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एक न्यायालय किसी अन्य न्यायालय को कब अन्तरित कर सकता है?

एक न्यायालय किसी अन्य न्यायालय को कब अन्तरित कर सकता है?
एक न्यायालय किसी अन्य न्यायालय को कब अन्तरित कर सकता है?

अन्तरित न्यायालय के अधिकार

अन्तरित न्यायालय के अधिकार – सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 38 इस बात का प्रावधान करती है कि डिक्री या तो उस न्यायालय द्वारा निष्पादित की जायेगी जिसने डिक्री पारित किया है या उस न्यायालय द्वारा जिसे डिक्री निष्पादन के लिये भेजी जायेगी परन्तु ऐसा न्यायालय सक्षम अधिकारिता वाला न्यायालय होना चाहिये। धारा 39 इस बात को उपबन्धित करती है कि किन परिस्थितियों में डिक्री दूसरे न्यायालय में निष्पादन के लिये भेजी जायेगी।

धारा 39 डिक्री का अन्तरण

(1) डिक्री पारित करने वाला न्यायालय डिक्रीकार के आवेदन उसे (सक्षम अधिकारिता वाले) अन्य न्यायालय को निष्पादन के लिए भेजेगा।

(क) यदि वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध डिक्री पारित की गई है, ऐसे अन्य न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारवार करता है या अभिलाभ के लिये स्वयं काम करता है, अथवा

(ख) यदि ऐसे व्यक्ति की सम्पत्ति जो ऐसी डिक्री की तुष्टि के लिये पर्याप्त हो, डिक्री पारित करने वाले न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर नहीं है और ऐसे अन्य न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर है, अथवा

(ग) यदि डिक्री उसे पारित करने वाले न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के बाहर स्थित स्थावर सम्पत्ति के विक्रय या परिदान का निर्देश देती है, अथवा

(घ) यदि डिक्री पारित करने वाला न्यायालय किसी अन्य कारण से जिसे वह लेखबद्ध करेगा, यह विचार करता है कि डिक्री का निष्पादन ऐसे अन्य न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिये।

(2) डिक़ी पारित करने वाला न्यायालय स्वप्रेरणा से उसे सक्षम अधिकारिता वाले किसी अधीनस्थ न्यायालय को निष्पादन के लिये भेज सकेगा।

(3) इस भाग के प्रयोजनों के लिये, किसी न्यायालय को सक्षम अधिकारिता न्यायालय समझा जायेगा यदि उस न्यायालय को डिक्री के अन्तरण के लिये आवेदन करने के द्वारा समय, ऐसे न्यायालय को उस वाद का विचारण करने की अधिकारिता होती जिसमें ऐसे डिक्री पारित की गई थी।

(4) इस धारा की कोई बात डिक्री पारित करने वाले न्यायालय को, उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से बाहर किसी व्यक्ति या सम्पत्ति के विरुद्ध ऐसी डिक्री निष्पादित करने के लिये अधिकृत करने वाली नहीं समझी जायेगी।

अन्तरित न्यायालय के अधिकार 

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 42 के अन्तर्गत न्यायालय को डिक्री के निष्पादन से सम्बन्धित वही शक्तियाँ प्राप्त हैं जो उस न्यायालय को प्राप्त हैं जिसने डिक्री पारित किया था। दूसरे शब्दों में अन्तरिती न्यायालय डिक्री के निष्पादन के लिये उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो वह न्यायालय करता जिसने डिक्री पारित किया है। अन्तरिती न्यायालय को निष्पादन के लिये सभी अधिकार नहीं प्राप्त हैं।

अन्तरिती न्यायालय को वही अधिकार प्राप्त हैं जैसे उसे अपने द्वारा पारित डिक्री में होता। अंतरिती न्यायालय को जो डिक्री निष्पादन के लिये भेजी गई है, उसे निष्पादित करना चाहिये और इस उद्देश्य के लिये उसके पास शक्तियाँ हैं, परन्तु ऐसे न्यायालय को डिक्री का निष्पादन अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है, सिवाय आदेश 21, नियम 26 में वर्णित परिस्थितियों के।

अंतरिती न्यायालय सम्पत्ति की बिक्री चाहे ऐसी सम्पत्ति उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से बाहर ही क्यों न हो, कर सकती है ठीक उसी तरह, जिस तरह अंतरण करने वाला न्यायालय करता है। अंतरिती न्यायालय ही उस व्यक्ति को जो न्यायालय के आदेशों की अवमानना करते हैं या डिक्री की अवज्ञा करते हैं या उसके निष्पादन में बाधा डालते हैं, दण्डित कर सकेगा ऐसे ही मानो डिक्री उसने ही पारित की हो।

डिक्री के निष्पादन में आवश्यक विलम्ब न हो इसलिये अब धारा 42 में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अन्तरिती न्यायालय की अधिकार सीमा में या उसकी शक्तियों में निम्नलिखित –

(1) धारा 39 के अधीन किसी अन्य न्यायालय को निष्पादन के लिये डिक्री भेजने की शक्ति, भी सम्मिलित हैं|

(2) धारा 50 के अधीन मृत निर्णीत ऋणी के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध डिक्री का निष्पादन करने की शक्ति,

(3) डिक्री को कुर्क करने का आदेश देने की शक्ति ।

परन्तु अंतरिती न्यायालय को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं।

(1) डिक्री के अंतरिती की प्रेरणा से निष्पादन का आदेश देने की शक्ति,

(2) किसी फर्म के विरुद्ध पारित डिक्री की दशा में आदेश 21 के नियम 50 के उपनियम (1) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) में निर्दिष्ट व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसी डिक्री के निष्पादन की इजाजत देने की शक्ति ।

अन्तरिती न्यायालय की अधिकारिता

निष्पादन के लिये जो डिक्री अंतरिती न्यायालय को भेजी गई है उस पर अंतरिती न्यायालय की अधिकारिता तब तक जारी रहती है जब तक कि निष्पादन की कार्यवाही उससे वापस नहीं ले ली जाती है या अन्तरिती न्यायालय धारा 41 के अन्तर्गत प्रमाण पत्र नहीं भेज देता।

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shubham yadav

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