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जनसंचार के माध्यम
जन समुदाय तक कोई भी संदेश अनेक माध्यमों के द्वारा पहुँचाया जाता है। वर्तमान समय में जीने वाला शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो किसी न किसी जनसंचार माध्यम से जुड़ा न हो। सच पूछा जाए तो आज के मनुष्य का विकास जनसंचार माध्यमों के घेरे के भीतर हो रहा है और हर व्यक्ति, चाहे वह वृद्ध हो या छोटा बच्चा, साक्षर हो या निरक्षर, व्यापारी हो या गाँव में खेती करने वाला किसान सभी जनसंचार माध्यमों से प्रभावित हैं, अतः जनसंचार माध्यमों की एक बहुत बड़ी भूमिका हो जाती है कि वह सभी वर्ग, सभी कार्यक्षेत्र से जुड़े, सभी उम्र के लोगों की अपेक्षाओं की पूर्ति करे। समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, रेडियो तथा टेलीविजन कार्यक्रमों में विविधताएँ लाकर सभी वर्ग के पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों का सन्तुष्ट करने की चेष्टा की जाती है। समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ जैसे छपित माध्यम समय-सीमा के बन्धनों से विमुक्त रहते हैं तथा इन्हें कभी भी पढ़ा जा सकता है किन्तु रेडियो तथा टेलीविजन कार्यक्रमों का प्रसारण निश्चित समय पर होता है। इनके प्रसारणा का समय निश्चित करते समय श्रोताओं एवं दर्शकों का ध्यान रखा जाता है। जैसे गृहिणियों के लिए अधिकांश महिलोपयोगी कार्यक्रम दोपहर को प्रसारित किये जाते हैं। इसी प्रकार बच्चों के कार्यक्रम सामान्यतः रविवार को तथा संध्या समय प्रसारित होते हैं, जिससे बच्चे उनका आनन्द उठाएँ और लाभान्वित हों।
जनसंचार के माध्यम के रूप में प्रेस
आधुनिक अनसंचार माध्यमों में छपित माध्यम सबसे पुराने हैं। इसमें सामयिक तथा दैनिक समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, परिपत्र, सूचना-पत्र, विज्ञप्ति इत्यादि सम्मिलित हैं। इनका तंत्र काफी विस्तृत होता है तथा इस तंत्र से अनेक लोगों का जुड़ाव रहता है, जैसे-सम्पादक, उप-सम्पादक, संवाददाता, विशेष संवाददाता, स्तम्भ-सम्पादक, रिपोर्टर, प्रेस फोटोग्राफर, ले आउट डिजाइनर, मेकअप मैन, पेजमेकर, आर्टिस्ट, पेस्टर इत्यादि। ये सभी पत्र-पत्रिकाओं के मुख्यालय से सम्बद्ध होते हैं। कई पत्रिकाओं और समाचार पत्रों का अपना प्रेस या मुद्रणालय होता है। प्रेस में प्रेसमैन, कम्पोजिटर, प्रूफरीडरर, बाइन्डर आदि रहते हैं। आजकल कम्प्यूटर द्वारा कम्पोजिंग तथा पेजमेकिंग होने लगीं है। विभिन्न शहरों, कस्बों और गाँवों से समाचार भेजने का काम संवाददाताओं तथा समाचार एजेन्सियों के माध्यम से होता है। ऐसी अनेक समाचार एजेन्सियाँ हैं जो स्वतंत्र रूप से काम करती हैं तथा विभिन्न समाचार पत्रों, रेडियो तथा टेलविजन का भी समाचार देती हैं। पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापन एजेन्सियों के माध्यम से दिये जाते हैं।
आधुनिक जीवन में छपित माध्यम अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाचार-पत्र दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक या द्विवार्षिक होते हैं। इनमें सभी प्रकार के समाचारों के अतिरिक्त, विविध विषयक लेख, सम्पादकीय टिप्पणियाँ, कहानियाँ, कविताएँ, संस्मरण, व्यंग्य, साक्षात्कार, स्वास्थ्य एवं पोषण सम्बन्धी चर्चे, ज्योतिष-विचार, बाजार- भाव, खेल समाचार, धर्म चर्चा इत्यादि से सम्बन्धित सामग्रियाँ छपती हैं। इनमें सभी उम्र तथा समाज के सभी वर्ग के लोगों की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए समाचारों और रचनाओं का चयन किया जाता है। कुछ पत्रिकाएँ केवल एक ही विधा या एक ही वर्ग के पाठकों के निमित्त होती हैं, जैसे-बालोपयोगी, महिलोपयोगी, खेल-जगत सम्बन्धी, ज्योतिषशास्त्र, आरोग्यशास्त्र इत्यादि से सम्बन्धित इसी प्रकार कुछ पत्रिकाएँ केवल राजनीति या फिल्म या फैशन से सम्बन्धित या किसी अन्य खास विद्या से ही सम्बन्धित होती हैं।
