इतिहास

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल | Period of Chandragupta Maurya’s rule in Hindi

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल

चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनकाल (Period of Chandragupta Maurya’s rule)- चन्द्रगुप्त एक महान् सेनानायक विजेता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी था। उसका शासन-प्रबन्ध एक आदर्श शासन प्रबन्ध था। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन-प्रबन्ध को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-

(1) केन्द्रीय शासन, (2) प्रान्तीय शासन तथा (3) स्थानीय शासन ।

1. केन्द्रीय शासन (Central rule) – चन्द्रगुप्त के शासन का स्वरूप एकात्मक था। शासन में राजा का स्थान सर्वोच्च था। मन्त्री, पुरोहित, राजदूत और आमात्य आदि की नियुक्ति उसी के द्वारा होती थी। मैगस्थनीज के अनुसार राजा का पद सर्वोच्च होता था परन्तु वह दिन-रात जन-कल्याण में लगा रहता था। वह प्रजा के कष्ट दूर करने का सदा प्रयास करता था । केन्द्रीय शासन के अंग इस प्रकार थे

(1) मन्त्रि-परिषद् (Mantri Parishad) – राजा को सलाह देने तथा शासन संचालन में सहायता देने के लिये मन्त्रि-परिषद् होते थे। राजा योग्य और विश्वासपात्र व्यक्तियों को ही मन्त्री पद पर नियुक्त करता था।

(2) आमात्य (Amatya) – शासन को उचित प्रकार से चलाने के लिये कौटिल्य के अर्थशास्त्र में विभिन्न विभागों का उल्लेख आया है। ये विभाग संख्या में 18 हैं। प्रत्येक विभाग का संचालक आमात्य होता था।

(3) अन्य पदाधिकारी (Other officers) – आमात्यों के नीचे कोषाध्यक्ष, अकाराध्यक्ष, लोहाध्यक्ष तथा मुद्राध्यक्ष आदि होते थे।

2. प्रान्तीय शासन (Provincial rule ) – चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य अत्यन्त विशाल था, अत: शासन की सुविधा के लिये साम्राज्य को अनेक प्रान्तों में विभाजित कर दिया गया। प्रान्तों के शासन का भार मुख्यतया राजकुमारों या राजकुल के किसी व्यक्ति को दिया जाता था। राजकुमारों की सहायता के लिये महापात्रों की नियुक्ति की जाती थी। केन्द्रीय गुप्तचर विभाग राजनीतिक दशा पर नियन्त्रण रखता था।

3. स्थानीय शासन (Regional rule) – प्रान्त जिलों में विभाजित थे। जिले विषय या आहार कहे जाते थे। जिले के अधिकारी स्थानिक कहकर पुकारे जाते थे। इन अधिकारियों का मुख्य कार्य नदियों की देखरेख, भूमि की पैमाइश करना आदि था। स्थानीय शासन दो रूपों में था-

(1) ग्राम शासन (Village rule ) — गाँव के शासक को ग्रामिक कहकर पुकारा जाता था। ग्रामिक गाँव का शासन-प्रबन्ध ग्राम समिति की सहायता से करता था। पाँच या दस गाँवों के शासक को गोप कहा जाता था।

(2) नगर का शासन (Nagar rule) – नगर-शासन का वर्णन मैगस्थनीज की इण्डिका से ज्ञात होता है। मैगस्थनीज के अनुसार नगर का शासन-प्रबन्ध एक अध्यक्ष द्वारा संचालित होता था। अध्यक्ष की सहायता के लिये एक नगरपालिका समिति थी, जिसमें प्राय: 30 सदस्य थे। इस समिति की 6 उप-समितियाँ थीं। प्रत्येक उप-समिति में पाँच सदस्य होते थे।

न्याय-व्यवस्था (Judiciary)- राजा राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश था। अर्थशास्त्र में दो प्रकार के न्यायालयों का उल्लेख आया है। (1) धर्मस्थीय’ जो कि दीवानी के न्यायालय होते थे। (2) दूसरे, ‘कष्ट शोधन’ थे, जिनमें फौजदारी के निर्णय होते थे। निर्णय निष्पक्ष होते. थे। मौर्यकालीन दण्ड प्रणाली कठोर थी। जुर्माने से लेकर प्राण-दण्ड तक की व्यवस्था थी। प्राण-दण्ड मुख्यतया कलाकार को पंगू कर देने या बिकी हुई वस्तुओं पर कर न देने के अभियोग में दिया जाता था। झूठी गवाही देने पर भी अंग-भंग कर दिया जाता था।

सैन्य संगठन (Organisation of army ) – प्लुटार्च और प्लानी के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना अत्यन्त सुसंगठित और विशाल थी। मैगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त की सेना का संगठन इस प्रकार बताया है-

(1) 6,00,000 पैदल सेना, (2) 30,000 घुड़सवार, (3) 9,000 गज सेना तथा (4) 8,000 रथ सेना। मैगस्थनीज के अनुसार इस विशाल सेना का संचालन 6 समितियों द्वारा होता था। ये समितियाँ थीं— (1) नौ सेना, (2) पैदल सेना, (3) अश्व सेना, (4) रथ सेना, (5) गज सेना तथा (6) रसद तथा सेना ले जाने वाली समिति सेना का सर्वोच्च पदाधिकारी सेनापति होता था परन्तु युद्ध स्थल पर सेना का संचालन राजा स्वयं करता था। सैनिकों को निश्चित समय पर वेतन मिलता था।

गुप्तचर विभाग (Intelligence department) – गुप्तचर शासन व्यवस्था के प्रमुख अंग थे। कौटिल्य ने गुप्तचर विभाग पर विशेष रूप से बल दिया। गुप्तचर मुख्यतया शासकीय पदाधिकारियों के कार्यों की सूचना एकत्र करते थे तथा सर्वसाधारण की भावनाओं का पता लगाते थे और विदेशी शत्रुओं की गतिविधियों पर दृष्टि रखते थे। स्त्रियों से भी जासूसी का काम लिया जाता था।

राजकीय आय (State income) – अर्थशास्त्र में राजकीय आय-व्यय का विस्तार से वर्णन किया गया है। राज्यकोष में उपज का प्राय: 1/6 भाग एकत्रित किया जाता था। तट कर और निर्यात-कर भी लगते थे। बिक्री कर भी वसूल होता था। जुआरियों पर भी कर लगाये जाते थे। अर्थ-दण्ड भी राजकीय आय का एक साधन था। अतः चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन-प्रबन्ध अत्यन्त सुव्यवस्थित और अनुशासनबद्ध था।

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shubham yadav

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