समाजशास्‍त्र / Sociology

घरेलू हिंसा का अर्थ | घरेलू हिंसा की अवधारणा | घरेलू हिंसा के स्वरूप

घरेलू हिंसा का अर्थ
घरेलू हिंसा का अर्थ

घरेलू हिंसा का अर्थ या घरेलू हिंसा की अवधारणा

भारतीय समाज में अनेक प्रकार की समस्यायें पायी जाती हैं, जिनका समाधान करने के लिए परिवार का प्रत्येक सदस्य प्रयत्नशील रहता है, किन्तु कभी-कभी पारिवारिक समस्यायें इतना विकराल रूप धारण कर लेती हैं कि परिवार के सदस्यों द्वारा उनका समाधान कर पाना असम्भव हो जाता है इस स्थिति में परिवार के सदस्य हिंसा का सहारा लेते हुए हिंसात्मक रूप धारण कर लेते हैं। सामान्यतः जब-जब परिवार के किसी सदस्य द्वारा हिंसा की जाती है तो उसे पारिवारिक या घरेलू हिंसा कहते हैं, लेकिन आज घरेलू हिंसा का आशय मुख्य रूप से महिलाओं के प्रति हिंसा से या परिवार की महिला द्वारा की जाने वाली हिंसा को पारिवारिक हिंसा के रूप में जाना जाता है। आम समाज में महिला अपराधों में निरन्तर वृद्धि हो रही है जिसके कारण पारिवारिक हिंसा में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। आज के दैनिक समाचार-पत्रों में प्रतिदिन कोई न कोई महिला अपराध की जानकारी मिलती है। सास-बहू के झगड़े और पति-पत्नी के झगड़े तो आज के समय में सामान्य बात बन गयी है। इस प्रकार अनेकों ऐसी बातें हैं जोकि घरेलू हिंसा को जन्म देती हैं। वर्तमान समय की लड़कियाँ शादी होने के पश्चात् जब दूसरे परिवार में जाती हैं तो उन्हें बदला हुआ वातावरण मिलता है जिसमें अपने आप को जल्दी ढाल नहीं पाती हैं, जिसके कारण आपसी विवाद होने लगता है और वे विवाद बढ़ते बढ़ते हिंसात्मक रूप धारण कर लेता हैं।

वर्तमान समय में इस समस्या के समाधान हेतु अनेकों प्रयत्न किए जा रहे हैं। इस समस्या पर व्यापक विचार-विमर्श एवं विभिन्न संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में अनेकों कानूनों का निर्माण भी किया गया है।

घरेलू हिंसा के स्वरूप (Forms of Domestic Violence)

घरेलू हिंसा के स्वरूप निम्नलिखित हैं-

1. दहेज हत्यायें- जब किसी लड़की की शादी होती है और वह अपने साथ दहेज के रूप में कीमती सामान नहीं ले जाती है तो यदि उसके ससुराल वाले लोभी प्रकृति के होते अपने घर से दहेज में नकदी व सामान लाने के लिए मजबूर करते हैं। कभी-कभी तो वे बहू को मारते-पीटते भी हैं।

2. पत्नी को पीटना- यद्यपि भारतीय हिन्दू समाज में पत्नी को गृहलक्ष्मी माना जाता है। यह तक कि किसी भी धार्मिक कार्य में पत्नी का होना अनिवार्य होता है क्योंकि हिन्दू समाज की ऐसी मान्यत है कि यदि बिना पत्नी के कोई धार्मिक कार्य किया जाता है तो उसका फल नहीं मिलता है।

3. विधवाओं के प्रति हिंसा- भारतीय समाज में विधवाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय है। इस समाज में सम्मान नहीं मिलता है बल्कि इनका अपमान व निरादर किया जाता है। इनके परिवार के साथ. साथ समाज भी इनके साथ दुर्व्यवहार एवं अत्याचार करता है। परिवार के ही लोग इनके साथ अनतिक कार्य करते हैं और धोखे से इनकी सम्पत्ति हड़प लेते हैं।

4. कन्या वध तथा भ्रूण हत्या- भारतीय समाज शुरू से ही पुरुष प्रधान रहा है। इस समाज में आज भी लड़कियों की अपेक्षा लड़कों को अधिक मान्यता दी जाती है। क्योंकि ऐसा माना जाता है भ लड़कों के बिना श्राद्ध व तर्पण नहीं हो सकता तथा उत्तराधिकारी के रूप में भी लड़कों का होना आवश्यक है।

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shubham yadav

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