सन् 1780 में भारत में प्रेस से जुड़े इतिहास की नींव पड़ी थी, जब जेम्स ऑगस्टस हिके ने बंगाल गजट (कलकत्ता जेनरल एडवरटाइजर) नामक प्रथम समाचार-पत्र के प्रकाशन का शुभारम्भ किया। हिके से प्रभावित होकर ही मेसिक तथा रीड ने इसी वर्ष इण्डिया गजट का प्रकाशन प्रारम्भ किया। सन् 1784 में कलकत्ता गजट का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ किन्तु यह अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। सन 1785 में भारत के अन्य नगरों से भी समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे जिनमें द मद्रास कोरिअर (1785), द बोम्बे हेराल्ड (1789), द कोरिअर (1790), द बॉम्बे गजट आदि प्रमुख हैं। इस काल में प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्र प्रायः अंग्रेज अफसरों द्वारा संचालित किये जाते थे और ये अफसर ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा किसी न किसी रूप में प्रताड़ित थे तथा अपनी बात अन्य लोगों तक पहुँचाने के लिए इन्होंने समचार पत्रों को माध्यम बनाया।
भारत में पत्रकारिता का प्रारम्भिक श्रेय निश्चित रूप से श्री गंगाधर भट्टाचार्य को जाता है जिन्होंने सन 1816 में बंगाल गजट प्रकाशित किया। दुर्भाग्यवश यह पत्र केवल एक वर्ष चल पाया। सन् 1818 में श्री रामपुर के ईसाई मिशनरी पादरी जे. सी. मार्शमैन ने बंगला भाषा में दिग्दर्शन नामक मासिक पत्रिका तथा कुछ समय बाद समाचार दर्पण नामक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। सन् 1821 में बंगला में संवाद कौमुदी तथा सन् 1822 में मरीत-उल- अखबार (फारसी) क साथ राजा राममोहन राय ने प्रकाशन के क्षेत्र में पदार्पण किया। इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने ब्रह्म समाज का प्रचार-प्रसार तो किया ही इसके साथ ही भारत में प्रेस स्वतंत्रता को चुनौती भी दी। राजा राममोहन राय द्वारा प्रकाशित इन दोनों पत्रों ने समाज सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन् 1822 में ही फरदून जी मरजहाँ ने गुजराती भाषा में मुम्बई ना समाचार का प्रकाशन प्रारम्भ किया जिसकी व्यापार जगत में धूम रही। दादाभाई नौरोजी ने आंग्ल- गुजराती भाषाओं में रस्त गुफ्तार का प्रकाशन प्रारम्भ कर लोगों की भावनाओं को प्रकाशित करने की दिशा में अपना योगदान दिया।
हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र होने का गौरव कलकत्ता से प्रकाशित उदन्त मार्तण्ड (1826). को जाता है। सन् 1829 में राजा राममोहन राय ने हिन्दी भाषा में बंगदूत का प्रकाशन आरम्भ किया। काशी से बाबू हरिश्चन्द्र ने कवि वचनसुधा (1867), हरिश्चन्द्र मैगजीन (1873) तथा बालबोधिनी पत्रिका (1874) निकाली। बालबोधिनी पत्रिका महिलाओं के लिए एक मासिक पत्रिका थी। हिन्दी प्रदीप (1877) के प्रकाशन का श्रेय बालकृष्ण भट्ट को जाता है। राजा कालाकांकर ने सन् 1883 में हिन्दुस्तान का प्रकाशन शुरू किया जिसे हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओं में लंदन से छपवाकर मँगवाया जाता था। भारत की अन्य भाषाओं में भी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा। इनमें से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं- तमिल मैगजीन (1831 तमिल), जुदूत- कौल-अखबार (1833 फारसी), दिग्दर्शन (1840 मराठी), विजनाना निकशेपम (1840 मलयालम), कर्नाटका प्रकाशिका (1865 कन्नड़), अखबार श्री दरबार साहेब (1867 पंजाबी), आशा (उड़िया), जामे जमशेद (पारसी-गुजराती), पंयाम-ए-आजादी (1857 उर्दू) आदि।
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