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कोठारी आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग) के गुण और दोष

कोठारी आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग) के गुण और दोष
कोठारी आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग) के गुण और दोष

कोठारी आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग) के गुण और दोष

शिक्षा आयोग का भारतीय शिक्षा के इतिहास में अभूतपूर्व स्थान है, क्योंकि आयोग ने देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में परिवर्तित व परिवर्धित करने की सिफारिश करके शिक्षा को अत्यन्त व्यावहारिक व उपयोगी बनाने का प्रयास किया है। कुछ विद्वानों ने आयोग के कुछ सुझावों एवं संस्तुतियों के सम्बन्ध में आयोग की आलोचना की है। अतः आयोग के गुण/विशेषताओं और दोष / सीमाओं का विवेचन आवश्यक है और इन विशेषताओं व दोषों का विवेचन / मूल्यांकन हम भारत की आज की परिस्थितियों और भविष्य की आवश्यकताओं के आधार पर करेंगे ।

कोठारी आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग) के गुण (Characteristics of Kothari Commission)

आयोग के सुझावों व संस्तुतियों के आधार पर निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टव्य हैं-

1. कोठारी आयोग ने केन्द्र में सशक्त प्रशासनिक ढाँचे और प्रान्तों में समान प्रशासनिक ढाँचे का सुझाव देते हुए शिक्षा की एक समान संरचना प्रस्तुत की, जो लोकतन्त्रीय भारत के लिए उत्तम सुझाव था और इससे देश की भावी शिक्षा में समरूपता आयेगी।

2. आयोग ने क्रमिक व समयबद्ध शैक्षिक नियोजन के आधार पर वर्तमान और भविष्य की माँगों के आधार पर राष्ट्रीय लक्ष्यों व उपलब्ध संसाधनों के आधार पर 20 वर्षों के अन्तर 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा योजना, माध्यमिक स्तर पर प्रवेश लेने वाले 70% सामान्य बच्चों के लिए मध्यम स्तर की शिक्षा पूर्ण करने और इनमें से भी योग्य व सक्षम बच्चों हेतु उच्च शिक्षा की व्यवस्था करने का सुझाव दिया ।

3. आयोग ने समय की माँग को देखते हुए शिक्षा के अभिनव उद्देश्यों का निर्धारण किया तथा शिक्षा को उत्पादन व रोजगारपरक बनाने हेतु शिक्षा के व्यावसायीकरण पर जोर दिया।

4. उच्च शिक्षा के विस्तार पर रोक व उन्नयन पर बल दिया ।

5. आयोग ने क्षेत्र की आवश्यकतानुसार व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था करने, पाठ्यक्रम को अद्यतन बनाने व सैद्धान्तिक ज्ञान की अपेक्षा प्रायोगिक प्रशिक्षण पर जोर दिया।

6. आयोग ने शिक्षकों की स्थिति में सुधार करने हेतु उनके वेतनमान, पदोन्नति, कार्यएवं सेवा दशाओं आदि के विषय में महत्त्वपूर्ण संस्तुतियां प्रस्तुत करके शिक्षकों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार करने का प्रयास किया।

7. आयोग ने शिक्षक शिक्षा के सम्बन्ध में उपयोगी सुझाव व संस्तुतियाँ प्रस्तुत करके शिक्षक शिक्षा में सुधार लाने का प्रयास किया।

8. देश के आधुनिकीकरण हेतु विज्ञान शिक्षा की आवश्यकता व उच्च शिक्षा व वैज्ञानिक अनुसंधान पर अधिक व्यय करने का सुझाव दिया। इन्हीं सुझावों के अनुपालन से हमारा देश औद्योगिक क्षेत्र में उन्नति करने के साथ ही अन्तरिक्ष विज्ञान में भी आगे बढ़ रहा है।

9. आयोग ने विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में नामांकन हेतु राष्ट्रीय नामांकन नीति बनाने का सुझाव दिया था। इसके लिए आयोग ने विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियों को दिए जाने की सिफारिश की।

