके अनुसार यह माना जाता है कि मानवीय ज्ञान की सम्पूर्ण शाखायें प्रत्यक्ष अनुभव से ही विकसित हुई हैं अर्थात् जिस ज्ञान को आनुभाविक पद्धति द्वारा प्राप्त किया जाता है, वही अनुभववाद है। अंग्रेजी भाषा का Empirical शब्द लैटिन भाषा के शब्द Empiricus से बना है, जिसका अर्थ है, स्वयं द्वारा किया गया अनुभव। इसका अभिप्राय यह है कि आनुभाविक पद्धति अध्ययन की वह पद्धति है जो सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के लिए दूसरे व्यक्तियों द्वारा किये गये अनुभव अथवा उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों को स्वीकार नहीं करती अपितु व्यक्ति द्वारा स्वयं के अनुभवों को महत्व देती है। एक अध्ययनकर्त्ता जब अध्ययन विषय से सम्बन्धित तथ्यों का स्वयं अवलोकन करता है या अध्ययन विषय से सम्बद्ध तथ्यों को स्वयं एकत्रित करके उनके आधार पर सामान्य निष्कर्ष प्राप्त करता है तो उसे आनुभविक अनुसन्धान कहते हैं।
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आनुभाविक अनुसंधान का आधार निगमन प्रणाली की सहायता से सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत करना है। निगमन पद्धति में हम सामान्य से विशिष्ट की ओर चलकर निष्कर्ष प्राप्त करते हैं। उदाहरण – यदि हम यह प्राकृल्पना बना लें कि मानसिक तनाव वैयक्तिक जीवन को विघटित करते हैं और पुनः यह देखें कि मानसिक तनावों के कारण ही श्याम का व्यक्तित्व विघटित हुआ तथा मानसिक तनावों के कारण ही राम ने आत्महत्या कर ली, तब इस विधि को निगमन विधि कहेंगे। इसका तात्पर्य यह है कि जिन नियमों की प्रमाणिकता अनुभव के आधार पर सिद्ध की जाती है, वह आनुभाविक अनुसन्धान या निगमन विधि पर आधारित अनुसंधान होता है। जनजातियों और अनेक अन्य समुदायों में अनेक ऐसे विश्वासों एवं व्यवहार के तरीकों का प्रचलन है जिसकी विवेचना न तो तर्क के आधार पर की जा सकती है और न ही उनसे सम्बन्धित कोई निश्चित सिद्धान्त बनाये जा सकते हैं। इसके उपरान्त भी ऐसे समुदायों को सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था में इन विश्वासों तथा व्यवहार के तरीकों का एक विशिष्ट महत्व है। आनुभाविक अनुसन्धान के द्वारा इन विश्वासों के अर्थ और प्रकार्यों को सरलता से स्पष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि आनुभाविक अनुसन्धान तर्कवाद अथवा सैद्धान्तिकरण का विरोधी है। यह उन्हीं तथ्यों या नियमों को वैज्ञानिक मानता है जो इन्द्रियजनित अनुभव पर आधारित होते हैं। आनुभाविक अनुसन्धान किसी तथ्य की परम्परागत अवधारणा में भी विश्वास नहीं करता अपितु अनुभव के आधार पर प्राप्त किये जाने वाले अर्थों को अधिक महत्व देता है। इस प्रकार का अनुसंधान कार्य क्षेत्र से प्राप्त किये गये तथ्यों की व्यवस्थित गणना तथा उनके आधार पर दिये गये तथ्यों के सहसम्बन्ध को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानता है।
आनुभविक अनुसंधान के प्रकार (Type of Empirical Research)
काप्लान के अनुसार आनुभाविक अनुसंधान को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है – अर्थपूर्ण अनुभववाद तथा बोधपूर्ण अनुभववाद।
1. अर्थपूर्ण अनुभववाद (Semantic Empiricism )- अर्थपूर्ण अनुभववाद इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा प्राप्त किये गये ज्ञान को उसके वास्तविक अर्थ के सन्दर्भ में ही स्पष्ट किया जा सकता है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि हम किसी प्राक्कल्पना या अवधारणा की सत्यता को समझना चाहते हैं, तो अनुभव के द्वारा यह जानना जरूरी है कि उस विषय से सम्बन्धित क्रिया अथवा व्यवहार का किस अर्थ में प्रयोग किया जा रहा है। अनुसंधान के इस प्रकार को सर्वप्रथम मैक्स वेबर ने व्याख्यात्मक बोध के नाम से सम्बोधित किया था। वेबर के अनुसार एक विशेष सामाजिक क्रिया अथवा व्यवहार में कर्त्ता के दृष्टिकोण के अनुसार जो अर्थ और प्रयोजन निहित होता है तथा उसे