10. आयोग ने विकलांग बच्चों की शिक्षा, पिछड़े वर्गों की शिक्षा और जनजातीय लोगों की शिक्षा के लिए विशेष सुझाव दिए ताकि वे भी सम्मान के साथ आगे बढ़ सकें।

11. आयोग ने स्कूल स्तर पर भाषाओं के अध्ययन हेतु संशोधित त्रिभाषा सूत्र प्रस्तुत किया था, जिससे भाषा की समस्या का समुचित निदान किया जा सका।

12. आयोग ने उच्च शिक्षा में भी क्षेत्रीय भाषाओं को शिक्षण का माध्यम बनाने का सुझाव देकर अंग्रेजी भाषा के वर्चस्व को कम करने का प्रयास किया।

13. आयोग ने विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में निर्देशन व परामर्श सेवाओं की व्यवस्था करने का सुझाव देकर छात्र/छात्राओं की विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु मार्ग प्रशस्त किया।

14. आयोग ने मूल्यांकन की विधियों में सुधार करने का सुझाव देकर परीक्षा प्रणाली को दोषमुक्त बनाने का प्रयास किया।

15. आयोग ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को सशक्त बनाने का सुझाव दिया व इसे उच्च शिक्षा के लिए समस्त प्रतिनिधित्व करने का संस्तुति की।

16. आयोग ने स्पष्ट किया कि भारत की 70% जनता के कृषि पर निर्भर होने के कारण कृषि को कार्यानुभव में विशेष स्थान दिये जाने की अनुशंसा करते हुए पॉलिटेक्निक कॉलेजों में कृषि की शिक्षा की व्यवस्था व महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में कृषि की उच्च शिक्षा व शोध कार्य की व्यवस्था का सुझाव दिया, जो इस देश के लिए वरदान साबित हुआ।

17. उच्च शिक्षा में भीड़ को रोकने के लिए चयनात्मक प्रवेश प्रणाली अपनाने की संस्तुति की।

18. आयोग ने इंजीनियरिंग शिक्षा को सुदृढ़ बनाने हेतु विशेष सुझाव दिया तथा विज्ञान के क्षेत्र में मौलिक अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए उपयोगी सुझाव दिये।

19. आयोग ने प्रौढ़ शिक्षा का व्यापक स्वरूप व उचित योजना प्रस्तुत करते हुए-निरक्षर प्रौढ़ों को साक्षर बनाना, साक्षर प्रौढ़ों को साक्षर बनाए रखना व अपनी शैक्षिक योग्यता बढ़ाने के अवसर देना आदि सुझाव दिये। साथ ही इस प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु शिक्षित युवक-युवतियों, शिक्षक-शिक्षार्थियों, ग्राम सेविकाओं, समाज कल्याण विभाग और समाज सेवी संगठनों का सहयोग लेना, विद्यालयों को सामुदायिक केन्द्र बनाना, पत्राचार पाठ्यक्रम की व्यवस्था करना, स्थायी व सचल पुस्तकालयों की व्यवस्था करना जैसे ठोस सुझाव भी दिये।

20. आयोग ने शैक्षिक अवसरों की समानता पर बल देते हुए स्त्री-पुरुष हेतु समान पाठ्यक्रम, पिछड़े, अनुसूचित आदिवासी और पहाड़ी बच्चों के लिए विशेष आर्थिक सहायता व प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क बनाने, माध्यमिक, उच्च व व्यावसायिक शिक्षा में छात्रवृत्तियों की व्यवस्था करने पर बल दिया।

इन सभी संस्तुतियों का भारत की शिक्षा व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ा, परन्तु भारत अपनी कुछ सामाजिक, आर्थिक तथा योजनागत कमजोरियों के कारण इन सुझावों का पूरा लाभ नहीं उठा सका।

कोठारी आयोग (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग) सीमाएँ या दोष(Limitations) :

1. आयोग ने प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के संगठनात्मक स्वरूप को निर्धारित करते हुए कक्षा 11 व 12 के सम्बन्ध में अस्पष्ट सुझाव दिये। यह स्पष्ट नहीं हो सका कि पहले से प्रचलित कक्षा-12 को माध्यमिक शिक्षा में लिया जाना अथवा उसे विश्वविद्यालयी शिक्षा का अंग मानना है।

2. आयोग द्वारा प्रस्तुत शिक्षा संरचना उलझी हुई व अस्पष्ट है। यही कारण है कि अगली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में 10+2+3 की समान शिक्षा संरचना घोषित की गयी।

3. आयोग द्वारा प्रस्तावित प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा के सुझाव भ्रामक प्रतीत होते हैं, क्योंकि कहीं माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की बात कही गई है, तो कहीं विशिष्टीकरण की बात उच्चतर माध्यमिक स्तर पर की गई है, कहीं माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र अपनाने की बात कही गई है, तो कहीं इस स्तर पर अंग्रेजी, रूसी व फ्रेंच भाषाओं की शिक्षा की व्यवस्था की बात कही गई है, जिसके कारण इनके सुझावों में पंचमेल खिचड़ी की भावना निहित / प्रतीत होती है।

4. आयोग द्वारा प्रस्तावित, शिक्षकों के वेतनमान और कार्य एवं सेवा दशाओं की संस्तुतियाँ शिक्षकों के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं हुई।

5. आयोग ने सामान्य शिक्षा व उच्च शिक्षा में एक ओर तो राष्ट्रीय नामांकन नीति निर्धारित की, वहीं दूसरी ओर चयनात्मक प्रवेश प्रणाली की सिफारिश करके सभी छात्रों हेतु उच्च शिक्षा के दरवाजे बन्द करने का भी प्रावधान कर दिया।

6. आयोग की अधिकांश सिफारिशें आदर्शवादी व अव्यावहारिक होने के कारण भी इनका क्रियान्वयन संभव नहीं हो सका। उदाहरणार्थ आयोग द्वारा देश में वरिष्ठ विश्वविद्यालय की स्थापना एवं विश्वविद्यालय शिक्षा के उन्नयन सम्बन्धी प्रदत्त सुझाव धन के अभाव में क्रियान्वित नहीं हो सके। इसी प्रकार स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित सुझाव भी स्त्री शिक्षा का विशेष विकास नहीं कर सके।

7. आयोग ने भाषा समस्या के समाधान हेतु जो त्रिभाषा सूत्र प्रस्तुत किया उससे भी भाषा समस्या का सर्वमान्य हल नहीं निकल सका। इसके साथ ही संस्कृत भाषा की उपेक्षा भी हुई।

8. आयोग द्वारा निर्धारित शैक्षिक लक्ष्य एकतरफा प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनके द्वारा प्रयोगवादी उत्पादन प्रधानता पर तो ध्यान दिया गया, परन्तु शिक्षा के शाश्वत् मानवीय उद्देश्यों की अनदेखी कर दी, जिससे व्यक्ति केवल धन कमाने के उद्देश्य से शिक्षा प्राप्ति की ओर प्रेरित होता दिखता है

9. आयोग द्वारा विज्ञान व प्रौद्योगिकी शिक्षा पर विशेष बल दिये जाने से बालकों का नैतिक व आध्यात्मिक विकास अवरुद्ध-सा हो गया था।

अतः कोठारी आयोग की सिफारिशों का सामान्य अवलोकन करने पर मिश्रित प्रभाव सामने आता है । इसके कुछ सुझाव तो बहुत उपयोगी व श्रेष्ठ प्रतीत होते हैं, तो कुछ में गंभीर दोष दिखते हैं इन गुणों व दोषों की उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि आयोग द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रौढ़ शिक्षा, शिक्षक, शिक्षकों के वेतनमान तथा शिक्षा की उत्पादनोन्मुखता की प्रशंसा की जा सकती हैं, परन्तु इसकी भाषा नीति, वरिष्ठ विश्वविद्यालयों की स्थापना तथा अस्पष्ट धारणायें आदि भारत की शिक्षा को अपेक्षित गुणवत्ता प्रदान करती नहीं प्रतीत होती है। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि इसने भारतीय शिक्षा प्रणाली को विशेष प्रभावित नहीं किया।

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shubham yadav

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