जान-समझकर ही कोई सामाजशास्त्रीय अनुसन्धान किया जा सकता है अर्थात् कोई व्यवहार जिन मूल्यों और अर्थों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, सामाजिक तथ्यों का विश्लेषण उन्हीं के सन्दर्भ में करना सम्भव है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अर्थपूर्ण अनुभववाद, विभिन्न तथ्यों के अर्थ के आधार पर घटनाओं के सत्यापन को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानता है। इस दृष्टि से विभिन्न अवधारणाओं को सिद्धान्तों के सन्दर्भ में नहीं अपितु क्रियाओं और व्यवहारों के अर्थ के सन्दर्भ में समझना आवश्यक है। इससे अध्ययनकर्त्ता का दृष्टिकोण अधिक व्यावहारिक और अर्थपूर्ण बन सकता है। वास्तविकता यह है कि किसी भी क्रिया का वास्तविक अर्थ उसके सामान्य अर्थ से भिन्न हो सकता है। ऐसी अवस्था में किसी क्रिया या व्यवहार के निहित अर्थ के आधार पर ही उसकी सत्यता सम्भव है। अर्थपूर्ण अनुसन्धान इस बात में विश्वास नहीं करता कि एक विशेष प्रकार के व्यवहार का जन्म किस प्रकार हुआ यह विभिन्न सामाजिक घटनाओं के परिणामों को समझने पर अधिक बल देता है।
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2. बोधपूर्ण अनुभववाद (Epistemic Empiricism)- बोधपूर्ण अनुभववाद को ज्ञानात्मक अनुभववाद भी कहा जाता है। सभी सामाजिक अनुसन्धान सामाजिक तथ्यों से संबंधित ज्ञान अर्जित करने के लिये किये जाते हैं। ज्ञान प्राप्त करने का आधार सामाजिक घटनाओं या तथ्यों का वैज्ञानिक बोध है। बोध पर आधारित आनुभाविक अनुसंधान यह मानता है कि प्रत्यक्ष अनुभव की सहायता से ही सामाजिक वास्तविकताओं को समझा जा सकता है। इस प्रकार का अनुसन्धान निगमन पद्धति पर आधारित होता है। अर्थात् जब हम किसी प्राक्कल्पना अथवा प्रतिस्थापना की सत्यता को विभिन्न घटनाओं अथवा तथ्यों के आधार पर समझने का प्रयत्न करते हैं, तब इससे सम्बन्धित सामान्यीकरण, तार्किक सामान्यीकरण की तुलना में अधिक अर्थपूर्ण और वैज्ञानिक होता है। उदाहरण अपराध के कारणों को स्पष्ट करने के लिए। सिद्धान्तों के रूप में बहुत सी ऐसी व्याख्यायें दी गई है, जो बाहरी तौर पर बहुत अधिक प्रतीत होती है। इसके विरुद्ध अपराधियों के मध्य रहकर जब आनुभाविक आधार पर उनके अपराधी व्यवहार के कारणों को ज्ञात किया गया, तो अपराधी प्रवृत्ति और अपराधी व्यवहार के कारण सम्बन्धी नवीन अर्थ स्पष्ट होने लगे। यही कारण है कि आज अपराधी व्यवहार के बारे में समाज वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण में विस्तृत बदलाव हुआ है।
आनुभाविक अनुसंधान की उपयोगिता या महत्व (Utility or Importance of Empirical Research)
आज बहुत से समाजशास्त्री यह मानने लगे हैं कि मौलिक या विशुद्ध अनुसंधान की अपेक्षा आनुभाविक अनुसंधान अधिक उपयोगी है। विभिन्न क्षेत्रों में आनुभाविक अनुसंधान की उपयोगिता अथवा महत्व को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-
1. इस विधि के द्वारा गुणात्मक सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करना सम्भव है। आनुभाविक अनुसंन्धान द्वारा जो तथ्य प्राप्त किये जाते हैं, मनोवृत्ति मापक पैमानों के द्वारा उनसे संबंधित संख्यात्मक निष्कर्ष देना सम्भव है। इसका अर्थ यह है कि आनुभाविक अनुसंधान की सहायता से किसी विषय से सम्बद्ध व्यक्तियों की मनोवृत्तियों को सरलता से समझा जा सकता है।
2. इस अनुसंन्धान के माध्यम से अध्ययन विषय से सम्बद्ध अर्थपूर्ण अवधारणाओं का विकास किया जा सकता है। इन्हीं के माध्यम से अध्ययन के निष्कर्षो को सही ढंग से समझा जा सकता है। जब आनुभाविक आधार पर एक विशेष क्रिया या तथ्य को समझकर उनके निहित अर्थों के आधार पर अवधारणायें प्रस्तुत की जाती है, तो वे अधिक स्पष्ट और व्यावहारिक होती हैं।
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3. वर्तमान में समाजशास्त्र की एक नवीन शाखा का विकास हुआ है जिसे क्रियात्मक समाजशास्त्र कहते हैं। इसका उद्देश्य उन प्रवृत्तियों और नियमों को ज्ञात करना है जिनकी सहायता से सरकार और प्रशासन द्वारा समाज कल्याण के लिये व्यावहारिक नीतियाँ बनायी जा सकें। आनुभाविक अनुसन्धान क्रियात्मक समाजशास्त्र का आधार है। इसका कारण यह है कि प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित ज्ञान ही किसी विशेष समूह की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को स्पष्ट कर सकता है।
4. आनुभाविक अनुसन्धान पर आधारित तथ्य अधिक वैज्ञानिक और विश्वसनीय होते हैं। इस विधि पर आधारित अनुसन्धान में अनुमान या प्राक्कल्पना का कोई स्थान नहीं होता।
5. आनुभाविक अनुसन्धान प्राक्कल्पनाओं का सत्यापन करने के क्षेत्र में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। जब तार्किक आधार पर किसी सिद्धान्त अथवा अवधारणा का निर्माण किया जाता है, तब तर्क के आधार पर ही उसे स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है। आनुभाविक अनुसंधान में किसी निष्कर्ष को तब तक प्रमाणिक नहीं माना जाता, जब तक कि अनुभवों पर आधारित तथ्यों के आधार पर वह प्रमाणित न हो जाए।
6. यह मानी हुई बात है कि सामाजिक घटनाओं की प्रकृति परिवर्तनशील होती है। इस अवस्था में तर्क पर आधारित सिद्धान्तों के द्वारा सामाजिक घटनाओं की परिवर्तित प्रकृति को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। आनुभाविक अनुसंधान पर आधारित निष्कर्ष एक विशेष समय के सन्दर्भ में अधिक व्यावहारिक होते हैं।
7. जब एक अध्ययनकर्त्ता प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा तथ्यों को संकलित करता है, तब किसी भी व्यक्ति के द्वारा उसकी सत्यता की पुनर्परीक्षा की जा सकती है। इस तरह अनुभववाद की सहायता से वैयक्तिक पक्षपात की सम्भावना को दूर करना अधिक सरल है।
आनुभाविक अनुसन्धान के दोष (Demerits of Empirical Research) –
1. सामाजिक जीवन से सम्बन्धित अनेक अध्ययन विषय इस प्रकार के होते हैं जिनका सम्बन्ध एक बहुत बड़े क्षेत्र से होता है। एक बड़े क्षेत्र में वैयक्तिक अनुभव के द्वारा अध्ययन से सम्बन्धित सभी तथ्यों को समझना बहुत कठिन होता है। इसका अर्थ है कि आनुभाविक अनुसन्धान का प्रयोग एक सीमित क्षेत्र से सम्बन्धित अध्ययन विषय के लिए ही किया जा सकता है।
2. आनुभाविक अनुसन्धान घटनाओं के प्रत्यक्ष अनुभव पर बल देता है। इस तरह के अध्ययन कुछ वैयक्तिक अध्ययनकर्त्ताओं द्वारा किये जाते हैं। यदि अध्ययनकर्त्ता, कुछ व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो, तो उसके द्वारा प्राप्त तथ्यों की प्रमाणिकता को जान सकना अत्यन्त कठिन हो जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि आनुभाविक अनुसंधान में व्यक्तिनिष्ठता की सम्भावना अधिक रहती है।
3. आनुभाविक अनुसन्धान के आधार पर वैज्ञानिक निष्कर्ष तभी दिया जा सकता है जब अध्ययनकर्ता पूरी तरह प्रशिक्षित हों और उनमें तथ्यों के संकलन और निरीक्षण की योग्यता हो। सामान्यतया अधिकतर अध्ययनकर्ताओं में इन गुणों का अभाव होता है।
4. सामाजिक शोध से सम्बन्धित बहुत से तथ्य इस प्रकार के होते है जिनका प्रतयक्ष निरीक्षण करना अत्यन्त कठिन होता है। ऐसी अवस्था में अनेक तथ्यों की विवेचना में तर्क और बुद्धि का प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि आनुभाविक अनुसन्धान पूर्णतः तार्किक पद्धति से स्वतंत्र नहीं हो सकता है।
5. आनुभाविक अनुसंधान की एक बड़ी कमी उत्तरदाताओं द्वारा अध्ययनकर्त्ता को असत्य सूचनायें देना है। एक अध्ययनकर्त्ता की दृष्टि चाहे कितनी भी वैज्ञानिक हो, वह जब अध्ययन विषय से सम्बन्धित लोगों के व्यवहारों का अध्ययन करता है, तो अधिकतर लोगों का व्यवहार बनावटी हो जाते हैं। उनके व्यवहारों में स्वाभाविकता न होने के कारण उन पर आधारित निष्कर्षों के असत्य होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
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